इनदिनों पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से जूझ रही है। हर देश की सरकार इस महामारी के प्रभाव को कम करने और अपने देश की जनता को बचाने के लिए तमाम नीति-निर्माण और प्रयोगों में लगी हुई है। ऐसे में हमारे देश की सरकार ने भी अपने प्रयास ज़ारी रखें हैं। पर ये प्रयास कोरोना से बचने से ज़्यादा चुनावी प्रचार और हर विरोध की आवाज़ के दमन का ज़्यादा है। अस्पताल बदहाल है, कितने गरीब भूखमरी से तो कितने प्रवासी मज़दूर श्रमिक ट्रेन या पैदल यात्रा में अपनी जान गवाँ चुके है। पर सरकार अपने पुराने ढर्रे को क़ायम किए हुए है। इस दौरान सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले युवाओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं पर शिकंजा कसना ज़ारी रखा है। इसी कड़ी में हाल ही में, जम्मू और कश्मीर पुलिस ने फोटोजर्नलिस्ट मसरत जेहरा पर ये आरोप लगाते हुए केस दर्ज़ किया था कि वे अपने सोशल मीडिया अकाउंट से ‘देश विरोधी’ गतिविधियों का गुणगान करने वाली तस्वीरें साझा कर रही हैं।
बता दें ये वही मसरत जेहरा हैं, जिन्हें आज अंतर्राष्ट्रीय महिला मीडिया फ़ाउंडेशन की तरफ़ से इस साल के ‘अंजा निएंद्रिंहौस बहादुरी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 26 साल की मसरत जेहरा एक फ्रीलांस फोटोग्राफर हैं। उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों के लिए काम किया है। एक फोटो पत्रकार के तौर पर मसरत जेहरा की फोटो वाशिंगटन पोस्ट, अल जज़ीरा, कारवां, दी सन, टीआरटी आदि में छपती रही है। श्रीनगर में जन्मी मसरत ने अपने बचपन से कश्मीर में तनाव को देखा, महसूस किया और जिया है। उन्होंने अपनी फ़ोटोग्राफ़ी के माध्यम से महिलाओं की कहानियों और उनके संघर्षों को उजागर किया।
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हर साल यह सम्मान जर्मनी की महिला फ़ोटोजर्नलिस्ट अंजा निएंद्रिंहौस की याद में दिया जाता है जिन्हें साल 2014 में अफ़ग़ानिस्तान में मार दिया गया था। फ़ोटोजर्नलिज़्म जगत में ये बेहद बड़ा सम्मान माना जाता है। मसरत की तस्वीरें कश्मीर की रोज़मर्रा की जिंदगियों को बेहद संजीदगी से उजागर करती है। वो ज़िंदगी जहां गोलियाँ और बम की आवाज़ें, सरकारों का तुग़लकी फ़रमान और अचानक से इंटरनेट की सेवा बंद कर देना, मानो रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है। पर इस रोज़ की ज़िंदगी में कई हिंसा के अनसुने क़िस्से भी होते है, जो अक्सर दबा दिए जाते है। मसरत का कैमरा इन्हीं क़िस्सों को उजागर करता है। ये उजागर करता है सरहद से तनाव और देश के नामपर दोहरी मार झेलती महिलाओं की आपबीती को।
मसरत जैसी युवा पत्रकार का निडर होकर अपने काम के प्रति वफ़ादार होना और इतनी विपरीत हालातों में डटकर आमजन की आवाज़ बनना वाक़ई में प्रेरणादायक है।
बतौर महिला फ़ोटोजर्नलिस्ट मसरत को लगातार भारत सरकार की तरफ़ से डराने-धमकाने की रणनीतियों का सामना करना पड़ा है। इस सम्मान को लेकर मसरत कहती हैं कि ‘ये इस बात का सूचक है कि एक छोटी सी जगह से आने वाले पत्रकारों के कामों को भी सम्मान मिलता है। मैं आशा करती हूँ कि यह सम्मान मुझे अपने काम को और बेहतर व बहादुरी से करने के लिए प्रेरित करेगा। इसके साथ ही, मैं ये उम्मीद करती हूँ ये सम्मान कठिन परिस्थितियों में काम करने वाली हर महिला फ़ोटोग्राफ़र को प्रेरणा देगा।’
भारत में बेशक आँकड़ों में महिलाओं ने प्रगति की है, पर अभी ज़मीन दूर है। हर क्षेत्र में महिला प्रतिनिधि भी है, लेकिन अभी भी इन प्रतिनिधित्व के पीछे की संख्या बेहद सीमित है। ख़ासकर पत्रकारिता और फ़ोटोजर्नलिज़्म का क्षेत्र। ऐसे में मसरत जैसी युवा पत्रकार का निडर होकर अपने काम के प्रति वफ़ादार होना और इतनी विपरीत हालातों में डटकर आमजन की आवाज़ बनना वाक़ई में प्रेरणादायक है। भारतीय पत्रकारिता जगत में अभी भी महिला पत्रकारों की संख्या बेहद सीमित है। जितनी हैं भी उनमें से अधिकतम को ज़मीनी रिपोर्टिंग की बजाय डेस्क या एंकर का ज़िम्मा सौंपा जाता है। इसपर आसानी से समाज कहता है कि रिपोर्टिंग या फ़ोटोजर्नलिज़्म के लिए ग्राउंड पर जाना होता है जो महिलाओं के सुरक्षित नहीं है। ऐसे में मसरत जैसी युवा पत्रकार लगातार जोखिम लेकर उभरती-निखरती दिखाई पड़ती है। और हर बार ये साबित करती है, इन्हें जोखिम लोगों से नहीं पर हाँ सत्ता को इनसे जोखिम ज़रूर है, जिसका सबूत सत्ता हर अगले पायदान पर देती है। आख़िर में, तमाम मुश्किलों के बाद भी मसरत जैसी तमाम महिला पत्रकारों को सलाम जिन्होंने मुश्किल दौर में भी पत्रकारिता की परिभाषा और इसके मूल ‘लोकतंत्र में जन की आवाज़’ को क़ायम रखा है।
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तस्वीर साभार : thekashmirmonitor