समाजपरिवार परिवार में महिलाओं के मनोभावों को स्पेस देने से क्या होगा| नारीवादी चश्मा

परिवार में महिलाओं के मनोभावों को स्पेस देने से क्या होगा| नारीवादी चश्मा

जब हम जेंडर समानता और संवेदनशीलता की बात करते है तो वहाँ महिलाओं के लिए सेफ़ स्पेस को सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी होता है, जो उनके लिए सपोर्ट सिस्टम के रूप में काम करें।

बचपन से अपने परिवार में मैंने अपने परिवार और आसपास के घरों में महिलाओं को दो ही रूप में देखा है या तो मुस्कुराती हुई या फिर शांत। पर ऐसा नहीं है कि महिलाओं को ग़ुस्सा नहीं आता या उनके दूसरे भाव नहीं होते, बस समस्या ये है कि महिलाओं के मनोभावों को ज़ाहिर करने का स्पेस हमारे परिवार में नहीं होता है। हमेशा हमलोगों को घर से ही ये सीख दी जाती है कि हमें हमेशा ‘अच्छी औरत’ बनने की कोशिश करनी चाहिए। वो अच्छी औरत कैसी होगी? इसका ज़वाब हमारा समाज देता है – गाय जैसी। सीधी-शांत और कोई शिकायत न करने वाली।

किसी भी इंसान के विचारों और उनकी मानसिक स्थिति न केवल उनके अपने जीवन बल्कि आसपास के लोगों के जीवन को भी प्रभावित करता है। ऐसे में जब हम परिवार की कल्पना करते है तो, परिवार को हमेशा एक सपोर्ट सिस्टम के रूप में दिखाया जाता है, जहां हम अपनी बातें कह सकते है और जहां हमें सहयोग दिया जाता है। पर पितृसत्तात्मक परिवार में जब हम महिलाओं के विचारों और उनके मनोभावों की अभिव्यक्ति की बात करते है वहाँ महिलाओं पर पितृसत्ता का वर्चस्व साफ़तौर पर दिखायी पड़ता है।

पितृसत्ता में जेंडर के आधार पर लड़का-लड़की की कंडिशनिंग की जाती है। समाज के बनाए नियमों के अनुसार लड़का-लड़की व्यवहार करें, इसके लिए न केवल परिवार और समाज की संरचना पर महीन मूल्यों के साथ पितृसत्ता काम करती है, बल्कि ये भावनाओं पर भी अपनी लगाम लगाती है। इसी के तहत एक तरफ़ जहां पुरुषों को उनके ग़ुस्से, विचार और परेशानी को साझा करने की दिशा में परिवार उन्हें स्पेस देता है, वहीं दूसरी तरफ़ महिलाओं के लिए परिवार में ऐसा स्पेस उपलब्ध नहीं होता है, जहां वे अपने जज़्बात साझा कर सके। उनकी शिकायतों, सहमति-असहमति और नाराज़गी को परिवार में सिरे से अस्वीकार किया जाता है, क्योंकि पितृसत्ता सिर्फ़ महिलाओं के ‘अच्छे’ होने वाले गुणों को ही स्वीकार करती है, जिसमें उन्हें सबकी सुनना और ख़ुद कुछ न कहना बेहद ज़रूरी है। पर क्या हो जब महिलाओं को परिवार में अपने मनोभावों को ज़ाहिर करने का स्पेस मिले?

शुरु होगी महिलाओं के आत्मसम्मान की बात  

जब परिवार में महिलाओं को अपने ग़ुस्से, प्यार, सहमति-असहमति और जज़्बात को साझा करने का स्पेस दिया जाएगा तो इससे परिवार में महिलाओं के आत्मसम्मान की बात शुरू होगी। जब हम अपने विचारों और मनोभावों को बिना किसी दबाव के ज़ाहिर करते है तो इससे हम मज़बूती से अपनी पसंद-नापसंद और अपनी सीमाओं को उजागर कर सकते है, जिसका ताल्लुक़ हमारे आत्मसम्मान से होता है, जिसे आमतौर पर पितृसत्तात्मक परिवार में अस्वीकार किया जाता है। जब परिवार में महिलाओं के मनोभावों को स्पेस दिया जाने लगेगा तो इससे उनके आत्मसम्मान की बात भी शुरू होगी।

जब हम जेंडर समानता और संवेदनशीलता की बात करते है तो वहाँ महिलाओं के लिए सेफ़ स्पेस को सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी होता है, जो उनके लिए सपोर्ट सिस्टम के रूप में काम करें।

महिला आत्मविश्वास को मज़बूती

परिवार में जब महिलाओं के मनोभाव को स्पेस दिया जाता है तो इससे महिलाओं के आत्मविश्वास को भी मज़बूती मिलती है। क्योंकि जब हम परिवार में अपने विचारों और अनुभवों को साझा करने में सहज होते है तो इससे हमारे घनिष्ठ संबंध और भी मज़बूत होते है। ये एक सपोर्ट सिस्टम के रूप में काम करता है, जिससे महिला आत्मविश्वास को और मज़बूती मिलती है।

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परिवार होगा महिलाओं का सेफ़ स्पेस

जब हमारे परिवार में महिलाओं को उनके विचार, अनुभव और मनोभावों साझा करने की जगह मिलती है तो परिवार महिलाओं के लिए एक सेफ़ स्पेस बन जाता है। वो सेफ़ स्पेस जो महिलाओं के लिए एक मज़बूत सपोर्ट सिस्टम के रूप में काम करता है।

विकास की दिशा में महिलाओं के कदम

हम जब अपने विचारों, अनुभवों और ज़्ज़्बातों को बिना किसी डर के अपने परिवार में कह पाते है तो हम अपने सभी सफ़ल-असफल अनुभवों को साझा करते है, जिसमें परिवार एक मज़बूत सपोर्ट सिस्टम के रूप में काम करता है। ऐसे में ये सपोर्ट सिस्टम महिलाओं को विकास की दिशा में आगे बढ़ने की तरफ़ प्रोत्साहित करने का काम करता है, जिसमें महिलाएँ बिना किसी डर के आगे बढ़ती है।

परिवार किसी भी समाज की इकाई होती है और यही बच्चे की पहली पाठशाला भी कही जाती है। पर पितृसत्ता के संकीर्ण मूल्य प्रभावी ढंग से परिवार की पूरी संरचना को प्रभावित करती है, जिसकी वजह से महिलाओं पर लगातार अपने विचारों और मनोभावों को ज़ाहिर न करने का दबाव बनाया जाता है और अपने विचारों और मनोभावों को ज़ाहिर करने का विशेषाधिकार सिर्फ़ पुरुषों को दे दिया जाता है, जिससे महिलाएँ सिरे से दूर हो जाती है। इसलिए जब हम जेंडर समानता और संवेदनशीलता की बात करते है तो वहाँ महिलाओं के लिए सेफ़ स्पेस को सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी होता है, जो उनके लिए सपोर्ट सिस्टम के रूप में काम करें। इसलिए अगर आप भी जेंडर समानता को ज़रूरी मानते है तो अपने परिवार में महिलाओं के विचारों, मनोभावों और उनकी सहमति-असहमति को ज़ाहिर करने की दिशा में प्रोत्साहन दें और वो सेफ़ स्पेस बनाए जहां महिलाएँ अपनी बातें बिना किसी झिझक के रखें।

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तस्वीर साभार : blogs.lse.ac.uk

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