साल 2000 और 2019 के बीच सबसे अधिक प्राकृतिक आपदाओं के साथ, भारत; चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा देश है, जहां प्राकृतिक आपदाएं आने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। बिगड़ते जलवायु परिवर्तन, अप्रत्याशित मौसम, पर्यावरणीय गिरावट के साथ-साथ खराब आपदा प्रबंधन योजना और अनुकूलन उपाय, प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान को चिंताजनक रूप बढ़ा रहे हैं। हालांकि किसी भी प्राकृतिक आपदा में लोगों की जान जा सकती है, या कोई भी आपदा लोगों को नुकसान पहुंचाती है। लेकिन शोधों और विभिन्न रिपोर्ट से यह पता चलता है कि औरतें पुरुषों के तुलना में किसी भी आपदा में अधिक और अलग तरीके से प्रभावित होती है। समाज में पहले से मौजूद लैंगिक और सामाजिक असमानताओं के कारण आपदाएं लड़कों और पुरुषों की तुलना में महिलाओं और लड़कियों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करती हैं। महिलाओं की यह असुरक्षा तब और भी बढ़ जाती है, जब वे निचले सामाजिक-आर्थिक समूह से होती हैं।
महिलाओं और पुरुषों में इन भेदों का पता अक्सर समाज में महिलाओं की भूमिका और जहां वे रहती हैं, वहां मौजूदा लैंगिक और सांस्कृतिक मानदंडों से लगाया जा सकता है। हमारे समाज में महिलाएं सबसे आखिरी पायदान पर खड़ी हैं। इसलिए प्राकृतिक आपदा में सभी महिलाएं पुरुषों के तुलना में असमान रूप में प्रभावित होने के बावजूद, हाशिये पर रही महिलाएं जब प्राकृतिक आपदाओं में प्रभावित होती हैं, तो इसमें उनकी लिंग ही नहीं वर्ग और जाति भी अहम भूमिका निभाती है। भारत में समाजशास्त्रीय और लोगों के अनुभवों के अध्ययनों से पता चलता है कि रोजमर्रा के जीवन स्तर में जाति, वर्ग और लिंग कठोर और महत्वपूर्ण कारक है। लेकिन इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि वे आपदाओं के दौरान महिलाओं के अस्तित्व और जीवन प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करते हैं। हालांकि इसका जवाब हम महिलाओं के जाति, समुदाय और वर्ग के आधार पर खोजने की कोशिश कर सकते हैं।
भारत में समाजशास्त्रीय और लोगों के अनुभवों के अध्ययनों से पता चलता है कि रोजमर्रा के जीवन स्तर में जाति, वर्ग और लिंग कठोर और महत्वपूर्ण कारक है। लेकिन इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि वे आपदाओं के दौरान महिलाओं के अस्तित्व और जीवन प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करते हैं।
खराब सामाजिक स्थिति और प्राकृतिक आपदा का असर
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प्राकृतिक आपदाओं की बात करें, तो पश्चिम बंगाल का सुंदरबन उन कई भारतीय स्थानों में से एक है जो हर दिन और हर साल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हैं। सुंदरबन में बाघ, मगरमच्छ और मानव संघर्ष वर्षों से एक नियमित संकट रहा है। सुंदरबन क्षेत्र में लैंगिक भेदभाव आम है। महिलाओं को आमतौर पर भारी शारीरिक श्रम, कम आय और धन की कमी, परिवार में सत्ता की कमी, लैंगिक हिंसा, खराब सामाजिक स्थिति सहित कई मुद्दों का सामना करना पड़ता है। साथ ही उनका नीति निर्माण के मामलों में भी प्रतिनिधित्व कम होता है। अत्यधिक गरीबी, खराब आवास, स्वच्छता, पीने के लिए स्वच्छ पानी तक पहुंच की कमी, सीमित स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा की सीमित उपलब्धता और मछली सुखाने या प्रोसेसिंग या तलने में सक्रिय महिलाओं के लिए काम के अवसरों की कमी; समस्या को और जटिल बनाती है।
लिंग और गरीबी का प्राकृतिक आपदा में भूमिका
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, पश्चिम बंगाल का दक्षिण 24 परगना, न केवल देश में सबसे अधिक चक्रवातों से प्रभावित है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील है। यह देश के सबसे गरीब जिलों में से एक है। राज्य सरकार के अनुसार, इसकी 37.2 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। प्राकृतिक आपदा हो या रोजमर्रा का जीवन, कृषि के क्षेत्र में लगी महिलाएं परिवार में एक माँ और कमाने वाली की दोहरी भूमिका निभाती हैं। इन ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं विभिन्न ऐसे कठिन काम करती हैं जो चुनौतीपूर्ण है। चाहे गर्मी हो, बरसात या सर्दी, ये महिलाएं विशेष रूप से कृषि से जुड़ी रहती हैं। वे न सिर्फ कमाई में मदद करती है, बल्कि घर के कामों के लिए खेतों से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती हैं, जिसका उपयोग खाना पकाने के लिए ईंधन के एक बड़े स्रोत के रूप में किया जाता है।
चाहे घर के लिए ईंधन लाना हो या दूर-दराज के इलाकों से साफ पीने का पानी इकट्ठा करना हो, इन महिलाओं को किसी भी मौसम में इन जिम्मेदारियों से छुट्टी नहीं मिलती है। ऐसे में जब भी सुंदरबन के गांवों में कोई चक्रवात आता है, तो यह पहले से रोजमर्रा के जीवन में बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रही महिलाओं के लिए और भी मुसीबत का कारण बनता है।
