कुछ समय पहले की बात है मैं अपनी एक रिश्तेदार के घर गई थी। वह रिश्तेदार अपने दो बच्चों को संभाल रही थी और उस वक़्त उसका पति घर पर नहीं था। उसने अपने पति से कुछ ज़रूरी बात करने के लिए उसे फ़ोन लगाने की कोशिश की और पाया कि उसके फ़ोन में रिचार्ज ख़त्म हो गया है। इसके बाद उसने मेरे फ़ोन से अपने पति से बात की और उससे फ़ोन का रिचार्ज करने को कहा। महिला पढ़ी–लिखी थी, लेकिन आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं थी। ज़ाहिर सी बात है कि अगर उसके पास गूगल पे जैसा कुछ होता या उसे इंटरनेट से ख़ुद रिचार्ज करना आता तो उसे इस छोटे से काम के लिए अपने पति पर न निर्भर होना पड़ता। मैं इस छोटी सी घटना का उदाहरण केवल यह बताने के लिए दे रही हूं कि महिलाओं की आर्थिक आज़ादी कितनी ज़रूरी होती है और किस तरह से आर्थिक आज़ादी और भी कई तरह की आज़ादियां लेकर आती है।
किसी इन्सान के लिए उसकी आर्थिक आज़ादी कितनी ज़रूरी होती है यह बात मुझे काफ़ी पहले समझ आ गई थी। आर्थिक आज़ादी में शिक्षा की अहम भूमिका को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि शिक्षित व्यक्ति के पास रोज़गार के बेहतर अवसर होते हैं। शिक्षा की बात करूं तो मेरी शिक्षा के रास्ते में मुझे बहुत समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा। मैंने कानपुर से ग्रैजुएशन और बैंगलोर से पोस्ट ग्रैजुएशन किया। मुझे हाशिए के समाज के बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काम करने में रुचि थी, तो मैंने कुछ ग़ैर सरकारी संगठनों के साथ भारत के अंदरूनी क्षेत्रों में काम करना शुरू किया। इसके तहत मैंने राजस्थान के गांवों और दंतेवाड़ा में काम किया। इस काम से मेरी आर्थिक ज़रूरतें तो पूरी होती ही थीं, पर मुझे अपने जैसी सोच वाले लोगों से मिलने–जुलने का मौक़ा भी मिलता था। सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन वो कहते हैं न कि आपने अपने जीवन के लिए जो दिशा सोची होती है कभी–कभी जीवन के झंझावात आपको उससे अलग दिशा में मोड़ देते हैं।
महिला पढ़ी–लिखी थी, लेकिन आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं थी। ज़ाहिर सी बात है कि अगर उसके पास गूगल पे जैसा कुछ होता या उसे इंटरनेट से ख़ुद रिचार्ज करना आता तो उसे इस छोटे से काम के लिए अपने पति पर न निर्भर होना पड़ता।
मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट
मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट आया 2016 में, जब मेरी बहन एक रोड एक्सीडेंट की शिकार हो गईं और कई सालों तक अपने छोटे–छोटे कामों को कर सकने में असमर्थ हो गई। तब सही मायने में मेरी असल परीक्षा शुरू हुई। मेरे लिए नौकरी छोड़ने की नौबत आ गई और मैं सोचने लगी कि मैं ऐसा कौन सा काम करूं ताकि मेरी आर्थिक आत्मनिर्भरता भी बनी रहे और साथ ही साथ मैं बहन की देखभाल भी कर सकूँ। अच्छी बात यह थी कि मेरी बहन अनुवाद करती थी इसलिए अनुवाद से मेरा थोड़ा बहुत परिचय था और मैं बीच–बीच में अपने दोस्तों की गुज़ारिश पर उनके लिए अनुवाद के काम करती भी रहती थी। लेकिन इसे मैं एक पेशे के तौर पर अपनाऊँगी यह मैंने नहीं सोचा था। इसी आधार पर मैंने एक कंपनी में फ़्रीलांस अनुवादक के काम के लिए आवेदन किया। मेरा चयन हो गया और इस तरह मेरे कैरियर ने एक नई दिशा ले ली। मैं जो फ़ील्ड पर घूम–घूमकर देश के अलग–अलग राज्यों के सरकारी स्कूलों में बच्चों और शिक्षकों के साथ काम करती थी, अब घर से काम करने लगी।
