समाजख़बर देश की जहरीली होती हवा से सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चों के लिए बढ़ता खतरा

देश की जहरीली होती हवा से सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चों के लिए बढ़ता खतरा

हाल ही में जारी एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक़ दुनिया भर में वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुका है। लाहौर और दिल्ली दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर हैं। इन शहरों की वायु गुणवत्ता बहुत खराब है। लाहौर की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) 232 के खतरनाक स्तर पर है।

दुनिया में जीने के लिए हमें सांस लेनी पड़ती हैं लेकिन यह भी सच है कि आज बड़ी संख्या में लोग दूषित हवा में सांस ले रहे हैं। भारत की राजधानी नई दिल्ली दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है। जहरीली हवा में सांस लेना मौजूदा समय की सबसे व्यापक समस्या है। दूषित हवा में सांस लेने की वजह से लोग बीमारियों में घिर रहे हैं। वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर है इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते है कि हवा में घुले जहर से हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ती है। वायु प्रदूषण का खतरा इतना बढ़ गया है कि दुनिया में सालाना सात करोड़ से ज्यादा लोग अपनी जान गवां देते हैं। बच्चे, बुजुर्ग दूषित हवा से सबसे ज्यादा परेशानी उठाते हैं। भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है।

हाल ही में जारी एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक़ दुनिया भर में वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुका है। लाहौर और दिल्ली दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर हैं। इन शहरों की वायु गुणवत्ता बहुत खराब है। लाहौर की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) 232 के खतरनाक स्तर पर है। वर्तमान में यह दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। दिल्ली में वायु प्रदूषण की बात करे तो यहां एयर क्वालिटी, लाहौर के करीब 204 दर्ज की गई है। यह ‘बहुत अस्वस्थ’ श्रेणी में आता है। दुनिया के शीर्ष दस प्रदूषित शहरों में 9वें नंबर कोलकत्ता का नंबर है, जिसका एक्यूआई 119 दर्ज किया गया। भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। इस समय राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता सालाना सबसे खराब स्तर पर पाई जाती है। बीते वर्ष खराब हवा की वजह से स्कूल बंद किए गए, लोगों को घरों में रहने तक की हिदायत दी गई। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 15 वर्ष से कम उम्र के लगभग 93 प्रतिशत बच्चे हर दिन इतनी प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं कि यह उनके स्वास्थ्य और विकास को गंभीर खतरे में डालती है। बच्चे वयस्कों की तुलना में वायु प्रदूषण के कई प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों से अधिक प्रभावित होते हैं।  

दिल्ली हालांकि साल भर खराब हवा से जूझती है, लेकिन सर्दियों के दौरान हवा विशेष रूप से ज्यादा खराब हो जाती है। बीबीसी में छपी जानकारी के अनुसार स्विट्जरलैंड स्थित वायु गुणवत्ता निगरानी समूह ने पाया है कि 2023 में दिल्ली विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानी शहर थी। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में जब भारत आठवां सबसे प्रदूषित देश था, तब से देश की वायु गुणवत्ता और खराब हो गई है। देश में वायु प्रदूषण की भयावह स्थिति को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से हो रहे औद्योगिकीकरण और पर्यावरण कानूनों के कमजोर अनुपालन ने देश में प्रदूषण को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिछले कुछ दशकों में भारत ने विकास के कई चरण देखे हैं, लेकिन औद्योगिक नियमों की कमी के कारण कारखाने प्रदूषण-नियंत्रण उपायों का पालन नहीं करते है। तेज गति से हो रहे निर्माण कार्य भी प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं। साथ ही भारत में वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण भी बढ़ा है। 

एयर क्वालिटी इंडेक्स और स्वास्थ्य

तस्वीर साभारः The Daily Star

एयर क्वालिटी इंडेक्स एक उपकरण है जो वायु प्रदूषण के स्तर को मापने और रिपोर्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका मापन दायरा 0 से 500 तक होता है। यह हानिकारक प्रदूषकों की सांद्रता को दर्शाता है, जैसे पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5, PM10), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन। एक्यूआई स्तरों को संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के आधार पर श्रेणियों में विभाजित किया गया है। 50 से कम वैल्यू को ‘अच्छा’ माना जाता है, जबकि 100 से अधिक वैल्यू ‘अस्वस्थ’ हो जाता है। खतरनाक प्रदूषण के स्तर में सांस लेने से जुड़ी बीमारियों, आंखों में जलन और त्वचा संबंधी संक्रमणों का कारण बनता है। हाई एक्यूआई लेवल में लंबे समय तक संपर्क से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। मुख्य तौर पर सांस से जुड़ी समस्या, दिल से संबंधी बीमारियां और फेफड़े की क्षमता कम होने का खतरा बना रहता है। एक्यूआई वायु में प्रदूषकों की सांद्रता को मापता है। 100 से अधिक एक्यूआई स्तर को अस्वस्थ माना जाता है। 

स्विट्जरलैंड स्थित वायु गुणवत्ता निगरानी समूह ने पाया है कि 2023 में दिल्ली विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानी शहर थी। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में जब भारत आठवां सबसे प्रदूषित देश था, तब से देश की वायु गुणवत्ता और खराब हो गई है।

बाहरी वायु प्रदूषण से कौन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है?

