हमारे देश में आज घरेलू हिंसा कोई नई बात नहीं। अंतरंग साथी के हिंसा और उसके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों का कई अध्ययन किए गए हैं। लेकिन, अभी भी भारतीय परिप्रेक्ष्य में अंतरंग साथी हिंसा यानी इंटीमेट पार्टनर वायलेन्स और मनोवैज्ञानिक संकट के बीच संबंध को समझने में ‘स्टॉकहोम सिंड्रोम’ की भूमिका की समझ का अभाव है। स्टॉकहोम सिंड्रोम (एस.एच.एस.) एक ऐसी मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसमें एक बंदी अपने अपहरणकर्ताओं या दुर्व्यवहार करने वालों के प्रति मनोवैज्ञानिक गठबंधन विकसित कर लेता है और उन्हें बचाने की कोशिश करता है। स्टॉकहोम सिंड्रोम में सर्वाइवर अपने अपहरणकर्ता या दुर्व्यवहार करने वालों और उनके लक्ष्यों के साथ पहचान करता है और सहानुभूति रखता है।
21वीं सदी में, मनोवैज्ञानिकों ने एस.एच.एस. सिंड्रोम के बारे में अपनी समझ को बंधकों से बढ़ाकर अन्य समूहों तक बढ़ाया है, जिनमें घरेलू हिंसा का सामना कर रहे लोग, युद्ध बंदी, सेक्स वर्कर्स, शोषण और उत्पीड़न का सामना करने वाले बच्चे भी शामिल हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के खिलाफ़ अपराध हर दिन बढ़ रहा है। साल 2014 में महिलाओं के खिलाफ़ अपराधों की कुल संख्या 3,37,922 थी। 2022 तक यह आंकड़ा बढ़कर 4,45,526 हो गया, जो एक दशक से भी कम समय में 31 फीसद से अधिक की वृद्धि दिखाता है। बात प्रति लाख महिलाओं की आबादी पर अपराधों की कुल संख्या की करें, तो महिलाओं के खिलाफ़ अपराध 2014 में 56.3 से बढ़कर 2022 तक 66.4 हो गए। साल 2022 में महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा के हर घंटे 51 मामले दर्ज हुए।
एनसीआरबी के 19 महानगरीय शहरों में महिलाओं के खिलाफ़ अपराधों के वार्षिक आंकड़े भी प्रकाशित करता है। शहरों में महिलाओं के खिलाफ़ अपराधों की संख्या 2017 में 40,839 से बढ़कर 2022 में 48,755 हो गई, जो 17 फीसद की वृद्धि बताती है। वहीं रॉयटर्स की एक रिपोर्ट अनुसार 2014 में भारत में लगभग 90 प्रतिशत बलात्कार सर्वाइवर के परिचित लोगों जैसे रिश्तेदारों, पड़ोसियों और नियोक्ताओं द्वारा किए गए थे। ऐसे में अंतरंग साथी के हिंसा, घरेलू हिंसा या महिलाओं के खिलाफ हिंसा और स्टॉकहोम सिंड्रोम के संबंध पर गौर करना जरूरी है।
स्टॉकहोम सिंड्रोम का नैरेटिव
स्टॉकहोम सिंड्रोम शब्द 1973 में स्वीडिश मनोचिकित्सक निल्स बेजेरोट द्वारा स्टॉकहोम में क्रेडिटबैंकन बैंक डकैती की जांच के दौरान गढ़ा गया था, जहां बंधक बनाए गए चार कर्मचारियों ने अपने अपहरणकर्ताओं का बचाव किया और उनके खिलाफ गवाही देने से इनकार कर दिया था। ध्यान दें तो अपने अपहरणकर्ताओं या दुर्व्यवहार करने वालों के प्रति सहानुभूति की भावना का आधार हमारी फिल्मी दुनिया ने रचा और गढ़ा है। इसलिए, खासकर घरेलू हिंसा के मामले में हजारों महिलाओं के मामला में ये भावना काम करती है। अक्सर, ये हम ये सुनते हैं कि ‘इन्हें छोड़कर कहां जाएंगे, या जब नशा करते हैं, तब कंट्रोल से बाहर होते हैं, बाकी समय ठीक हैं या फिर ये कि बच्चों और मुझे बहुत प्यार करते हैं।’ लेकिन असल में हिंसा करने वाले के प्रति ये सभी भावनाएं मनोवैज्ञानिक स्थिति है जो स्टॉकहोम सिंड्रोम के तहत आता है। मनोरंजन की दुनिया ने हमेशा से सर्वाइवर और हिंसा करने वाले के बीच सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और पारिवारिक पावर डाइनैमिक्स के बारे में बातचीत नहीं की है।
