दृश्य एक : तेईस-चौबीस साल की मानुषी एक बड़ी कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी| करियर में सफल मानुषी रिश्तों के मामले में ज्यादा सफल नहीं हो पायी| आकाश के साथ करीब तीन साल तक वो रिलेशनशिप में थी| तीसरे साल में जब मानुषी प्रेग्नेंट हुई तो उसने आकाश के साथ शादी करने का प्रस्ताव रखा, जिसे आकाश ने नकारते हुए मानुषी से ब्रेकअप कर लिया| मानुषी टूट चुकी थी| उसने गर्भ समापन करवाने का फैसला लिया| पर दुर्भाग्यवश उसने जिस चिकित्सा केंद्र को गर्भ समापन के लिए चुना वहां उसकी गोपनीयता का ध्यान नहीं रखा गया| नतीजतन जब दो साल बाद मानुषी की शादी रमेश से हुई तो कुछ महीनों बाद ही उसे इस बात का पता चल गया और उसने मानुषी को तलाक दे दिया| इतना ही नहीं मानुषी के घरवालों ने भी उससे अपना नाता तोड़ लिया, जिसके चलते मानुषी मानसिक रूप से बीमार हो गयी|
दृश्य दो : चार बच्चों की माँ विमला दूसरों के घरों में काम करके अपने बच्चों का पेट पालती थी| घर से लेकर रोटी कमाने की पूरी जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी क्योंकि उसके शराबी पति को शराब पीने और जुए खेलने से फुरसत ही नहीं मिलती थी| विमला जब पांचवी बार गर्भवती हुई तो उसने गर्भ समापन का फैसला लिया क्योंकि वो अब परिवार को और बढ़ाना नहीं चाहती थी| कैसे-तैसे पैसे जोड़कर उसने पास के चिकित्सा केंद्र (जहाँ कम पैसे में गर्भ समापन किया जाता था) में अपना गर्भ समापन करवाया| अप्रशिक्षित चिकित्सकों ने गर्भ समापन के दौरान इतनी लापरवाही बरती की विमला को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा|
दृश्य तीन : बीस साल की मीरा के साथ उसके गाँव के ही कुछ लड़कों ने मिलकर बलात्कार किया| लोक-लाज के कारण बलात्कार के खिलाफ कोई करवाई नहीं की गयी और इसके उलट मीरा की ही शादी की तैयारी की जाने लगी, जिससे इस बात का किसी को पता न चले| पांच महीने के बाद पता चला कि मीरा गर्भवती है| इस बात का पता चलते कि घर में मातम फ़ैल गया और मीरा को बुरा-भला कहने का दौर शुरू हुआ, जिसके चलते मीरा ने आत्महत्या कर ली|
वास्तविकता ये है कि गर्भ समापन कानून की नज़र में तो वैध है लेकिन इसे हमारे समाज ने अभी तक वैध नहीं माना है। उसके लिए आज भी ये अवैध है और तथाकथित मर्यादा के खिलाफ है।
मानुषी, विमला और मीरा हमारे समाज के तीन अलग-अलग तबकों के ताल्लुक रखने वाली महिलाएं थी| लेकिन इन सबमें एकबात जो समान थी वो था – गर्भ समापन| यानी कि अबॉर्शन| कहते हैं कि ‘जब कोई औरत गर्भ समापन कराने का फैसला कर लेती है तो गर्भ समापन की प्रक्रिया वहीं से शुरू हो जाती है|’ पर वास्तव में ये बात उतनी आसान नहीं है जितनी कि सुनने-बोलने और लिखने में लगती है| आधुनिकता के दौर में आज हम धड़ल्ले से समानता, स्वतन्त्रता और महिला अधिकार-सम्मान की बात करते है, लेकिन जब बात इसे जमीन पर उतारने की होती है तो हमें सांप सूंघने लग जाता है और इस बात का जीवन उदाहरण है – गर्भ समापन, जिसे आज भी हम पाप-पुण्य से जोड़कर देखते है और इसकी कीमत महिलाओं को अपनी जान गवांकर चुकानी पड़ती है|
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महिला-अधिकार का अहम हिस्सा है गर्भ समापन
गर्भ समापन महिलाओं के यौनिक-प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार का एक अभिन्न अंग है| ये महिलाओं के अपने शरीर पर नियन्त्रण और खुद के लिए निर्णय लेने की क्षमता है| पर पितृसत्तात्मक समाज में इसे समझना और स्वीकार करना अपने आप में बड़ी चुनौती है| गर्भ समापन को दुनियाभर में औरतें अपने जीवन पर अपना नियन्त्रण रखने के लिए अपनाती है| यह एक विकल्प है जो औरतें चुनती हैं| लेकिन यह सिर्फ उनका निजी मुद्दा नहीं रह जाता क्योंकि गर्भ समापन के मुद्दे पर सरकारों, स्वास्थ्य प्रणालियों – सरकारी और प्राइवेट, कानून, धर्म और समाज इन सभी की सोच एक अहम भूमिका अदा करती हैं|
