एडिटर्स नोट : यह लेख फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी लड़कियों द्वारा लिखे गए लेखों में से एक है। इन लेखों के ज़रिये बिहार और झारखंड के अलग-अलग इलाकों में रहने वाली लड़कियों ने कोविड-19 के दौरान अपने अनुभवों को दर्शाया है। फेमिनिज़म इन इंडिया और फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी साथ मिलकर इन लेखों को आपके सामने लेकर आए हैं अपने अभियान #LockdownKeKisse के तहत। इस अभियान के अंतर्गत यह लेख बक्सर ज़िले की रिंकू ने लिखा है जिसके तहत वह बता रही हैं पूनम की कहानी।
बिहार का बक्सर जिला, ईटाढी़ प्रखण्ड, पंचायत नारायणपुर का एक गांव है ओराप। उसकी जनसंख्या लगभग 2500 है। यहां रहनेवाले ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं। हर रोज़ काम करते हैं और उससे अपना जीवन चलाते हैं। महिलाएं अपने गांव में धान रोपाई का काम करती हैं और गेहूं, धान, चना इत्यादि की कटाई का भी। पुरुष काम की तलाश में अगल-बगल के गांवों में जाते हैं। उसके लिए उन्हें 15-15 किलोमीटर तक पैदल चलकर जाना पड़ता है। वहां पर उन्हें ईंटा, बालू ढ़ोने और गली-नाली का काम मिलता है। हर शाम को इन कामों के बदले 250-300 रुपए मिलने की उम्मीद उन्हें ज़िंदा रखती है। तभी अचानक लॉकडाउन हुआ और सारा काम बंद हो गया। अब जैसे-तैसे करके लोग अपना जीवनयापन कर रहे हैं। उसी गांव में चमार टोला है। पूनम का परिवार वहीं रहता है। माता-पिता, 4 बेटियां और 2 बेटे हैं। एक बेटी की शादी हो गई है और तीन बेटियां कुंवारी हैं। एक बेटी पैर से विकलांग है। दो लड़के हैं जिसमें एक 18 साल का है और एक उससे कम है। बड़ा वाला कुछ पढा़ई करके शहर में काम करता है। पूनम अपने माता-पिता की दूसरी बेटी है। अभी वह 22 साल की है। स्कूल की पढ़ाई पूरी हो चुकी है। इस साल 12वीं की परीक्षा में उसको अच्छे नंबर आए हैं। वह अब ग्रेजुएशन की पढ़ाई करना चाहती है।
पूनम की मां स्कूल में खाना बनाने का काम करती है। उसके पिता अब कोई काम नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनके शरीर को लकवा मार गया है। कोविड-19 के पहले पूनम का भाई रोज़गार की तलाश के लिए पानीपत शहर गया था। पानीपत, बक्सर से 18 घंटे का सफर है रेलगाड़ी से। एक फैक्टरी में धागा काटने के काम में उसे 8000 रुपये महीना मिलता था। उसमें से 2000-3000 हजार रूपये वह घर पर भेजता था। लॉकडाउन के पहले पूनम का भाई होली में घर आया था। बुखार और सर्दी के कारण उसकी तबीयत थोड़ी खराब रहती थी तो परिवार के लोगों ने उसे घर बुला लिया। उसकी आमदनी बंद हो गई, फिर लॉकडाउन लग गया तो वह यहीं फंस गया।
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पूनम बहुत जिम्मेदार लड़की है। वह शुरू से ही अपने पिता की हर तरह से मदद करना चाहती है और करती भी है। वह दूसरे के खेतों में धान, गेहूं, चना की कटाई करती है। फिर उनका 10 बोझा (गट्ठर) बांधकर खेत वाले के घर पहुंचाती है। इसके बदले में एक बोझा मजदूरी मिलती है जिससे वह अनाज लेती है। जैसे ही पूरी दुनिया में तालाबंदी हुई सब लोग घरों में बंद होने लगे थे लेकिन तालाबंदी के दौरान भी पूनम का समय खेतों में ही जा रहा था। गेहूं कटाई, धान रोपाई, निराई के साथ प्याज़ काटने का काम भी करने लगी थी। इसके लिए उसे अपने गांव से 2-3 किलोमीटर दूर जाना होता था। सुबह में 3 बजे घर से निकलना और शाम को 4 बजे घर वापस आना। उसके साथ में अगल-बगल की कुछ महिलाएं और लड़कियां जाती थीं। चलते वक्त वे सब कोविड-19 महामारी को लेकर बात करती जाती थीं।
पूनम भविष्य में कुछ रोज़गार करना चाहती है। वह किसी भी तरह का काम करने के लिए तैयार है। उसे समाज की तालाबंदी से निकलना है।
