इतिहास प्रभावती देवी: गांधीवादी विचारों की अनुयायी और समाज सेविका#IndianWomenInHistory

प्रभावती देवी: गांधीवादी विचारों की अनुयायी और समाज सेविका#IndianWomenInHistory

प्रभावती देवी महात्मा गांधी के आदर्शों से गहराई से प्रभावित थीं। जब 1920 के दशक में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, तो प्रभावती ने इसमें सक्रिय रूप से भाग लिया। वह महिलाओं को संगठित करने और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहीं।

प्रभावती देवी का जन्म 1906 में बिहार के सारण जिला के श्रीनगर में हुआ था। उस समय बिहार बंगाल के अंतर्गत था। प्रभावती देवी के पिता का नाम बृज किशोर प्रसाद और माता का नाम फूलों देवी था। बृज किशोर प्रसाद गांधीवादी विचारधारा रखते थे और तब के समय में स्वतंत्रता संग्राम के लिए उन्होंने खुद को समर्पित कर दिया था। इसके लिए उन्होंने अपने कानूनी पेशे तक को त्याग दिया था। उस समय प्रभावती देवी के पिता की बिहार में ख्याति प्रभावशाली वकीलों में थी, लेकिन चंपारण आंदोलन के बाद ब्रजकिशोर गांधी के अनुयायी हो गए थे।

गाँधीवाद से प्रेरित होकर साबरमती आश्रम में रहना

प्रभावती देवी की शादी 1920 में महज 14 साल की उम्र में जयप्रकाश नारायण (जेपी) से हो गई थी। जिस समय जेपी से प्रभावती की शादी हुई, उस समय उनकी उम्र 18 साल थी और वे पटना के साइंस कॉलेज में विज्ञान की पढ़ाई कर रहे थे। इस दौरान जेपी एक छात्र नेता के तौर पर उभर रहे थे। शादी के 2 साल बाद जेपी कैलिफोर्निया में भौतिकी की पढ़ाई करने चले गए। इसके बाद मार्क्सवाद की पढाई के सिलसिले में विदेश में ही रहे। जेपी शादी के बाद विदेश में 7 साल तक रहे। इधर प्रभावती देवी गांधी के आश्रम साबरमती में रहने लगी। अपने पिता की तरह ही प्रभावती भी गांधीवाद से प्रभावित थी, जिसका असर साबरमती में रहने के दौरान देखने मिला।

1930 में नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, उन्होंने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई और कई बार जेल भी गईं। उनकी निडरता और साहस ने उन्हें बिहार की महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।

ब्रह्मचर्य का फैसला और कारण

हालांकि जेपी गांधीवादी विचारधारा के नहीं थे, लेकिन आगे चलकर प्रभावती बापू के विचारों को जेपी को समझाने में सफल रही। गांधी आश्रम में प्रभावती ने अपनेआप को पूरी तरह से गांधी की पत्नी कस्तूरबा को समर्पित कर दिया। आश्रम में रहने के दौरान गांधी ने प्रभावती को ब्रह्मचारी होने का संकल्प लेने कहा। जेपी की गैरमौजूदगी में प्रभावती ने ब्रह्मचर्य का संकल्प लिया और उनके वापस आने के बाद संयुक्त रूप से फैसला किया है कि जब तक भारत आजाद नहीं होगा तब तक कोई संतान नहीं होगा। जेपी ने भी अपनी पत्नी के इस फैसले का सम्मान किया। प्रभावती ने महज 22 साल की उम्र में ब्रह्मचर्य धारण कर लिया था।

