तकनीक हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गई है, जिससे बच्चों की दुनिया भी प्रभावित हो रही है। डिजिटल मीडिया और उपकरणों के बढ़ते उपयोग ने बच्चों को उनके परिवार और समाज से जोड़ने के बजाय और अधिक अलग-थलग कर दिया है। मोबाइल, टेलीविज़न और वीडियो गेम्स की लत ने उनकी शारीरिक और मानसिक गतिविधियों को प्रभावित किया है, जिससे आँखों की समस्या, एकाग्रता की कमी, तनाव, चिड़चिड़ापन और नींद से जुड़ी परेशानियाँ बढ़ रही हैं। बच्चों पर स्क्रीन के अत्यधिक उपयोग का गहरा असर पड़ता है। हिंसक और अनुचित डिजिटल कंटेंट उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। यूनिसेफ के अनुसार, हर तीन में से एक बच्चा इंटरनेट का उपयोग करता है।
साल 2022 की जेएमआईआर, पीडियाट्रिक्स एंड पेरेंटिंग रिपोर्ट के मुताबिक, 11 साल की उम्र तक 53 फीसद बच्चों के पास स्मार्टफोन होता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के शोध के अनुसार, कोरोना महामारी के बाद बच्चों का औसत स्क्रीन टाइम 4.4 घंटे से बढ़कर 5.5 घंटे प्रतिदिन हो गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि 2 से 4 साल तक के बच्चों के लिए रोज़ 2 घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम सही नहीं है, लेकिन भारत में यह स्थिति और भी गंभीर है। 18 महीने से छोटे 99.7 फीसद बच्चे स्क्रीन देखते हैं, जिनमें से 56.5 फीसद रोज़ 2 घंटे से अधिक समय बिताते हैं। 2-5 साल के भारतीय बच्चों का औसत स्क्रीन समय 2 घंटे 19 मिनट है।
साल 2022 की जेएमआईआर, पीडियाट्रिक्स एंड पेरेंटिंग रिपोर्ट के मुताबिक, 11 साल की उम्र तक 53 फीसद बच्चों के पास स्मार्टफोन होता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के शोध के अनुसार, कोरोना महामारी के बाद बच्चों का औसत स्क्रीन टाइम 4.4 घंटे से बढ़कर 5.5 घंटे प्रतिदिन हो गया है।
संज्ञानात्मक और भाषा विकास पर असर
शोध बताते हैं कि स्क्रीन का अधिक उपयोग बच्चों की स्मृति, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और निर्णय लेने की योग्यता को कमजोर कर सकता है। विशेष रूप से, किशोरों में मल्टीटास्किंग करने की आदत उनके कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकती है। स्पेन में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, अधिक स्क्रीन समय कम शैक्षणिक प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है। एक अमेरिकी शोध में पाया गया कि जो बच्चे एक साथ कई डिजिटल माध्यमों का उपयोग करते हैं, उनके परीक्षा में स्कोर कम आने की संभावना अधिक होती है।
भाषा, व्यवहार, मानसिक स्वास्थ्य और ऑनलाइन सुरक्षा

बचपन के शुरुआती साल भाषा कौशल के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। माता-पिता और बच्चों के बीच बातचीत जितनी अधिक होगी, भाषा विकास उतना ही बेहतर होगा। लेकिन स्क्रीन टाइम बढ़ने से यह बातचीत कम हो रही है, जिससे बच्चों को भाषा सीखने के कम अवसर मिलते हैं। शोध यह भी बताते हैं कि 2 साल से छोटे बच्चे स्क्रीन पर देखी गई जानकारी को प्रभावी रूप से नहीं समझ पाते, जिससे उनकी संज्ञानात्मक क्षमता प्रभावित होती है। अत्यधिक स्क्रीन समय से बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। चार साल की उम्र में ज़्यादा स्क्रीन देखने वाले बच्चों की छह साल की उम्र में भावनात्मक समझ कम हो सकती है। यदि किसी बच्चे के कमरे में छह साल की उम्र में टीवी मौजूद हो, तो आठ साल की उम्र में उसकी भावनात्मक समझ पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2019 और 2020 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के कुल 305 और 1,102 मामले दर्ज किए गए। इसी अवधि में महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध के 2019 में 8,379 और 2020 में 10,405 मामले दर्ज किए गए।
ऑनलाइन कंटेन्ट से सुरक्षा पर खतरा
एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 और 2020 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के कुल 305 और 1,102 मामले दर्ज किए गए। इसी अवधि में महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध के 2019 में 8,379 और 2020 में 10,405 मामले दर्ज किए गए। यदि सही मार्गदर्शन नहीं किया गया, तो बच्चे साइबर अपराध का सामना और ज्यादा करेंगे। माता-पिता, शिक्षकों और नीति निर्माताओं को मिलकर बच्चों के डिजिटल अनुभव को सुरक्षित बनाना होगा। इसके लिए पैरेंटल कंट्रोल और सोशल मीडिया मॉनिटरिंग आवश्यक है। साइबरबुलिंग रोकने और आयु-उपयुक्त इंटरनेट नीतिययां लागू करने की जरूरत है। स्कूलों में भी डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।
वैश्विक स्तर पर स्क्रीन टाइम नियंत्रण की पहल

कई देशों में बच्चों के डिजिटल स्क्रीन उपयोग को सीमित करने के लिए कड़े नियम लागू कर रहे हैं। स्वीडन में 2-5 साल के बच्चों के लिए अधिकतम 1 घंटा और 6-12 साल के बच्चों के लिए 2 घंटे तक स्क्रीन टाइम सीमित किया गया है। फ्रांस में 3 साल से छोटे बच्चों के लिए स्क्रीन उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में डिजिटल लत को कम करने के लिए सख्त दिशानिर्देश लागू किए गए हैं। भारत में यूट्यूब, इंस्टाग्राम शॉर्ट्स, और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंसक और अनुचित कंटेंट बच्चों तक आसानी से पहुंच रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ने नई सामग्री नीति में वयस्क सामग्री की अनुमति दी है, जिससे बच्चों को अनुचित सामग्री देखने का जोखिम बढ़ गया है। भारत को भी अन्य देशों की तरह डिजिटल कंटेंट पर सख्त पाबंदी लगानी चाहिए।
कई देशों में बच्चों के डिजिटल स्क्रीन उपयोग को सीमित करने के लिए कड़े नियम लागू कर रहे हैं। स्वीडन में 2-5 साल के बच्चों के लिए अधिकतम 1 घंटा और 6-12 साल के बच्चों के लिए 2 घंटे तक स्क्रीन टाइम सीमित किया गया है। फ्रांस में 3 साल से छोटे बच्चों के लिए स्क्रीन उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है।
समाधान और सुझाव
बच्चों में स्क्रीन टाइम के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए कुछ प्रभावी उपाय अपनाने की जरूरत है। माता-पिता को बच्चों के स्क्रीन उपयोग पर सीमाएँ तय करनी चाहिए। स्क्रीन मॉनिटरिंग डिवाइस का उपयोग कर ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखी जा सकती है। बेडरूम में टीवी और मोबाइल न रखने से बच्चों की नींद बाधित होने से बच सकती है। बच्चों के साथ स्क्रीन टाइम बिताकर शैक्षिक सामग्री देखने को प्रोत्साहित करना चाहिए। शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देना जरूरी है, ताकि बच्चे खेल-कूद और अन्य क्रिएटिव गतिविधियों में संलग्न हों। स्कूलों में डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम लागू किए जाने चाहिए। सरकार को बच्चों की डिजिटल सुरक्षा नीति लागू करनी चाहिए, जिससे सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर उन्हें हानिकारक सामग्री से बचाया जा सके।
डिजिटल युग में तकनीक से पूरी तरह बचना संभव नहीं है, लेकिन बच्चों पर इसके नकारात्मक प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अत्यधिक स्क्रीन समय भाषा विकास, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकता है। शोध बताते हैं कि हिंसक और अनुचित डिजिटल सामग्री, मल्टीटास्किंग और ऑनलाइन लत बच्चों के संज्ञानात्मक और भावनात्मक विकास को बाधित कर सकते हैं। इसलिए, बच्चों को डिजिटल लत से बचाने के लिए स्क्रीन टाइम सीमित करना, शारीरिक गतिविधियां बढ़ाना, डिजिटल साक्षरता को प्रोत्साहित करना और ऑनलाइन सुरक्षा के लिए कड़े नियम लागू करना आवश्यक है। सही मार्गदर्शन और संतुलित डिजिटल उपयोग के जरिए ही हम बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य दे सकते हैं।