वायु प्रदूषण सभी के लिए हानिकारक है लेकिन कुछ समूहों के लोग इसके प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। बच्चे, बुजुर्ग और हाशिये के समुदाय के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इन समूहों में शामिल लोग मिलकर बड़ी आबादी का हिस्सा बनाते हैं जिनके लिए वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक है। अमेरिकन लंग एसोसिएशन के अनुसार बच्चे वायु प्रदूषण से विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। उसके बाद बुजुर्ग लोगों की उम्र बढ़ने के साथ फेफड़ों की सांस लेने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है, जो प्रदूषण के संपर्क में आने पर और भी प्रभावित हो सकती है। 

बुजुर्ग लोग अक्सर किसी न किसी दीर्घकालिक बीमारी जैसे फेफड़ों और हृदय रोग से पीड़ित होते हैं, जो प्रदूषण के कारण और गंभीर हो सकती हैं। गर्भवती महिलाएं और उनके भ्रूण के लिए वायु प्रदूषण विशेष रूप से खतरनाक स्थिति बनाता है। वायु प्रदूषण के कारण होने वाली सूजन और तनाव से हाई बीपी और प्रीक्लेम्प्सिया का खतरा बढ़ सकता है। गर्भ में सूजन एवं प्लेसेंटा को नुकसान हो सकता है, जो भ्रूण के विकास में बाधा डाल सकता है। गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से समय पूर्व जन्म, कम वजन और मृतप्रसव का खतरा बढ़ जाता है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024 रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रदूषण भारत में पांच साल से कम उम्र के लगभग 464 बच्चों की मृत्यु और वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन 2,000 से अधिक बच्चों की जान ले रहा है।

बच्चे और वायु प्रदूषण

तस्वीर साभारः UNC

जीवन की शुरुआत से ही वायु की गुणवत्ता का महत्व होता है। प्रदूषण गर्भाधान के समय से ही भ्रूण को प्रभावित करना शुरू कर देता है। वायु प्रदूषण से समय से पहले जन्म और अबॉर्शन के खतरे को बढ़ा देता है। साफ हवा बचपन के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 15 वर्ष से कम उम्र के लगभग 93 प्रतिशत बच्चे हर दिन इतनी प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं कि यह उनके स्वास्थ्य और विकास को गंभीर खतरे में डालती है। बच्चे वयस्कों की तुलना में वायु प्रदूषण के कई प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों से अधिक प्रभावित होते हैं। इसकी वजह व्यवहारिक, पर्यावरणीय और शारीरिक कारकों का संयोजन है। 

बच्चे अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके फेफड़े, मस्तिष्क और प्रतिरक्षा प्रणाली अभी भी विकास की अवस्था में होते हैं। उनकी सांस लेने की नलिकाएं छोटी और विकासशील होती हैं। वे इस वजह से तेजी से सांस लेते हैं जिससे उनके शरीर में उनके आकार के अनुपात में अधिक मात्रा में हवा प्रवेश करती है जिससे वायु प्रदूषण के प्रति उनका संपर्क वयस्कों की तुलना में काफी अधिक होता है। इसके अलावा, बच्चों में संक्रमण से लड़ने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली अभी विकसित हो रही होती है। बच्चों में वयस्कों की तुलना में अधिक सांस लेने से संबंधित संक्रमण होते हैं। 

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024 रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रदूषण भारत में पांच साल से कम उम्र के लगभग 464 बच्चों की मृत्यु और वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन 2,000 से अधिक बच्चों की जान ले रहा है।

बच्चों के स्वास्थ्य और विकास पर वायु प्रदूषण का असर

वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य के लिए प्रमुख खतरों में से एक है। दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में लगभग हर 10 में से एक की मौत के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार 2017 में भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में लगभग 8.8 प्रतिशत मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं। नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक़ वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित करता हैं जिसका असर उसके जीवन के विकास पर हर स्तर पर पड़ता है। भारत ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की शुरुआत की है, लेकिन बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए अधिक मजबूत और समावेशई बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। वायु प्रदूषण को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में देखा जाना चाहिए वक्त की पहली ज़रूरत है। वैज्ञानिक नीति, स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग की ओर क्रमिक बदलाव, स्वच्छ वायु तकनीकों द्वारा समर्थित उत्सर्जन में कमी, सरकार की लंबे समय तक प्रतिबद्धता और नागरिकों के सहयोग के माध्यम से जमीनी स्तर पर काम करना आवश्यक है। आज वायु प्रदूषण एक खतरनाक मूक संकट बना हुआ है जिसको खत्म करने के लिएं हमें प्रतिबद्धता के साथ कदम उठाने होंगे। 

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content