21 वर्षीय तारा अपने घर हल्द्वानी से काशीपुर शहर में पढ़ने आई है। वह अपने परिवार की पहली लड़की है, जो आगे की पढ़ाई के लिए घर से दूर अकेले रह रही है। यह सुनने में काफी आसान और अच्छा लगता है लेकिन असल में ऐसा है नहीं। एक लड़की के लिए घर से दूर रहना और हर दिन अकेले सफर करना, बेहद चुनौतीपूर्ण है। फेमिनिज़म इन इंडिया से बातचीत करते हुए तारा कहती हैं, “जब मैं अपने रूम से कॉलेज आने के लिए निकलती हूं, तो मुझे बसस्टॉप पर काफी सतर्क रहना पड़ता है। हमेशा यह डर लगा रहता है कि कोई परेशान करने न आ जाए। एक बार मैं बसस्टॉप पर खड़े होकर बस का इंतज़ार कर रही थी। तभी दो लड़के आए मुझे गलत तरीके से छुने की कोशिश करने लगे। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। इसलिए मैं जल्दी से किसी भी बस में बैठ गई।” तारा के अनुसार वो उनके जीवन का बेहद ही खतरनाक अनुभव था जिसे वह भूल नहीं पाती हैं।
आज की आधुनिक दुनिया में महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही है। लेकिन जब बात अकेले सफर करने की आती है, तो यह अभी भी चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरा हो सकता है। महिलाओं को यात्रा के दौरान कई बार असुरक्षा और समाज की पितृसत्तातमक सोच का भी सामना करना पड़ता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार 2022 में महिलाओं के खिलाफ़ अपराध के 4,45,256 मामले थे, यानी हर घंटे 51 एफआईआर दर्ज किए गए, जो पिछले सालों की तुलना में वृद्धि है।
“जब भी मैं घर से अकेले बाहर निकलती हूं तो मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होना पड़ता है, क्योंकि अपनी सुरक्षा मुझे खुद ही करनी है। मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकती।”
नई यात्रा और उससे जुड़ी चिंताएं
काशीपुर शहर की रहने वाली 21 वर्षीय प्रेरणा कहती हैं, “जब इंटर्नशिप पर जाने के लिए घर से निकलती हूं, तो हमेशा यह डर लगा रहता है कि क्या मैं आज सुरक्षित घर वापस आऊँगी।” सफर का विचार काफी रोमांचक होता है। लेकिन समाज में महिलाओं के खिलाफ़ हो रहे हिंसा को देखकर असुरक्षा का भाव पैदा होने लगता है। कोई भी महिला या लड़की अपने बैग में जरूरी चीज़ों के साथ मिर्च का स्प्रे रखने की कोशिश करती है। प्रेरणा कहती हैं, “जब भी मैं घर से अकेले बाहर निकलती हूं तो मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होना पड़ता है, क्योंकि अपनी सुरक्षा मुझे खुद ही करनी है। मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकती।”
छोटी-बड़ी यात्रा के दौरान चुनौतियां
अकेले यात्रा कर रही महिला को अपने आस-पास हो रहे हर हरकत पर कड़ी नजर रखना जरूरी होता है। बाजपुर में रहने वाली 28 वर्षीय निकिता कहती हैं कि उन्हें अक्सर ऑफिस के रास्ते यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। वह कहती हैं, “ऑफिस जाने वाले रास्ते का माहौल इतना खराब है कि मुझे ऑफिस जाने में भी डर लगने लगा है। इसलिए मेरा भाई मुझे ऑफिस छोड़ने आता है।” इस तरह की घटना अधितकतर लड़कियों या महिलाओं के साथ घटती हैं। काशीपुर में 11वीं कक्षा में पढ़ने वाली महिमा से बात करने पर वह बताती है कि एक बार स्कूल से आते वक्त एक लड़के ने उनके सामने मास्टरबैट करना शुरू कर दिया था।
रात का समय होते ही महिलाएं अधिक सतर्क हो जाती हैं, क्योंकि रात के समय अपराध की संभावना बढ़ जाती है। यह बहुत जरूरी है कि हर शहर और जगह महिलाओं की सुरक्षा के लिए बेहतर प्रबंध हों। उत्तराखंड के काशीपुर में रात के समय महिलाओं की सुरक्षा के लिए खास इंतजाम नहीं हैं। कई कॉलोनियों में बिजली की उचित व्यवस्था नहीं होती। सुनसान और हाईवे से दूर रास्तों में भी बिजली की व्यवस्था की कमी है। अगर किसी महिला को काम से लौटने में देर हो जाती है, तो उसे अपनी सुरक्षा के लिए भाई, पिता या पति को बुलाने की जरूरत पड़ती है। इस विषय पर एक 45 वर्षीय महिला टीचर ने बताया कि जब कभी उन्हें स्कूल से लौटते समय अंधेरा हो जाता है, तो रास्ते में बिजली की खराब व्यवस्था के कारण उन्हें कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वो कहती हैं, “लड़के मुझसे बदतमीजी करते हैं और अगर मैं उन्हें समझाने की कोशिश करती हूं तो वे मुझे ही धमकाने लगते हैं।”
