देश में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता नज़र आ रहा है जिसका एक प्रमुख कारण शिक्षकों की भारी कमी है। उन्हीं शिक्षकों को अपने मेहनत से मिले पद को और अपने नौकरी को बचाने के लिए कई बार सड़कों पर संघर्ष करना पड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में भारत के अलग-अलग राज्यों में शिक्षक अपनी मांगों को लेकर लगातार आंदोलन करते नज़र आ रहे हैं। लखनऊ, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, बिहार जैसे राज्यों में शिक्षक महीनों से लगातार आंदोलन कर रहे हैं। इसके बावजूद सरकार न कोई फ़ैसला और न ही कोई पहल करते दिखाई दे रही है। शायद इसे ही बेरोज़गारी भी कहते हैं। वर्तमान में छत्तीसगढ़ के शिक्षक भी इसके चपेट में आ गए हैं।
छत्तीसगढ़ के लगभग 3000 बीएड डिग्री वाले सहायक शिक्षकों को सेवाओं को समाप्त कर उन्हें बेरोज़गार कर दिया गया है। वे पिछले दो महीने से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। ये अभ्यर्थी व्यापम द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षा (2023) उत्तीर्ण कर, मेरिट में स्थान प्राप्त कर शिक्षिकिय सेवा में आए थे। इनकी भर्ती पूरी तरह राज्य शासन के नियमों के अधीन हुई थी। गौरतलब है कि निकाले गए शिक्षकों में से ज़्यादातर शिक्षक अनुसूचित जाति और जनजाति से हैं, जिनमें से महिलाओं की संख्या अधिक है।
छत्तीसगढ़ के लगभग 3000 बीएड डिग्री वाले सहायक शिक्षकों को सेवाओं को समाप्त कर उन्हें बेरोज़गार कर दिया गया है। वे पिछले दो महीने से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
वर्तमान में चल रहे शिक्षकों के आंदोलन का कारण
छत्तीसगढ़ में बीएड डिग्रीधारी शिक्षकों की नौकरी पर संकट तब आ गया जब सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिक शिक्षकों के लिए बीएड को अयोग्य घोषित कर दिया। 2010 तक केवल डीएड डिग्री को प्राथमिक शिक्षण के लिए मान्यता थी। 2018 में शिक्षा मंत्रालय ने बीएड को भी शामिल कर लिया, बशर्ते 6 महीने का ब्रिज कोर्स किया जाए। 2023 में छत्तीसगढ़ में सहायक शिक्षक भर्ती में डीएड और बीएड दोनों अभ्यर्थियों को शामिल किया गया। रिजल्ट आने के बाद डीएड अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में याचिका दी, जिसके बाद बीएड की काउंसलिंग रोक दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए बीएड अभ्यर्थियों को नियुक्ति दिलवाई। हालांकि, अप्रैल 2024 में हाई कोर्ट ने डीएड अभ्यर्थियों को प्राथमिकता देने का आदेश दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया। दिसंबर 2024 में हाई कोर्ट ने 14 जनवरी तक बीएड की जगह डीएड को नियुक्ति देने का निर्देश दिया।
आंदोलन की शुरुआत और उसके रूप
31 दिसंबर 2024 को हाईकोर्ट के आदेश के बाद लगभग 2900 बीएड प्रशिक्षित सहायक शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। इसके विरोध में 14 दिसंबर को शिक्षकों ने अंबिकापुर से रायपुर तक पैदल मार्च शुरू किया। 19 दिसंबर को रायपुर पहुंचकर यह मार्च धरने में बदल गया। धरना स्थल पर 22 दिसंबर को शिक्षकों ने ब्लड डोनेशन कैंप लगाकर अपनी मांगों के प्रति समर्पण दिखाया। 26 दिसंबर को सामूहिक मुंडन किया गया, जिसमें पुरुषों के साथ महिला शिक्षकों ने भी बाल कटवाए। 30 दिसंबर को जल सत्याग्रह करते हुए प्रदर्शनकारियों ने पानी में खड़े होकर विरोध जताया।
