समाजकानून और नीति भारत में बाल विवाह: गरीबी, लैंगिक और सामाजिक असमानता का दंश झेलती लड़कियां

भारत में बाल विवाह: गरीबी, लैंगिक और सामाजिक असमानता का दंश झेलती लड़कियां

वैसे तो बाल विवाह, एक नकारात्मक सामाजिक प्रथा है, जो व्यापक लैंगिक असमानता, भेदभाव ही नहीं गरीबी और सरकार की विफलता का स्पष्ट परूप प्रस्तुत करता है। ये आर्थिक और सामाजिक शक्तियों के परस्पर प्रभाव का परिणाम है। लेकिन इनमें भी कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जो समाज में बाल विवाह को बढ़ावा देते हैं।

हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 200 मिलियन से अधिक महिलाओं की शादी बचपन में ही कर दी जाती है। वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 640 मिलियन है, जिसमें से एक तिहाई मामले अकेले भारत में होते हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 25 साल पहले चार में से एक लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती थी, जबकि अब यह आंकड़ा पाँच में से एक हो गया है। इस सुधार ने पिछली तिमाही सदी में लगभग 68 मिलियन बाल विवाहों को रोका है। इन प्रगति के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया लैंगिक समानता के मामले में पीछे रह गई है। महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा और कई महिलाओं के लिए उनके यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में स्वायत्तता की कमी जैसे मुद्दे अभी भी बने हुए हैं।

देश में बाल विवाह की हालत

यूनिसेफ़ बताती है कि बाल विवाह एक ऐसी प्रथा है जो बच्चों के बचपन को खत्म कर देती है। इससे बच्चों के शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के अधिकार पर नकारात्मक असर पड़ता है। इस प्रथा का प्रभाव केवल लड़कियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उनके परिवार और समुदाय पर भी पड़ता है। 2023 में यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दुनिया की तीन में से एक बाल वधु भारत में रहती है। तब से देश में कोई जनगणना नहीं हुई है। तब से देश में कोई जनगणना नहीं हुई है। हालांकि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के एक अनुमान के अनुसार, 2024 में भारत में महिलाओं की आबादी 65 करोड़ से ज़्यादा होगी। इन आँकड़ों और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए, डेक्कन हेराल्ड बताती है कि लगभग 21.6 करोड़ भारतीय महिलाओं की शादी बचपन में ही हो गई थी।

मेरी शादी 17 साल की उम्र में करवा दी गई थी। मैं 12वीं की छात्रा थीं और शिक्षक बनने का सपना देखती थीं। लेकिन अब दो बच्चों की माँ हूँ और परिवार की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर है।

बाल विवाह और गरीबी का आपसी संबंध

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

बाल विवाह गरीबी से भी निकटता से जुड़ा हुआ है। जिन लड़कियां कम उम्र में शादी होती है, वे अक्सर सामाजिक रूप से अलग-थलग हो जाती हैं और परिवार, दोस्तों और अन्य समर्थन प्रणालियों से कट जाती हैं। उन्हें शिक्षा और सम्मानजनक रोजगार के सीमित अवसर मिलते हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम (2006) के बावजूद, यह प्रथा व्यापक है, इसके पीछे संरचनात्मक असमानताएं और प्रतिगामी सामाजिक मानदंड जैसे कई कारण हैं। भारत में बाल विवाह से जुड़े चिंताजनक आंकड़े एक ऐसे गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डालते हैं जो हमारे समाज में अभी भी कायम है। 

राज्यों में बाल विवाह की स्थिति

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2005-06 और 2020-21 के बीच, 18 वर्ष की आयु से पहले शादी करने वाली 20-24 वर्षीय महिलाओं की संख्या एनएफएचएस-3 में 47.4 प्रतिशत से घटकर एनएफएचएस-5 में 23.3 प्रतिशत दर्ज हुई। द हिन्दू में छपी एक खबर मुताबिक लैंसेट के एक अध्ययन में बाल विवाह में कमी देखी गई है। हालांकि, ये बिहार में 16.7 फीसद, पश्चिम बंगाल में 15.2 फीसद, उत्तर प्रदेश में 12.5 फीसद और महाराष्ट्र में 8.2 फीसद पाया गया जोकि सामूहिक रूप से लड़कियों के बाल विवाह के कुल संख्या के आधे से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं। 2011 के जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि 13 मिलियन से अधिक किशोर लड़कियां 10-19 वर्ष की आयु के बीच विवाहित होती हैं। जिला स्तरीय घरेलू सर्वेक्षण (डीएलएचएस-4, 2015- 16) के अनुसार, बिहार में बाल विवाह का प्रतिशत सबसे अधिक सुपौल में था। इसके बाद बेगूसराय, जमुई, समस्तीपुर और गया था।

बाल विवाह गरीबी से भी निकटता से जुड़ा हुआ है। जिन लड़कियां कम उम्र में शादी होती है, वे अक्सर सामाजिक रूप से अलग-थलग हो जाती हैं और परिवार, दोस्तों और अन्य समर्थन प्रणालियों से कट जाती हैं। उन्हें शिक्षा और सम्मानजनक रोजगार के सीमित अवसर मिलते हैं।