सब लोग अलग-अलग तरह की बातें करते थे। बाकी लोग अखबार, टीवी चैनल के समाचार देखकर समझ रहे थे, लेकिन पूनम के परिवार में इसकी जानकारी के लिए कोई साधन नहीं था। पूनम सुनी-सुनाई बात ही जानती थी। खेत में काम करते समय वहां पर पुलिसवाले आते थे और काम बंद करने को बोलते थे। सबको हड़काते थे कि शारीरिक दूरी बना कर काम करो। पूनम साथ में खाना ले जाया करती थी, लेकिन साथ में ज्यादा लोग होने के कारण कभी-कभी खाना नहीं खा पाती थी। खेत में शारीरिक दूरियां बनाना संभव नहीं होता था। इस कोविड की बीमारी में क्या-क्या सावधानी बरतनी है, कोविड कैसे फैलता है, इससे कैसे बचना है, इन सारी बातों की पक्की जानकारी नहीं थी। जैसे-जैसे पुलिस वाले कहते, वैसे ही वैसे सब काम करते थे। सच पूछो तो तालाबंदी में पूनम को कोई फर्क नहीं पड़ा, उसका कोई काम बंद नहीं हुआ और हमेशा की तरह वह काम करती रही। अगर वह बीमारी के डर से काम नहीं करती तो खाने को नहीं मिलता। वैसे भी बीमारी का डर एक तरफ और बिना खाए कैसे जिंदा रहेंगे यह स्थिति दूसरी तरफ, काम करना ही है।
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पूनम पूरे परिवार की देखभाल करती है। अभी उसके भाई की तबीयत बहुत खराब हो गई थी। उसके पंजरी में पानी हो गया था। कई जगहों पर इलाज हो रहा था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इलाज के खर्च के साथ घर खर्च की चिंता थी। पूनम ने कपड़ा सिलाई करके और फैट संस्था में महिला नेतृत्व के लिए जो काम किया था, उस पैसे से लॉकडाउन के दौरान अपने परिवार को संभाला। सारे पैसे खर्च करने के बावजूद भाई-बहन में मनमुटाव चल रहा है। परिवार में मम्मी-पापा को ज़रूर लगता है कि पूनम ने कुछ मदद तो की है। लेकिन जब से पूनम को फैट की तरफ से मोबाइल मिला है और उसे तो संस्था की हर मीटिंग में जुड़ना होता है, उसका होमवर्क करना होता है, तब से घर में खींचातानी बढ़ गई है। वह अपने घर के कामों के लिए ज्यादा समय नहीं दे पा रही है। बहन-भाई को लगता है कि पूनम सारा दिन फोन में लगी रहती है, केवल अपने विकास की फ़िक्र है उसको और वह लोग घर-बाहर का काम कर रहे हैं। वे सब पूनम की स्थिति नहीं समझ पा रहे हैं।
अभी पूनम आगे बीए करना चाहती है लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं। ऊपर से शादी का दबाव कई सालों से चलता आ रहा है। पढ़ाई की वजह से इतने दिन शादी रोक पाई थी, लेकिन अब मुश्किल हो रही है और भावुक बातें की जाती हैं। कहा जाता है कि शादी कर लो नहीं तो हम जिंदा नहीं रहेंगे तो कौन शादी करेगा। अब वह 22 साल की है तो सब लोग कहते हैं कि इतनी बड़ी हो गई है, घरवाले शादी नहीं कर रहे हैं क्योंकि बेटी कमाकर ला रही है। शादी कर देने से बेटी की कमाई खाने को नहीं मिलेगा, यह ताना देते हैं। इन बातों का असर पिता पर होता है तो वो पूनम को भला-बुरा बोलने लगते हैं। कहते हैं कि तुम बड़ी हो और तुमसे दो छोटी है, अगर तुम्हारा ब्याह नहीं होगा तो उन बहनों का कैसे होगा। अब पूनम भी हार मानने लगी है। उसके घर में पापा और भाई दोनों ही बीमार हैं। पापा तो बीमारी के चलते बहुत पहले से काम नहीं करते हैं, लेकिन भाई का भी नहीं पता वह कब तक ठीक होगा।
इन सारी बातों से पूनम परेशान हो गई है और उसने शादी के लिए हां, बोल दिया है। लेकिन दिल से नहीं, सिर्फ अपने परिवार की खुशी के लिए। पूनम को पता है कि शादी के बंधन में बांधने की बात समाज में महिलाओं को ‘कंट्रोल’ करने के लिए की जाती है लेकिन अभी पूनम के सामने कोई उपाय नहीं है। उसकी पढ़ाई रुक गई है और कोई रोज़गार भी नहीं फिर भी वह लगातार काम कर रही है। फैट संस्था की मदद से वह कोविड-19 की सही जानकारी सही स्रोत से ले रही है। जब से पूनम फैट की वर्कशॉप में जुड़ने लगी तब से उसकी समझ बढ़ने लगी कि कोरोना वायरस से कैसे बचना है, क्या सावधानी रखना है। वह सबसे बात करती है और सबका सुनती भी है तो उसे अच्छा लगता है। धान रोपाई के समय वह दुपट्टे से मुंह ढककर खेत में काम करती थी। गर्मी से पसीना होता था, लेकिन बीमारी के डर से करना पड़ता था। सिर्फ दिन में एक बार खाना खाकर खेतों में काम करती रहती थी। फिर वापस घर आकर नहाकर खाना खाती थी। फैट ने आर्थिक रूप से भी मदद की है। इससे पूनम को आर्थिक रूप से खड़े होने में मदद मिली है। पूनम अभी शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ है और उसके घर की स्थिति अभी पहले से बेहतर है। पूनम भविष्य में कुछ रोज़गार करना चाहती है। वह किसी भी तरह का काम करने के लिए तैयार है। उसे समाज की तालाबंदी से निकलना है।
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तस्वीर : फेमिनिज़म इन इंडिया