“अगर दुनिया के हर देश को महिलाएं चलाएंगी, तो हमें लोगों के जीवन स्तर में एक सामान्य सुधार देखने को मिलेगा। महिलाएं ‘परफेक्ट’ नहीं होती, लेकिन निश्चित रूप से पुरुषों से बेहतर होती है ।” – बराक ओबामा
औसतन हर साल भारत में 42 फ़ीसद लड़कियां ग्रेजुएट होती हैं। इनमें से सिर्फ 24 फ़ीसद एंट्री लेवल प्रोफेशनल के तौर पर जॉईन करती हैं। इनमें से सिर्फ 19 फ़ीसद ही सीनियर लेवल तक पहुंच पाती है और इसमें से भी सिर्फ 7.7 फ़ीसद हिस्सा बोर्ड रूम की मीटिंग तक पहुंच पाता है। इनमें से सिर्फ 2.7 फ़ीसद महिलाएं बोर्ड रूम की चेयरपर्सन बन पाती हैं। उच्च पदों पर इतनी कम महिलाओं का होना महिला सशक्तिकरण की तरफ एक अच्छा कदम नहीं है। इन वजहों से महिलाओं का लीडरशिप के पदों पर होना ज़रूरी है –
1. चुनौतियों से लड़ने को तैयार महिलायें
महिलाओं को चुनौतियों से लड़ने की आदत होती है, कार्यस्थल और घर के काम के बीच का संघर्ष होता है। ऑफिस में बार-बार लैंगिक पूर्वाग्रहों का सामना करना हो या ‘बॉयज क्लब’ के बावजूद ऑफिस में अपनी पहचान बनानी होती है। चुनौतियों से लड़ने की आदत की वजह से वे चुनौतियों को देखकर घबराती नहीं है बल्कि डटकर उनका सामना करती है। उनके इसी दृष्टिकोण की वजह से वे हर चुनौती को अवसर में बदलना जानती है, जिससे आर्गेनाइजेशन के विकास में वृद्धि होने की सम्भावना काफी बढ़ जाती है।
2. वर्क-लाइफ बैलेंस की पैरोकार
महिलाओं को काफी सदियों से घर की ही जिम्मेदारी दी गयी थी, इसीलिए वे घर की महत्ता जानती भी है और समझती भी है। और जब यही महिलाएं कार्यस्थल पर नेतृत्व करती हैं, तो ऐसी पोलिसी आने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं जो वर्क-लाइफ बैलेंस को बढ़ावा दे, जो पुरुषों को भी घर के काम के लिए प्रेरित करे, जो लिंग के आधार पर कर्मचारियों का भेदभाव न करे। महिलाओं के नेतृत्व की वजह से कार्यस्थल पर विविधता और समावेश की सम्भावना काफी हद तक बढ़ जाती हैं क्योंकि महिलाएं खुद भी एक मार्जिनलाइज़्ड तबके से आती हैं।
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3. महिलाएँ देती हैं सामाजिक संवेदनशीलता को बढ़ावा
व्हार्टन स्कूल की एक स्टडी बताती है कि अपने काम में सफल होने के लिए पुरुषों की तुलना में कम महिलाएं अपने एथिक्स के साथ समझौता करती है। आंकड़े ये भी बताते है कि टॉप के पदों पर महिलाओं के होने की वजह से एक आर्गेनाइजेशन की सामाजिक संवेदनशीलता बढ़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। महिलाओं के टॉप पर होने की वजह से ओर्गनइजेशनों में ऐसे प्रोजेक्ट्स ज्यादा लिए जाते है जिनका फायदा समाज को मिले।
उदहारण के तौर पर, अपर्णा मित्तल, जो पिछले 16 बरसों से भारत में कॉर्पोरेट लॉ की वकालत कर रही थी, उन्होंने साल 2017 में अपनी वकालत इसलिए छोड़ दी ताकि वे लैंगिक मुद्दों पर काम कर सके। यहाँ ये बताना जरुरी है कि जब उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी तब वे अपने करियर के शिखर कर थी। वे जानी मानी लॉ फर्म्स जैसे कि लूथरा, AZB में पार्टनर के तौर पर काम कर रही थी। लेकिन बावजूद इसके उन्होंने वो चुना जो उनके मन को ठीक लगा।
