अपने जीवनसाथी के साथ उसकी मर्ज़ी के बग़ैर शारीरिक संबंध बनाना वैवाहिक बलात्कार या मैरिटल रेप कहलाता है। इसे घरेलू हिंसा और यौन शोषण का एक रूप माना जाता है। किसी भी तरह के यौन सम्बन्धो में दोनों पक्षो की सहमति का होना बेहद ज़रूरी होता है बिना उसके वह कार्य बलात्कार की श्रेणी में ही आता है, जो कि कानूनन अपराध है और इसके लिए भारतीय दंड संहिता में सजा का प्रवाधान भी है । लेकिन भारत में अगर पति अपनी पत्नी की मर्जी के बिना उसके साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जाता यानी कि भारतीय कानून की नज़र में वैवाहिक बलात्कार कोई अपराध नहीं है जब तक कि उसमें हिंसा ना शामिल हो।
सौ से अधिक देशो में वैवाहिक बलात्कार को अपराध का दर्जा दिया जा चुका गया है, क्योंकि यह माना गया है कि शादी किसी को अपने साथी के साथ यौन हिंसा करने का का अधिकार नहीं देती है। पर भारत अब भी उन 36 देशों में से एक है, जहां आज तक वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे में रखकर नहीं देखा जाता, जो कि बड़ी ही शर्म की बात है । साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था, ‘वैवाहिक संबंध के भीतर हुए बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता।‘ जो हमारे समाज की एक विवाहित औरत के प्रति दृष्टिकोण और विचारों को दर्शाती है।
विवाह के बाद औरत सिर्फ पुरुष की संपत्ति के रूप में ही देखी जाती है, पुरुष की इच्छाओं को संतुष्ट करने वाली एक यौन सामग्री । जिसमें औरत की सहमति की आवश्यकता मायने ही नहीं रखती।
केंद्र सरकार ने भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे में लाने के ख़िलाफ़ कहा था कि इससे ‘विवाह की संस्था अस्थिर’ हो सकती है और विवाह जैसी संस्था के लिए खतरा साबित हो सकता है जिसके साथ धार्मिक रीति-रिवाज जुड़े है। भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी की धारा 375 के अनुसार कोई पुरूष अगर किसी महिला के साथ अगर उसकी सहमति के बगैर शारीरिक संबंध बनाता है या सहमति ली गई हो पर यह महिला को शारीरिक रूप से बहुत अधिक हानि पंहुचाता है या महिला को डरा-धमकाकर उससे सहमति हासिल की गई हो या महिला की उम्र कम हो यानि वह नाबालिग हो, तो ऐसी स्थिति में बनाए गए यौन सम्बन्ध बलात्कार की श्रेणी में आते हैं। पर इस कानून में वैवाहिक बलात्कार का कोई ज़िक्र नहीं है। यह उल्लेखनीय है कि वैवाहिक जोड़े के बीच जबरन बने शारीरिक संबंध पर महिला की याचिका तभी सुनी जाती है जब वह कम उम्र की यानि नाबालिग हो।
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पर वैवाहिक बलात्कार का औरत की आयु से कोई लेना देना नहीं है। यह औरत की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती बनाया गया यौन संबंध है जिसका अपराधिकरण करना बहुत आवश्यक है। बलात्कार का अर्थ औरत की इच्छा के विरुद्ध जाकर उसका शारीरिक शोषण करना है, जिसका इस बात से कोई संबंध नहीं है कि वह विवाहित है या अविवाहित और उसके साथ ऐसा कृत्य करने वाला उसका पति भी हो सकता है। भारतीय कानून का ये समझना बाकी है कि औरत किसी की संपत्ति नहीं होती, उसकी सहमति के बगैर किया सम्भोग उनदोनों का आपसी मामला नहीं होता। हाँ वैवाहिक बलात्कार में ये पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है कि क्या वास्तव में पुरुष दोषी है या नहीं इसमें मिथ्या आरोपों को साबित नहीं किया जा सकता मगर इस आधार पर पुरुष को पूर्ण प्रतिरक्षा प्रदान करना गलत है। इसका अपराधिकरण करना बहुत आवश्यक है ।
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ऐसे ही वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर ज़ोर देते हुए कुछ फ़िल्म शॉर्ट फ़िल्म भी बनाई गई हैं जिसमें से टेरिबली टिनी टेल्स की एक शॉर्ट फ़िल्म ‘सुनो’ है जिसका मुद्दा शारीरिक संबंध के लिए पत्नी की सहमति पर आधारित है तो वहीं ‘पिंक’ फ़िल्म में अमिताभ बच्चन अपने किरदार में रहकर एक डायलॉग बोलते है – “ना का मतलब ना होता है, उसे बोलने वाली लड़की कोई परिचित हो, फ्रेंड हो गर्लफ्रेंड हो, सेक्स वर्कर हो या आपकी अपनी बीवी ही क्यों ना हो, ना मतलब ना होता है और जब कोई ये बोलता है तो तुम्हें रुकना है।” वहीं एक प्रसिद्ध स्टैंड अप कॉमेडियन डैनियल फेरनन्डिस भी मज़ाकिया और समाज पर तंग कसकर बड़े ही अच्छे से ढंग से वैवाहिक बलात्कार के लिए अपराधिकरण की मांग करते है और कहते हैं – “ना का मतलब ना होता है ये बात दुनिया के 100 देशों को समझ आ गआ पर भारत को अभी तक नहीं आ पाई । वैवाहिक बलात्कार, बलात्कार से भी बुरा होता होता है क्योंकी इसमें तो औरत को हर दिन अपने बलात्कारी का चेहरा देखना पड़ता है, सुबह उठकर उसके लिए नाश्ता भी बनाना पड़ता है । ”
भारत अभी भी उन गिने-चुने देशों में से एक है, जो वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं मानता। भारत सरकार का इस मुद्दे पर क्या दृष्टिकोण है, इस बात की एक झलक उसकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में इंडिपेंडेंट थॉट मामले में दायर किए गए काउंटर एफिडेविट में दिखती है, जो कि 11 अक्टूबर 2017 के फैसले में दर्ज है, जिसमें कहा गया है कि देश की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं ठहराया जा सकता है। यह तर्क वास्तव में, हमारे देश के प्रगतिशील विकास के लिए उल्टा है, क्योंकि यहां अब भी महिलाओं की आबादी के एक बड़े हिस्से पर अत्याचार होता और घरेलू हिंसा तो एक बहुत ही आम बात है, इसलिए वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण महत्वपूर्ण है।
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तस्वीर: सुश्रीता भट्टाचार्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए