सना 30 साल की हैं और कानपुर में रहती हैं। कुछ साल पहले उनके माता-पिता ने उनकी अरेंज्ड मैरिज कारवाई। वह शादी चली नहीं और एक-दो महीने में ही उनका तलाक हो गया। सना अपने घर वापस आ गई हैं और एक प्राइवेट जॉब कर रही हैं। सना के पिता उनसे कहते हैं कि उन्हें अपने ही धर्म का एक लड़का ढूंढकर और खुद पैसे जमा करके अपने पैसे से शादी कर लेनी चाहिए। लेकिन, सना कहती हैं, “आखिर यह कैसे संभव है कि मैं किसी का धर्म देखकर उसको पसंद करूँ?” उनकी एक रिश्तेदार भी उन पर तंज कसती हैं और कहती हैं कि क्या वे ज़िन्दगी भर ऐसे ही घूमेंगी।
यह सिर्फ़ सना की कहानी नहीं है। हमारे देश में हज़ारों-लाखों लड़कियां अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इन हालातों से दो-चार होती हैं। इसके तहत किसी सिंगल महिला को महज़ इसलिए कमतर साबित करने की कोशिश की जाती है कि वह ‘सिंगल’ हैं। घर-परिवार से लेकर, रिश्तेदारों और नौकरियों तक, हर जगह उन्हें उनके सिंगल होने की वजह से ताने सुनने पड़ते हैं। इसे ‘सिंगल शेमिंग’ कहते हैं। इसका सामना सिंगल महिलाएं और पुरुष दोनों करते हैं। लेकिन महिलाओं के मामले में से बहुत ज्यादा होता है। महिलाएं अपनी ज़िन्दगी में कब-कब ऐसे अनुभवों से गुज़रती हैं और वे इन हालातों का सामना कैसे करती हैं यह समझने के लिए फेमिनिज़म इन इंडिया ने कुछ सिंगल महिलाओं से बात की।
मैंने कहा मैं अपनी मर्ज़ी से सिंगल हूं। उसके बाद उसने मुझसे अपनी खूबियां बताने को कहा। मैंने बताया कि मैं टीम में लोगों के साथ बहुत अच्छे से काम कर लेती हूं, लोगों के साथ आसानी से घुल-मिल जाती हूं। यह सुनकर वह हंसने लगे और कहा कि आप इस उम्र तक अविवाहित हैं और आप कह रही हैं कि आप लोगों से जल्दी घुलती-मिलती हैं।
नौकरियों में सिंगल शेमिंग और अतिरिक्त दबाव
एक तरफ शादीशुदा और गर्भवती महिलाओं को नौकरियों में नियुक्ति के समय भेदभाव का सामना करना पड़ता है क्योंकि नियोक्ताओं को लगता है कि वे ऐसेट नहीं, लैयाबिलिटी हैं। वहीं सिंगल महिलाएं भी इस भेदभाव से नहीं बचती। लखनऊ की मंजरी सिंह 39 साल की हैं और फ्रीलांस अनुवादक के तौर पर काम करती हैं। उन्होंने बताया, “साल 2023 की बात है। मैं एक एडवरटाइज़िंग एजेंसी की एक पोस्ट के लिए इंटरव्यू देने गई थी। इन्टरव्यूवर ने मुझसे पूछा कि क्या मैं सिंगल हूं, अगर हाँ तो क्यों। मैंने कहा मैं अपनी मर्ज़ी से सिंगल हूं। उसके बाद उसने मुझसे अपनी खूबियां बताने को कहा। मैंने बताया कि मैं टीम में लोगों के साथ बहुत अच्छे से काम कर लेती हूं, लोगों के साथ आसानी से घुल-मिल जाती हूं। यह सुनकर वह हंसने लगे और कहा कि आप इस उम्र तक अविवाहित हैं और आप कह रही हैं कि आप लोगों से जल्दी घुलती-मिलती हैं। मैंने कहा कि आप बड़े ही क्रीपी हैं। इस पर उसने खुद का बचाव करते हुए कहा कि वह बस यह देखना चाहता था कि मैं ऐसे सवालों पर कैसे प्रतिक्रिया देती हूं क्योंकि एडवरटाइज़िंग एक पेचीदा काम है।”
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मंजरी ने बताया कि उन्हें उस व्यक्ति की ज़िन्दगी में मौजूद महिलाओं को लेकर अफ़सोस हुआ। उन्होंने उसके बर्ताव की शिकायत कंपनी की सीनियर एचआर से की थी, लेकिन उनकी शिकायत का क्या हुआ उन्हें नहीं पता। उस कंपनी ने मंजरी को नहीं चुना, लेकिन उन्हें कहीं और नौकरी मिल गई थी। वह कहती हैं कि बिना प्यार के और खराब शादी में रहने के बजाए वे सिंगल रहना पसंद करेंगी। नौकरी में सिंगल शेमिंग के बारे में पुणे, महाराष्ट्र की रहनेवाली मनोवैज्ञानिक स्नेहल जोशी कहती हैं, “आपके बॉस मान लेते हैं कि आप एक्स्ट्रा प्रोजेक्ट ले लेंगे, कभी भी शॉर्ट नोटिस पर यात्रा करने को तैयार हो जाएंगे और देर तक काम कर लेंगे।”
