“आसमान रहस्यों से भरा है। उसमें चमकते तारे और खूबसूरत चांद भी हैं लेकिन वैज्ञानिक खोज बताती है कि ना तारे चमकते हैं ना ही चांद उतना सुंदर है।” ये लाइनें हेमा कमेटी रिपोर्ट की शुरुआत में लिखी हैं। यह रिपोर्ट मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण की वास्तविक घटनाओं को सामने लाती है। दरअसल फिल्म जगत की एक वास्तविकता यह है कि यहां रील और रियल में बड़ा अंतर है। प्रगतिशीलता और समानता की तस्वीरों और बातों से अलग असल में फिल्मी दुनिया में महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न एक सबसे बड़ी बुराई है। बीते सोमवार केरल सरकार ने बहुप्रतीक्षित जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट जारी की है जिसमें मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं की कामकाजी परिस्थितियों पर यह कहा गया है। इस कमेटी ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के काम करने की परिस्थितियों का अध्ययन किया है। आरटीआई ऐक्ट के तहत जारी की गई रिपोर्ट की 295 पेजों के शुरुआती मसौदे से 63 पेज हटाने के बाद जारी संशोधित रिपोर्ट बताती है कि इंडस्ट्री में पूरी तरह से पुरुषों का पावर ग्रुप मौजूद है। इस ग्रुप में निर्देशक, निर्माता और अभिनेता शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार यह पावर ग्रुप तय करता है कि इंडस्ट्री में किसे रहना चाहिए और किसे फिल्मों में काम करना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री अपराधियों और स्त्रीद्वेषियों से भारी रूप से प्रभावित है।
द न्यूज मिनट में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक़ जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मलयालम सिनेमा में काम करने वाली अधिकांश महिलाएं अपने दर्दनाक अनुभवों, विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के बारे में बताने से बचती थीं क्योंकि उन्हें इस बात का डर था कि उन्हें इंडस्ट्री में बैन कर दिया जाएगा या फिर अन्य उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा। कमेटी के अनुसार सबूत बताते है कि उद्योग में प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित पुरुषों ने सिनेमा में कुछ महिलाओं को यौन उत्पीड़न और उनके ख़िलाफ़ की गई गतिविधियों से झकझोर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार उत्पीड़न के कारण संरचनात्मक है और इसकी शुरुआत से ही मौजूदगी है।
हेमा कमेटी का गठन कब किया गया
हेमा कमेटी का गठन साल 2017 में मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं को होने वाली समस्याओं की पहचान करने के लिए गठित की गई थी। इस कमेटी ने साल 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी जिसे साढ़े चार साल बाद सोमवार को जारी किया गया है। यह संसोधित रिपोर्ट है इसमें से कुछ हिस्सों को हटा दिया गया है। तीन सदस्यों की इस कमेटी में हाई कोर्ट रिटायर्ड जस्टिस के. हेमा, पूर्व अभिनेत्री शारदा और रिटायर्ड आईएस ऑफिसर के.बी. वालसालाकुमारी हैं। यह कमेटी इंडस्ट्री के प्रमुख अभिनेता दिलीप पर यौन उत्पीड़न के मामले सामने आने के बाद फिल्म जगत में महिलाओं की स्थिति और कामकाजी माहौल का अध्ययन करने के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित की गई थी।
द न्यूज मिनट में प्रकाशित जानकारी के अनुसार रिपोर्ट में मलयालम सिनेमा में काम करने वाली महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले यौन उत्पीड़न, उद्योग में महिलाओं की स्थिति जैसे मुद्दों को मुख्य रूप से उजागर किया गया है। यह रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं को इंडस्ट्री में काम करने पर बैन करने की धमकी देकर चुप करा दिया जाता है। कुछ गवाहों के अनुसार पुरुषों को भी इस जोखिम का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट में मलायमल फिल्म इंडस्ट्री की कार्यशैली में पुरुषों की प्रधानता और उनकी लॉबी को भी उजागर किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 से 15 पुरुषों की एक लॉबी है जिसे कुछ कलाकारों द्वारा अनौपचारिक रूप से ‘माफिया’ कहा गया है और इस अवैध बैन की प्रक्रिया के पीछे यह समूह है। यह समूह जिसमें निर्माता, निर्देशक और अभिनेता शामिल है वे उद्योग को नियंत्रित करते हैं और उन लोगों को धमकाते हैं जो उनके आदेशों का पालन नहीं करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कोई व्यक्ति जो इस पावर ग्रुप को नाखुश कर देता है उसे कई तरह के खामियाजे भुगतने पड़ते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूरी व्यवस्था मौखिक और गुप्त रूप से काम करती है।
