इंटरसेक्शनलहिंसा बाल यौन शोषण के मुद्दे पर है जागरूकता और संवेदनशीलता की कमी

बाल यौन शोषण के मुद्दे पर है जागरूकता और संवेदनशीलता की कमी

बाल यौन शोषण की पहचान इसकी रोकथाम का पहला कदम है कि हम बच्चों को यौन शोषण के बारे में समझांए ताकि बच्चा अपने साथ हो रही हिंसा की पहचान कर सके।

पिछले कुछ बीते सालों में देश में बाल यौन शोषण की आपराधिक घटनाओं में बढ़त हुई है। देश में छोटे बच्चों के साथ आपराधिक और यौन शोषण के मामलों में लगातार वृद्धि होती जा रही है। आए दिन हर राज्य, हर शहर में बाल यौन शोषण की खबरें सुनने को मिलती ही रहती है। बाल यौन शोषण का संबंध किसी बच्चे के साथ शारीरिक या मानसिक रूप से उसका शोषण करने से है, फिर चाहे वह किसी बच्चे के साथ पूछ कर या दबाव डाल कर, या अन्य तरीके से किया गया हो। या किसी बच्चे के सामने अभद्र प्रदर्शन, बाल वेश्यावृति या चाइल्ड पोर्नोग्राफी का निर्माण करने के लिए बच्चे का उपयोग करना आदि। बाल यौन शोषण की घटनाएं किसी भी स्थान पर हो सकती हैं पर अधिकांश मामलों में घर, स्कूल, कार्यक्षेत्र जैसे उन स्थानों पर जहां बाल श्रम आम होता है, वहां बाल यौन शोषण के मामले अधिक देखने को मिलता है। एक अध्ययन के मुताबिक लगभग 50 फीसद बच्चे अपनी जान-पहचान के ही लोगों या किसी रिश्तेदार द्वारा यौन शोषण का सामना करते हैं। बाल विवाह भी बाल यौन शोषण के मुख्य रूपों में से एक है। यूनिसेफ के अनुसार, “लड़कियों के यौन शोषण और अनुचित लाभ उठाने का सबसे प्रचलित रूप बाल विवाह ही है।”

यौन शोषण के सर्वाइवर बच्चों में आगे चलकर कई मानसिक समस्याएं देखने को भी मिलती हैं। उदाहरण के तौर पर, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, एंग्जायटी , वयस्क होने पर हिंसक होने की प्रवृत्ति आदि। परिवार के किसी सदस्य द्वारा यौन शोषण उत्पीड़न का एक रूप है और इसके परिणाम गंभीर और दीर्घकालिक भी हो सकते हैं। एक और अनुमान के मुताबिक अधिकांश बाल यौन शोषण बच्चे के परिचित व्यक्ति द्वारा किए जाते हैं। जिसमें लगभग 30 फीसद बच्चे के रिश्तेदार होते हैं। इसमें भी सबसे अधिक बच्चे के भाई, पिता, चाचा, या चचेरे भाई आदि होते हैं। लगभग 30 फीसद आरोपी अन्य परिचित होते हैं, जैसे कि पारिवारिक दोस्त, नौकर या पड़ोसी और लगभग 10 फीसद बाल यौन शोषण मामलों में अपराधी अजनबी होते हैं।

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बाल यौन शोषण की पहचान और रोकथाम के लिए पहला कदम यह है कि हम बच्चों को यौन शोषण के बारे में समझांए ताकि बच्चा अपने साथ हो रही हिंसा की पहचान कर सके।

बाल यौन शोषण बालक या बालिका किसी के साथ भी हो सकता है। हालांकि अधिकांश बाल यौन शोषण बच्चियों के खिलाफ पुरूषों द्वारा ही किए जाते हैं। बाल यौन शोषण भारत में महामारी के अनुपात पर पहुंच गया है। एक स्टडी के मुताबिक हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन शोषण का सामना करता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा 2016 में जारी की गई रिपोर्ट पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि देश में बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाली आपराधिक गतिविधियों में काफी इजाफा हुआ है । साल 2014 में बच्चों के साथ अपराध की 89,423 घटनाएं सामने आई, इसके बाद साल 2015 में 94,172 और साल 2016 में 1,06,958 घटनाएं दर्ज हुई।

बाल यौन शोषण की पहचान और रोकथाम के लिए पहला कदम यह है कि हम बच्चों को यौन शोषण के बारे में समझांए ताकि बच्चा अपने साथ हो रही हिंसा की पहचान कर सके। बच्चों को उनके शरीर के अंगों के बारे में जागरूक करें, उन्हें शरीर के प्राइवेट पार्ट्स के बारे में जानकारी दें और स्पष्ट रूप से उनके नाम से भी वाकिफ कराएं। साथ ही यह भी बताएं कि कोई भी अपरिचित व्यक्ति जो उनके चेहरे और हाथों के अलावा शरीर के किसी अन्य भाग को छूने की कोशिश करता है तो ये गलत है। उन्हें इसकी सीमा के बारे में बताएं ताकि अगर कोई उनके शरीर को गलत तरीके से छूना चाहे तो वे समझ जाएं कि ये सही नहीं है और आपको आकर इस बात की जानकारी दें।

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साथ ही अपने बच्चों में आत्मविश्वास भी भरें ताकि कोई भी व्यक्ति उन्हें डराकर उनके साथ हिंसा ना कर सके। उनके साथ मित्र बनकर रहें जिससे वे आपसे अपनी बातें कहने में झिझकें नहीं। कभी- कभी बच्चे अपने साथ हो रहे उत्पीड़न को व्यक्त करने के लिए सही शब्द का इस्तेमाल नहीं कर पाते तो वे अपने माता-पिता को संकेत देते हैं जिसे अनदेखा नहीं करना चाहिए। जैसे कभी-कभी बच्चा किसी विशेष वयस्क के प्रति नाराज़गी या गुस्सा व्यक्त करता है, और किसी विश्वसनीय वयस्क के पीछे छिप जाता हैं। अन्य बच्चों अपेक्षा में कुछ अलग बर्ताव करता है, किसी से मिलना-जुलना नहीं पसंद करता है और कभी-कभी बच्चा अपने साथ हो रहे उत्पीड़न को अन्य तरीकों से व्यक्त करता है जैसे चित्र आदि के ज़रिए। इन शिकायतों को कभी भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए ।

एक समझदार नागरिक होने के नाते हम सबका कर्तव्य है कि इस सामाजिक बुराई को मिटाएं और अपने आस-पास के लोगों को भी इसके बारे में जागरूक करें। समाज से यह अवधारणा हटाए कि यौन शोषण के बाद लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाती है, या यौन शोषण के खिलाफ आवाज़ इसलिए ना उठाएं क्योंकि अगर ये बात सबको पता चली तो समाज में उनकी बदनामी होगी। यौन शोषण के सर्वाइवर की ज़िन्दगी वह घटना नहीं बल्कि पितृसत्ता समाज की यह रुढ़ीवादी अवधारणा ख़राब करती है। समाज को यह समझना आवश्यक है कि यदि कोई यौन हिंसा का सामना करता है तो शर्मिंदगी की बात उसके लिए नहीं बल्कि उसके अपराधी और इस समाज के लिए है।

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तस्वीर: सुश्रीता भट्टाचार्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए






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