इस पितृसत्ता समाज में महिलाओं का जीवन हमेशा से केंद्र में रहा है। उन्हें कैसे जीना चाहिए, क्या पहनना चाहिए, क्या करना चाहिए इन सभी चीजों पर अलग-अलग प्रकार के लोग अलग-अलग प्रकार की टिप्पणियां देते रहते हैं। इन मुद्दों पर राजनेताएं भी अपनी राय देने से बाज नहीं आते। अब जैसे पिछले दिनों ही महिलाओं की रिप्ड जींस को लेकर उत्तराखंड के हालिया सीएम तीरथ सिंह रावत का बयान सामने आया। उन्होंने रिप्ड जींस पहनने वाली महिलाओं को “कैंची वाला संस्कार” से संबोधित कर दिया। एक वर्कशाॅप के दौरान उन्होंने कहा कि फटी हुई जींस पहनने वाली औरतें समाज में बुरा संदेश देती है। उन्होंने विस्तार से बताया कि एक बार मैं फ्लाइट में यात्रा कर रहा था। बगल वाली सीट पर एक औरत साथ में दो बच्चों को लिए हुए बैठी थी। जब मैंने उनकी तरफ देखा तो नीचे बूट्स थे। जब ऊपर देखा तो घुटने फटे हुए थे हाथ में कुछ कड़े थे। मैंने पूछा बहन जी कहां जाना है? तो उन्होंने बताया, दिल्ली जाना है। हस्बैंड कहां है? जेएनयू में प्रोफेसर है। तुम क्या करती हो? मैं एक एनजीओ चलाती हूं। इसी वाक्या पर उन्होंने वर्कशॉप में कहा, “की एनजीओ चलाती है, साथ में बच्चे थे, समाज में जाती है, और खुद के घुटने फटे थे। वह दूसरों को क्या संस्कार देगी?”
हमारे समाज की धारणा है कि संस्कारी वही है जो भारतीय वेशभूषा में है। पश्चिमी वेशभूषा वाले लोगों खासतौर से स्त्रियों को असंस्कारी ही माना जाता है। लेकिन यहां यह नज़रिया बदलने की जरूरत है क्योंकि कपड़े से किसी का चरित्र निर्मित नहीं होता। तो कपड़े के आधार पर किसी के व्यक्तित्व की आलोचना करना भी सरासर गलत है। संस्कार और संस्कृति दोनों अलग चीजें हैं। कोई किसी भी संस्कृति चाहे वह भारतीय हो या पश्चिमी, उसे अपनाकर अपना जीवन जी सकता है। तीरथ सिंह रावत के इस महिला-विरोधी बयान के बाद उनका सोशल मीडिया पर काफी आलोचना भी किया गया। महिलाएं रिप्ड-जींस में अपनी फोटो अपलोड करने लगीं और अपने-अपने तर्कों से सीएम रावत को घेरने लगीं। जिसके बाद उन्हें अपने बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी।
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लेकिन यह कोई पहली बार नहीं था जब किसी नेता ने महिला-विरोधी बयान दिया था बल्कि नेताओं द्वारा हमेशा ही ऐसे महिला विरोधी बयान देकर, पितृसत्तात्मक सोच का परिचय दिया जाता रहा है। जैसे कांग्रेस पार्टी के केरला के मुख्य मूल्लापल्ली रामचंद्र ने बयान दिया था कि यदि किसी औरत का बलात्कार होता है तो उसे अपने आत्म-सम्मान के लिए अपनी जान ले लेनी चाहिए या फिर दोबारा ऐसा नहीं होने देना चाहिए। यानि उनके अनुसार जिस भी औरत का बलात्कार होता है उसका आत्म सम्मान नहीं होता। जहां सवाल उठना चाहिए अपराधी पर वहां सवाल उठाए जाते हैं सर्वाइवर पर, इसमें औरत या लड़की का क्या कसूर? अभी हाल ही में लड़कियों के शादी के उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने का बात चल रही है। इसी विषय पर जनवरी में कांग्रेस के एक एमएलए सज्जन सिंह वर्मा ने कहा, “जब डॉक्टर्स भी कहते हैं कि 15 साल की लड़की भी एक बच्चे को जन्म दे सकती है तो फिर लड़कियों के शादी की उम्र को 21 साल करने की क्या ज़रूरत है?” उन्होंने एक ही वाक्य में औरतों की पूरी जिंदगी को मात्र एक बच्चे को जन्म देने तक सीमित कर दिया। क्या औरत का अस्तित्व सिर्फ शादी करने और बच्चे को जन्म देने तक ही सीमित है?
