समाजख़बर भारत में दुनिया के सबसे अधिक ‘कुपोषित’ लोगः यूएन रिपोर्ट 

भारत में दुनिया के सबसे अधिक ‘कुपोषित’ लोगः यूएन रिपोर्ट 

स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में लगभग 19.5 करोड़ लोग कुपोषित हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में कुपोषण की भयकंर स्थिति को दिखाया है और सतत विकास के लक्ष्य-2 (शून्य भूख) को हासिल करने की चुनौती को दिखाती है।

तमाम विकास, तकनीक, शोध में रोज प्रगति करती दुनिया के लिए भूख एक बड़ी समस्या है क्योंकि दुनिया की बड़ी आबादी खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है। भोजन की कमी और अपर्याप्त पोषक तत्वों की वजह से करोड़ों लोग कुषोषित हैं। ख़ासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और खाद्य असुरक्षा की खाई की गहराई बढ़ती जा रही है। हाशिये के समुदाय के लोग विशेष तौर पर महिलाएं, बच्चे, युवा और आदिवासी लोग असमान रूप से इससे प्रभावित हो रहे हैं। वैश्विक स्तर पर यह समस्या लगातार बनी हुई है। कुपोषण वह स्थिति है जिसमें शरीर को सही मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलते हैं।

बढ़ती अर्थव्यवस्था और विकास के दावों के बीच दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित लोग भारत में हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा तैयार की गई ‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में लगभग 19.5 करोड़ लोग कुपोषित हैं। इस रिपोर्ट में दुनिया में कुपोषण की भयकंर स्थिति को दिखाया है जो सतत विकास के लक्ष्य-2 (शून्य भूख) को हासिल करने की चुनौती को दिखाती है। रिपोर्ट में अपडेट किए गए आंकड़े बताते हैं कि 2030 में 582 मिलियन लोग लगातार कुपोषित रहेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से पहले की वैश्विक अर्थव्यवस्था को दिखाने वाले परिदृश्य से लगभग 130 मिलियन अधिक कुपोषित लोग है। 2030 तक भूख का सामना कर रही वैश्विक आबादी का 53 फीसदी अफ्रीका केंद्रित होगा। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में भूख का सामना करने वाले लोगों की संख्या लगादार बढ़ रही है।

भारत के लिहाज से रिपोर्ट में कहा गया है कि कुपोषण को लेकर भारत की स्थिति बीते वर्षों की तुलना में थोड़ी बेहतर हुई है। साल 2004-06 में देश में कुपोषित लोगों की संख्या 24 करोड़ थी जो अब घटकर 19.5 करोड़ हो गई है। हालांकि दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है।

भारत की स्थिति क्या है?

भारत के लिहाज से रिपोर्ट में कहा गया है कि कुपोषण को लेकर भारत की स्थिति बीते वर्षों की तुलना में थोड़ी बेहतर हुई है। साल 2004-06 में देश में कुपोषित लोगों की संख्या 24 करोड़ थी जो अब घटकर 19.5 करोड़ हो गई है। हालांकि दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। रिपोर्ट में बताया गया है कि आधे से अधिक भारतीय यानी की लगभग 55.6 फीसदी स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। लगभग 79 करोड़ लोगों की आबादी भारत में भोजन की असुरक्षा का सामना कर रही है। अधिकांश भारतीय गुणवत्तापूर्ण या स्वस्थ आहार लेने में सक्षम नहीं हैं। भारत में स्वस्थ्य आहार लेने में असमर्थ लोगों का अनुपान 2022 की तुलना में 2023 में तीन प्रतिशत बेहतर हुआ है लेकिन बीते पांच वर्षों में इसमें इसी दर से गिरावट देखी गई थी।