लीडरशीप की पोजीशन पर महिलाओं के होने से एक ऐसा विकास होता है जिसमें महिलाओं की जरूरतों का भी ध्यान रखा जाता है।
4. इमोशनल इंटेलिजेंस की बेहतर परफ़ार्मर
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में सॉफ्ट स्किल्स और इमोशनल इंटेलिजेंस (EQ) ज्यादा बेहतर पाई जाती है। 2016 की कोम फेरी की स्टडी बताती है महिला कर्मचारियों में इमोशनल इंटेलिजेंस के हर कॉम्पोनेन्ट (जैसे कि सेल्फ अवेयरनेस, कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट, एम्पथी, आदि) पर पुरुषों की तुलना में बेहतर परफॉर्म किया। और ये तो हम सभी जानते ही हैं कि 21वीं सदी के इस दौर में IQ से ज्यादा EQ मायने रखता है।
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5. बेहतर लीडरशिप वाली महिला लीडर
वर्षों से पितृसत्तात्मक समाज के अन्याय ने महिलाओं को सहनशील और विचारशील बना दिया है। ये दोनों ही गुण किसी भी लीडर के लिए बहुत जरुरी होते है। जब फैसले लेने वाले स्थानों पर महिलाएं और पुरुष दोनों ही होते है तो समस्याओं से निपटना आसान हो जाता है। दोनों ही अपने-अपने नजरिया से समस्या का समाधान ढूंढे की कोशिश करते है। लीडरशीप के पदों पर महिलाओं का होना विचारों की विविधता को भी बढ़ावा देता है। सिर्फ समस्याओं को हल करने में ही नहीं, बल्कि महिला कर्मचारियों की समस्याओं और चिंताओं को समझने में भी एक महिला लीडर ज्यादा अच्छी भूमिका निभा सकती है। आंकड़े ये भी बताते है कि कार्यस्थल पर कर्मचारी महिला लीडर्स को ज्यादा ईमानदार और एथिकल मानते है। ऐसे में महिलाएं अपने कर्मचारियों और सहयोगियों के साथ ज्यादा बेहतर संबंध बना सकती है।
6. महिलाओं की ज़रूरतों का ध्यान रखती महिला लीडर
लीडरशीप की पोजीशन पर महिलाओं के होने से एक ऐसा विकास होता है जिसमें महिलाओं की जरूरतों का भी ध्यान रखा जाता है। उदहारण के तौर पर, आज की टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में अगर लीडरशीप पोजीशन पर महिलाएं भी होंगी, तो कम्पनिया अपने प्रोडक्ट में ऐसे फीचर्स भी डालेंगी जो महिलाएं की जरूरतों को पूरा करेगी। अगर महिलाओं का प्रतिनिधित्व ही नहीं होगा, तो उनकी जरूरतें पूरी होने का तो सवाल ही नहीं उठ पाएगा।
आज हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जिसमे अपने करियर में आगे बढ़ने के लिए शारीरिक क्षमता या बल की मांग नहीं है। बल्कि आज कंपनियां अपने कर्मचारियों में डेटर्मिनेशन, अटेंशन टू डिटेल और स्ट्रक्चर्ड थिंकिंग जैसे गुणों को ढूंढ़ती है। ये ऐसे गुण जो जरुरी नहीं है कि किसी एक लिंग में ही हो। इसीलिए 21वी शताब्दी महिला लीडरशीप को बढ़ाने की दिशा में एक अहम् योगदान दे सकती है।
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तस्वीर साभार : adweek