एडिटर्स नोट: यह लेख फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी लड़कियों द्वारा लिखे गए लेखों में से एक है। इन लेखों के ज़रिये बिहार और झारखंड के अलग-अलग इलाकों में रहने वाली लड़कियों ने कोविड-19 के दौरान अपने अनुभवों को दर्शाया है। फेमिनिज़म इन इंडिया और फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी साथ मिलकर इन लेखों को आपसे सामने लेकर आए हैं अपने अभियान #LockdownKeKisse के तहत। इस अभियान के अंतर्गत यह दूसरा लेख बिहार के बक्सर ज़िले की आरती ने लिखा है।
मेरा नाम आरती कुमारी है। मैं बिहार के बक्सर जि़ले के एक गांव से हूं। यह इलाका पूरी तरीके से ग्रामीण है। बक्सर ज़िले से मेरा गांव 15 किलोमीटर दूर है। यह न ज़्यादा बड़ा है और न ज्यादा छोटा। मेरे गांव में लगभग 700-800 घर हैं। मेरे गांव में अलग-अलग समुदायों के लोग रहते हैं। उनमें पूरब की तरफ लुहार और साह, दक्षिण की तरफ चमार, पश्चिम की तरफ मुस्लिम और यादव, उत्तर की तरफ यादव और ब्राह्मण रहते हैं। पहले मेरे गांव में ब्राह्मणों के पास अधिक ज़मीन थी इसलिए वे उन लोगों को अपनी ज़मीन रहने के लिए दे देते थे जिन्हें यह समाज ‘छोटे लोग’ कहकर बुलाता है। इस वजह से गांव में हर जाति के लोग आकर बस गए लेकिन अब वे बड़े (ब्राह्मण) लोग छोटी जाति को ज़मीन नहीं देते हैं और देना चाहते भी नहीं हैं।
मैं बारहवीं पास कर चुकी हूं और मैं बीए पार्ट वन में अपना दाखिला करवाने वाली हूं। लेकिन मेरे परिवार वाले मेरे दाखिले के लिए तैयार ही नहीं हो रहे हैं। कोविड-19 महामारी के आने से पहले मेरे घर की आर्थिक स्थिति खराब थी और जो कि अभी भी है। इसी वजह से मेरे दाखिले के मुद्दे पर घर में सभी चुप हैं। थोड़े से पैसों को लेकर जो दिक्कत है उसी वजह से मेरा दाखिला कॉलेज में नहीं हो पा रहा है। इसलिए मैंने सोचा है कि मैं फैट (FAT) संस्था की सहायता लूंगी और उसके बाद कॉलेज में एडमिशन लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी। मैंने अपने घर में सबको यह बात बता दी है। यह बात सुनकर मेरे पापा ने कुछ नहीं कहा। मेरे पापा-मम्मी मुझे पूरा हक देते हैं। वे लोग लड़का-लड़की में भेदभाव नहीं करते हैं। मेरे पापा-मम्मी को बहुत शौक है कि वे अपने बच्चों को पढ़ाएं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे नौकरी करें लेकिन पैसों की दिक्कत के कारण वे ऐसा करने में असमर्थ हैं।
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कोविड-19 के दौरान मैं अभी कुछ कर भी नहीं पा रही हूं ताकि मेरे पास पैसे आएं। पहले मैं YP Foundation संस्था से जुड़ी थी। उस संस्था की मैं सबकी प्रिय एजुकेटर हूं। अपने इलाके की लड़कियों के साथ मैं शारीरिक बदलाव, हिंसा, जेंडर, भेदभाव, यौन शिक्षा, निर्णय करने की क्षमता जैसे मुद्दों को लेकर मीटिंग करती थी। लेकिन कोविड-19 लॉकडाउन के कारण अब यह मेरा यह काम भी रुक गया है। मैं यह मीटिंग मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के साथ करती थी। मेरे गांव के पश्चिम की तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं। उसी समुदाय में मीटिंग करने मैं नियम से जाती थी। काम के दौरान ही मेरी उन लड़कियों से दोस्ती भी हो गई। उनके साथ काम भी करती हूं। अब वे सारी लड़कियां मुझे याद कर रही हैं क्योंकि मैं उन लोगों के साथ बचपन से पढ़ाई कर रही हूं। इसलिए हमारी दोस्ती काफी गहरी है। अब तो साथ में पढ़ाई नहीं, मीटिंग कर रहे हैं। उस समुदाय में मेरी हमउम्र और उम्र में मुझसे छोटी लड़कियां भी हैं। हम सब लड़कियों के साथ खूब मस्ती करते थे। कोविड-19 के दौरान जो लॉकडाउन लगा, उसी में सभी लड़कियों का साथ छूट गया है।
