समाजख़बर कोलकाता के बाजारों में महिला हॉकर्स की भूमिका, चुनौतियाँ और वास्तविकता

कोलकाता के बाजारों में महिला हॉकर्स की भूमिका, चुनौतियाँ और वास्तविकता

महिला फेरीवालों को न सिर्फ स्थानीय अधिकारियों और पुलिस द्वारा उत्पीड़न और जबरन वसूली का सामना करना पड़ता है बल्कि उन्हें अक्सर अपने स्थान को सुरक्षित रखने या बेदखली से बचने के लिए रिश्वत भी देना पड़ता है।

पश्चिम बंगाल का कोलकाता एक ऐसा शहर है, जो अपने जीवंत सड़कों, समृद्ध इतिहास के साथ-साथ व्यस्त बाजारों की सांस्कृतिक मूल्यों के जाना जाता है। इस शहर में ऐसी कई चीजें हैं, जो इस शहर को दूसरे शहरों से अलग बनाती हैं। शहर के अर्थव्यवस्था और शोर-शराबे में कपड़े या खाद्य पदार्थ जैसे सामान बेचने वाले फेरीवाले, एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कोलकाता में फेरीवालों की उपस्थिति एक दोहरी वास्तविकता है, जो आर्थिक अवसर और शहरी अराजकता दोनों का प्रतिनिधित्व करती है। 

कई लोगों के लिए, फेरी सिर्फ़ एक नौकरी नहीं है, बल्कि जीने का ज़रिया है। देश में फेरीवाले अक्सर हाशिए के समुदाय होते हैं, जो शहर में अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करते हैं। देश के कई बड़े शहरों में औपचारिक रोजगार के अवसर कम हैं और कोलकाता उनमें से एक है। कोलकाता में मजदूर मुख्य रूप से वंचित समूहों से हैं जिन्हें हमेशा ऐसे स्थान पर अपने संसाधनों को ठीक से नियंत्रण करने में कठिनाई होती है जहां नौकरी की पेशकश के लिए बहुत सीमित संभावनाएं हैं। 

अभी न्यू मार्केट में कम से कम ढाई हज़ार हॉकर्स हैं, जिन में से अधिकांश के पास केएमसी के वेंडिंग लाइसेंस हैं। इन में से करीब 150 हॉकर्स परिवार है जिन्हें पुलिस पिछले 15 दिनों से दुकान लगाने नहीं दे रही है।

क्या है कोलकाता शहर के हॉकर्स का हाल  

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट मुताबिक कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के मुताबिक कोलकाता में 1,862 अज्ञात वेंडिंग जोन हैं, जबकि पहचाने गए केवल सात हैं। केएमसी ने फेरीवालों का पता लगाने के लिए शहर का सर्वेक्षण किया था। केएमसी के सर्वेक्षण से पता चला है कि 61,000 व्यापारी अनैतिक रूप से बाजार स्थलों पर काम कर रहे थे, जहां उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा कर लिया था। आश्चर्यजनक रूप से, शहर में 5,000 से अधिक दर्ज परिचालन इकाइयां है जिसमें से केवल 5,000 विक्रेताओं के पास केएमसी टाउन वेंडिंग कमेटी से वैध वेंडिंग लाइसेंस हैं। हॉकर्स एसोसिएशन के अनुसार, कोलकाता में लगभग 2,75,000 फेरीवाले हैं, जिनमें से कई बीस या तीस से अधिक वर्षों से सड़कों पर व्यापार कर रहे हैं। शहर के कुछ मुख्य बाजारों में गरियाहाट, एस्प्लेनेड और श्यामबाजार में उनकी दुकानें हर जगह हैं जो शहर के आम जनता की दैनिक जरूरतों को पूरा करती है।

अपनी सॉफ्ट टॉय की दुकान के साथ सीमा, तस्वीर साभार: अतिका

न्यू मार्केट हॉकर्स एसोसिएशन के महासचिव सैफ अली इस विषय पर बताते हैं, “अभी न्यू मार्केट में कम से कम ढाई हज़ार हॉकर्स हैं, जिन में से अधिकांश के पास केएमसी के वेंडिंग लाइसेंस हैं। इन में से करीब 150 हॉकर्स परिवार है जिन्हें पुलिस पिछले 15 दिनों से दुकान लगाने नहीं दे रही है। 9 जुलाई को  इस सिलसिले में  बात करने के लिए जब हॉकर्स ने न्यू मार्केट केएमसी के ऑफिस के सामने मेयर फ़िरहाद हाकिम से बात करने की कोशिश की, तो कहा गया कि मेयर उनसे इस विषय में बात करेंगे। लेकिन, बाद में ये कहकर टाल दिया गया कि अभी मीटिंग हो रही है और वो व्यस्त हैं।” 

हम पूरे दिन खिलौने बेचते हुए घूमते हैं। लेकिन अब सरकार कह रही है कि वे हमें हटा देगी जबकि हमारी कोई रेहड़ी या दुकान भी नहीं है और वो भी इसलिए क्योंकि हमारे पास कोई कागज नहीं है। मैं यहां लगभग पंद्रह साल से आ रही हूं, और अब अचानक वे हमें जाने के लिए कह रहे हैं। हमलोग किधर जाएं?