बाल विवाह के दुष्प्रभाव

बाल विवाह की शिकार गुलशन (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “मेरी शादी 17 साल की उम्र में करवा दी गई थी। मैं 12वीं की छात्रा थीं और शिक्षक बनने का सपना देखती थीं। लेकिन अब दो बच्चों की माँ हूं और परिवार की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर है।” वहीं पश्चिम बंगाल की अस्मा बताती हैं, “मेरी शादी 15 साल की उम्र में एक दोगुनी उम्र के पुरुष से करवा दी गई थी, जिनसे मुझे अक्सर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता था।” चूंकि अस्मा बाल विवाह और अशिक्षा का दंश झेल चुकी हैं, इसलिए वो बाल विवाह का खुल कर विरोध करते हुए कहती हैं कि बेटियों की शिक्षा बेहद ज़रूरी है।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

बाल विवाह को बढ़ावा देने के पीछे कई कारक हैं, जिनमें से एक दहेज प्रथा और गरीबी भी है। दहेज की राशि लड़की की उम्र के साथ बढ़ती जाती है, इसलिए परिवार कम उम्र में लड़कियों की शादी करना पसंद करते हैं। गरीबी भी इसका एक मुख्य कारण है, क्योंकि गरीब परिवार अपने बच्चों की शादी करना उचित समझते हैं ताकि परिवार से आर्थिक बोझ कम हो सकें। कई बार यह उन्हें गरीबी के चक्र से बाहर निकालने के लिए भी होता है।

बाल विवाह और आर्थिक और सामाजिक शक्तियों का प्रभाव

वैसे तो बाल विवाह, एक नकारात्मक सामाजिक प्रथा है, जो व्यापक लैंगिक असमानता, भेदभाव ही नहीं गरीबी और सरकार की विफलता का स्पष्ट परूप प्रस्तुत करता है। ये आर्थिक और सामाजिक शक्तियों के परस्पर प्रभाव का परिणाम है। लेकिन इनमें भी कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जो समाज में बाल विवाह को बढ़ावा देते हैं। बाल विवाह केवल एक महिला या उसके परिवार को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। बाल विवाह से जुड़ी लड़कियों और लड़कों में अपने परिवार को गरीबी से बाहर निकालने और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान देने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान की कमी होती है। सरकार और कई गैर सरकारी संस्थाएं बाल विवाह रोकने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाती आई है। बाल विवाह मुक्त भारत अभियान द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल 59,364 बाल विवाह रोके गए हैं। बाल विवाह को समाप्त करने के लिए अब भी भारत सहित कई देशों में कमजोर आर्थिक व्यवस्था मुख्य कारण है।

मेरी शादी 15 साल की उम्र में एक दोगुनी उम्र के पुरुष से करवा दी गई थी, जिनसे मुझे अक्सर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता था।” चूंकि अस्मा बाल विवाह और अशिक्षा का दंश झेल चुकी हैं, इसलिए वो बाल विवाह का खुल कर विरोध करते हुए कहती हैं कि बेटियों की शिक्षा बेहद ज़रूरी है।

लैंगिक समानता के लक्ष्य से दुनिया अभी भी है दूर

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया लैंगिक समानता के मामले में पीछे रह गई है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उनके यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के अधिकारों की कमी जैसे मुद्दे अभी भी बने हुए हैं। वर्तमान गति से, पुरुषों और महिलाओं के बीच प्रबंधन पदों में समानता हासिल करने में 176 साल लग सकते हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, देश में 58 करोड़ से ज़्यादा महिलाएं थीं, जिनमें से 1.2 करोड़ की शादी 10 से 19 साल की उम्र के बीच हुई थी। संयुक्त राष्ट्र की सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट 2024 के अनुसार, निर्धारित 169 लक्ष्यों में से केवल 17 फीसद ही 2030 की समय सीमा तक पूरे होने की संभावना है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2005-06 और 2020-21 के बीच, 18 वर्ष की आयु से पहले शादी करने वाली 20-24 वर्षीय महिलाओं की संख्या एनएफएचएस-3 में 47.4 प्रतिशत से घटकर एनएफएचएस-5 में 23.3 प्रतिशत दर्ज हुई।

2015 में पूरे विश्व के नेताओं द्वारा अपनाए गए इन लक्ष्यों का उद्देश्य गरीबी को समाप्त करने से लेकर लैंगिक समानता प्राप्त करने तक कई मुद्दों को हल करना है। लेकिन आधे से ज्यादा लक्ष्य न्यूनतम या मध्यम प्रगति दिखा रहे हैं, और एक तिहाई से अधिक में कोई बदलाव नहीं हुआ है या वे लक्ष्य से पीछे हट रहे हैं। बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो महिलाओं और लड़कियों के जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। इसे समाप्त करने के लिए शिक्षा, जागरूकता, सख्त कानून और आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। समाज को इस दिशा में मिलकर प्रयास करना होगा ताकि हर बच्चे को सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित जीवन जीने का अधिकार मिल सके। बाल विवाह का उन्मूलन न केवल बच्चों के अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि समाज के समग्र विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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