अच्छी बात यह थी कि मेरी बहन अनुवाद करती थी इसलिए अनुवाद से मेरा थोड़ा बहुत परिचय था और मैं बीच–बीच में अपने दोस्तों की गुज़ारिश पर उनके लिए अनुवाद के काम करती भी रहती थी। लेकिन इसे मैं एक पेशे के तौर पर अपनाऊँगी यह मैंने नहीं सोचा था।
काम मिलने में आई दिक्कतें
चूंकि अनुवाद का काम मेरे लिए कुछ हद तक नया था इसलिए शुरू में मुझे बेहतर भुगतान करनेवाले काम ढूंढने में काफ़ी दिक्कत हुई। मुझे काम ज़्यादा करना पड़ता था और उस काम का उचित मेहनताना भी नहीं मिलता था। फिर भी मैंने सोचा कि जब तक मुझे और बेहतर अवसर नहीं मिलते तब तक जो भी काम मिलेगा मैं करती रहूंगी। दो–चार साल की मशक्कत के बाद मेरे संपर्क का दायरा बढ़ गया। मेरे सभी दोस्तों को भी मालूम चल गया कि मैं क्या काम कर रही हूं और इस तरह मुझे बेहतर मेहनताने वाले काम मिलने लगे। इसके साथ ही मैंने कॉपी एडिटिंग यानी कॉपी संपादन का काम भी शुरू किया और मुझे उससे जुड़े हुए काम भी मिलने लगे। अनुवाद और कॉपी संपादन का सफ़र काफ़ी रोचक रहा।
शुरू–शुरू में मैं अपने काम को लेकर थोड़ा संशय में रहती थी कि क्या वाक़ई में मैं अच्छा अनुवाद या कॉपी एडिटिंग कर पा रही हूं। लेकिन धीरे–धीरे मुझे उन लोगों से अपने काम की सराहना सुनने को मिली, जिनके साथ भी मैंने काम किया। इस तरह मेरा उत्साह और आत्मविश्वास बढ़ा और एक अलग से नए से क्षेत्र में मैंने पांव जमाए। आज मैं कई अलग–अलग लोगों के साथ काम करती हूं और विविध सामग्रियों का अनुवाद करती हूं और आर्थिक रूप से पहले से काफ़ी बेहतर स्थिति में हूं।
परिस्थिति चाहे जैसी भी आई मैंने अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की। मैंने यह ठान लिया था कि काम तो मैं करूँगी। और सच कहूं तो मेरे लिए मेरा काम केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का ही ज़रिया नहीं है, इससे मुझे एक पहचान मिलती है। काफ़ी कुछ पढ़ने को मिलता है।
आर्थिक आज़ादी और आत्मनिर्भरता
इस पूरी कहानी का सार यही है कि परिस्थिति चाहे जैसी भी आई मैंने अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की। मैंने यह ठान लिया था कि काम तो मैं करूँगी। और सच कहूं तो मेरे लिए मेरा काम केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का ही ज़रिया नहीं है, इससे मुझे एक पहचान मिलती है। काफ़ी कुछ पढ़ने को मिलता है। जब मैं पूरी ईमानदारी से मेहनत करके अपने ख़ुद के पैसे कमाती हूं तो उससे मुझे एक अलग क़िस्म की ख़ुशी भी मिलती है। फिर इस आर्थिक आत्मनिर्भरता की बदौलत मैं वो सब कुछ कर पाती हूं जो करना मुझे पसन्द हैं।
मसलन मुझे किताबें पढ़ना पसन्द है, तो मैं अपने पसन्द की किताबें ख़रीद पाती हूं, मुझे अकेले यात्राएं करना पसन्द है, तो मैं अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ यात्राओं की योजना बना पाती हूं, अपनी पसन्द के पौधों को ख़रीदकर लाती हूं और उनकी देखभाल करती हूं, कभी किसी ज़रूरतमन्द की मदद कर पाती हूं। अपनी आर्थिक आज़ादी में शामिल ख़ुशी को जीने और महसूस कर पाने के बाद मैं अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित कर पाती हूं। सच कहूं तो मैंने इस बारे में जितनी भी महिलाओं से बात की, मैंने यही पाया कि वे सभी आर्थिक रूप से किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भर होने की तुलना में ख़ुद आत्मनिर्भर होना चाहती हैं। मैं ख़ुद आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रह सकूँ और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकूँ, यही मेरा फेमिनिस्ट जॉय है।