बारिश के बाद खिलने वाली धूप के साथ आकाश में खिलता इन्द्रधनुष हर किसी के मन को मोह लेता है| कुदरत के इस नज़ारे का दीदार करने का मौका कुछ खास मौसमों में ही नसीब होता है| पर एक इन्द्रधनुष हमारे समाज का भी है जो हर मौसम में स्थायी रहता है| क्योंकि यह कुदरत की देन नहीं बल्कि हमारे समाज की देन है| इस इन्द्रधनुष के दो सिरे है – पहला, अमीरी और दूसरा,गरीबी। और इसके दो सिरों के बीच होती है – एक गहरी खाई| इस खाई में झांककर हम अपने समाज के कई कड़वे सच्च की परछाईयों को देख सकते है|
वैसे तो इस इन्द्रधनुष के दो सिरे अपने बीच की गहरी खाई की वजह से आपस में कभी नहीं मिलते है| पर इसकी सतरंगी चमक अक्सर अमीरी के सिरे से अपने स्वार्थों को लिए गरीबों की अँधेरी गलियों में गुम होती दिखाई है। गरीबी की इन गलियों में से एक है – वो बदनाम गली। यह वो गलियाँ है, जो सदियों से तथाकथित अमीर समाज की पैदाइश रहे ‘वहशी मर्दों’ की हवस भरी ज़रूरतों का बोझ अपने सिर लिए जिंदगी काटने को मजबूर है।
वेश्यावृति सही है या नहीं, मौजूदा समय में ये एक बड़ी बहस का हिस्सा है|
कहते है कि हमारे समाज में वेश्याओं की ज़रूरत सुरक्षा बल्व की तरह पड़ती है जो पुरुषों की कामप्रवृति का भार वहन करती है। गर इनका अस्तित्व न हो तो अवश्य ही अबोध स्त्रियों से बलात्कार किया जाएगा। इस संदर्भ में वेश्यावृति सामाजिक बुराई से प्रशंसनीय समाजसेवा में बदल जाती है। नतीजतन इन गलियों के खरीददार वहशी मर्द, लाचार औरतों के शोषकों की बजाय ज़िम्मेदार नागरिकों के सम्मान से सम्मानित कर दिए जाते है| और हमेशा की तरह औरतों के हिस्से आती है – भद्दी गालियाँ और तिरस्कार|
गौरतलब है कि यहाँ किस्सा सिर्फ तिरस्कार तक खत्म नहीं होता है, क्योंकि मानव तस्करी के ज़रिए जबरन वेश्यावृत्ति में धकेली जानी वाली बच्चियां अपने बचपन या यों कहें कि वजूद तक की परिभाषा भूल जाती है| वेश्यावृति सही है या नहीं, मौजूदा समय में ये एक बड़ी बहस का हिस्सा है| लेकिन आज हम बात कर रहे हैं उन मासूम लड़कियों की जिन्हें धोखे से तो कई बार जबरन वेश्यावृति के काम झोंक दिया जाता है| महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 30 लाख सेक्स वर्कर हैं, जिसमें 40 फीसद (यानी कि 12 लाख) नाबालिग़ है और इनमें से कुल 75 फीसद तस्करी के ज़रिए इस व्यापार में लायी गयी है|
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गरीब राज्यों की बच्चियां हो रही है तस्करी की शिकार
आज के समय में यौन व्यापार के लिए बच्चों की तस्करी का धंधा बहुत तेज़ी से फल-फूल रहा है| केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अनुमानों के अनुसार, हर साल कम से कम एक लाख बच्चे लापता हो जाते है| बाल श्रम के खिलाफ वैश्विक मार्च (ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर) ने पेशेवर यौन शोषण पर एक रिपोर्ट में कैलाश सत्यार्थी के हवाले से कहा था कि जवान बच्चियों को कोठों पर गुलाम बनाने के धंधे में 360 अर्ब डॉलर यानी कि 21 लाख करोड़ रूपये बना लिए जाते है| बाल श्रम के खिलाफ अपने काम के लिए 2014 में नोबेल शांति पुरूस्कार जीतने वाले सत्यार्थी ने इंगित किया कि उक्त राशि देश के जीडीपी के 20 फीसद के बराबर है|
