संस्कृतिख़ास बात शिक्षा के ज़रिये हर बच्चे को स्कूल तक पहुँचाना ही मेरा मकसद है : पायल रॉय

शिक्षा के ज़रिये हर बच्चे को स्कूल तक पहुँचाना ही मेरा मकसद है : पायल रॉय

पायल रॉय एक स्टूडेंट और समाजसेविका हैं जिन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में ही जबलपुर की बस्तियों में जाकर वहाँ के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था।

समाज को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है यह तो हम सभी बखूबी जानते हैं। शिक्षा हर इंसान के व्यक्तित्व की बुनियादी नींव होती है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि आज भी इस देश में ऐसे बहुत से बच्चे हैं जिनके लिए स्कूल जाना एक सपने जैसा है। वे आर्थिक स्थिति से ज़्यादा अपने परिवार व समाज की पिछड़ी मानसिकता से जूझ रहे हैं। वे आगे बढ़ना तो चाहते हैं पर कामयाबी होने के लिए उनके पास कोई रास्ता नहीं होता गाँव और बस्तियों की इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए मध्य प्रदेश के धूमा गाँव की पायल रॉय ने अपने गाँव के साथ साथ शहर जबलपुर की बस्तियों में वो कर दिखाया जो दृढ़ संकल्प का एक अनूठा उदाहरण है।

पायल रॉय एक स्टूडेंट और समाजसेविका हैं जिन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में ही जबलपुर की बस्तियों में जाकर वहाँ के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। इसके कुछ साल बाद उन्होंने ‘शिक्षा’ नामक समाजसेवी संस्था की शुरुआत की जो ग्रामीण क्षेत्रों के उन बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का काम करती है जो कुछ कारणवश स्कूल जाने में असमर्थ है। रॉय की मेहनत का फल यह है कि आज उनकी क्लास का हर एक बच्चा स्कूल जाकर शिक्षा प्राप्त कर रहा है। हाल ही में हमने पायल रॉय से बातचीत की और ‘शिक्षा’ के साथ उनके इस सफर को गहराई से जाना।

आयुषी : आपको समाजसेवा और बच्चों को शिक्षित करने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

पायल : बचपन से ही मुझे पढ़ने का बहुत शौक रहा है। लेकिन मेरे गाँव के स्कूल में शिक्षक नहीं हुआ करते थे। जब मैं 11वीं कक्षा में आयी तब मुझे समझ आया कि शिक्षक ना होने की वजह से बहुत से बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है। इसके चलते मैंने अपनी कुछ सहेलियों के साथ मिलकर गाँव में आंदोलन किया जिसके बाद कलेक्टर खुद हमारे पास आये और हमारी मांगे पूरी की।

वहां से मैं आगे बढ़ी और जबलपुर शहर आकर अपने कॉलेज की पढ़ाई शुरु की। यहाँ कुछ समाजसेवी संस्थाओं के मार्गदर्शन में धीरे धीरे बच्चों को पढ़ना शुरू किया। उन बच्चों के साथ कदम से कदम मिलाया, उनकी परिस्थितियों को समझा, उनकी लगन को अपनी प्रेरणा का स्त्रोत बनाया ; तब जाकर शिक्षा का असली महत्त्व मुझे समझ आया। हालांकि मैं नहीं मानती की यह कोई समाजसेवा है, यह केवल समाजहित के लिए मेरा कर्तव्य है।

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आयुषी : शिक्षा” के शुरुआती दिनों में आपको कैसी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा?

पायल : जब मैंने जबलपुर की कुछ बस्तियों में पढ़ाना शुरू किया तब मुझे पता चला कि एक बस्ती के बच्चे शहर में भीख तक मांगने का काम करते हैं। ऐसे में उनके परिवार कि कमाई का सहारा भी वही हैं जिस कारण उनके माँ बाप उन्हें पढ़ाना नहीं चाहते।

साथ ही ‘बरसाना’ नामक बस्ती (जहाँ मैं अभी पढ़ाती हूँ) के बच्चे भी पढ़ाई से कोसों दूर हैं। उनके घर के बड़े गांजा जैसे नशीले पदार्थों का सेवन भी करते हैं। ऐसे में परिवार के माहौल से प्रभावित होकर बच्चों की मानसिकता भी वहीं हो जाती है। जब मैंने वहां जाना चालू किया और बच्चों के परिवार वालों से बात की तो सबने यही कहा कि वे पढ़ लिखकर आखिर क्या कर लेंगे। लेकिन फिर भी जैसे तैसे कुछ बच्चों ने क्लास आना शुरू किया।

जब मैं बस्ती में खुले में पढ़ाया करती थी तो बहुत बार लड़के आकर खड़े हो जाया करते थे। इससे मुझे परेशानी तो होती ही थी साथ-साथ डर भी लगता था। बहुत से परिवारों से धमकी मिला करती थी और यह भी सुनने मिलता था कि मैं बच्चों पर कोई जादू टोना कर रही हूँ। जब मैं घर से बस्ती के लिए निकलती थी तो कइयों दफा ये सोचा करती थी कि शायद घर वापस आ भी पाऊँगी या नहीं। मैं हमेशा अपने साथ एक चाकू रखा करती थी। लेकिन इस डर, धमकी और लोगों के बुरे बर्ताव के बाद भी मैंने अपने कदम पीछे नहीं किये और अपने लक्ष्य के लिए लड़ती रही।

शिक्षा का बीज बचपन में ही डालना ज़रूरी है, ताकि बड़े होकर ये बच्चे हम सभी व आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहतर समाज का निर्माण करें।

आयुषी : इस लक्ष्य में बच्चों ने किस तरह से आपका साथ दिया?

