इंटरसेक्शनलजेंडर मेरा फेमिनिस्ट जॉयः बदलाव के लिए खुद से पहल करनी है ज़रूरी

मेरा फेमिनिस्ट जॉयः बदलाव के लिए खुद से पहल करनी है ज़रूरी

जब मैंने पटना में मास्टर्स की पढ़ाई शुरू की थी तब मैंने ठान लिया था कि मैं अपनी पढ़ाई के ज़रिए यह साबित कर दूंगी कि लड़कियों का बाहर पढ़ना व्यर्थ नहीं है। दो साल के मास्टर्स के रिजल्ट आए और मैं यूनिवर्सिटी टॉपर बनी। आज भी मुझे वह दिन याद है जिस दिन परीक्षा का रिजल्ट आया था। उस दिन मुझसे ज्यादा मेरे पापा खुश थे।

मैंने हमेशा एक कहावत सुनी है कि अगर समाज में कुछ बदलाव लाना चाहते हो, तो उसकी शुरुआत आपको अपने आप से करनी होगी। इस कहावत के अनुसार मैंने बदलाव के लिए सबसे पहले अपने घर को चुना। अपने घर-परिवार में छोटे-छोटे बलदावों के लिए संघर्ष किए। दरअसल मैं बिहार में जिस जगह से ताल्लुक रखती हूं वहां लड़कियों की पढ़ाई पर किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं है वह जितना चाहे पढ़ सकती हैं लेकिन शर्तों के अनुसार। जिसे पढ़ना है उसे अपने शहर में ही रहना है। हमारे यहां लड़कियों को शहर के ही कॉलेज-यूनिवर्सिटी से पारंपरिक कोर्स कराया जाता है और इस दौरान उन्हें कंपटीशन की तैयारी के लिए कहा जाता है। बस घर से दूर जाने का ख्याल मन में नहीं लाना है।

मेरे छोटे शहर में कई लोगों की सोच है कि लड़कियों के लिए सबसे बेस्ट जॉब बैंकिंग या टीचिंग होती है। इसके अलावा जब फील्ड की बात आएगी तब वह लड़कों के जिम्मे डाल दिया जाता है। काम के अलावा पढ़ाई के मामले में भी लड़कों को यहीं छूट मिली है। एक ओर जहां लड़कियों को अगर पढ़ना है तो अपने शहर में ही रहकर पढ़ना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर लड़कों को कंपटीशन की तैयारी और पढ़ाई के लिए बाहर भेजने की छूट है। हालांकि मेरे घर में ऐसा माहौल नहीं था। मुझे यूपीएससी, बीपीएससी, दरोगा, पुलिस इन सब की तैयारी के लिए सबका सहयोग रहता था। मगर मैं इन सबसे अलग अपने मन की पढ़ाई करना चाहती थी जो उनके लिए नामंजूर था।

हमारे समाज में अक्सर लड़कियों के लिए बाहर जाने के कई नियम-कायदे तय किये गए हैं। उनकी गतिशीलता को हमेशा नियंत्रित किया जाता है। जब मैंने घर से बाहर जाकर पढ़ाई करने की बात की थी तब आसपास के लोगों और सगे-संबंधियों ने पढ़ाई को घर से ही जारी रखने के लिए बिन मांगे सुझाव दिए।

जब मैंने कक्षा 12वीं पास करने के बाद मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई करनी चाही तो घर वालों से इस पर बात की। लेकिन अदृश्य नियमों के तहत मुझे बाहर जाकर पढ़ाई करने की अनुमति नहीं मिली। यह घटना मेरे लिए बहुत चोट पहुंचाने वाली थी। बहुत समय तक मैं इस बात पर भरोसा नहीं कर पाई थी। खुद की पसंद की पढ़ाई करने के लिए कितना संघर्ष करना होगा यह मुझे समझ आ गया था। दरअसल घर वालों की नज़र में मेरी उम्र बाहर जाने के लिए काफी छोटी थी। इसके अलावा परिवार वालों के मन में दूसरे शहर में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर भी डर था। 

लड़कियां भी घर से बाहर जाकर पढ़ सकती हैं

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

हमारे समाज में अक्सर लड़कियों के लिए बाहर जाने के कई नियम-कायदे तय किये गए हैं। उनकी गतिशीलता को हमेशा नियंत्रित किया जाता है। जब मैंने घर से बाहर जाकर पढ़ाई करने की बात की थी तब आसपास के लोगों और सगे-संबंधियों ने पढ़ाई को घर से ही जारी रखने के लिए बिन मांगे सुझाव दिए। तमाम चर्चाओं के बाद मेरा दाखिला शहर में ही एक महिला कॉलेज में करा दिया गया। जहां से मैंने कंप्यूटर एप्लीकेशन में तीन सालों तक पढ़ाई पूरी की। लेकिन मेरे मन से बाहर जाकर मीडिया की पढ़ाई करने की इच्छा खत्म नहीं हुई। बैचलर्स डिग्री की पढ़ाई खत्म होने के बाद एक बार फिर से मैंने आगे अपनी इच्छा से पढ़ाई पढ़ने की बात कही। वहीं इस बार मैंने ठान लिया था कि मैं इस कोर्स में मास्टर्स डिग्री के लिए अपना दाखिला जरूर लूंगी, चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े। इस बार घरवालों के सामने इस बार दृढ़ निश्चय के साथ इस इच्छा को जाहिर किया और दोबारा मुझे निराशा हाथ लगी। मगर मैंने धीरे-धीरे करके घरवालों को मना लिया और इस तरह मेरी पहली जीत हुई। 

