इतिहास सामाजिक क्रांति की गुमनाम नायिका: सगुणाबाई क्षीरसागर| #IndianWomenInHistory

सामाजिक क्रांति की गुमनाम नायिका: सगुणाबाई क्षीरसागर| #IndianWomenInHistory

सगुणाबाई ने ज्योतिराव को अपने पुत्र की तरह पाला और उन्हें सशक्त और अनुशासित व्यक्ति के रूप में ढाला। सगुणाबाई के मार्गदर्शन से ज्योतिराव का व्यक्तित्व विकसित हुआ। उनकी अंग्रेजी शिक्षा ने ज्योतिराव को कई महत्वपूर्ण लोगों से परिचित कराया।

सगुणाबाई क्षीरसागर का नाम भारतीय समाज सुधार के इतिहास में अधिक चर्चित नहीं है। लेकिन उनका योगदान असीम है। उनके त्याग, संघर्ष और मातृ-स्नेह ने न सिर्फ ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन को दिशा दी बल्कि समाज में शूद्र, दलित और महिलाओं की शिक्षा की नींव भी रखी। उनके आदर्शों ने फुले दंपत्ति को अन्याय के विरुद्ध क्रांति करने के लिए प्रेरित किया। सगुणाबाई का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के धनकवड़ी गांव में हुआ था। वह बाल विधवा थीं और पुणे में एक ब्रिटिश मिशनरी मिस्टर जॉन के यहां काम करती थीं, जहां उन्होंने अंग्रेजी सीखी। यह उस समय की महिलाओं के लिए बेहद असामान्य था। गोविंदराव फुले, जो ज्योतिराव के पिता थे, ने ज्योतिराव के पालन-पोषण के लिए सगुणाबाई से मदद मांगी, जिसे उन्होंने स्वीकार किया।

सगुणाबाई ने ज्योतिराव को अपने पुत्र की तरह पाला और उन्हें सशक्त और अनुशासित व्यक्ति के रूप में ढाला। सगुणाबाई के मार्गदर्शन से ज्योतिराव का व्यक्तित्व विकसित हुआ। उनकी अंग्रेजी शिक्षा ने ज्योतिराव को कई महत्वपूर्ण लोगों से परिचित कराया। जब गोविंदराव ने जातिगत दबाव के चलते ज्योतिराव की शिक्षा बंद करने का निर्णय लिया, तब सगुणाबाई ने अंग्रेज अधिकारी लेगिट और गफ्फार बेग से मदद लेकर गोविंदराव को समझाया। उनके इस हस्तक्षेप ने ज्योतिराव की शिक्षा जारी रखी और उन्हें एक महान समाज सुधारक बनने का अवसर दिया। सगुणाबाई ने ज्योतिराव को अनुशासन, सेवा भाव और शिक्षा के महत्व का पाठ पढ़ाया, जो उनके सामाजिक आंदोलनों की नींव बना।

सगुणाबाई के संरक्षण में ही ज्योतिराव का विवाह नायगांव की नौ वर्षीय बालिका, सावित्रीबाई से हुआ। विवाह के बाद सगुणाबाई ने सावित्रीबाई को पढ़ने और शिक्षित होने के लिए प्रेरित किया।

सगुणाबाई के संरक्षण में ही ज्योतिराव का विवाह नायगांव की नौ वर्षीय बालिका, सावित्रीबाई से हुआ। विवाह के बाद सगुणाबाई ने सावित्रीबाई को पढ़ने और शिक्षित होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सावित्रीबाई को घर पर ही पढ़ाई के अवसर दिए और उन्हें सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ने का हौंसला दिया। सावित्रीबाई ने अपनी कविताओं के संग्रह ‘बावनकशी सुबोध रत्नाकर’ में सगुणाबाई को ‘मेरी प्यारी आऊँ’ कहकर श्रद्धांजलि दी है, जो सगुणाबाई के विशाल हृदय और मातृत्व का प्रतीक है।