पायल : धीरे-धीरे पढ़ाने के बाद मुझे यह समझ आने लगा कि किताबी ज्ञान से ज़्यादा बच्चे खेल खेल में आसानी से शिक्षा लेते हैं। और जब एक बच्चा शिक्षित होता है तो वह अपने पूरे समाज को शिक्षित करने में सक्षम होता है। बचपन में जिन तरीकों से मेरे माँ बाप ने मुझे पढ़ाया और सिखाया, उन्ही तरीकों को अपनाकर मैंने इन बच्चों को अपनी ओर आकर्षित किया। इस तरह से उन्हें भी पढ़ाई में मज़ा आने लगा और उनमें खुदबखुद सीखने कि जिज्ञासा जागने लगी।

जब ये चीज़ें उनके परिवारों ने देखी तो उन्होंने भी इसका समर्थन किया। बच्चों ने खुद क्लास आने कि इच्छा जताई और अपने परिवारों को भी शिक्षा दी। आलम यह है कि बच्चों के समर्थन के कारण ही आज उनके माँ बाप ने उनका दाखिला स्कूलों में करवाया। यह स्थिति केवल जबलपुर की बस्तियों में ही नहीं बल्कि मेरे गाँव धूमा की भी है। आज मुझे अपने बच्चों के ऊपर गर्व होता है कि वे खेल, ड्रामा व शिक्षण जैसे अलग अलग क्षेत्रों में आगे बढ़कर अपने परिवार का नाम रौशन कर रहे हैं।

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आयुषी : आपने सेनेटरी पैड के कैंपेन में भी काम किया है। यह शिक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में किस तरह ज़रूरी है?

पायल : जब मैं किशोरावस्था में आयी तब मुझे माहवारी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जिस दिन मुझे रक्तस्त्राव हुआ उस दिन मैंने अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया क्योंकि मुझे लगा कि कोई घातक बीमारी के कारण मैं मरने वाली हूँ। फिर मेरी माँ ने मुझे बताया कि यह हर औरत को होता है। मेरे गाँव में कहीं भी टॉयलेट नहीं था। हमें दूर जाना पड़ता था और फिर मुझे दिक्कत के साथ शर्म और हिचक आने लगी। मैंने अपने घर में बात की और टॉयलेट बनवाने के लिए अड़ गयी। लोगों ने ताने सुनाये, पत्थर मारे, लड़ाईया भी की, लेकिन मैं अपने निश्चय पर अटल रही। मैंने पुलिस कंप्लेंट की जिसके बाद हमारे घर टॉयलेट बना।

लेकिन हर कोई अपनी ज़िद पूरी नहीं कर पाता। बहुत सी महिलाओं को आज भी माहवारी के वक़्त कठिन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है। घरों में टॉयलेट होता भी है तो उनके पास सेनेटरी पैड की सुविधाएं नहीं होती। वे गन्दा कपड़ा, राख़, पत्ते जैसी चीज़ें इस्तेमाल करती हैं और बीमारियों को अनदेखा करती हैं। इसलिए मैंने सेनेटरी पैड कैंपेन के ज़रिये उन्हें मुफ्त पैड मुहैया करवाये। इसके साथ ही निरंतर रूप से मैं लड़कियों और महिलाओं की अलग से क्लास भी लेती हूँ जिसमें मैं उन्हें माहवारी व अन्य विषयों के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी देती हूँ।

शिक्षा हर इंसान के व्यक्तित्व की बुनियादी नींव होती है।

आयुषी : भविष्य में ‘शिक्षा’ के लिए आपका क्या विज़न है?

पायल : कोशिश तो मेरी यही है कि जिन भी बस्तियों में आगे जाकर मैं बच्चों को पढ़ाऊंगी, उन्हें स्कूल तक भी ज़रूरी पहुँचाऊँगी। मैं हर तरीके से उनकी मदद करुँगी ताकि वे अपने और अपने परिवार के सारे सपने पूरे कर सकें। ‘शिक्षा’ केवल एक समाजसेवी संस्था नहीं है, यह एक मंच है जहाँ से लोग एक दूसरे को शिक्षा के लिए समर्पित व प्रेरित कर सकें। मेरा तो यही मानना है कि मैं इस देश के हर बच्चे के पास जाकर उसे नहीं पढ़ा सकती पर जिस बच्चे को मैं पढ़ाऊंगी वह अपने परिवार के साथ पूरे समाज को एक नई दिशा में लेकर जायेगा। इसलिए शिक्षा का बीज बचपन में ही डालना ज़रूरी है, ताकि बड़े होकर ये बच्चे हम सभी व आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहतर समाज का निर्माण करें।

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तस्वीर साभार : फ़ेसबुक

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