जब मैं मुस्लिम मोहल्ले में जाती हूं तब सब छोटी लड़कियां कहती हैं कि दीदी आप मीटिंग कब कराएंगी? असल में मैं लड़कियों के साथ हंसी-मजाक करते हुए उनको अलग-अलग विषय के बारे में बताती हूं। मैंने उनसे अभी कहा है कि वे थोड़ा और इंतज़ार करें, जब लॉकडाउन पूरी तरह से खत्म हो जाएगा तो मैं मीटिंग के लिए आऊंगी और सबसे ज़रूर मिलूंगी। मुझे भी सबकी याद आती है। मुस्लिम लड़कियां जो मेरी सहेली हैं उनके साथ मैं ईद मनाती थी। सेवई खाने के लिए उनके घर जाती थी। इससे मुझे बहुत ही खुशी मिलती थी। हम सब ईद के मौके पर खूब मस्ती किया करते थे। लेकिन इस लॉकडाउन की वजह से इस बार सेवई खाने को ही नहीं मिली। इस बार साथ मिलकर ईद नहीं मनाने का मुझे बहुत ही दुख हुआ। मुझे अपनी सहेली के घर जाने को नहीं मिला। वे दिन मुझे याद आते हैं।
मेरा भाई मुझे दुकान तक नहीं जाने देता है जबकि वह मेरा छोटा भाई है। मैं उसकी बात न मानकर जरूरत पड़ने पर कभी-कभी चली जाती हूं। मेरे दुकान जाने की कोई ऐसी ख़ास वजह नहीं है, मुझे उतना मन भी नहीं करता है लेकिन भाई का इस तरह रोकना मुझे अच्छा नहीं लगता है।
मैं फैट संस्था से भी जुड़ी हूं। इसमें मैं फोटो खींचती हूं, वीडियो बनाती हूं। पहले वीडियो बनाकर फिल्म के साथ गांव-गांव में स्क्रीनिंग किया करती थी। पर वह काम भी कोविड-19 लॉकडाउन के कारण बंद हो चुका है। अब दूसरी तरह का काम हो रहा है। पहले कोविड-19 की जानकारी मुझे एकदम नहीं थी। लेकिन फैट ने जून महीने में मीटिंग के ज़रिए कोविड-19 की जानकारी दी। उस समय मेरे पास इंटरनेट की कोई सुविधा नहीं थी ताकि मैं जानकारी ले पाऊं। तब मैं अपने पड़ोस में रहने वाली सहेली के घर कोरोना वायरस के बारे में जानकारी लेने के लिए जाया करती थी। ऐसा मैंने कुछ महीनों तक किया पर फिर मेरी मां मुझे डांटने लगी कि क्या करने जाती हो, पूरा दिन वहीं रहती हो? तब मैंने अपनी मां को कोरोना वायरस के बारे में बताया, ये सब जानकारी पाकर उनका गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ। ये सब बातें मैं ज़ूम मीटिंग में भी बताती हूं। उसके बाद फैट ने मुझे इंटरनेट की सुविधा दी और मैं अब उसी से जानकारी लेती हूं। अब मेरी मां भी धीरे-धीरे यह समझने लगी हैं कि मैं क्या काम करती हूं।
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मैंने कौशल विभाग से ट्रेनिंग भी ली है। मेरी यह ट्रेनिंग सफ़लतापूर्वक पूरी हो गई थी। नौकरी के लिए मेरा सिर्फ इंटरव्यू बाकी था, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह हो न सका। मुझे बहुत ही शौक था कि मैं आगे जल्दी-जल्दी बढूं, लेकिन कोविड-19 ने बढ़ने नहीं दिया। लॉकडाउन के कारण मैं अटक गई हूं, एक कदम आगे बढ़ नहीं पाई हूं। मेरी नौकरी रुक गया, जिससे मुझे बेहद दुख पहुंचा है। मैं पहले दुकान जाती थीl अब नहीं जा पा रही हूं क्योंकि पहले मेरा भाई पढ़ाई करने के लिए ट्यूशन चला जाता था। अब वह घर पर रह रहा है, उसकी पढ़ाई रुक गई है। परीक्षा नहीं हो रही है। उसकी परीक्षा अब अगले साल 2021 में होगी। मेरा भाई मुझे दुकान तक नहीं जाने देता है जबकि वह मेरा छोटा भाई है। मैं उसकी बात न मानकर ज़रूरत पड़ने पर कभी-कभी चली जाती हूं। मेरे दुकान जाने की कोई ऐसी ख़ास वजह नहीं है, मुझे उतना मन भी नहीं करता है लेकिन भाई का इस तरह रोकना मुझे अच्छा नहीं लगता है।
मेरे परिवार में तो पहले भी और अभी भी एक जैसी दिक्कत है। कोविड-19 के दौरान मेरे परिवार में खाने की दिक्कत थी तो फैट के रिलीफ फंड से मैंने सहायता ली। पहले मेरे पापा जब बाजार जाते थे सामान लाने के लिए, लेकिन अब वह सामान नहीं मिल रहा है। समय से जाने पर थोड़ा बहुत मिलता है, नहीं तो दुकान बंद हो जाती है। बिना मास्क के पकड़े जाने पर पुलिस वाले डांटते भी हैं। यह नियम कोविड -19 के कारण अप्रैल महीने से शुरू हुआ है। इसलिए मेरे पापा को सुबह जल्दी उठकर दुकान जाना पड़ता है तब जाकर उन्हें सामान मिलता है। घर से बाहर निकलने के लिए कई नियमों का पालन करना पड़ता है। कोविड-19 के पहले ऐसा कुछ नहीं था। मैं सोचती हूं कि जल्दी से सब ठीक हो जाए। मेरी बी.ए की पढ़ाई शुरू हो जाए, काम शुरू हो जाए और फिर से ईद पर सहेलियों के साथ सेवई खाने को मिले।