रिपोर्ट के मुताबिक़ ऐसे पावर ग्रुप के अस्तित्व उन कारणों में से एक है जिस वजह से समिति यौन उत्पीड़न शिकायतों के जांच के लिए कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न, रोकथाम, संरक्षण और निवारण अधिनियम के तहत आंतरिक समितियों के गठन के ख़िलाफ़ है। समिति का मानना है कि कोई आंतरिक निकाय माफिया से प्रभावित होगा और वह वास्तव में महिलाओं की सुरक्षा नहीं कर पाएगा। रिपोर्ट में फिल्म इंडस्ट्री की कार्यशैली और माहौल के बारे में कहा है कि उत्पीड़न के कारण संरचनात्मक हैं और यह समस्या शुरू से ही मौजूद रही है। काम के अनौपचारिक स्वभाव शामिल होने की वजह से कानूनी अनुबंधों की कमी या शिकायत निवारण तंत्र की अनुपस्थिति और शक्तिशाली पुरुषों को बढ़ावा देने की संस्कृति शामिल है जो उद्योग में कई लोगों के भाग्य का फैसला करती है और पेशे में व्यापक यौन उत्पीड़न के माहौल को बनाए रखती है।
रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक महत्वाकांशी महिला अभिनेत्री को यह भरोसा दिलाया गया है कि इस तरह की हिंसा सामान्य है और अगर वह यौन संबंध बनाने से जुड़ी मांगों को पूरा नहीं करती है तो वह मलयालम सिनेमा में सफल नहीं हो सकती है और न ही टिक सकती है। जो महिलाएं सामने आई है उन्होंने कमेटी को बताया है कि उत्पीड़न काम मांगने के शुरुआती स्थिति से ही शुरू हो जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला अभिनेत्रियों को शुरू से ही यह कहा जाता है कि ‘माँग पर यौन संबंध बनाने के उपलब्ध रहना’ कामयाबी के लिए आवश्यक है।
कमेटी के सामने गवाही देने वाली एक सर्वाइवर से कहा है कि यौन संबंध की मांग को इंडस्ट्री में किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है यानी इसमें अभिनेता, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, प्रोडक्शन कंट्रोलर या कोई और भी शामिल रहता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महत्वाकांक्षी महिलाओं का यौन शोषण इस बात के बाद किया जाता है कि अन्य सफल महिला अभिनेत्रियों ने खुद को इस इंडस्ट्री में बनाए रखने में सफल रहीं क्योंकि उन्होंने पुरुष सहयोगियों के साथ सोने के लिए सहमति दी थी। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि ऐसे अवसर आए हैं जब यह हेरफेर सफल हो गई और जब तक महिला को एहसास हुआ कि वह फंस गई है, “तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”
मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की अन्य समस्याएं
यह रिपोर्ट कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन और बेसिक सुविधाओं के न होने को भी उजागर करती है। रिपोर्ट के मुताबिक़ फिल्म सेट पर महिलाओं के लिए टॉयलेट, चेंजिंग रूम की कमी मिली है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मेंस्ट्रुएशन साइकल के दौरान महिलाओं को सेनेटरी पैड्स बदलने के लिए सुविधा तक भी उपलब्ध नहीं कराई जाती है। उन्हें लंबे समय तक यूरीन रोकना पड़ता है। मलयालम इंडस्ट्री में काम करने वाली महिला कलाकारों को आवास और ट्रांसपोर्ट के समय सेफ्टी और सुरक्षा की कमी का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इंडस्ट्री में महिलाओं के ख़िलाफ़ साइबर अटैक और ऑनलाइन हिंसा भी शामिल है।
वीमन इन सिनेमा क्लेक्टिव (डब्ल्यूसीसी) लंबे समय से मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं द्वारा सामना किए जा रहे मुद्दों को संबोधित करने और वहां लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से आवश्यक हस्तेक्षेप की मांग कर रही है। हेमा केमिटी की रिपोर्ट का प्रकाशन डब्ल्यूसीसी द्वारा उठाया गया कदम है। संगठन ने कहा है कि सिनेमा के इतिहास में यह पहली बार है कि फिल्म इंडस्ट्री में जेंडर कैसे काम करता है इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट है।