तस्वीर साभार: Brand Bihar

प्रभावती देवी के ब्रह्मचर्य लेने का जिक्र विस्तार में ‘द ड्रीम ऑफ रिवॉल्यूशन’ ए बायोग्राफी ऑफ़ जयप्रकाश नारायण, विमल प्रसाद और सुजाता प्रसाद की किताब में मिलता है। किताब में इस बात का जिक्र है कि जब जेपी विदेश में थे इस दौरान प्रभावती अकेला महसूस करती थी। ऐसे भी साबरमती आश्रम में ब्रह्मचर्य पालन करने का चलन था। गांधी ने भी बहुत साल पहले ही ब्रह्मचर्य धारण कर लिया था, जिसके असर से प्रभावती भी अछूती नहीं रही और उन्होंने भी ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ले ली। सुजाता प्रसाद आगे लिखी है कि प्रभावती का अकेलापन ब्रह्मचर्य का एक कारण रहा, तो वहीं दूसरी ओर उनके ऊपर महात्मा गांधी का भी असर रहा।

प्रभावती देवी महात्मा गांधी के आदर्शों से गहराई से प्रभावित थीं। जब 1920 के दशक में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, तो प्रभावती ने इसमें सक्रिय रूप से भाग लिया। वह महिलाओं को संगठित करने और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहीं।

इसके अलावा तीसरा असर साबरमती आश्रम में ब्रह्मचर्य को बहुत अच्छा माना जाता था। प्रभावती के जेपी को बताए बिना ब्रह्मचर्य धारण करने की बात भी सुजाता ने अपनी किताब में लिखा है। उन्होंने कहा कि प्रभावती ने अपने इस व्रत की जानकारी अपने पति को खत के जरिए दी थी। जेपी प्रभावती के इस फ़ैसले से नाखुश थे और उन्होंने ख़त में लिखा था कि ऐसे मामलों में आपस में खुलकर बात होनी चाहिए। जेपी अपनी पत्नी के फैसले से भले सहमत नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने जीवनसाथी के फैसले का सम्मान किया।

आज़ादी की लड़ाई में भूमिका और महिला चरखा समिति का गठन

प्रभावती देवी महात्मा गांधी के आदर्शों से गहराई से प्रभावित थीं। जब 1920 के दशक में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, तो प्रभावती ने इसमें सक्रिय रूप से भाग लिया। वह महिलाओं को संगठित करने और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहीं। उनके नेतृत्व में, बिहार की कई महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रभावती न केवल महिलाओं को राजनीतिक जागरूकता दिला रही थीं, बल्कि वे उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी प्रेरित कर रही थीं। 1930 में नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, उन्होंने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई और कई बार जेल भी गईं। उनकी निडरता और साहस ने उन्हें बिहार की महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।

तस्वीर साभार: Brand Bihar

इधर जेपी भी जवाहरलाल नेहरू के कहने पर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। नेहरू के साथ मिलकर प्रभावती ने भी महिलाओं के कल्याण के लिए कई पैमाने पर काम किया। महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए प्रभावती काम करना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोलना का फ़ैसला किया, जिसका जिक्र उन्होंने नेहरू को पत्र लिखकर किया। हालांकि यह कभी साकार नहीं हो पाया। आजादी के बाद जेपी और प्रभावती पटना में रहने लगे, जहां प्रभावती देवी ने अपेक्षित महिलाओं की मदद करने के लिए एक समुदाय ‘महिला चरखा समिति’ की स्थापना की।

तस्वीर साभार: Arts and Culture Google

प्रभावती देवी अपने आखिरी दिनों में कैंसर से जूझ रही थीं। उन्होंने अपनी बीमारी की बात जेपी से छुपाए रखी। हालांकि एक पत्र के जरिए जेपी को पत्नी की बीमारी का पता लगा। इसके बाद जेपी उन्हें टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट मुंबई लेकर गए, जहां उन्हें मालूम चला कि प्रभावती को चौथे स्टेज का कैंसर है। अप्रैल 1973 में प्रभावती देवी नारायण की कैंसर से मृत्यु हो गई। प्रभावती देवी का जीवन समाज और राष्ट्र के प्रति समर्पण का उदाहरण है। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका निभाई, बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी समाज सेवा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके प्रयासों ने बिहार की महिलाओं को नई दिशा दी और उन्हें आत्मनिर्भर और सशक्त बनने की प्रेरणा दी।

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