समाजकैंपस असर रिपोर्ट 2024: स्कूली शिक्षा में ग्रामीण भारत का कैसा रहा प्रदर्शन?

असर रिपोर्ट 2024: स्कूली शिक्षा में ग्रामीण भारत का कैसा रहा प्रदर्शन?

साल 2018 में केवल 36 फीसद ग्रामीण परिवारों के पास स्मार्टफोन थे लेकिन महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा और वर्चुअल कक्षाओं की शुरुआत ने इस संख्या में महत्वपूर्ण सुधार किए। इस दौरान 74 फीसद ग्रामीण परिवारों के पास स्मार्टफोन थे, जिनका उपयोग उनके बच्चे कर सकते थे जो 2024 तक बढ़ कर 84 फीसद हो  गया है।

हाल ही में प्रथम नामक एक गैर-लाभकारी संगठन ने 14वीं वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर) 2024, जारी किया गया है, जिसमें ग्रामीण भारत के शिक्षा की वर्तमान स्थिति का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। सर्वेक्षण में कक्षा 3 और 5 के छात्रों के बीच बुनियादी पढ़ने और अंकगणित में सुधार की बात बताई गई जिसमें कोविड-19 महामारी के बाद से सुधार दर्ज़ हुआ है। असर की इस रिपोर्ट में 605 जिलों के 17,997 गांवों को शामिल  किया गया जिसमें 3  से 16 वर्षीय आयु वर्ग के 649,491 बच्चे और 5 से 16 वर्षीय आयु वर्ग के 500,000 से अधिक बच्चों के पढ़ने और गणितीय कौशल का परीक्षण किया गया। संगठन ने देश के लगभग सभी ग्रामीण जिलों में जाकर बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति,बुनियादी पढ़ाई और अंकगणित के स्तर पर रिपोर्ट तैयार किया है। असर 2024 के डेटा से देश भर में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता (एफएलएन) कौशल की प्रगति को ट्रैक करने में मदद मिलती है।

बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता में बढ़ोतरी

इस बार की रिपोर्ट में अच्छी बात ये है कि यह महामारी के बाद सीखने में आई कमी और उससे होने वाले नुकसान से बच्चों के उबरने की बात कहती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अखिल भारतीय स्तर पर, कक्षा तीन में पढ़ने वाले ऐसे बच्चों का अनुपात जो कक्षा दो के स्तर पर पाठ पढ़ सकते हैं, 2014 में यह अनुपात 23.6 प्रतिशत था। यह 2018 में बढ़कर 27.3 प्रतिशत हो गया है। माहामारी  में होने वाले लॉकडाउन के कारण इस स्थिति में भारी गिरावट देखने को मिली जो 2022 में महज़  20.5 प्रतिशत रह गई थी।

दो साल बाद, इस स्थिति में पूरी तरह से सुधार देखा गया है। अब 2024 में कक्षा तीन के बच्चे जो धाराप्रवाह पढ़ने में सक्षम उनका प्रतिशत 27.1 है। कक्षा पांच में भी ऐसी ही तस्वीर देखने को मिलती है,जहां कक्षा दो के स्तर का पाठ पढ़ने वाले बच्चों का अनुपात 2014 में 48 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 50.5 प्रतिशत गया था, वो 2022 में गिरकर 42.8 प्रतिशत हो गया था। महामारी  के दौर से उबरते हुई आखिरकार 2024 में यह प्रतिशत 48.8 दर्ज़ की गई है।

अब 2024 में कक्षा तीन के बच्चे जो धाराप्रवाह पढ़ने में सक्षम उनका प्रतिशत 27.1 है। कक्षा पांच में भी ऐसी ही तस्वीर देखने को मिलती है,जहां कक्षा दो के स्तर का पाठ पढ़ने वाले बच्चों का अनुपात 2014 में 48 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 50.5 प्रतिशत गया था, वो 2022 में गिरकर 42.8 प्रतिशत हो गया था। महामारी  के दौर से उबरते हुई आखिरकार 2024 में यह प्रतिशत 48.8 दर्ज़ की गई है।