सगुणाबाई का जीवन

तस्वीर साभार: Gaon Ke Log

सगुणाबाई का जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने जातिगत भेदभाव और धार्मिक आडंबरों का सामना किया और अपने बच्चों को इनके खिलाफ़ लड़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने ब्राह्मणवादी परंपराओं के विरोध के बावजूद शिक्षा का महत्व समझाया। 1846 में उन्होंने महारवाड़ा में एक पाठशाला की स्थापना की, जो सामाजिक दबाव के चलते बंद हो गई, लेकिन इससे शिक्षा के क्षेत्र में पहला कदम रखा गया। सगुणाबाई के सिखाए हुए मूल्यों से प्रेरित होकर ज्योतिराव और सावित्रीबाई ने समाज सुधार के कामों में कदम बढ़ाया। 1848 में उन्होंने पुणे के भिडेवाड़ा में कथित नीची जाति की महिलाओं के लिए पहला विद्यालय खोला। यह कदम सगुणाबाई, सावित्रीबाई और फातिमा शेख के अदम्य साहस का प्रतीक था।

सगुणाबाई का जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने जातिगत भेदभाव और धार्मिक आडंबरों का सामना किया और अपने बच्चों को इनके खिलाफ़ लड़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने ब्राह्मणवादी परंपराओं के विरोध के बावजूद शिक्षा का महत्व समझाया।

इन महिलाओं ने समाज के तानों, पत्थरों और गंदगी के हमलों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। यह त्याग और संकल्प अपनेआप में सराहनीय था और बताता था कि बदलाव की राह सरल नहीं होते। सगुणाबाई का त्याग और शिक्षा के प्रति समर्पण फुले दंपत्ति की प्रेरणा और सामाजिक जागरूकता का आधार बना। ज्योतिराव ने अपनी पुस्तक ‘सर्जक की खोज’ में सगुणाबाई को श्रद्धांजलि दी है, जिसमें वे उन्हें ‘सत्य और ममता की प्रतिमूर्ति’ के रूप में याद करते हैं और उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं।

सत्य और ममता की प्रतिमूर्ति सगुणाबाई

तुमने मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया

ओ ममता और मनुष्यता की छवि!

तुमने मुझे दूसरे के बच्चों से प्रेम करना सिखाया।

आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा के साथ,

मैं इस पुस्तक को आपको समर्पित करता हूं।

आज जब हम महिलाओं और हाशिये के समुदायों के अधिकारों की बात करते हैं, तो सगुणाबाई जैसे व्यक्तित्वों का नाम हमेशा लिया जाना जरूरी है, जिनके योगदान के बिना ये संभव नहीं होता। सगुणाबाई के आदर्शों ने फुले दंपत्ति को शिक्षा, समानता, और सामाजिक न्याय की दिशा में काम करने की प्रेरणा दी। उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों ने समाज में बदलाव की नींव रखी, जो आज भी प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। सगुणाबाई क्षीरसागर एक गुमनाम नायिका थीं, जिन्होंने ज्योतिराव और सावित्रीबाई फुले के जीवन को आकार दिया।

उनके मार्गदर्शन से फुले दंपत्ति ने सामाजिक सुधार के कामों में योगदान दिया और समाज में समानता का संदेश फैलाया। जब हम समानता और शिक्षा की बात करते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि इस यात्रा की शुरुआत सगुणाबाई जैसे असाधारण व्यक्तित्वों के प्रेरणास्रोत से हुई थी। उनके योगदान को भले ही इतिहास में उचित स्थान न मिला हो, लेकिन उनका योगदान समाज में स्थायी बदलाव लाने का काम करता रहा है। सगुणाबाई क्षीरसागर का निधन 6 जुलाई 1854 को हुआ लेकिन उनके आदर्शों का प्रकाश हमेशा फुले दंपत्ति के कामों में दिखाई देता है।

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