समाजकानून और नीति मद्रास हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: वैवाहिक संबंधों में निजता का मौलिक अधिकार

मद्रास हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: वैवाहिक संबंधों में निजता का मौलिक अधिकार

न्यायाधीश ने कहा कि सबसे आम जसटिफिकेशन पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 14 के रूप में सामने आया, जो पारिवारिक न्यायालयों को अस्वीकार्य साक्ष्य स्वीकार करने की अनुमति देता है। इस बात से असहमत होकर, न्यायाधीश ने कहा कि निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करके प्राप्त साक्ष्य के लिए कोई विधायी मान्यता नहीं है।

आप अक्सर सुनते होंगे कि पति-पत्नी या जोड़ों के बीच मोबाईल के पासवर्ड से लेकर, एटीएम के पिन तक की जानकारियां साझा होती हैं। लेकिन, जाने-अनजाने में कई बार इन वजहों से प्राइवेसी की दिक्कत भी होती है। हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी व्यक्ति का निजता का मौलिक अधिकार उनके दांपत्य जीवन में भी सुरक्षित है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान के तहत दिए गए निजता के अधिकार में स्पाउज़ल प्राइवेसी (दांपत्य जीवन की निजता) भी शामिल है। यह फैसला उन मामलों पर खासतौर पर ध्यान देता है, जहां पति-पत्नी एक-दूसरे की जासूसी करने के लिए या नज़र रखने के लिए तकनीकी साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि किसी भी कानून के तहत यह अनुमति नहीं दी जा सकती कि पति या पत्नी एक-दूसरे की निजी जानकारी पर अवैध रूप से नज़र रखें। इस निर्णय से भारतीय समाज में दांपत्य संबंधों में निजता की बढ़ती मांग और आधुनिक युग में इसकी प्रासंगिकता पर एक नई बहस छिड़ गई है।

मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै खंडपीठ ने एक स्थानीय अदालत के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि मौलिक अधिकार के रूप में निजता में पति-पत्नी की निजता भी शामिल है, और इस अधिकार को अमान्य करके पाए गए साक्ष्य अस्वीकार्य है। मामले में पति को गवाह के रूप में खुद की जांच करने और अपनी पत्नी को चिह्नित करने की अनुमति दी गई थी। उनके द्वारा दायर तलाक के मामले में साक्ष्य के रूप में कॉल डेटा रिकॉर्ड पेश किया गया था। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की निजता उनके दांपत्य जीवन का एक अभिन्न अंग है। यह विशेषाधिकार सिर्फ व्यक्ति की नहीं, बल्कि दंपत्ति की गरिमा को भी सुरक्षित रखता है। तकनीक के युग में, जहां डिजिटल उपकरणों का प्रयोग आम है, दांपत्य संबंधों में एक-दूसरे की निगरानी या जासूसी करना निजी स्वतंत्रता और सम्मान के अधिकार का हनन है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई कि आधुनिक तकनीकों के माध्यम से लोग एक-दूसरे के व्यक्तिगत जीवन में अनधिकृत प्रवेश करने लगे हैं, जिससे व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई कि आधुनिक तकनीकों के माध्यम से लोग एक-दूसरे के व्यक्तिगत जीवन में अनधिकृत प्रवेश करने लगे हैं, जिससे व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।

आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और जासूसी सॉफ्टवेयर जैसे साधनों के जरिए निजी जानकारी तक पहुंचना आसान हो गया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इन साधनों का दुरुपयोग कर किसी व्यक्ति की निजी जानकारी पर नज़र रखी जाए। मद्रास हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में इसी विषय पर ज़ोर दिया कि दांपत्य संबंधों में भी निजता का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए, और इसे किसी भी प्रकार की जासूसी से खतरा नहीं होना चाहिए। कोर्ट का यह रुख दिखाता है कि विवाह में सम्मान और भरोसे की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है और इसे किसी भी परिस्थिति में भंग नहीं किया जाना चाहिए।

मौलिक अधिकार का उल्लंघन करके साक्ष्य का कोई मान्यता नहीं

तस्वीर साभार: The Daily Guardian

17-पेज के आदेश में न्यायाधीश ने इस मुद्दे पर दुनिया भर की अदालतों द्वारा सुनाए गए कई फैसलों का हवाला दिया। भारतीय अदालतों द्वारा ऐसे साक्ष्यों को स्वीकार करने के लिए बताए गए कारणों पर विचार-विमर्श करते हुए, न्यायाधीश ने कहा कि सबसे आम जसटिफिकेशन पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 14 के रूप में सामने आया, जो पारिवारिक न्यायालयों को अस्वीकार्य साक्ष्य स्वीकार करने की अनुमति देता है। इस बात से असहमत होकर, न्यायाधीश ने कहा कि निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करके प्राप्त साक्ष्य के लिए कोई विधायी मान्यता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि धारा 14 के तहत पारिवारिक न्यायालय को दी गई विवेकाधीन शक्ति; न्यायालयों के लिए अपनेआप अपवाद बनाने का बहाना नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने भारतीय विधि आयोग की 94वीं रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें आपराधिक मामलों में अवैध रूप से प्राप्त साक्ष्य को बाहर करने का सुझाव दिया गया था।