मैं चालीस की उम्र के नज़दीक पहुंच रही हूं। मैं माता-पिता के साथ ही रहती हूं और उनकी देखभाल कर रही हूं। मेरी जगह कोई लड़का ऐसा कर रहा होता तो उसका महिमामंडन किया जाता, लेकिन मेरे बारे में लोग तरह-तरह की बातें करते हैं।
घर-परिवार और रिश्तेदारों का सिंगल शेमिंग
घर-परिवार के लोग और रिश्तेदार भी महिलाओं को सिंगल शेमिंग में चूकते नहीं हैं। इस बारे में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर गांव की शिक्षिका मधु उके कहती हैं, “मैं चालीस की उम्र के नज़दीक पहुंच रही हूं। मैं माता-पिता के साथ ही रहती हूं और उनकी देखभाल कर रही हूं। मेरी जगह कोई लड़का ऐसा कर रहा होता तो उसका महिमामंडन किया जाता, लेकिन मेरे बारे में लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। इधर-उधर से ये बातें मेरे कानों में पड़ती हैं। कोई कहता है कि मेरा भाई छोटा है और मैं अपने माता-पिता की प्रॉपर्टी लेने के लिए शादी नहीं कर रही हूं। कोई कहता है मुझे अपने पैसों का गुरूर है।”
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घर-परिवार के बाहर के लोगों की तरफ से सिंगल शेमिंग के बारे में बताते हुए मधु ने बताया कि बस्तर की संस्कृति में सिंगल शेमिंग नहीं हैं। यहां लड़कियों को भी उतनी ही आज़ादी है, जितनी लड़कों को। लेकिन बस्तर में बाहर के राज्यों से आकर बसे लोग अपनी संकुचित मानसिकता भी लेकर आते हैं। उन्होंने कहा, “मैं ऐसे लोगों की बातों को इग्नोर करती हूं। मुझे लगता है कि ऐसी शादी में रहने, जिसमें घुट-घुटकर जीना पड़े और आत्मसम्मान के बिना जीना पड़े, उससे सिंगल रहना बेहतर है।”
एक मनोवैज्ञानिक के तौर पर मैंने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर सिंगल शेमिंग का काफ़ी गहरा असर पड़ते देखा है। कई सिंगल लोग पुराने ब्रेकअप, तलाक या एक उपयुक्त साथी न मिलने की सम्भावना की वजह से एक ऐसे दुख के साथ जीने लगते हैं, जिसके बारे में वे किसी से बात नहीं कर पाते।
सिंगल शेमिंग के पीछे क्या होती है मानसिकता
सिंगल शेमिंग के पीछे बहुत-से मिथक काम करते हैं। पहला मिथक यह कि कोई महिला अपनी खुद की हिफ़ाज़त नहीं कर सकती और उसकी हिफ़ाज़त के लिए ज़िन्दगी में कोई पुरुष होना चाहिए। असल में हर इंसान अपनी हिफ़ाज़त करने में सक्षम होता है और करना भी चाहता है। सामाजिक व्यवस्थाएं और परिस्थितियां ही महिलाओं के लिए असुरक्षा का माहौल पैदा करती हैं। वहीं ये भी प्रचलित धारणा है कि कोई पुरुष ही किसी महिला को सम्पूर्ण बनाता है। इसके पीछे भी कोई तार्किक कारण नहीं है। हर इन्सान अपने आप में परिपूर्ण होता है और कोई किसी को परिपूर्णता नहीं प्रदान कर सकता। वहीं, विशेषकर महिलाओं के लिए कहा जाता है कि हर किसी को शादी करनी ही चाहिए और एक खास उम्र तक कर ही लेनी चाहिए। यह भी समाज की बनाई हुई अनिवार्यता है। शादी करना या न करना, बिना शादी किए किसी के साथ रहना, जल्दी शादी करना या देर में करना, यह सब किसी के व्यक्तिगत फ़ैसले होते हैं। इनमें समाज का हस्तक्षेप किसी भी तरह से जायज़ नहीं।
