महिलाओं को सदियों से इस पितृसत्तात्मक समाज ने एक दोयम दर्जे के इंसान के रूप में देखा है। एक ऐसा व्यक्ति जिसे न अपनी मर्जी से जीने का अधिकार है और न ही अपने फैसले लेने को। पर, नारीवादी सोच ने इस भेदभावपूर्ण नज़रिये का हमेशा मजबूती से विरोध किया है। चाहे वह बात हो जन, जंगल, और ज़मीन को बचाने की या अपने आत्मसम्मान के लड़ाई की। महिलाएं हर क़दम पर इस पितृसत्तात्मक मानसिकता को चुनौती देने के लिए आगे आई हैं। यही साहस ‘पिंक चड्डी मूवमेंट’ में भी दिखा जहां महिलाओं ने अन्याय के खिलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की और अपने अधिकारों के लिए एक नये तरीके से खड़े होने का साहस दिखाया।
पिंक चड्डी मूवमेंट साल 2009 में भारत में एक महत्पूर्ण सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन था। इसका उद्देश्य महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न और पितृसत्तात्मक सोच का विरोध करना था। यह आंदोलन तब शरू हुआ जब दक्षिणपंथी संगठन श्री राम सेना ने वेलेंटाइन दे मनाने के लिए पब जाने वाली महिलाओं पर कथित तौर पर हमला किया। दक्षिणपंथी संगठन का कहना था कि जो महिलाएं पब जाती हैं वह तथाकथित ‘भारतीय संस्कृति’ का अपमान कर रही हैं। हमलावरों ने महिलाओं के साथ मारपीट की थी और गलत भाषा का भी प्रयोग किया था। इसके विरोध में नारीवादी समूहों ने श्री राम सेना के ऑफिस में ‘पिंक चड्डी’ भेजने का अभियान शुरू किया।
आखिर गुलाबी चड्डी ही क्यों
लेकिन ये सोचने वाली बात है कि महिलाओं ने सिर्फ गुलाबी रंग की ही चड्डी को क्यों भेजी? ऐसा इसलिए था क्योंकि इस समाज में गुलाबी रंग को अक्सर स्त्रीत्व का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को चुनना महिलाओं की पहचान और उनकी शक्ति का जश्न था। गुलाबी रंग के जरिए अहिंसक रूप में एक प्रभावी सन्देश भेजा गया कि महिलाओं का सशक्तिकरण शर्म की बात नहीं, बल्कि गर्व का विषय है। हालांकि ये जरूर था कि चड्डी निजी वस्त्र है जिसे सार्वजनिक तौर पर भेजना एक ऐसा कदम था, जो ध्यान आकर्षित करने के साथ-साथ असहजता भी पैदा करता है। यह असहजता ठीक वैसा ही था जैसाकि महिलाओं पर पाबंदी लगाना। चड्डी, खासकर गुलाबी चड्डी एक ऐसा प्रतीक था जिसने नारीवादी सोच का प्रतिनिधित्व किया और पितृसत्ता के दमनकारी मानसिकता को चुनौती दे रहा था।
आंदोलन की शुरुआत और महत्व
इस आंदोलन की शुरुआत निशा सुज़ैन, मिहिरा सूद, जसमीन पथेजा और ईशा मनचंदा ने किया। निशा सुज़ैन ने फेसबूक ग्रुप ‘कंसोर्टियम ऑफ़ पब-गोइंग, लूज़ एण्ड फॉरवर्ड वुमन’ बनाया था जिसके तहत इस आंदोलन को आगे बढ़ाया गया। इस ग्रुप के माध्यम से हजारों लोगों ने इस अभियान में हिस्सा लिया और पिंक चड्डी भेजने का विचार फैल गया। हिंदूवादी संगठनों का यह दावा करना कि महिलाओं का पब जाना ‘भारतीय संस्कृति’ के खिलाफ़ है, एक ऐसा तरीका था जिससे ये समूह नैतिकता और सांस्कृतिक मानदंडों के तर्क पर नियंत्रण बनाना चाहते थे।
पिंक चड्डी मूवमेंट ने इस विचार को चुनौती दी कि भारतीय संस्कृति का मतलब महिलाओं के आज़ादी पर रोक लगाना नहीं है। यह अंदोलन यह दिखाता है कि संस्कृति को निर्धारित करने का एकाधिकार किसी खास राजनीतिक विचारधारा का नहीं होना चाहिए। पिंक चड्डी मूवमेंट ने पितृसत्तात्मक सोच का सीधे तौर पर विरोध किया। श्री राम सेना जैसे संगठनों ने महिलाओं के व्यक्तिगत फैसलों को नियंत्रित करने की कोशिश की थी, और इस आंदोलन ने यह बताया कि महिलाओं का जीवन, उनकी मर्जी और आज़ादी किसी भी राजनीतिक विचारधारा से परे होना चाहिए।
आज भी हिन्दुत्व राजनीती के तहत, कई बार ‘भारतीयता’ और ‘संस्कृति’ का नाम लेकर आधुनिकता और पश्चिमी विचारों का विरोध किया जाता है। पिंक चड्डी मूवमेंट ने यह मुद्दा उठाया कि किसी को भी महिलाओं की पंसद को ‘अभारतीय’ कहकर नियंत्रित करने का अधिकार नहीं है। ‘भारतीयता’ का मतलब सिर्फ पितृसत्तात्मक आदर्शों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें महिलाओं की आज़ादी, एजेंसी और उनके अधिकार भी शामिल हैं। पिंक चड्डी मूवमेंट को मीडिया में व्यापक कवरेज मिला और अगले कुछ दिनों में फेसबुक ग्रुप के सदस्यों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई।
हिन्दुत्ववादी राजनीती का एक प्रमुख एजेंडा महिलाओं की भूमिका को संस्कारों और धार्मिक मूल्यों में बांधना रहा है। यह आंदोलन दिखाता है कि राजनीती का उपयोग समाज पर नैतिकता थोपने के लिए नहीं, बल्कि समाज को प्रगतिशील बनाने के लिए होना चाहिए। पिंक चड्डी मूवमेंट ने भारतीय समाज में मजबूत संदेश दिया कि महिलाओं को आज़ादी और फैसले लेने के अधिकार पर किसी भी राजनीतिक, धार्मिक या सांस्कृतिक विचारधारा का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। यह आंदोलन पितृसत्ता के खिलाफ़ एक साहसिक पहल था जिसने दिखाया कि महिलाएं अपने अधिकार के लिए हर सीमा तोड़ सकती है।