वह आगे 27 जून की मीटिंग का जिक्र करते हुए बताते हैं, “जब सीएम से हमारी बात हुई थी तो हमें बस इतना बताया गया था कि हमारे पास एक महीने का समय है। तब से हम इसी काम में जुटे हैं। ये भी बताया गया था कि सिर्फ़ वैध हॉकर्स को ही जगह दी जाए जिनके पास काग़ज़ है। 2015 में कोलकाता नगर निगम के तरफ़ से लाइसेन्सिंग को लेकर जब बात हुई थी तो बहुत हॉकरों ने अपना काग़ज़ बनवाया था लेकिन कुछ हॉकर्स अब भी ऐसे है जो अवैध रूप से दुकान लगा रहे हैं। हमारा काम ऐसे लोगों को बचाने का नहीं है। फ़िलहाल हम उन 150 हॉकर्स के बारे में मेयर से बात करेंगे जिनके पास काग़ज़ है लेकिन पुलिस जबरदस्ती उन्हें दुकान लगाने से रोक रही है।” 

तस्वीर साभार: अतिका

इंडियन एक्स्प्रेस के रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता नगर निगम क्षेत्र में फेरीवालों के कारोबार को प्रतिबंधित करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति ने शहर में तीन ज़ोन बनाने का फैसला किया है। एक जिसमें फेरीवाले नगर निगम के नियमों के अनुसार अपना कारोबार कर सकते हैं। एक आंशिक फेरीवाला ज़ोन बनाया जाएगा, जहां फेरीवालों को एक निश्चित समय के लिए अपनी दुकान लगाने की अनुमति होगी और एक ‘नो-हॉकिंग’ ज़ोन होगा, जहां विक्रेताओं को अपना कारोबार करने की सख्त मनाही होगी।

2015 में कोलकाता नगर निगम के तरफ़ से लाइसेन्सिंग को लेकर जब बात हुई थी तो बहुत हॉकरों ने अपना काग़ज़ बनवाया था लेकिन कुछ हॉकर्स अब भी ऐसे है जो अवैध रूप से दुकान लगा रहे हैं। हमारा काम ऐसे लोगों को बचाने का नहीं है। फ़िलहाल हम उन 150 हॉकर्स के बारे में मेयर से बात करेंगे जिनके पास काग़ज़ है लेकिन पुलिस जबरदस्ती उन्हें दुकान लगाने से रोक रही है।

राज्य सरकार और फेरीवालों के बीच समस्याएं

मुख्य मुख्यमंत्री ने फुटपाथ पर अवैध पार्किंग के खिलाफ़ कड़ा रुख अपनाते हुए चेतावनी दी कि इस तरह की गतिविधियों की अनुमति देने वाले पुलिस और पार्षदों को उनकी राजनीतिक संबद्धता के बावजूद गिरफ्तारी का सामना करना पड़ेगा। यह घोषणा राज्य भर में पुलिस और प्रशासन द्वारा शुरू किए गए बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान के बाद की गई। इन मुद्दों को समझने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम व्यापक संदर्भ पर भी ध्यान दें। शहर की अर्थव्यवस्था में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण, विक्रेताओं को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। प्रमुख चुनौतियों के चल रहे खतरे की तुलना में, इनका जीवन वैध मान्यता के अभाव के इर्द-गिर्द घूमती है। फिर भी, पश्चिम बंगाल सरकार ने विक्रेताओं को वैध बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दूसरी ओर, कार्यक्रम के शुरू होने में विसंगतियां रही हैं जिसके परिणामस्वरूप फेरीवालों और स्थानीय सरकार के बीच अक्सर झड़पें होती रहती हैं। कोलकाता में स्ट्रीट हॉकर्स की समस्या को संतुलित करने के लिए विक्रेताओं और टाउन डिजाइनिंग की जरूरतों को पहचानने की आवश्यकता है, जिससे हॉकर्स के अधिकारों की भी रक्षा हो।

गरीबी को झेलते लोगों की कहानी

तस्वीर साभार: अतिका

बड़ी आबादी वाले शहरों में, अनगिनत कहानियां पनपती हैं और अक्सर दैनिक संघर्षों में कहीं खो जाती हैं। अपनी समस्याओं के बारे में चांदनी कुमारी जो कोलकाता के न्यू मार्केट इलाके में खिलौने बेचती हैं, बताती हैं, “हम पूरे दिन खिलौने बेचते हुए घूमते हैं। लेकिन अब सरकार कह रही है कि वे हमें हटा देगी जबकि हमारी कोई रेहड़ी या दुकान भी नहीं है और वो भी इसलिए क्योंकि हमारे पास कोई कागज नहीं है। मैं यहां लगभग पंद्रह साल से आ रही हूं, और अब अचानक वे हमें जाने के लिए कह रहे हैं। हमलोग किधर जाएं? मेरे पास छोटा-सा बच्चा है। इसको पालने की जिम्मेदारी है। अगर सरकार हमें इधर से भी हटा देगी तो हमारे जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।” 