अकेले सफर करना विशेषाधिकार क्यों बन गया है
महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार ने कई ऐप लॉन्च किए हैं, जिनका उपयोग किया जा सकता है। महिलाएं यात्रा के दौरान ‘माई सफेटिपिन’, ‘हिम्मत’, ‘सतर्क इंडिया’ और ‘112 इंडिया’ जैसे सेफ्टी ऐप्स का उपयोग कर सकती हैं, जो उन्हें जरूरत पड़ने पर तुरंत सहायता प्रदान करते हैं। यात्रा के दौरान महिलाएं अपनी लोकेशन अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों या पार्टनर से साझा करती रहें, ताकि किसी भी आपात स्थिति में मदद मिल सके। घर से निकलने से पहले अपने बैग में मिर्च पाउडर, कोई नुकीली वस्तु, और पावर बैंक रखना बेहद जरूरी है, ताकि महिलाएं किसी भी विपरीत परिस्थिति में अपना बचाव कर सकें।
अकेले सफर करना, खासकर महिलाओं के लिए, एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिसे विशेषाधिकार से जोड़ा जाता है। आखिर क्यों अकेले यात्रा करना एक विशेषाधिकार बन गया है? इसका जवाब सार्वजनिक परिवहन में बढ़ती असुरक्षा और सामाजिक असमानताओं में छिपा हो सकता है। एनडीटीवी इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, रेल मंत्रालय ने ट्रेनों में अकेले सफर करने वाली महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की है। ‘मेरी सहेली‘ अभियान के तहत, देश में एक स्थान से दूसरे स्थान जा रही अकेली महिला यात्रियों को सहायता दी जाती है। इससे ट्रेनों में यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा और अन्य सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है।
विश्व बैंक के रिसर्च पेपर ‘डेटरिंग सेक्शुअल हरासमेंट ऑन पब्लिक ट्रांसपोर्ट एंड अर्बन स्पेस’ के अनुसार दिल्ली में किए गए एक सर्वेक्षण में 88 फीसद और पुणे में 63 फीसद महिलाओं ने बताया कि उन्हें बस में यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। हालांकि, केवल दिल्ली की 1 फीसद और पुणे की 12 फीसद महिलाओं ने पुलिस को इसकी सूचना दी। मुंबई में उत्पीड़न का सामना करने वाली केवल 2 फीसद महिला यात्रियों ने पुलिस से संपर्क किया, और कोई भी परिणाम से संतुष्ट नहीं थीं।
इसके अलावा, मुंबई में 75 फीसद महिला रेल यात्री महिला हेल्पलाइन नंबरों से अनजान थीं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारतीय शहरों में सार्वजनिक परिवहन और सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न की व्यापकता काफी अधिक है, लेकिन इसकी रिपोर्टिंग और उसके बाद की कार्रवाई बहुत कम होती है।
सुरक्षा और असमानता का पहलू
जो महिलाएं निजी वाहनों का खर्च उठा सकती हैं, वे अक्सर सार्वजनिक परिवहन का विकल्प छोड़ देती हैं। इस प्रकार, जिन महिलाओं के पास साधन होते हैं, उनके लिए निजी और सुरक्षित यात्रा एक विशेषाधिकार बन जाती है। कई आर्थिक रूप से कमजोर महिलाएं निजी वाहनों का उपयोग नहीं कर सकतीं, जिसके कारण उन्हें सार्वजनिक वाहनों में असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, कहीं भी जाने से पहले निश्चित और सुरक्षित रास्तों का चयन करना पड़ता है।
जब मैं अपने रूम से कॉलेज आने के लिए निकलती हूं, तो मुझे बसस्टॉप पर काफी सतर्क रहना पड़ता है। हमेशा यह डर लगा रहता है कि कोई परेशान करने न आ जाए। एक बार मैं बसस्टॉप पर खड़े होकर बस का इंतज़ार कर रही थी। तभी दो लड़के आए मुझे गलत तरीके से छुने की कोशिश करने लगे। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। इसलिए मैं जल्दी से किसी भी बस में बैठ गई।
महिलाओं की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण और गंभीर मुद्दा है, जो केवल व्यक्तिगत जिम्मेदारी तक सीमित नहीं हो सकता। इसके लिए समाज और सरकार दोनों को मिलकर जिम्मेदारी उठानी होगी। सबसे पहले, समाज को महिलाओं के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। महिलाओं को कमजोर और निर्भर समझने के बजाय, उन्हें आत्मनिर्भर और सक्षम रूप में देखा जाना चाहिए। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सबसे पहला कदम सही शिक्षा और जागरूकता है। इसके अलावा, हमारे देश में लड़कियों की सुरक्षा के लिए कई नियम-कानून हैं। लेकिन, इनका क्रियान्वयन सख्त तरीके से होना चाहिए।