मानव तस्करी के ज़रिए जबरन वेश्यावृत्ति में धकेली जानी वाली बच्चियां अपने बचपन या यों कहें कि वजूद तक की परिभाषा भूल जाती है|
गौरतलब है कि इन अपराधों में ज्यादातर शिकार भारत के सबसे गरीब राज्यों में से हैं, जिनमें असम, बंगाल, आंध्र प्रदेश, बिहार व उत्तर प्रदेश शामिल है| हाल के सालों में लोगों की आय में बढ़ोतरी हुए और वहीं दूसरी तरफ देह व्यापार में भी लगातार बढ़त हो रही है| शहरों में कई इलाकों में अब चोरी-छिपे कोठे पनपने लगे हैं| ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर के अनुसार, वेश्यावृत्ति के लिए मानव तस्करी का शिकार होने वाले लोगों में 90 फीसद से ज्यादा औरतें या बच्चियां होती हैं| भारत जिस्मफरोशी के इस धंधे में आपूर्ति करने वाला भी है, मांग पैदा करने वाला भी और पारगमन बिंदु भी|
मानव तस्करी से निबटने के लिए नदारद है सटीक नीति
बाल अधिकारों के लिए एचएक्यू सेंटर की 2016 की रिपोर्ट में यह कहा गया कि तस्करी में बढ़ोतरी की वजह बेहतर संपर्क, ज्यादा आवागमन और तेज़ी से शहरीकरण भी है| अब मोबाइल फ़ोनों के ज़रिए इंटरनेट का प्रचलन इतना बढ़ गया है कि धन्धेबाज़ फेसबुक जैसी सोशल मीडिया साइटों का इस्तेमाल भी जाल फैलाने के लिए करने लगे है|
इस व्यापार ने हमारी बच्चियों को क्रूरतापूर्वक अपना हिस्सा बनाना शुरू किया है|
सर्वोच्च न्यायालय की वकील अपर्णा भट्ट तर्क देती हैं कि किसी भी नए कानून के केंद्र में बच्चे होना चाहिए| भी हमारा कानून अभियोजन पर केंद्रित है, लेकिन इसमें पीड़ितों को संरक्षण आमतौर पर नदारद है| हर कोई इस बात से सहमत है कि एक नए कानून की ज़रूरत है| मानव तस्करी (रोकथाम) विधेयक का उद्देश्य केंद्र सरकार के अधीन एक ऐसी संस्थागत मशीनरी तैयार करना है, जो मानव तस्करी के मुद्दे पर केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मार्गदर्शन और प्राधिकार में सभी पक्षों से मिली जानकारी के आधार पर विचार कर सके| मौजूदा समय में, अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956, यौन अपराध से बाल संरक्षण अधिनियम (पाक्सो) 2012, किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और संगठित अपराधों से संबंधित भारतीय दंड संहिता की कई धाराएँ है| कानूनों की बहुलता का मतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के बीच अधिकार को लेकर टकराव है|
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वास्तविकता यह है कि मानव तस्करी से निबटने के लिए सुसंगत और एकीकृत रणनीति और जवाबदेहियों के स्पष्ट निर्धारण के अभाव में अनिश्चितता की हालात है| डाटा की कमी में भी साक्ष्य आधारित नियोजन में भी बाधा आ रही है|
इन तमाम पहलुओं को उजागर करने के बाद हमें समझना होगा कि ये समय वेश्यावृति सही है या नहीं, इस बहस से आगे बढ़कर अपने भविष्य को बचाने का है, क्योंकि इस व्यापार ने हमारी बच्चियों को क्रूरतापूर्वक अपना हिस्सा बनाना शुरू किया है| लगातार बच्चों के साथ बढ़ती यौन शोषण की घटनाएँ राष्ट्रीय नीति की प्राथमिकता बनती जा रही है|
स्रोत : इंडिया टुडे: 15 नवंबर,2017