1 जनवरी को बीजेपी कार्यालय का घेराव किया गया, जिसमें 30 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया। 3 जनवरी से शिक्षकों ने सामूहिक अनशन शुरू किया, जो 11 दिन चला। इसके बाद 6 जनवरी को निर्वाचन आयोग जाकर वोट बहिष्कार के लिए मतदाता पहचान पत्र लौटाए गए। 8 जनवरी को बीरगांव में आम सभा और रैली हुई। 10 जनवरी को NCTE की शवयात्रा निकाली गई और 12 जनवरी को दंडवत यात्रा की गई। 19 जनवरी को तेलीबंधा मरीन ड्राइव पर बड़ा धरना हुआ। इस पूरे आंदोलन के दौरान पुलिसिया दमन और धमकियों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन शिक्षक अपनी मांगों पर अड़े रहे।
छत्तीसगढ़ में बीएड डिग्रीधारी शिक्षकों की नौकरी पर संकट तब आ गया जब सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिक शिक्षकों के लिए बीएड को अयोग्य घोषित कर दिया। 2010 तक केवल डीएड डिग्री को प्राथमिक शिक्षण के लिए मान्यता थी। 2018 में शिक्षा मंत्रालय ने बीएड को भी शामिल कर लिया, बशर्ते 6 महीने का ब्रिज कोर्स किया जाए।
मेरिट में आने वाले पान की दुकान तक खोलने पर मजबूर हैं
सभी आंदोलनकर्ता शिक्षकों की मांग है कि नौकरी के बदले नौकरी दी जाए और उनके आंदोलन को गंभीरता से ली जाए। साथ ही सुशासन उनकी नौकरी बचे, और समायोजन की जाए। इसके साथ-साथ शिक्षकों का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में मज़बूती से सहायक शिक्षकों का पक्ष रखें। बीएड के सभी सहायक शिक्षक लंबे समय से शिक्षा के क्षेत्र में सेवा दे रहे थे। नौकरी न रहने पर न केवल उनके परिवारों की आजीविका पर संकट खड़ा हो रहा है बल्कि कहीं न कहीं शिक्षा व्यवस्था को भी कमजोर किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के लगभग आधे से ज्यादा ज़िले से बीएड सहायक शिक्षक इसमें शामिल हैं और बेरोज़गारी जैसे महामारी के समान घिरे हुए हैं।
लगभग डेढ़ महीने से चल रहे इस प्रदर्शन में कई उतार-चढ़ाव आए। इस आंदोलन में अहम भूमिका निभा रही शारदा पटेल बताती हैं, “जितने भी शिक्षकों के पद को अयोग्य घोषित किया है, वे या तो किसी किसान के बेटे हैं या किसी मज़दूर की बेटी है। किसी के माँ-बाप नहीं है, कोई मेहनत-मज़दूरी करता है। कईयों के छोटे बच्चे हैं और कुछ ऐसे जगह से भी हैं, जहां एक गांव का अकेला शिक्षक या शिक्षिका बनी हैं। ऐसे ही हर एक की अपनी कहानी है। वे सभी आज अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं।”
वह आगे कहती हैं, “मेरिट में आने वाले अब जीवन चलाने के लिए पान का दुकान खोलने पर मजबूर हैं।” वे बताती हैं कि इस आंदोलन में विरोध कर रहे शिक्षकों को कई तरह के समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। उन्हें सरकार द्वारा प्रदर्शन करने के लिए एक आउटर जगह दिया गया है जहां खाना-पानी किसी भी चीज़ की व्यवस्था नहीं है। यहां वे बीते कई दिनों से खुले आसमान के नीचे कड़कड़ाती ठंड में विरोध कर रहे हैं। कुछ महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को लिए उस खुले मैदान में सोने के लिए मजबूर थी। उनकी आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं है कि वे कुछ व्यवस्था कर सके। बीते दिनों काम किए हुए सैलिरी से ही बराबर पैसा इकट्ठा कर आंदोलन चला रहे हैं, जिसमें किसी को खाना मिल पाता है, किसी को नहीं।