घरेलू हिंसा और स्टॉकहोम सिंड्रोम
भारत में घरेलू हिंसा एक गंभीर सामाजिक मुद्दा है, जिसे अक्सर व्यक्तिगत मामला कहकर अनदेखा कर दिया जाता है। कई बार हिंसात्मक संबंधों में रहने वाले लोग, विशेष रूप से महिलाएं, अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार को सामान्य मानकर उसी व्यक्ति के प्रति सहानुभूति या प्रेम का अनुभव करने लगती हैं। इस प्रकार का व्यवहार उन्हें हिंसा से बाहर निकलने में कठिनाई पैदा करता है और स्थिति को सामान्य या ठीक मानने पर मजबूर कर देता है। भारतीय समाज में पितृसत्ता और पारंपरिक मान्यताओं का बोलबाला है, जिससे महिलाओं पर एक आदर्श पत्नी और माँ बनने का दबाव होता है। इस दबाव के कारण कई बार महिलाएं अपने साथी के द्वारा किए गए दुर्व्यवहार को सहन करती हैं और उसे सामाजिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण से जायज़ ठहराती हैं। इस स्थिति में स्टॉकहोम सिंड्रोम जैसी मानसिक स्थिति का विकसित होना और भी आसान हो जाता है।
अपमानजनक रिश्ते से लेकर हिंसा तक
अपमानजनक रिश्ते को छोड़ना एक बहुआयामी चुनौती है जो भावनात्मक कठिनाई और कई बाधाओं से भरी हुई है। सर्वाइवर महिलाएं डर, अनिश्चितता और अपने दुर्व्यवहार करने वालों की चालाकी की रणनीति से जूझती हैं, जिसमें धमकियां, अलगाव और जानबूझकर या सच्चाई में आर्थिक निर्भरता शामिल है। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक मार्टिन ई.पी. सेलिगमैन और स्टीवन एफ. मैयर की खोजी गई मनोवैज्ञानिक कारक, जैसे कि सीखी हुई असहायता, महिलाओं को इस चक्र में फंसे रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे उनका यह विश्वास मजबूत होता है कि छोड़ना असंभव है। बात हालिया दिनों में महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा की करें, तो श्रद्धा वाकर मामला अहम है जहां आरोपी ने श्रद्धा की हत्या की और उसके शव को टुकड़ों में काटकर अलग-अलग जगहों पर ठिकाने लगा दिया।
श्रद्धा और आरोपी एक लिव-इन रिलेशनशिप में थे। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार श्रद्धा के दोस्तों और परिवार के अनुसार, वह हिंसात्मक और मनोवैज्ञानिक शोषण का सामना कर रही थीं। आरोपी ने न केवल उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, बल्कि उसे भावनात्मक रूप से भी नियंत्रित किया था। वहीं हाल ही में दिल्ली की एक गर्भवती किशोरी को उसके प्रेमी और उसके दो सहयोगियों ने हरियाणा के रोहतक में कथित तौर पर मारा और दफना दिया, क्योंकि लड़की उससे शादी करना चाहती थी और बच्चे को अपने पास रखना चाहती थी, जबकि उसका प्रेमी उसे अबॉर्शन करने की सलाह दे रहा था।