“सुबह से शाम तक हर स्थिति में हम काम करते हैं, कोई अपडेट, जानकारी, नया काम हो हम पर लागू कर दिया जाता है। पोषण आहार, परिवार हर तरह की जानकारी हम जुटाकर सरकार को भेजते हैं लेकिन जब बात अपनी मेहनत की सही कीमत की आती है तो हम पर लाठी बरसाई जाती है। हमारे काम को उस सम्मान की नज़र से नहीं देखा जाता है। सरकार का काम हम करें, गाँव-गाँव हम घूमे और अपने ही पैसे लेने के लिए हमें इधर-उधर भटकना पड़ता है। इसका साइन-उसका साइन कराने के लिए भी पैसा खर्च करना पड़ता है। इससे तो यही लगता है ना सरकार हमारे काम को महत्व नहीं देती है। हमारे लिए इस सरकार ने कुछ नहीं किया है सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें की हैं।” ये कहना है बबीता का। पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर जिले की रहने वाली बबीता सदर ब्लॉक के एक गाँव में आशा वर्कर के तौर पर तैनात हैं। बीते कुछ समय से देशभर की आशा और आंगनवाड़ी वर्कर्स समय-समय पर प्रदर्शन करती दिख रही हैं।
आगामी लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। राजनीतिक पार्टियों के चुनावी दौर में जनता के लिए लुभावने वादों की बहार भी लग चुकी हैं। बड़ी-बड़ी घोषणाएं हो रही हैं और और हर पार्टी मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में लगी हुई हैं। सत्ता पक्ष को जहां अपनी गद्दी बचानी है वहीं विपक्ष गद्दी पर बैठने की बिसात में लगा हुआ है। ऐसे में हर दल इस उम्मीद में है कि उसका जनाधार बचा रहे और वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी विचारधारा से जोड़ सकें। लोकतंत्र के पर्व चुनाव में हर व्यक्ति की राय और भागीदारी महत्वपूर्ण है और इसी क्रम में फेमिनिज़म इन इंडिया ने आगामी चुनाव को लेकर आशा और आंगनवाड़ी वर्कर्स के साथ चर्चा की। बतौर मतदाता वे अपनी क्या राय रखती हैं, उनकी नज़र में सरकार कैसी होनी चाहिए और उनके क्या मुद्दे हैं जैसे विषयों पर उनकी राय जानने की कोशिश की।
सरकार के अनुसार देश में कुल 10,47,324 आशा वर्कर्स हैं और 13.96 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पोषण ट्रैकर एप्लीकेशन पर रजिस्टर्ड है। अपनी सेवाओं के तहत ये बच्चों के शारीरिक पोषण, भावनात्मक और मानसिक देखभाल, मातृत्व देखभाल, परिवार नियोजन, टीकाकरण और गर्भवती महिलाओं तक जानकारी पहुंचाना आदि काम करती हैं। याद कीजिए कोविड-19 महामारी के समय के समय आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर लोगों तक सुविधाएं प्रदान की। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से उनके काम को सम्मान दिया गया। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा है, “मौसम की स्थितियां, भौगोलिक परिस्थिति कितनी भी विपरीत हो ये साथी एक-एक देशवासी की सुरक्षा के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं। गाँवों में संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए, दूर-सुदूर के क्षेत्रों में पहाड़ी और जनजाति क्षेत्र में टीकाकरण अभियान को चलाने के लिए हमारे ये साथी पूरी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। मैं अपने इन साथियों की भूरी-भूरी प्रंशसा करता हूं और सराहना करता हूं।”
आशा बहू के रूप में कार्यरत राखी कहती है, “मौजूदा सरकार बोलती बहुत है करती कुछ नहीं हैं। सम्मान, समारोह की बात ठीक है लेकिन मेहनत का हक भी तो मिलना चाहिए।”
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम सराहनाओं और अवॉर्ड के बावदूज उन तस्वीरों को भी नहीं भुलाया जा सकता है जब धूप में सड़कों पर आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रैली निकालती नज़र आती हैं, कहीं धरने पर बैठी नज़र आती हैं तो कही सरकारों द्वारा उन पर लाठीचार्ज और उन्हें रोकने के लिए पानी बौछार करती नज़र आती हैं। लंबे समय से देश अलग-अलग राज्यों में लगातार आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स के धरने प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। चुनाव के इस समय में आगंनवाड़ी और आशावर्कर्स से जुड़े मुद्दों पर सरकारों को बात करनी बहुत ज़रूरी है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव महज पहले पश्चिम बंगाल की सरकार ने अहम फैसला लेते हुए राज्य में आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स का वेतन बढ़ाने की घोषणा की है। हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के अनुसार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स का मासिक भत्ता 750 रूपये की बढ़ोत्तरी के साथ 8,250 से 9,000 रूपये कर दिया गया।
