भारत में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। ऐसे में चुनावी प्रत्याशी का चेहरा काफी मायने रखता है। विकास के क्षेत्र में काम करना और उनको लागू करने के बुनियाद पर लोग अपने वोट का निर्धारण करते हैं। भारत के राजनैतिक दलों में महिलाओं की स्थिति काफी चिंताजनक है। ऐसे में कई महिलाएं ऐसी भी हैं जो राजनीतिक नेतृत्व में आगे बढ़ रही हैं। युवा महिला नेता के तौर पर कर्नाटक की संयुक्ता पाटिल बागलकोट से कांग्रेस की उम्मीदवार का नाम भी उन्हीं में एक है।
बागलकोट कर्नाटक में जन्मीं 30 वर्षीय संयुक्ता पाटिल पेशे से एक वकील हैं। संयुक्ता ने अपनी वकालत की शिक्षा स्कूल ऑफ लॉ, क्राइस्ट से की है। वहाँ से उन्होंने बीबीएल और एलएलबी (ऑनर्स) में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। संयुक्ता छह बार विधायक रह चुके शिवानंद पाटिल की बेटी हैं, जो कर्नाटक में सिद्दारमैया के नेतृत्व वाली मौजूदा कांग्रेस सरकार में मंत्री भी हैं।
युवा नेता के रूप में उभर रही हैं संयुक्ता
एक युवा नेता के रूप में, जिन्होंने नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) और महिला कांग्रेस के साथ काम किया है। उन्होंने पर्याप्त ‘तकनीकी विशेषज्ञता’ हासिल की है, जो संसदीय चुनाव अभियान के माध्यम से उनकी मदद कर रही है। छोटी उम्र से ही, वह अपने पिता शिवानंद पाटिल के चुनाव अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लेती रही हैं। संयुक्ता दक्षिण भारत में युवा राजनीतिक नेतृत्व का प्रमुख चेहरा हैं। बागलकोट विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं और किसानों के लिए काम करने को लेकर संयुक्ता ने घोषणा की है। संयुक्ता का कहना है कि राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने के कारण उनकी लड़ाई आसान नहीं है। उनका मानना है कि राजनेता, लोगों द्वारा बनाए जाते हैं, और उन्हें काम करने या चुनाव जीतने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के बीच पहुँच बनानी चाहिए।
जीत का है भरोसा
कर्नाटक के बागलकोट निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार संयुक्ता पाटिल को जीत का पूरा भरोसा है क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि आगामी लोकसभा चुनावों में लोग उनका समर्थन करेंगे। इसी बीच राजनीति कलह और अफवाहों के बीच सयुंक्ता इस बात की चर्चा करती हैं कि वह इस बात की परवाह नहीं करती कि कौन क्या कहता है। उनको आशा है कि वह जीतेंगी और पूरे निर्वाचन क्षेत्र में लोग उनका समर्थन करेंगे। संयुक्ता एक नया चेहरा हैं, जिनका मुकाबला भाजपा के मजबूत उम्मीदवार पी.सी. गद्दीगौदर से है, जो छठी बार चुनाव लड़ रहे हैं। गद्दीगौदर मौजूदा सांसद हैं और 2004 से लगातार भाजपा के लिए सीट जीतते आ रहे हैं।
विपक्ष से सवाल जवाब
लोकापुर में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए संयुक्ता बताती हैं कि इस समय कर्नाटक भयंकर सूखे की चपेट में है। किसान परेशान हैं। जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया किसानों की मदद के लिए केंद्र सरकार से राहत राशि मांगते हैं, तो केंद्र सरकार अक्सर दिशा-निर्देश लागू होने जैसे बहाने बनाकर इसमें देरी करती है। किसानों के कृषि ऋण माफ नहीं किए जाते। लेकिन कॉर्पोरेट ऋण माफ किए जाते हैं। गरीब और मध्यम वर्ग द्वारा दिए जाने वाले करों में कमी नहीं की जाती, लेकिन संपत्ति कर और कॉर्पोरेट कर माफ या कम कर दिए जाते हैं। केंद्र सरकार ने कहा था कि वह अपर कृष्णा परियोजना के लिए 1 लाख करोड़ रुपये मंजूर करेगी। लेकिन एक भी रुपया जारी नहीं किया गया।
वह आगे कहती हैं कि राजनीति एक ऐसा आयाम है जहां अंतिम निर्णय जनता या मतदाताओं को ही लेना होता है। कोई भी व्यक्ति स्वयं को राजनेता घोषित नहीं कर सकता। राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहां लोगों को अपनी स्वीकृति की मुहर लगानी होती है, जिसके बिना आप कोई विरासत हासिल नहीं कर पाएंगे। ऐसे बहुत से राजनेता हैं जिनके बच्चे सफल राजनेता नहीं बन पाते। वो कहती हैं कि वो इस बात से सहमत हूं कि एक राजनेता के बच्चे के रूप में आपको एक फायदा मिलता है, क्योंकि आपको ऐसे लोगों से मिलने का मौका मिलता है, जिन तक बहुत से लोगों की पहुंच नहीं होती है।
देश की राज्यसभा में कुल 239 सदस्यों में से केवल 31 महिलाएं हैं और लोकसभा में 539 सदस्यों में से केवल 82 महिलाएं हैं। जब भारत सरकार की बात आती है, तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की 79 सदस्यीय मंत्री परिषद में केवल 10 महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलता है, जिनमें से केवल दो को कैबिनेट रैंक प्राप्त है। राज्य स्तर पर तस्वीर और भी धूमिल है। राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का राष्ट्रीय औसत लगभग 9 फीसद है। विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक लिंग अंतर सूचकांक 2023 में भारत की रैंक 146 में से 127 है, जो देश बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसियों से पीछे है। 2019 के आम चुनाव में, भारतीय जनता पार्टी ने जिन 435 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, उनमें से 12.6 फीसद महिलाएं थीं। पश्चिम बंगाल की अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारे गए कुल उम्मीदवारों में से 37.1 फीसद महिलाएं थीं।
महिला सशक्तिकरण विकास के आयामों को लागू करने के लिए एक ऐसे राजीनीति प्रतिनिधि की ज़रूरत है जो ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के विकास की बात करे। डिजिटल ज़माने में हम इंटरनेट पर महिलाओं के विकास की बात सुनते भी हैं और करते भी हैं। असल में कितना विकास हो रहा है इसके लिए आँकड़े गवाही नहीं देते। चुनाव में महिला प्रत्याशी का होना ज़रूरी है चूंकि जहां महिलाओं के सम्पूर्ण विकास की बात की जाएगी वहां राजनीतिक व्यवस्था में लैंगिक समानता का ज़िक्र करना जरूरी है। संसद में कुछ सीटें आरक्षित करने के बावजूद राजनीति में महिलाओं की कुछ खास पहचान नहीं बन पाई है। इसके पीछे की वजह को पहचानना ज़रूरी है, ताकि समाज समानता के विषय में केवल काग़ज़ तक ही नहीं बल्कि ज़मीनी स्तर पर भी जागरूक हो सके।