यहां महिला हॉकरों की भी अलग समस्या है। दिनभर में मुश्किल से 700 रुपए तक कमा पाते हैं। बरसात में अलग परेशानी होती है। हम लोग घर-परिवार चलाने के लिए सबसे लड़कर आते हैं और यहां एक नई दिक्कत हो जाती है।

महिला फेरीवालों की समस्याएं

महिला फेरीवालों को न सिर्फ स्थानीय अधिकारियों और पुलिस द्वारा उत्पीड़न और जबरन वसूली का सामना करना पड़ता है बल्कि उन्हें अक्सर अपने स्थान को सुरक्षित रखने या बेदखली से बचने के लिए रिश्वत भी देना पड़ता है। इसी तरह कोलकाता की एक और मुख्य जगह श्रीराम आर्कैड में सीमा (नाम बदला हुआ) की सॉफ्ट टॉय की दुकान है। कोलकाता में एंटी एन्क्रोच्मन्ट ड्राइव के विषय में वह कहती हैं, “सच बताऊँ तो बाज़ार ठंडा है। न्यू मार्केट में आम तौर पर बहुत भीड़ होती है और अभी देखिए सत्ताईस जून से हमारी रोज़गार बंद है। हम ये नहीं कह रहें हैं कि सरकार ग़लत कर रही है। लेकिन, उनको सोचना चाहिए कि ऐसा कुछ करने से पहले, यहां कम से कम हज़ार दुकाने हैं। इनको हटाने का मतलब हज़ारों परिवार को भूखा मारना जैसा होगा। मेरी बेटी की दसवीं की परीक्षा है अगले साल। अगर मेरी दुकान अचानक से बंद हो गयी तो मेरी बेटी का भविष्य खराब हो सकता है।” सीमा कहती हैं कि जो इस पेशे में सालों से हैं, उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई लोग सांस संबंधी समस्याओं, पीठ दर्द और जोड़ों की समस्याओं जैसी बीमारियों से भी पीड़ित हैं।

तस्वीर साभार: अतिका

सीमा आगे कहती हैं, “यहां महिला हॉकरों की भी अलग समस्या है। दिनभर में मुश्किल से 700 रुपए तक कमा पाते हैं। बरसात में अलग परेशानी होती है। हम लोग घर-परिवार चलाने के लिए सबसे लड़कर आते हैं और यहां एक नई दिक्कत हो जाती है। हालांकि अभी एक महीने का समय दिया गया है। हमारे लीडर मीटिंग में हमारी मांग रखेंगे। लेकिन फिर कोई आश्वासन नहीं है कि इसका हल कबतक होगा।” महिलाओं के विशिष्ट समस्याओं पर बात करते हुए 63 वर्षीय महिला विक्रेता बताती हैं, “केएफसी और डोमिनोज़ जैसी फास्ट फूड दुकानों के आने के कारण, लोग अब सिनेमाघरों में चिप्स नहीं ले जाते। बाहर के खाने पर रोक से सालों से चिप्स बेचने के काम के लिए एक बाधा है। सरकार के नए नियम और अधिक दबाव डाल रहे हैं, जिसके कारण आर्थिक समस्यायों से गुजरना पड़ रहा है।”

हम ये नहीं कह रहें हैं कि सरकार ग़लत कर रही है। लेकिन, उनको सोचना चाहिए कि ऐसा कुछ करने से पहले, यहां कम से कम हज़ार दुकाने हैं। इनको हटाने का मतलब हज़ारों परिवार को भूखा मारना जैसा होगा। मेरी बेटी की दसवीं की परीक्षा है अगले साल। अगर मेरी दुकान अचानक से बंद हो गयी तो मेरी बेटी का भविष्य खराब हो सकता है।

कोलकाता में स्ट्रीट हॉकर्स की समस्या को संतुलित करने के लिए विक्रेताओं और टाउन डिजाइनिंग की जरूरतों को पहचानने की आवश्यकता है, जिससे हॉकर्स के अधिकारों की भी रक्षा हो। इन्हें उनके व्यावसायिक कौशल और वित्तीय सेवाओं पर ज्ञान बढ़ाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से भी सशक्त बनाया जा सकता है ताकि वे अपने प्रयासों का एक स्थायी तरीके से विस्तार कर सकें। उन्हें स्वच्छ पानी, स्वच्छता और वेस्ट डिस्पोजल सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करके स्ट्रीट वेंडिंग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।

कोलकाता में महिला विक्रेता वित्तीय बाजार के लिए महत्वपूर्ण हैं और स्थानीय लोगों के लिए खर्चीले सामान के लिए विकल्प देते हैं। लेकिन उनके प्रयासों को अक्सर अनदेखा किया जाता है और मेहनत को कमतर आंका जाता है। कोलकाता के फेरीवाले शहर की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना का अभिन्न हिस्सा हैं। उनकी समस्याओं और चुनौतियों का समाधान सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है। उन्हें वैधता, सुरक्षा और सम्मान प्रदान करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि वे अपने परिवारों और समाज के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकें।

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