न्यायाधीश ने कहा कि सबसे आम जसटिफिकेशन पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 14 के रूप में सामने आया, जो पारिवारिक न्यायालयों को अस्वीकार्य साक्ष्य स्वीकार करने की अनुमति देता है। इस बात से असहमत होकर, न्यायाधीश ने कहा कि निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करके प्राप्त साक्ष्य के लिए कोई विधायी मान्यता नहीं है।

वैवाहिक जीवन में निजता का महत्व

किसी भी व्यक्ति की निजता उनके दांपत्य जीवन का एक अभिन्न अंग है। यह विशेषाधिकार सिर्फ व्यक्ति की नहीं, बल्कि दंपत्ति की गरिमा को भी सुरक्षित रखता है। तकनीक के युग में, जहां डिजिटल उपकरणों का प्रयोग और एक-दूसरे के बीच पासवर्ड या अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां चर्चा करना या आम है, वहां आज हमें और भी ज्यादा चौकन्ना रहना चाहिए। दांपत्य संबंधों में एक-दूसरे की निगरानी या जासूसी करना निजी स्वतंत्रता और सम्मान के अधिकार का हनन है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई थी कि आधुनिक तकनीकों के माध्यम से लोग एक-दूसरे के व्यक्तिगत जीवन में अनधिकृत प्रवेश करने लगे हैं, जिससे व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ के अधिकार पर आधारित है, जिसमें निजता का अधिकार भी सम्मिलित है। 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था। मद्रास हाईकोर्ट का यह निर्णय इसी फैसले का विस्तार है, जिसमें दांपत्य जीवन की गोपनीयता को भी संविधान के अंतर्गत लाने की कोशिश की गई है।

निजता का अधिकार, पारस्परिक रिश्ते और कानूनी दांव-पेंच

तस्वीर साभार: Canva

शादी के मामले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दिया जाना निजता के अधिकार के दायरे और वैवाहिक अधिकारों की सीमा के बारे में है। इससे पहले अदालतों के सामने कई मुद्दे उठाए गए हैं जो मेडिकल जांच, फोन टैपिंग, वर्जिनिटी टेस्ट, प्रजनन विकल्प, महिलाओं की यौन स्वायत्तता और मैरिटल रेप से संबंधित हैं। हालिया मामले पर विचार करते हुए न्यायाधीश ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य दाखिल करते समय अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर चर्चा की। द न्यू इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय साक्षात् अधिनियम, 2023 (बीएसए) की धारा 63 और धारा 39 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79ए को पढ़ने के बाद न्यायाधीश ने निष्कर्ष निकाला कि जो व्यक्ति साक्ष्य के रूप में किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पर भरोसा करना चाहता है, उसे रिकॉर्ड दाखिल करते समय एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। यह प्रमाण पत्र दो भागों में होना चाहिए, भाग ए और भाग बी। उन्होंने कहा कि भाग बी को आयकर अधिनियम की धारा 79ए के तहत अधिसूचित विशेषज्ञ द्वारा भरा जाना चाहिए।  

2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था। मद्रास हाईकोर्ट का यह निर्णय इसी फैसले का विस्तार है, जिसमें दांपत्य जीवन की गोपनीयता को भी संविधान के अंतर्गत लाने की कोशिश की गई है।

मद्रास हाईकोर्ट का यह निर्णय हमारे समाज में दांपत्य संबंधों में निजता के महत्व को समझाने और सुरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। तकनीक के युग में, जहां डिजिटल साधनों का उपयोग बढ़ता जा रहा है, यह फैसला यह स्पष्ट संदेश देता है कि निजी स्वतंत्रता और सम्मान का अधिकार विवाह जैसे निजी संबंधों में भी बेहद जरूरी है। यह निर्णय न केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूती देता है, बल्कि वैवाहिक संबंधों में विश्वास, सम्मान और पारस्परिक सीमाओं की सुरक्षा पर भी जोर देता है। दांपत्य जीवन की गोपनीयता की यह सुरक्षा एक स्वस्थ और संतुलित समाज की दिशा में बढ़ती है, जहां आधुनिक तकनीकी साधनों के बीच भी व्यक्ति की निजता सर्वोच्च मानी जाती है।

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