लोकसभा चुनाव पर क्या है आशा और आंगनवाड़ी वर्कर्स की राय
मुज़फ़्फ़रनगर जिले में ही एक गाँव में तैनात आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सुनीता से आगामी चुनाव और सरकार को लेकर कहती हैं, “हमारे कहने से क्या ही कुछ होने वाला हैं। हम कुछ भी कह लें करती तो सरकार अपने मन की ही है। आप बिहार में देखिए कितनी सारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने धरना दिया था और सरकार ने उनपर कितना अत्याचार किया। सरकारें तो अपनी मर्जी से करती हैं और इस सरकार में तो हमें कुछ मिला ही नहीं है। काम बढ़ा दिया है लेकिन उस काम का पैसा नहीं मिल रहा है। जिस तरह से हम काम कर रहे हैं उस तरह से सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। मैं तो चाहती हूं कि हमारे मुद्दे पर बात हो और चाहे कोई भी सरकार आए उसे इस दिशा में कुछ करना चाहिए।” सरकार कैसी हो इसके बारे में बोलते हुए वह आगे कहती है कि किसी की भी सरकार आएं लेकिन सबको साथ लेकर चलने वाली सरकार होनी चाहिए।
“मुझे उम्मीद है कि सरकार हमारी बातें सुनेंगी”
मुज़फ़्फ़रनगर शहर के सदर ब्लॉक में तैनात मीना एक आशा वर्कर हैं। आगामी चुनाव को लेकर उनका कहना है, “सरकार से तो हमारी हमेशा से एक ही मांग है कि वह हमारे मानदेय को बढ़ाया जाए। अब एक आशा वर्कर की भूमिका बदल गई है। कोविड़ में भी हम लोगों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर काम किया है। हर किसी की बातें सुनी जा रही हैं और मुझे तो उम्मीद है कि आशा बहनों की बातों को भी सुना जाएगा और माना जाएगा। अभी आशा वर्कर्स के लिए आयुष्मान भारत के तहत बीमा योजना की बात कही गई है, मुझे पूरी उम्मीद है कि यह सरकार कुछ करेंगी।”
क्या-क्या है आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स की मांगे
आंगनबाड़ी और आशा वर्कर्स हर राज्यों में सरकार से पिछले कुछ समय से लगातार अपने हकों के लिए आवाज़ उठा रही हैं। उनके प्रदर्शन की ख़बरे भी लगातार सामने आ रही हैं। महाराष्ट्र हो या दिल्ली, उत्तर प्रदेश हो या बिहार हर जगह की आंगनवाड़ी वर्कर्स अपनी मांगों को लेकर सरकार से सवाल पूछ रही हैं। दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन के अनुसार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मुख्य मांग यह है कि आंगनवाड़ी वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलें। आंगनवाड़ी वर्कर को 25,000 रूपये मासिक और हेल्पर को 20,000 रूपये मासिक का वेतन मिलें। आंगनवाड़ी की सभी बकाया राशि जारी हो और पेंशन की सुविधा मिलें। इसी तरह आशा वर्कर्स न्यूनतम मासिक वेतन और अन्य सुविधाओं की मांग लगातार कर रही हैं।
सरकारों का काम केवल बोलना रह गया है
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाँव में आशा बहू के रूप में कार्यरत राखी कहती है, “मौजूदा सरकार बोलती बहुत है करती कुछ नहीं हैं। सम्मान, समारोह की बात ठीक है लेकिन मेहनत का हक भी तो मिलना चाहिए। हम क्या है सरकारी मजदूर क्योंकि हमें ऑर्डर मिलते हैं और हम लग जाते हैं। मैं अपने घर में अकेली कमाने वाली हूं तो अगर मुझे कुछ होता है तो क्या होगा। हम जो कर रहे एक तरह की बेगारी है इतने कम रूपयों में किसका घर चल रहा है और वो भी सारा समय पर नहीं मिलता है। न्यूनतम वेतन की मांग करना हमारा हक है और किसी की भी सरकार हो हम उससे अपना हक लेकर रहेंगे। चुनाव में कौन हमारे बारे में बात करेगा, क्या पार्टी क्या वादा करेगी इस बात पर मेरी पूरी नज़र रहेगी।”
मुज़फ़्फ़रनगर में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर कार्यरत है भारती कहती हैं, “लगातार हम लोग अपनी मांगे रख रहे हैं। कभी किसी राज्य से तो कभी किसी राज्य से आंगनवाड़ी वर्कर्स प्रदर्शन करते देखा जा सकता है लेकिन उन्हें बदले में कुछ नहीं मिल रहा है। राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार दोनों कुछ नहीं कर रही हैं। जब मैं पहली बार धरने प्रदर्शन में दिल्ली गई थी तब मुझे पता चला था कि दिल्ली में अलग मानदेय मिलता है और उन्हें हमसे ज्यादा मिलता है। सभी आंगनवाड़ी एक जैसा काम करती हैं तो वेतन भी उसी तरह सबका होना चाहिए। हम सरकार का काम करते हैं लेकिन हम सरकारी कर्मचारी जैसी कोई सुविधा नहीं है। कोई भी सरकार हमारी बात को सुनने को तैयार नहीं हैं। हमारी एकता है और सरकार भी यह जानती है इसलिए उसे हमारे बारे में सोचना होगा। जो सरकार हमारी बात करेंगी हम उसे ही सहयोग करेंगें।”