जितने भी शिक्षकों के पद को अयोग्य घोषित किया है, वे या तो किसी किसान के बेटे हैं या किसी मज़दूर की बेटी है। किसी के माँ-बाप नहीं है, कोई मेहनत-मज़दूरी करता है। कईयों के छोटे बच्चे हैं और कुछ ऐसे जगह से भी हैं, जहां एक गांव का अकेला शिक्षक या शिक्षिका बनी हैं। ऐसे ही हर एक की अपनी कहानी है।
खाली है पदें लेकिन रोजगार के लिए लड़ रहे हैं शिक्षक
शिक्षकों को पुलिस बल का भी सामना करना पड़ा, जिससे 30 से 40 लोगों को गंभीर चोटें भी आई। शारदा कहती हैं, “उनकी गलती क्या है? क्या ईमानदारी से मेहनत कर एक मुक़ाम तक पहुंचना ही उनकी गलती है? या एक कथित नीची जाति का होकर मेरिट लिस्ट में नाम लाना गलत है?” छत्तीसगढ़ में शिक्षकों की इस कदर कमी है कि राज्य के 7500 स्कूलों में से 300 स्कूल बिना शिक्षक के चल रहे हैं और 5500 स्कूलों में केवल एक शिक्षक हैं। प्रदेश में लगभग 16000 पदें ख़ाली हैं। उसके बावजूद शिक्षकों को अपने नौकरी के लिए सड़क पर जूझना पड़ रहा है। इन शिक्षकों की नौकरी सिर्फ़ उनकी दयनीय स्थिति या ज़िंदगी से ही नहीं जुड़ी है बल्कि भविष्य में आने वाले नए पढ़ियों और एक शिक्षित समाज से भी जुड़ा है। आंदोलन से जुड़ी शिक्षिका रितु निषाद कहती हैं, “छत्तीसगढ़ में सरकार किसी की भी हो, कोई न साथ नहीं दे रहे हैं, बल्कि छत्तीसगढ़ की दोनों पार्टियां एक-दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप करते नज़र आते हैं। मुझे लगता है हम बस एक नमूना बन गए हैं, जिसके संघर्ष और मेहनत का कोई मोल नहीं है।”
इस विषय पर शिक्षिका जया साहू कहती हैं, “इन शिक्षकों में से ज़्यादातर महिलाएं हैं और वे आदिवासी और दलित समुदाय से आती हैं। वे आर्थिक स्थिति को टक्कर देती हैं और इतनी पढ़ाई करती हैं और शिक्षक का पद हासिल करती हैं। इसके अलावा महिलाओं को घर से निकलने की आज़ादी नहीं होती। उन्हें बोझ की तरह देखते हैं और जब मेहनत कर आगे बढ़ती हैं, तो उनका ये हाल हो रहा है। इसे देखकर कौन माता-पिता लड़कियों को पढ़ने या घर से निकलने की इजाज़त देंगे?”
इन शिक्षकों में से ज़्यादातर महिलाएं हैं और वे आदिवासी और दलित समुदाय से आती हैं। वे आर्थिक स्थिति को टक्कर देती हैं और इतनी पढ़ाई करती हैं और शिक्षक का पद हासिल करती हैं।
सवाल तो ये है कि बात सिर्फ़ छत्तीसगढ़ की नहीं है बल्कि पूरे देश में है। देश में शिक्षकों का भारी संख्या में बेरोज़गार होने के क्या कारण हैं और इसके ज़िम्मेदार कौन हैं? यह निर्णय युवाओं के भविष्य और उनके अधिकारों पर आघात है। सरकार चुनावों में युवाओं के लिए रोज़गार और सुरक्षा का वादा करती है। अब बेरोज़गार शिक्षक न्याय चाहते हैं। इसके लिए डेढ़ महीने से सड़क पर वे आंदोलन कर रहे हैं और समायोजन की मांग कर रहे हैं। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में नगरी निकाय के चुनाव और अचार संहिता के चलते प्रदर्शनकारियों को धरना स्थल से हटा दिया गया है। लेकिन अचार संहिता के हटते ही वे अपनी मांगों को लेकर नई दिल्ली जाने की रणनीति बना रहे हैं।