दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश ‘भारत’ में क़रीब हर पाँच सालों में लोकतंत्र के महापर्व ‘चुनाव’ के ज़रिए एक नयी सरकार जनता का प्रतिनिधि बनकर उनकी ज़रूरतों, उम्मीदों और विकास के दृष्टिकोण से तमाम योजनाएँ लाती है। सरकार की इन सभी योजनाओं का मूलाधार होता है इनके नामपर पारित किया जाने वाला बजट 2020। यों तो ये बजट महज़ पैसों का आवंटन जैसा लगता है, पर वास्तव में ये सरकार की विचारधारा और दूरदर्शिता को भी बखूबी दिखलाता है। भारत में मौजूदा सरकार ने बीते शनिवार को बजट पेश किया। यों तो बजट में कई नए बदलाव और उतार-चढ़ाव है, लेकिन आज हम बात करेंगें इस साल के बजट में महिलाओं के लिए क्या ख़ास है।
इस साल भारत की पहली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने दूसरे कार्यकाल के बजट 2020 में महिलाओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं के लिए 28,600 करोड़ रुपए रखा है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला पूर्णकालिक बजट साल 2020-2021 शनिवार को पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ‘लड़कियों की सही उम्र में शादी और बच्चे कब हों सरकार इस पर भी ध्यान दे रही है। छह महीने के अन्दर एक टास्क फोर्स का गठन किया जायेगा जो इस मुद्दे पर रिपोर्ट बनाकर तैयार की जायेगी।’
वहीं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का जिक्र करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि ‘इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। इस योजना के अच्छे परिणाम देखने को मिले है। सरकारी स्कूलों में लड़कियों का दाखिला लड़कों से ज्यादा हुआ है। इस योजना के जरिए बाल अनुपात में भी बड़ा अंतर देखने को मिला है।’ देश में 10 करोड़ परिवारों के पोषण का डेटा अपलोड किया गया है। पोषण से सम्बन्धित 10 करोड़ परिवारों का ध्यान रखा जायेगा। छह लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों के पास स्मार्ट फोन हैं जो पोषण सम्बन्धी जानकारी उपलब्ध कराती हैं। बजट में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर ख़ास ध्यान दिया गया है। लड़कियों और महिलाओं के पोषण के लिए पोषाहार योजना के लिए 35 हजार करोड़ रुपए आवंटित किये गये हैं।
महिला विकास-उत्थान को सिर्फ़ देश की पहली महिला वित्त मंत्री की छवि तक सीमित कर देना ठीक नहीं है, क्योंकि वास्तव में महिलाओं के लिए कई रास्ते तलाशने और बनाने बाक़ी है।
देश में सरकारी स्कूलों में लड़कियों का दाखिला 81.3 फीसद तो वहीं लड़कों का 78 फीसद है। इस बार शिक्षा का बजट 99,300 करोड़ रुपए रखा गया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का बजट इस बार बढ़ाने की बजाए कम किया गया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार साल 2017 से लगातार महिलाओं के लिए जारी बजट में हर साल बढ़ोतरी की गयी थी। लेकिन इस बार बजट की राशि बढ़ाने के बजाए कम कर दी गयी है। अगर पिछले तीन साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो महिलाओं के लिए जहां साल 2017-2018 में बजट राशि 20396.36 करोड़ थी। वहीं साल 2018-2019 में 24758.62 करोड़ हो गयी और साल 2019-2020 में 29164.90 करोड़ थी। अब यही राशि घटकर साल 2020-2021 में 28,600 करोड़ रुपए कर दी गयी है। बजट में किसानों के लिए भी कई नए कदम उठाने की बात की गयी है और इन्हीं कदमों से एक है महिला किसानों के लिए धन्य लक्ष्मी योजना की शुरुआत। इस योजना के तहत बीज से जुड़ी योजनाओं में महिलाओं को मुख्य रूप से जोड़ा जाएगा। महिला किसानों को बीज की गुणवत्ता और उसके वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के बारे में विशेषतौर पर प्रशिक्षित किया जाएगा।
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महिलाओं के लिए बजट की ख़ास बातें
- वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के अच्छे परिणाम नजर आये। इस योजना के जरिए बाल अनुपात में भी बड़ा अंतर देखने को मिला है।’ सरकारी विद्यालयों में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का दाखिला बढ़ा।
- आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों के ज़रिए 10 करोड़ परिवारों को पोषण की जानकारी दी जायेगी।
- महिलाओं के मां बनने की उम्र बढ़ाने को लेकर भी सरकार चर्चा कर रही है। छह महीने के अन्दर इसको लेकर टास्क फोर्स का गठन किया जायेगा जो इससे सम्बन्धित रिपोर्ट तैयार करेगा।
- दीनदयाल अंत्योदय योजना के तहत स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया जाएगा।
- महिला किसानों के लिए धान्य लक्ष्मी योजना की घोषणा की गयी। इसके तहत बीज से जुड़ी योजनाओं से महिलाओं को जोड़ा जायेगा।
- महिलाओं के लिए चलाई जा रही विशिष्ट योजनाओं के लिए 28,600 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है।
- पोषाहार योजना के लिए साल 2020-2021 के लिए 35,600 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ है।
बेशक सरकार ने अपने नए बजट में महिलाओं के लिए कुछ नए कदम उठाने की योजना बनायी है। लेकिन जब हम इस बजट को नारीवादी नज़रिए से देखते हैं तो ये पितृसत्तात्मक ढाँचे के अंदर महिलाओं के विकास का बनावटी जामा जैसा लगता है। इसकी कई वजहें है, लेकिन इसे चंद सरल उदाहरणों से समझा जाए तो हम देख सकते है कि किस तरह सरकार ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना पर अपनी पीठ खुद थपथपा रही है, लेकिन पढ़ने के बाद बेटी के भविष्य के लिए कोई योजना नहीं है। इसके साथ ही, अन्य कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने या महिलाओं को रोज़गार से जोड़ने की दिशा में कोई भी योजनाबद्ध विचार सरकार के बजट में नहीं दिखा।
बदलते वक्त के साथ हम बजट में डिजिटल इंडिया और आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों को स्मार्ट फ़ोन देने जैसी पहल बेशक देख सकते हैं, लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में महिला भागीदारी को बढ़ावा देने और आर्थिक रूप से उन्हें स्वावलंबी बनाने की दिशा में कहीं नहीं देख पाते है। ऐसे में महिला विकास-उत्थान को सिर्फ़ देश की पहली महिला वित्त मंत्री की छवि तक सीमित कर देना ठीक नहीं है, क्योंकि वास्तव में महिलाओं के लिए कई रास्ते तलाशने और बनाने बाक़ी है।
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तस्वीर साभार : dharmapuri