महिला-विरोधी बयानों के लिए जनता दल यूनाइटेड के पूर्व-अध्यक्ष शरद यादव भी चर्चा में रहते हैं। वक्त था साल 1997 का, जब संसद में महिला आरक्षण बिल पर बहस हो रहा था। इस बहस के दौरान उन्होंने कहा कि इस बिल से सिर्फ पर-कटी महिलाओं को फायदा होगा। पर कटी (शहरी महिलाएं) हमारी ग्रामीण औरतों का कैसे प्रतिनिधित्व करेंगी। वहीं, साल 2017 में पटना में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था, “वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से कहीं ज्यादा बड़ी है। बेटी की इज्जत गई तो सिर्फ गांव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी लेकिन अगर वोट एक बार बिक गया तो देश और सुबे की इज्जत चली जाएगी।” उनके इस बयान पर भी काफी विवाद हुआ था क्योंकि उन्होंने महिलाओं के आत्मसम्मान की तुलना वोट से की थी। वोट की अहमियत बताने के लिए उन्हें महिलाओं का अपमान करना ज्यादा सही लगा।
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राजस्थान में एक चुनावी सभा के दौरान उन्होंने अपने विपक्षी दल की वसुंधरा राजे का यह कहकर अपमान किया, “वसुंधरा को आराम दो, बहुत थक गई हैं। अब मोटी हो गई हैं, पहले पतली थी।” वजन का घटना-बढ़ाना एक आम बात है। भरी सभा में भी वह एक औरत की बॉडी-शेमिंग करने से नहीं चूके। इस पर वसुंधरा राजे ने कड़ा एतराज़ जताते हुए कहा कि वह इस बयान से अपमानित महसूस कर रही हैं। वैसे आपको यह भी बता दें कि महिलाओं का अपने बयानों से इतना अपमान करने के बाद भी शरद यादव को सर्वश्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
बीजेपी के नेता कैलाश विजयवर्गीय ने एक बार कहा था, “औरतों को ऐसा श्रृंगार करना चाहिए जिससे आदमी के मन में श्रद्धा पैदा हो ना कि उत्तेजना। कभी-कभी औरतें ऐसा श्रृंगार करती हैं जिससे आदमी उत्तेजित हो जाता है। बेहतर है कि औरतें लक्ष्मण रेखा में रहें।” यानि औरतों के खिलाफ बढ़ रहे शारीरिक शोषण के लिए भी उन्होंने औरतों को ही ज़िम्मेदार बताया था। उनके हिसाब से औरतों का शोषण उनके पहनावे और श्रृंगार की वजह से होता है ना कि पितृसत्तात्मक सोच की वजह से। वहीं, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी महिलाओं पर विवादित बयान दिए हैं। एक पार्टी कार्यक्रम में उन्होंने मीनाक्षी नटराजन को ‘टंच माल’ कह दिया था। उन्होंने एक बार राखी सावंत पर भी टिप्पणी करते हुए कहा था कि,” अरविंद केजरीवाल और राखी सावंत जितना एक्सपोज करने का वादा करते हैं उतना करते नहीं हैं।”
नेताओं को अपनी बात कहने के लिए औरतों का अपमान करना ही क्यों सही लगता है। गोवा के मुख्यमंत्री और भारत के पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने लड़कियों के शराब पीने पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था, “मैं डरने लगा हूं क्योंकि अब तो लड़कियां भी शराब पीने लगी हैं। सहने की क्षमता खत्म हो रही है।” लड़कियां शराब पीएं या ना पीएं ये उनकी अपनी इच्छा है और रही बात सहने की तो आखिर लड़कियां और औरतें ही कब तक सहती रहेंगी और क्यों सहेंगी? यह तो फिर भी आम औरतों के बारे में बोला जाता है। जो औरतें राजनीति में कदम रखती है उन्हें भी उनके पहनावे से लेकर उनके चाल-चलन तक के लिए काफी कुछ सुनना पड़ता है। जैसे बिहार चुनाव के दौरान अचानक से एक युवा लड़की का मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनने की घोषणा ने सबको चौंका दिया। वह युवा लड़की थी पुष्पम प्रिया चौधरी। जो मुख्यमंत्री के उम्मीदवार बनने का ऐलान करने के बाद अपने दावों से ज्यादा अपने पहनावे के लिए चर्चा में थी। एक युवा लड़की का काला कुर्ता-पैंट पहनकर सत्ता में आना, लोगों से हज़म नहीं हो पा रहा था क्योंकि उन्होंने शुरू से ही एक औरत को सफेद साड़ी पहने हुए सत्ता के गलियारों में देखा है और अपनी सोच को वहीं तक सीमित कर लिया है। औरतों को कुछ भी बोलकर उनका हौसला को तोड़ने वाले ज्यादातर राजनेता ही होते हैं। महिलाओं का सत्ता में आकर सत्ता चलाना इनसे बर्दाश्त नहीं हो पाता। नेता, लोगों या समाज द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। समाज उनकी सुनता है, इसलिए उनकी कही बातों से इस समाज पर फर्क पड़ता है। उन्हें अपनी पितृसत्तात्मक दकियानूसी सोच से परे लोक-कल्याण के बारे में सोचना चाहिए।
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