भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को आया था। इसके बाद से केंद्र सरकार ने भले ही धरातल पर कम काम किए हैं लेकिन जुमलों में कोई कमी नहीं छोड़ी। उदाहरण के तौर पर कोरोना की पहली लहर के दौरान थाली बजावाई, दीये जलवाए, आत्मनिर्भर भारत और लोकल से वोकल का नारा बुलंद किया, पीएम केयर्स फंड का झूठा दिलासा दिया, इत्यादि। उसी तरह उन्होंने वैक्सीनेशन के लिए जागरूकता कॉलर ट्यून को भी मात्र एक जुमले की तरह इस्तेमाल किया। इस कॉलर ट्यून में जसलीन भल्ला द्वारा यह कहती सुनाई देती हैं,“नमस्कार, नया साल कोविड-19 के वैक्सीन के रूप में आशा की नई किरण लेकर आया है। भारत में बनी वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी है और कोविड के विरुद्ध हमें प्रतिरोधक क्षमता देती है। इसलिए भारतीय वैक्सीनों पर अपना भरोसा रखें। अपनी बारी आने पर वैक्सीन अवश्य लें और अफवाहों पर विश्वास ना करें। और हां, याद रखें दवाई भी और कड़ाई भी। वैक्सिन के साथ हमेशा मास्क पहने, दूसरों से दो गज की दूरी बनाकर रखें और अपने हाथों को बार-बार अच्छी तरह से धोएं।”
इस कॉलर ट्यून को 15 जनवरी 2021 से सुनाया जा रहा है और लोगों को वैक्सीन के प्रति जागरूक कराया जा रहा है। अब लगभग 4 महीने बाद जब कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप के बाद लोगों के बीच वैक्सीन को लेकर थोड़ी-बहुत जागरूकता आ चुकी है और लोग वैक्सीन लेना चाहते हैं तब देश में पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन ही नहीं है। इसलिए नहीं क्योंकि भारत वैक्सीन बनाने में असमर्थ है बल्कि इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार को अपने देश के लोगों की जान बचाने से ज्यादा जरूरी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम चमकाना लगा। 27 मार्च को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भारत के प्रतिनिधि ही कह रहे थे कि जितना देश के लोगों को टीका नहीं दिया उससे ज्यादा विदेश के लोगों को दे दिया।
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इसीलिए बीती 13 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा वैक्सीनेशन को लेकर जारी की गई कॉलर ट्यून की आलोचना की है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है यह कॉलर ट्यून परेशान करने वाली है। इसमें लोगों से वैक्सीन लगवाने को कहा जा रहा है जबकि केंद्र के पास पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन है ही नहीं। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पल्ली की बेंच ने यह भी कहा कि लोगों का टीकाकरण नहीं किया जा रहा है और लगातार कहा जा रहा है वैक्सीन लगवाइए। वैक्सीन कौन लगवाएगा जब वैक्सीन है ही नहीं। ऐसे में इस संदेश का क्या मतलब है। बेंच ने यह भी कहा, “केंद्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में हर किसी का टीकाकरण हो। आप भले ही पैसे लीजिए लेकिन अब हर किसी के लिए टीकाकरण उपलब्ध कराएं। अब तो बच्चे भी यह कह रहे हैं।” कोर्ट ने पूछा कि अब जबकि जमीनी स्थिति भी बदल चुकी है क्या एक ही धुन वह 10 सालों तक चलाएंगे? बेंच ने कहा कि एक ही धुन को बार-बार बजाने के बजाय अलग-अलग धूनों के माध्यम से अलग-अलग संदेश देना चाहिए।
बेंच ने कहा की,” केंद्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में हर किसी का टीकाकरण हो। आप भले ही पैसे लीजिए लेकिन अब हर किसी के लिए टीकाकरण उपलब्ध कराएं। अब तो बच्चे भी यह कह रहे हैं।”
राजधानी में कोविड-19 की स्थिति से संबंधित याचिकाओं के समूह का सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र को यह सुझाव दिया। सुनवाई के दौरान बेंच ने टीवी एंकर या उत्पादकों को ऑक्सीजन सिलेंडर, कंस्ट्रेटर और दवाओं के उपयोग के बारे में जनता के बीच जागरूकता फैलाने का सुझाव दिया। बेंच ने कहा कि एक लीटर ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर मशीन 60,000 में बेची जा रही है जबकि यह वास्तव में कोई उद्देश्य पूरा नहीं करती है। यह भी कहा कि ऑक्सीजन का स्तर 90 होने पर लोगों को लगता है कि उनका इलाज हो चुका है लेकिन यह सूचित करना जरूरी है कि अभी भी उन्हें उपचार की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह भी सुझाया की मशहूर सेलेब्रेटी, डॉक्टरों का साक्षात्कार कर कोरोना के मुद्दे पर लोगों को जागरूक कर सकते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को यह सब जल्द करने को कहा है और 18 मई तक अपनी-अपनी रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया है, साथ ही पूछा है कि वह टीवी, प्रिंट और डायलर ट्यून के माध्यम से कोविड-19 के प्रबंधन संबंधित सूचनाओं का प्रसार करने के लिए क्या कदम उठाने वाले हैं। वैसे यह कोई पहली बार नहीं था जब कोर्ट ने कोविड-19 के प्रबंधन को लेकर केंद्र की आलोचना की है। बीते दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर भी केंद्र को झड़प सुनाई थी। लॉकडाउन को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आपस में सहमति बनाने को कहा था।
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