बहुत प्रयासों के बाद परिवार वालों को समझाया कि एक लड़की का घर से बाहर जाकर पढ़ाई करने के लिए निकलना अब मामूली बात है। उन्हें यह भरोसा दिलाया कि अब उनकी यह बेटी बाहरी दुनिया का सामना कर सकती है। अपनी जिद और विश्वास पर मैंने एक छोटे से शहर से निकल कर राजधानी पटना से अपनी मास्टर्स की पढ़ाई शुरू की। यह मेरे घर और मोहल्ले के लिए एक बदलाव था कि एक लड़की शहर से बाहर जाकर पढ़ाई करने जा रही है। यह बदलाव यही नहीं रूका इसके बाद आसपास के घरों की लड़कियां भी आगे आईं। अब लड़कियां पारंपरिक कोर्स को छोड़ टेक्निकल कोर्स या वोकेशनल कोर्स की पढ़ाई करना चाहती हैं, जो हमारे शहर में मौजूद नहीं थे।

जिस दिन मेरे हाथों में यूनिवर्सिटी टॉपर का गोल्ड मेडल था, उस दिन मेरी माँ और पापा की आँखों में खुशी के आंसू थे। मेरे घर के आस-पास माहौल भी बहुत खुशनुमा था।

इतना ही नहीं इसके लिए वह मेरी माँ से कई बार पूछा करती थी कि मैंने घरवालों को अपनी पढ़ाई के लिए कैसे मनाया। कई बार जब मैं छुट्टियों में घर जाती तो मेरे घर के पास की कुछ लड़कियां मुझसे अपने पढ़ाई की बातें साझा किया करती थी। साथ ही वह यह भी कहती कि हम भी आपकी तरह ही पढ़ाई करना चाहते हैं, हम इसके लिए अपने घर वालों को कैसे राजी करें? मुझे अच्छा लगता था कि मेरी तरह भी कोई लड़की बनना चाहती है। मैं उस समय इसे अपनी एक उपलब्धि के तौर पर भी देखती थी, इस छोटी उपलब्धि के बाद मेरे और मेरे घरवालों के लिए एक और बड़ी उपलब्धि इंतजार कर रही थी।

“मैं अपनी पढ़ाई के ज़रिए सब साबित कर दूंगी”

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

जब मैंने पटना में मास्टर्स की पढ़ाई शुरू की थी तब मैंने ठान लिया था कि मैं अपनी पढ़ाई के ज़रिए यह साबित कर दूंगी कि लड़कियों का बाहर पढ़ना व्यर्थ नहीं है। दो साल के मास्टर्स के रिजल्ट आए और मैं यूनिवर्सिटी टॉपर बनी। आज भी मुझे वह दिन याद है जिस दिन परीक्षा का रिजल्ट आया था। उस दिन मुझसे ज्यादा मेरे पापा खुश थे। उनके साथ मेरे घर के पास की लड़कियां भी बहुत गर्व महसूस कर रही थी। पापा बार-बार मुझसे फोन कर रिजल्ट जानना चाहते थे, वह चाहते थे कि उनकी बेटी उन तमाम लोगों के सामने एक मिसाल पेश करें जो कभी अपनी बच्चियों को पढ़ाते नहीं है। जिस दिन मेरे हाथों में यूनिवर्सिटी टॉपर का गोल्ड मेडल था, उस दिन मेरी माँ और पापा की आँखों में खुशी के आंसू थे। मेरे घर के आस-पास माहौल भी बहुत खुशनुमा था। जब मैं गोल्ड मेडल लेकर घर गई उस दिन लड़कियों के अलावा लड़के भी घर आकर मुझसे पढ़ाई के बारे में बात कर रहे थे। हमारे इधर ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी लड़की की उपलब्धि पर उसकी शादी की चर्चा नहीं बल्कि और पढ़ने की चर्चा हो रही थी।

मेरा यह निजी स्तर का बदलाव मेरे अंदर खुशी की लहर भर देता है। मैंने अपने स्तर पर जो बदलना चाहा उसकी शुरूआत हो चुकी है। लड़कियों की पढ़ाई पर लादी गई इस बंदिश को अपने स्तर पर खत्म किया गया है। बदलाव की इस लौ से सिर्फ मेरा ही घर नहीं जगमगा रहा बल्कि धीरे-धीरे इससे मेरे आस-पास के लोगों के घर भी चमकने लगे हैं। मेरी पढ़ाई पूरी करने के ठीक बाद मेरे घर के सामने रहने वाली एक लड़की ने बीटेक करने के लिए पटना में एडमिशन लिया और आज वह भी लड़कियों के लिए समाज में छोटे स्तर पर बदलाव लाने की ओर है। जब एक लड़की शिक्षित होती है तो वह खुद ही नहीं बल्कि अपने परिवार और समाज को भी शिक्षित करती है। मेरे लिए फेमिनिस्ट जॉय का मतलब शिक्षित होकर समाज में औरों को शिक्षित करना है ताकि हम रूढ़िवादी सोच को बदल सकें।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content