सुदूरवर्ती क्षेत्रों से स्वच्छ पेयजल भी इनके द्वारा एकत्रित किया जाता है। चाहे घर के लिए ईंधन लाना हो या दूर-दराज के इलाकों से साफ पीने का पानी इकट्ठा करना हो, इन महिलाओं को किसी भी मौसम में इन जिम्मेदारियों से छुट्टी नहीं मिलती है। ऐसे में जब भी सुंदरबन के गांवों में कोई चक्रवात आता है, तो यह पहले से रोजमर्रा के जीवन में बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रही महिलाओं के लिए और भी मुसीबत का कारण बनता है। प्राकृतिक आपदा उन्हें और भी अधिक गरीबी के गर्त में धकेल देता है।
प्राकृतिक आपदा में महिलाओं को मानव तस्करी का डर
प्राकृतिक आपदा के आशंका से जूझते इन इलाकों में महिलाओं के लिए आय या जीवन का कोई दूसरा उपाय नहीं। सुंदरबन की सुंदरता में मानव तस्करी की गंभीर और भयानक वास्तविकता भी छिपी हुई है, जो बच्चों को बाल श्रम और महिलाओं और किशोरियों को मानव तस्करी में धकेलती है। कोई भी प्राकृतिक आपदा इस संकट को और बढ़ा देती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, हजारों लड़कियां हर साल पश्चिम बंगाल में लापता हो जाती हैं, जिनमें से लगभग एक तिहाई सुंदरबन से गायब होती हैं।
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सुंदरबन के अधिकांश निवासी कृषि और मछली पकड़ने से अपना जीवन यापन करते हैं। लेकिन चक्रवात, बाढ़, नदी कटाव और मिट्टी के सलाइन होना आय के गिने-चुने स्रोतों को बुरी तरह नष्ट या प्रभावित करता है। भारतीय समाज में महिलाओं पर घर और परिवार की जिम्मेदारी होने के कारण पुनर्निर्माण और पुनर्जीवन उनके जीवन का परम लक्ष्य हो जाता है। साल 2019 में बुलबुल, मई 2020 में अम्फान, 2021 में यास और जावद हाशिये पर रह रही महिलाओं के लिए जीवन मुश्किल बनाते रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, हजारों लड़कियां हर साल पश्चिम बंगाल में लापता हो जाती हैं, जिनमें लगभग एक तिहाई सुंदरबन से गायब होती हैं।
जेन्डर और आपदा अध्ययनों में जाति और वर्ग हो शामिल
भारत का ओडिशा भी प्राकृतिक आपदाओं से घिरा रहने वाला प्रदेश है। एक ही जगह पर अनेक आपदाओं से बचने में जाति, वर्ग और लिंग के प्रभाव पर ओडिशा पर एक केस स्टडी की गई। एक विशिष्ट स्थान पर होने वाली कई आपदाएं (जैसे बाढ़, चक्रवात और सूखा) उड़ीसा के तटीय भागों में नियमित घटनाएं हैं। साल 1999 का सुपर-साइक्लोन, 2001 और 2003 की दो बाढ़ और 2000 और 2002 का सूखा इस केस स्टडी का हिस्सा बनाया गया। स्टडी में पाया गया कि सामाजिक संगठन के दायरे में संरचनात्मक परिवर्तनशीलता सहित कई आपदाओं से बचने में जाति, वर्ग और लिंग की एक जटिल कारक है। महिलाओं ने गंभीर संकट के तहत अपनी सांस्कृतिक और जैविक जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक एजेंसियों का प्रदर्शन किया। यह शोध इस बात पर जोर देता है कि प्रभावी आपदा प्रबंधन और सामाजिक भेद में कमी के लिए जेन्डर और आपदा अध्ययनों में जाति और वर्ग पर भी विचार किया जाना चाहिए।
आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संसाधनों तक असमान और प्रतिबंधित पहुंच, महिलाओं की परिवारों, नीति निर्माण और सरकार के भीतर निर्णय लेने की शक्ति, उनकी जीवन के साल और आपदा के बाद सहायता, मुआवजे और वसूली तक पहुंच को प्रभावित करती है। आपदाओं के दुष्परिणामों के बीच, महिलाओं और लड़कियों को लिंग आधारित हिंसा के बढ़ते जोखिम का भी सामना करना पड़ता है। पहले से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की कमी में जी रही महिलाओं को प्राकृतिक आपदाओं के बाद यौन संचारित बीमारियों के बढ़े खतरे का भी सामना करना होता है।
यह शोध इस बात पर जोर देता है कि प्रभावी आपदा प्रबंधन और सामाजिक भेद में कमी के लिए जेन्डर और आपदा अध्ययनों में जाति और वर्ग पर भी विचार किया जाना चाहिए।
यह साबित होने के बाद भी कि महिलाएं आपदा प्रबंधन में विशेष भूमिका निभाती हैं, महिलाओं का समूह किसी भी आपदा में अधिक प्रभावित होता है। चूंकि जाति व्यवस्था, सामाजिक उंच-नीच से गाँव भी परे नहीं, इसलिए बेहतर स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था के लिए जूझना, रोजगार का बंद होना, पारिवारिक मृत्यु, कृषि करने के लिए जमीन की कमी, साफ पानी की कमी, ईंधन की कमी, आपदा में पालतू पशुओं का मरना, सरकारी योजनाओं तक पहुंच के लिए कागज़ी जरूरतों का पूरा होना जैसे सभी कारकों में निम्न सामाजिक और आर्थिक अवस्था के अलावा वर्ग और जाति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए, यह जरूरी है कि प्राकृतिक आपदाओं में न सिर्फ हम महिलाओं की बात करें, बल्कि जाति और वर्ग के पहलुओं को भी शामिल करें।