सिंगल शेमिंग के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
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सिंगल शेमिंग का किसी व्यक्ति पर बहुत गहरा मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इस बारे में स्नेहल कहती हैं, “एक मनोवैज्ञानिक के तौर पर मैंने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर सिंगल शेमिंग का काफ़ी गहरा असर पड़ते देखा है। कई सिंगल लोग पुराने ब्रेकअप, तलाक या एक उपयुक्त साथी न मिलने की सम्भावना की वजह से एक ऐसे दुख के साथ जीने लगते हैं, जिसके बारे में वे किसी से बात नहीं कर पाते। उनमें से कुछ खुद को पूरी तरह काम में डुबो देते हैं। शादीशुदा लोगों को काबिल और सिंगल को नाकाबिल मानने की सामाजिक धारणा के चलते कुछ लोग खुद पर संदेह करने लगते हैं और बेचैनी का सामना करते हैं।”
किसी महिला का सिंगल होना बहुत बार उसकी खुद की मर्ज़ी हो सकती है। बहुत बार ऐसा भी हो सकता है कि उसे कोई सही साथी न मिल रहा हो। लेकिन, समाज की यह सोच कि कोई महिला इसलिए सिंगल है क्योंकि उसमें कुछ दिक्कत है, वह आवारा है या फिर उसे आसानी से उपलब्ध मान लेना, समाज की पितृसत्तातमक सोच बयां करते हैं।
आगे उन्होंने बताया कि इन सामाजिक दबावों के चलते कई लोग ऐसी शादियां कर लेते हैं, जो उनके जीवन में केवल परेशानियां ही लेकर आती है। उन्होंने कहा कि या तो समाज सिंगल लोगों को हर तरह से आज़ाद मान लेता है या फिर बेचारगी की नज़र से देखता है कि वे अकेले हैं। बेशक कुछ सिंगल लोग पूरी तरह से आज़ाद होकर रहते हैं, लेकिन वे भी कभी-कभी चुनौतियों या अकेलेपन का सामना करते हैं। सिंगल लोगों को हर तरह से बेफ़िक्र, आज़ाद और खुश या फिर साथी न होने की वजह से दुख का पात्र मान लेना, ये दोनों ही नज़रिए सिंगल शेमिंग में आते हैं और इनमें बदलाव की ज़रूरत है। सिंगल शेमिंग महिलाओं और पुरुषों दोनों के ही साथ की जाती है क्योंकि हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहां शादी का महिमामण्डन ज़रूरत से ज़्यादा किया जाता है। पहले के समय में महिलाएं आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर थीं, इसलिए शादी उनकी मजबूरी बन जाती थी। आज के समय में महिलाएं आत्मनिर्भर हुई हैं और वे किसी रिश्ते में बराबरी चाहती हैं। जब उन्हें ऐसी बराबरी और सम्मान नहीं मिलता तो वे केवल नाम के लिए रिश्ते में न रहकर सिंगल रहना पसंद करती हैं।
आज की महिलाओं की सोच काफ़ी प्रगतिशील हुई है और वे बराबरी के मायने समझती हैं। किसी महिला का सिंगल होना बहुत बार उसकी खुद की मर्ज़ी हो सकती है। बहुत बार ऐसा भी हो सकता है कि उसे कोई सही साथी न मिल रहा हो। लेकिन, समाज की यह सोच कि कोई महिला इसलिए सिंगल है क्योंकि उसमें कुछ दिक्कत है, वह आवारा है या फिर उसे आसानी से उपलब्ध मान लेना, समाज की पितृसत्तातमक सोच बयां करते हैं। हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं और हरेक इंसान को एक व्यक्ति के तौर पर देखे जाने की ज़रूरत है। अगर कोई महिला शादी न करके लिव-इन में रहना चाहे तो उसे उसकी भी आज़ादी होनी चाहिए और अगर कोई महिला यह चाहे ही नहीं कि उसका कोई पार्टनर हो, तो उसके इस फैसले का भी सम्मान किया जाना चाहिए। ज़रूरत है कि हम एक ऐसा समाज बनाएं जहां सिंगल होना कोई शर्म की बात या जुर्म न हो।