पढ़ने और अंकगणित की क्षमता में सुधार

छात्रों में पढ़ने की क्षमता की बात करें  तो उसमें उल्लेखनीय सुधार देखा गया है। रिपोर्ट बताती है कि सरकारी स्कूलों के पांचवीं कक्षा के वो छात्र जो दूसरी कक्षा के स्तर की किताबें आराम से पढ़ पा रहे हैं, 2022 में उनका अनुपात 38.5 फीसद था, जो 2024 में बढ़कर 44.8 फीसद है। इसी तरह, अंकगणित में भी छात्रों ने बेहतर प्रदर्शन किया है जो एक महत्वपूर्ण सुधार है। कक्षा 3 के वे छात्र जो मूलभूत घटाव कर सकते हैं, उनकी संख्या 2022 में 25.9 फीसद थी। वहीं ये यह प्रतिशत अब बढ़कर 33.7 फीसद हो गया है। स्कूल स्तर पर  शिक्षा में सुधार की बात करें, तो 2024 का सर्वेक्षण बताता है कि निजी स्कूलें अभी भी सीखने के परिणामों में सरकारी स्कूलों से आगे हैं। लेकिन जहां सरकारी स्कूलों में सुधार हुआ है, और वे महामारी से पहले के स्तर से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं निजी स्कूलों में गिरावट देखी गई है।

सरकारी स्कूलों का बेहतर प्रदर्शन

तस्वीर साभार: The Hindu

रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों ने प्राइवेट स्कूलों से बेहतर प्रदर्शन किया है। वैसे तो निजी स्कूलों में भी कुछ सुधार देखने को मिला है, लेकिन सरकारी स्कूलों में यह सुधार अधिक स्पष्ट और तेज गति से हुआ है। कक्षा 3 के ऐसे बच्चों जो बुनियादी स्तर के अंकगणित जैसे घटाव कर सकते हैं, 2018 में उनका प्रतिशत 28.2 फीसद था, जबकि 2022 में महामारी के कारण यह 25.9 फीसद था। महामारी के बाद स्थिति में हो रहे सुधार का प्रमाण असर 2024 के रिपोर्ट में भी देखा जा सकता है जिसमें ये आंकड़ा 33.7 फीसद  हो गया है। जहां निजी स्कूलों में लगभग चार प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, वहीं सरकारी स्कूलों में इस क्षेत्र में सात प्रतिशत की  वृद्धि देखी गई।

सरकारी स्कूलों में पांचवीं कक्षा के वो छात्र जो अब कक्षा 2 के स्तर पर पाठ पढ़ सकते हैं, 2018 में उनका प्रतिशत 44.2 फीसद था। वहीं 2022 में ये घटकर 38.5 फीसद था लेकिन 2024 में इनका प्रतिशत 44.8 फीसद है। ये वृद्धि 2018 की  दर से लगभग मेल खाती  है। हालांकि यह प्रतिशत अभी तक निजी स्कूलों में महामारी-पूर्व स्तर तक नहीं पहुंच पाया है, जो 2024 में 59.3 फीसद था, 2022 में 56.8 फीसद और 2018 में 65.1 फीसद से कम था।

सरकारी स्कूलों के पांचवीं कक्षा के वो छात्र जो दूसरी कक्षा के स्तर की किताबें आराम से पढ़ पा रहे हैं, 2022 में उनका अनुपात 38.5 फीसद था, जो 2024 में बढ़कर 44.8 फीसद है।

सरकारी स्कूलों में बढ़ी शिक्षक और छात्र की उपस्थिति  

तस्वीर साभार: Linkedin

यह रिपोर्ट बताती है कि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक और विद्यार्थियों दोनों की उपस्थिति बढ़ी है। ये 2018 में जहां 72.4 फीसद और 2022 में 73 फीसद थी, वहीं ये 2024 में 75.9 फीसद हो गई। वहीं औसत शिक्षक उपस्थिति की बात करें तो ये 2018 में 85.1 फीसद, 2022 में 86.8 फीसद थी, वहीँ 2024 में यह 87.5 फीसद पाया गया। इसके साथ ही रिपोर्ट में प्रारंभिक शिक्षा के नामांकन दर में भी बढ़ोतरी दर्ज़ होने की बात बताई गई है। इसमें प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा कार्यक्रमों में बच्चों का नामांकन बढ़ा है। साल 2024 तक, ग्रामीण क्षेत्रों में 3 साल की उम्र के 77.4 फीसद बच्चे किसी न किसी प्रारंभिक शिक्षा कार्यक्रम में दाख़िल हो चुके हैं, जो प्रारंभिक शिक्षा की सकारात्मक प्रदर्शन को दिखाता है।