जब कोई औरत गर्भ समापन कराने का फैसला कर लेती है तो गर्भ समापन की प्रक्रिया वहीं से शुरू हो जाती है|
1970 के दशक के अंत में गर्भ समापन अधिकारों के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय अभियान चलाया गया था, जिसमें ज्यादातर, यूरोप के राष्ट्रीय आंदोलनों के साथ-साथ उत्तर अमेरिकी और लैटिन अमेरिकी समूह भी शामिल थे| उस समय एशिया और अफ्रीका के अनेक हिस्सों में गर्भ समापन एक प्रतिबंधित विषय था और इसकी पैरवी करने वाले महिला स्वास्थ्य के पैरोकारों को ऐसा लगा कि वे ऐसे किसी नेटवर्क से जुड़ ही नहीं सकते हैं, जिसके नाम के साथ गर्भ समापन शब्द जुड़ा हुआ हो| इसके बाद साल 1984 में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय महिला और स्वास्थ्य बैठक में एक नई अवधारणा पर सहमति बनी, जिसमें प्रजनन अधिकारों को छोटे हिस्सों में न बांटकर, सम्पूर्ण रूप से देखा गया और इसके इस रूप को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने को ज़रूरी माना गया|
क्यों होता है गर्भ समापन का विरोध ?
आखिर समाज में गर्भ समापन विरोध का मुद्दा क्यों हैं? ये अपने आप में एक अहम सवाल है| ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पितृसत्तात्मक समाज में (जहाँ महिलाओं के अस्तित्व को बच्चा जनमने तक सीमित करके देखा जाता है|) महिलाओं के अधिकारों को अनदेखा करते हुए हमेशा भ्रूण की एक कमजोर छवि और गर्भ समापन की प्रक्रिया को क्रूर, मानवता-विरोधी और हत्या जैसे अपराध के रूप में प्रस्तुत किया जाता है| वास्तविकता ये है कि गर्भ समापन कानून की नज़र में तो वैध है लेकिन इसे हमारे समाज ने अभी तक वैध नहीं माना है। उसके लिए आज भी ये अवैध है और तथाकथित मर्यादा के खिलाफ है। जब तक समाज इस बात को स्वीकार नहीं करता कि महिलाओं के लिए गर्भ समापन सेवाएं ज़रूरी हैं और इसके लिए महिलाओं और गर्भ समापन सेवाप्रदाताओं को दंडित नहीं किया जाना चाहिए, तब तक शायद ही किसी असाधारण परिस्थिति को छोड़कर क़ानूनी गर्भ समापन सेवाएं प्रदान की जाएंगीं|
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गौरतलब है कि कोई भी देश जिस तरह का रवैया गर्भ समापन के प्रति रखता है वो महिला-अधिकार के मुद्दे पर उनकी गंभीरता और संवेदनशीलता को दर्शाता है| जो लोग मानते हैं कि असुरक्षित गर्भ समापन से ज्यादा महत्वपूर्ण कई मुद्दे हैं तो उनकी बात का सीधा मतलब यह होता है कि उनके लिए महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन के कोई मायने नहीं है| मानुषी, विमला और मीरा की कहानी से हम समझ सकते हैं कि गर्भ समापन महिला स्वास्थ्य और उनके प्रजनन अधिकार से जुड़ा कितना ज़रूरी मुद्दा है| अगर इसे सुरक्षित रूप से लागू नहीं किया जायेगा तो न जाने कितनी विमला को अपनी जान गंवानी पड़ेगी| पर यहाँ ये भी समझना है कि ये स्वास्थ्य सेवाएँ तभी लागू भी की जा सकेंगीं जब समाज का नजरिया इसके प्रति सकारात्मक होगा| वरना मीरा और मानुषी जैसी न जाने कितनी लड़कियों को लोक-लाज के नामपर अपने जीवन में तबाही लानी पड़ेगी|
यह लेख क्रिया संस्था के वार्षिक पत्रिका हिन्दी र्रिप्रोडक्टिव हेल्थ मैटर्स से प्रेरित है| इसका मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें|
#AbortTheStigma सुरक्षित गर्भसमापन के बारे में बातचीत को सामान्य करने के लिए क्रिया द्वारा चलाया जा रहा एक अभियान है। गर्भसमापन से जुड़ा कलंक और शर्मिंदगी सुरक्षित और कानूनी सेवाओं तक पहुंच में बाधा डालती है। हम भारत में गर्भसमापन के सेवाओं के बारे में मिथकों और गलतफहमी को दूर करना चाहते हैं और सभी के लिए प्रजनन न्याय को संभव बनाना चाहते हैं।
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तस्वीर साभार : pixelfusion3d/Getty Images