हाल ही में अपना भारत देश लोकतंत्र के महापर्व यानी कि चुनाव का साक्षी बना| अब यह दौ अपने आखिरी चरण पर है और 17 वीं लोकसभा चुनाव का प्रचार प्रसार अब थम चुका है। चारों तरफ सन्नाटा है। अब सभी को इंतजार है 23 मई का जब चुनाव का परिणाम आएगा। इस चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था नेशनल सिक्योरिटी यानी कि हमारे देश की सुरक्षा । इसके अलावा विपक्ष ने जो मुद्दे उठाए उस में भ्रष्टाचार खासकर राफेल और बेरोजगारी मुख्य था ।
चुनाव में अक्सर यह देखने को मिलता है कि महिलाओं से संबंधित मुद्दों को प्राथमिकता दी जाती है और उस पर बात होती है । लेकिन इस बार चुनाव के प्रचार प्रसार में देश की आधी आबादी यानी कि महिलाओं के मुद्दे नदारद की दिखाई पड़े । अच्छा भी है क्योंकि महिलाएं भी आखिर मतदाता हैं तो देश से जुड़े जो भी मामले हैं उस पर उनका मत तो जरूर महत्वपूर्ण है । लेकिन यहां बात करना यह जरूरी है कि क्या महिलाओं के मुद्दे प्राथमिकता से सभी पार्टी को उठाना चाहिए ?
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मेरा मानना है कि हां महिलाओं के मुद्दों पर बिल्कुल अलग से उसपर चर्चा होनी जरूरी है । इसका सबसे पहला कारण यह है कि आज भी हमारे लोकसभा में महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है| यानी कि 545 सीट में 61 सीट। विकसित देश और विकासशील देशों की बात करें तो उसकी अपेक्षा यह बहुत कम है । महिलाओं को आगे करने के लिए जब तक लोकसभा में महिलाएं ही नहीं होंगी जो कि महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बात कर सकें तो फिर इन पर जो कानून बनते हैं उस पर महिला की नजर से देखा जाना असंभव ही होगा| इसलिए बहुत जरूरी है कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व हो संसद में । दूसरा जरूरी कारण है महिला सुरक्षा जो हमेशा से इस देश में चिंता का कारण बना रहा है । इस चुनाव के दौरान भी हमने देखा अलवर और जम्मू-कश्मीर से एक के बाद एक बलात्कार की घटना सामने आई|
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इतना ही नहीं इस वीभत्स घटना का शिकार एक तीन साल की छोटी बच्ची भी हो जाती है । इसके बावजूद हमारे चुनाव में महिला सुरक्षा को लेकर सुनने को नहीं मिला । अब अगर हम एक नजर मेनिफेस्टो पर डाले तो दो प्रमुख पार्टी कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही मेनिफेस्टो में हमें महिला सुरक्षा एक मुद्दा दिखता है – भाजपा के स्पेलिंग मिस्टेक को नजरअंदाज कर दे तो|
आज भी हमारे लोकसभा में महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है|
लेकिन कांग्रेस ने प्राथमिकता से अपने मेनिफेस्टो में महिलाओं के लिए 33 आरक्षण की बात की है । कांग्रेस ने एक अच्छी पहल तो की है लेकिन टिकट देते समय कांग्रेस अपने इस वादे को अच्छी तरह नहीं निभा पाएगी, ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है । कांग्रेस के बजाय बीजेडी से नवीन पटनायक और तृणमूल कांग्रेस से ममता बनर्जी ने वास्तविक में टिकट वितरण में कम से कम 33 फीसद महिलाओं को टिकट दिया है। अब देखना यह है कि इस बार कितनी महिलाएं पहुंचती है लोकसभा में । और फिर बात करेंगे कि इस लोकसभा में क्या महिला आरक्षण बिल पास हो पाएगा?