लड़कियों ने की प्रगति पर अब भी नामांकन है कम

असर रिपोर्ट 2024 के अनुसार लगभग हर बच्चा स्कूल जाता है। 6-14 आयु वर्ग में केवल 1.6 फीसद बच्चे ही स्कूल नहीं जाते हैं, जो 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद से सबसे कम है। लेकिन, स्कूल न जाने वाले बच्चों का प्रतिशत कम होने के बावजूद, 15 से 16 वर्ष की आयु की लड़कियां अभी भी स्कूल न जाने वाले बच्चों का एक बड़ा हिस्सा 8.1 फीसद हैं। वहीं, इसी आयु के 7.7 फीसद लड़के स्कूल नहीं जाते हैं। लेकिन फिर भी सभी कक्षाओं में सबसे ज़्यादा प्रगति लड़कियों ने की है। उदाहरण के लिए कक्षा 2 की सरल पाठ्य सामग्री पढ़ने की अपनी क्षमता में वे लड़कों से आगे हैं। कक्षा 3 की जहां 28.1 प्रतिशत लड़कियां पाठ्य सामग्री पढ़ने में सक्षम है तो लड़कों में ये प्रतिशत 26 फीसद है।

स्कूल न जाने वाले बच्चों का प्रतिशत कम होने के बावजूद, 15 से 16 वर्ष की आयु की लड़कियां अभी भी स्कूल न जाने वाले बच्चों का एक बड़ा हिस्सा 8.1 फीसद हैं।

स्मार्टफोन का कितना इस्तेमाल

असर 2024 में बच्चों के स्मार्टफोन कौशल का मूल्यांकन भी किया गया है, जिसमें अलार्म सेट करना, ब्राउज़िंग और संदेश भेजने जैसे कामों को शामिल किया गया है। कोविड-19 महामारी ने बच्चों को ऑनलाइन क्लास के लिए दिशा दे दी। साल 2018 में केवल 36 फीसद ग्रामीण परिवारों के पास स्मार्टफोन थे लेकिन महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा और वर्चुअल कक्षाओं की शुरुआत ने इस संख्या में महत्वपूर्ण सुधार किए। इस दौरान 74 फीसद ग्रामीण परिवारों के पास स्मार्टफोन थे, जिनका उपयोग उनके बच्चे कर सकते थे जो 2024 तक बढ़ कर 84 फीसद हो  गया है। रिपोर्ट बताती है कि घर पर स्मार्टफोन की आसान पहुंच के कारण,  82.2 फीसद बच्चे इन उपकरणों का उपयोग करना जानते हैं।

तस्वीर साभार: Indiai

लेकिन इसमें भी लैंगिक अंतर बना हुआ है। जहां 62.2 फीसद लड़कियां अलार्म सेट करने या बुनियादी जानकारी खोजने जैसे सरल काम डिजिटली कर सकती हैं, वहीं लड़कों में यह 70.2 प्रतिशत था। 14-16 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 90 फीसद बच्चों में स्मार्टफोन तक पहुंच है, जिनमें 85.5 फीसद लड़के हैं और  79.4 फीसद लड़कियां हैं। रिपोर्ट के अनुसार 14 वर्ष के 27 फीसद बच्चों और 16 वर्ष के 37.8 फीसद बच्चों के पास स्मार्टफोन हैं।  82.2 फीसद बच्चे जो स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, उनमें से 57 फीसद शिक्षा के लिए और 76 फीसद सोशल मीडिया के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। डिजिटल सुरक्षा के मामलों में भी बच्चों में जागरूकता दिखी। 62 फीसद बच्चे जानते हैं कि प्रोफाइल को कैसे ब्लॉक या रिपोर्ट करना है और 55.2 फीसद ने बताया कि वे जानते हैं कि प्रोफाइल को निज़ी उपयोग के लिए कैसे बनाना है।

असर 2024 की रिपोर्ट बताती है कि कोविड-19 महामारी के कारण हुए सीखने के नुकसान के बाद ग्रामीण बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता कौशल में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। सरकारी स्कूलों में सुधार और बच्चों के नामांकन में सुधार एक प्रभावी कदम है लेकिन आज भी प्राइवेट स्कूल ही देश में शिक्षा का बुनियाद हैं, जहां महंगाई आसमान छू रही है। इसलिए, सरकार को इन दिशाओं में भी उचित कदम उठाने होंगे।

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