तस्वीर साभार: सुश्रीता बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

भोजन की सुरक्षा में भारत की स्थिति कैसी है इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि देश में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत कवर किया जाता है। भारत सरकार के 30 जून 2023 के आंकड़ों के मुताबिक़ अंतोदय अन्न योजना के तहत 8.95 करोड़ और प्राथमिकता वाले परिवार 71.5 करोड़ लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत भोजन प्राप्त कर रहे हैं। इसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को प्रति महीने 35 किलो अनाज और चावल एक रूपया, दो रूपया किलो की दर पर दिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 में गरीब कल्याण योजना शुरू की थी जिसे एक जनवरी 2023 में पांच साल के लिए और बढ़ा दिया गया।

भारत में भूख से हो रही है लोगों की मौत

अगर भारत सरकार के डेटा की बात करे तो उसके अनुसार देश में साल 2016 से 2021 के बीच भूख और पानी की कमी से कोई मौत नहीं हुई है। 29 मार्च 2023 को संसद में सरकार दावा करती है कि भारत में भूखमरी से कोई मौत नहीं हुई है। यह तो है आधिकारिक आंकड़ा लेकिन इससे इतर मीडिया रिपोर्ट में दर्ज अलग-अलग घटनाएं बताती है कि देश में भूख की कमी से लोगों की मौत भी हुई है और देश में बड़ी संख्या में लोग भोजन की अनिश्चित्ता, कम पोषक तत्व, एनीमिया और कुपोषण का सामना कर रहे हैं।

26 जुलाई 2018 की बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तीन बच्चों की मृत्यु भूख से हुई है। बच्चियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है। 10 नवंबर 2017 में झारखंड के सिमेधा जिले के एक गाँव में 11 साल की संतोषी भात-भात कहते हुए मर जाती है। आधार कार्ड लिंक न होने की वजह से परिवार को राशन न मिल सका जिस वजह से बच्ची आठ दिन से भूखी थी। साल 2022 में कोलकात्ता में 30 वर्षीय आदिवासी मजदूर संजय सरदार की मौत की वजह भूख थी।तमाम दावों और कल्याणकारी योजनाओं के बड़े प्रचार के बीच ये महज कुछ घटनाएं है जो भारत में भूख की स्थिति को दिखाती है। धरातल पर वास्तविकता बहुत भयावह है और निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत में पोषण के मोर्च पर बड़े स्तर पर और ईमानदारी से काम करने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि आधे से अधिक भारतीय यानी की लगभग 55.6 फीसदी स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। लगभग 79 करोड़ लोगों की आबादी भारत में भोजन की असुरक्षा का सामना कर रही है।

एसओएफआई की रिपोर्ट में भी भारत में इस दिशा में प्रगति के लिए इन दो योजनाओं से कही अधिक करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में 125 देशों की सूची में भारत 111वें स्थान पर है। भारत में भूख की स्थिति को गंभीर बताया गया है। देश में बच्चों की स्थिति पोषण के मामले बहुत चिंताजनक है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों का लंबाई के अनुसार वजन कम होना दर्ज किया गया जो 18.7 प्रतिशत है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन की दर 35.5 फीसदी है। यह सब बच्चे में कुपोषण के लक्षण है। भारत की स्थिति दक्षिण एशियाई देशों में सबसे खराब है। भारत सरकार के अनुसार देश में 42 लाख बच्चे कुपोषित है जिनमं से 14 लाख बच्चे गंभीर तौर पर कुपोषण का सामना कर रहे हैं। भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019 के आंकड़ों के अनुसार 17 राज्यों में से 11 में बौनापन जो दीर्घकालिक कुपोषण का संकेत है बहुत बढ़ गया था और 13 राज्यों में, दुबलापन भी बढ़ा था।

संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में आधे से अधिक महिलाएं लगभग 53 फीसदी एनीमिया से पीड़ित हैं। यह आंकड़ा न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि दुनिया में सबसे ज्यादा है वुमेन एंड मैन इन इंडिया 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में अधिक से अधिक महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार 15-49 वर्ग की सभी महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता 2015-16 में 53 प्रतिशत से बढ़कर 2019-21 में 57 प्रतिशत हो गई है। । महिलाओं में एनीमिया की वजह से विशेष तौर से प्रजनन आयु के दौरान होने की वजह से उनके बच्चे के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content