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने बताया कि पश्चिमी दिल्ली की 19 वर्षीय यह लड़की सोशल मीडिया पर सक्रिय थी, जहां उसके 6,000 से अधिक फॉलोअर्स थे और उसने अपने प्रेमी के साथ अपनी तस्वीरें और वीडियो पोस्ट कर रखे थे। इस तरह के मामलों में स्टॉकहोम सिंड्रोम एक महत्वपूर्ण पहलू हो सकता है। यदि हिंसा का सामना कर रही महिला उत्पीड़क के व्यवहार के बावजूद उसपर भावनात्मक तौर पर भी निर्भर रही हो, तो इस स्थिति में स्टॉकहोम सिंड्रोम की वजह से वह अपने जीवन की खतरनाक स्थिति को पहचान नहीं पाती है।
क्या हो सकता है समाधान
आई.पी.वी. के सबसे प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य परिणाम अवसाद, चिंता और पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर है। पाकिस्तान की महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन में स्टॉकहोम सिंड्रोम की मध्यस्थ भूमिका के माध्यम से आईपीवी और मनोवैज्ञानिक संकट (तनाव, चिंता और अवसाद) के बीच संबंधों का पता लगाया। अध्ययन में विवाहित या डेटिंग संबंधों में 212 महिलाओं के सामुदायिक नमूने में अंतरंग साथी हिंसा और मनोवैज्ञानिक संकट के बीच मध्यस्थ के रूप में स्टॉकहोम सिंड्रोम का अध्ययन किया गया। विश्लेषण से पता चला कि कोर स्टॉकहोम सिंड्रोम अंतरंग साथी हिंसा और मनोवैज्ञानिक संकट के बीच संबंधों में मध्यस्थता नहीं करता है।
हालांकि मनोवैज्ञानिक क्षति ने बताए गए संबंध में पूरी तरह से मध्यस्थता की, और प्रेम-निर्भरता ने मनोवैज्ञानिक संकट पर अंतरंग साथी हिंसा के प्रत्यक्ष प्रभाव में आंशिक रूप से मध्यस्थता की। यह समझना जरूरी है कि हिंसा का सामना कर रही महिलाओं या हाशिये पर रह रहे लोगों को केवल न्यायिक सहायता ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक समर्थन भी चाहिए। हमें यह समझने की जरूरत है कि घरेलू हिंसा से बाहर निकलना केवल कानून का मुद्दा नहीं, बल्कि मानसिक और आर्थिक रूप से समर्थन और सामाजिक मुद्दा भी है। सर्वाइवर को लग सकता है कि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है या बच्चों के कारण रिश्ते को बनाए रखना ही सही होगा।
इसके साथ ही, सामाजिक दबाव और तलाक जैसे विकल्पों में महिलाओं को जवाबदेह करने का चलन भी उसे हिंसात्मक संबंध में बने रहने के लिए मजबूर कर देती है। स्टॉकहोम सिंड्रोम के प्रभाव के कारण सर्वाइवर को यह समझना कठिन हो जाता है कि वह एक हिंसात्मक स्थिति में है और इससे बाहर निकलना ज़रूरी है। स्टॉकहोम सिंड्रोम और घरेलू हिंसा खासकर अंतरंग साथी हिंसा का गहरा संबंध है। जरूरी है कि हम ऐसे हालात और समाज बनाए, जहां सर्वाइवर खुद को दोष देने की बजाय, अपनी स्थिति को पहचानने और सहायता लें। इसके लिए समाज में सहानुभूति, जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संवेदनशीलता का विकास करना जरूरी है। इससे सर्वाइवरों को हिंसा से बाहर निकलने और अपने अधिकारों के लिए खड़े होने में सहायता मिल सकती है।