पद्मश्री से सम्मानित हीराबाई इब्राहीम लोबी भारतीय आदिवासी सामाजिक कार्यकर्त्ता थीं। उनके पूर्वजों का सीधा संबंध अफ्रीकी सिद्दी आदिवासी समुदाय से था। ऐसा पाया गया है कि सिद्दी आदिवासी समुदाय अफ्रीका से भारत दास के रूप में, सैनिक के रूप में और विक्रेता, व्यापारी के रूप में छोटे-छोटे समूहों में बंटकर आए थे जो गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में समूह बना कर रहने लगे थे। हीराबाई का जन्म गुजरात के जनपद जूनागढ़, ग्राम जांबुर में 1960 में हुआ था। इनके पिता का नाम भीखा और माता का फातिमा थीं। हीराबाई ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं थीं लेकिन उनका रुझान शिक्षा और समाज की ओर शुरू से ही था। लगभग दस-बारह साल की उम्र में उनके माता-पिता दोनों का देहांत हो गया जिसके चलते उनका पूरा बचपन उनकी दादी की देख-रेख में बीता।
लगभग चौदह साल की उम्र में हीराबाई की शादी इब्राहीम लोबी से कर दी गई। शादी के कुछ साल बाद उनके ससुर ने उन्हें और उनके पति को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए घर से निकाल दिया। इसके बाद हीराबाई अपने पति के साथ मायके लौट आईं। उनके पिता ने उन्हें खेती के लिए जमीन दी, लेकिन वह उपजाऊ नहीं थी। हीराबाई ने खुद मेहनत कर जमीन को खेती योग्य बनाया और अपनी जीविका शुरू की। उन्होंने तीन बच्चों को जन्म दिया—दो बेटे और एक बेटी। अपनी आर्थिक स्थिति से संघर्ष करते हुए हीराबाई ने महिलाओं की पीड़ा को समझा। साल 1996 में उन्होंने महिलाओं को जागरूक करने के लिए ‘आगा खान फाउंडेशन’ से जुड़कर काम शुरू किया। वे महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए प्रेरित करने लगीं।
2004 में उन्होंने ‘महिला विकास खंड’ की स्थापना की, जिससे महिलाओं की सहायता बेहतर ढंग से की जा सके। आर्थिक सहयोग के लिए उन्होंने ‘भारतीय एग्रो इंडस्ट्रीज फाउंडेशन’ से भी संपर्क किया। हीराबाई को जब पुरस्कार के रूप में 500 डॉलर मिला तब उन्होंने सारा पैसा गांव के विकास में खर्च कर दिया था।
पुलिस के सख्ती के खिलाफ़ डटी रही हीराबाई

एक बार जंगल में लकड़ियां काटने गई महिलाओं को पुलिसकर्मियों ने धमकाया और बदसलूकी करने की कोशिश की। उस समय हीराबाई ने साहस दिखाते हुए पुलिसकर्मियों से अकेले मुकाबला किया और अपने साथ गई महिलाओं को सुरक्षित बचाकर वापस लाईं। इस घटना के बाद उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने का संकल्प लिया। वह उन सभी महिलाओं को वहां से सुरक्षित बचा ले आईं। इस घटना के बाद से वह अपने सिद्दी समुदाय की महिलाओं को हर स्थिति में मजबूत बनाने के लिए चिंतित रहने लगी। वह घटना महिलाओं की सुरक्षा को लेकर झकझोर कर रख देने वाली थी। तब चालीस बरस की उम्र उन्होंने आगा खान फाउंडेशन से जुड़कर महिलाओं के लिए काम करने में दिलचस्पी ज़ाहिर की।
महिलाओं को सशक्त करने का प्रयास
वह रेडिओ पर महिला मंडल के प्रोग्राम को सुनती और वहां से जानकारी हासिल करके घर-घर जाकर बताती थीं। कई बार तो उन्हें इसके लिए लोगों से अपशब्द भी सुनने को मिलता था। लगभग डेढ़ साल तक बिना किसी परिणाम के वह लगातार यह काम करती रहीं। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनके इस काम में आर्थिक तौर पर भी आगा खान संस्थान ने मदद की। उनके घर से इस काम को करने के लिए भी पूरा सहयोग मिला। उनके पति या घर के किसी सदस्य कभी उनके मार्ग में बाधक बन कर नहीं आए। उनके पति इब्राहीम लोबी उनके हर फैसले पर उनके साथ पाए गए। एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने इस जूनून के बारे में कहा है कि वो उन सभी महिलाओं के प्रशिक्षण के लिए तैयार हैं जो अपना जीवन सुधारना चाहती हैं। उन्होंने न केवल महिलाओं को जागरूक किया बल्कि उनके साथ-साथ काम भी करती रहीं। खेतों में फसल उगाने से लेकर पहले से काटे जाने वाले पेड़ों को भी बचाने में उन्होंने मदद की। उन्होंने रेडिओं पर पहली बार जैविक खाद को बनाने के बारे में सुना था।
हीराबाई इब्राहीम लोबी के समाज सेवा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान को देखते हुए उन्हें भारत सरकार द्वारा 2023 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।
इसके बाद वो महिलाओं के साथ मिलकर खाद बनाने का काम करने लगीं। हालांकि शुरुआत में बहुत निराशा हाथ लगी लेकिन फिर वक्त के साथ वह कामयाबी की ओर भी बढ़ी। उन महिलाओं को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खाद बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए वो भारतीय एग्रो इंडस्ट्रीज फाउंडेशन से भी जुड़ी जिसके बाद से 2004 में महिला विकास खंड की स्थापना की जिससे वह अपने साथी महिलाओं की मदद कर सके।

उन्होंने खेती, फल बागवानी और जैविक खाद बनाने की तकनीक महिलाओं को सिखाई। जैविक खाद बनाने की शुरुआत कठिन थी, लेकिन बाद में यह सफल रही। उन्होंने 700 से अधिक महिलाओं और अनगिनत बच्चों के जीवन को संवारा। 2004 में उन्होंने ‘महिला विकास खंड’ की स्थापना की, जिससे महिलाओं की सहायता बेहतर ढंग से की जा सके। आर्थिक सहयोग के लिए उन्होंने ‘भारतीय एग्रो इंडस्ट्रीज फाउंडेशन’ से भी संपर्क किया। हीराबाई को जब पुरस्कार के रूप में 500 डॉलर मिला तब उन्होंने सारा पैसा गांव के विकास में खर्च कर दिया था।
उन्हें दिए गए पुरस्कार
हीराबाई इब्राहीम लोबी के समाज सेवा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान को देखते हुए उन्हें भारत सरकार द्वारा 2023 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। यह सम्मान उनके दशकों लंबे संघर्ष और आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उनके प्रयासों की सराहना में दिया गया। गुजरात कृषि विश्वविद्यालय ने भी उन्हें कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सम्मान पत्र प्रदान किया। उन्होंने न केवल खुद खेती के नए तरीके अपनाए, बल्कि महिलाओं को भी जैविक खेती और खाद निर्माण में प्रशिक्षित किया, जिससे वे आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनके अधिकारों के लिए किए गए कार्यों के लिए महिला विश्व शिखर सम्मेलन में उन्हें विशेष रूप से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके उस संकल्प को मान्यता देता है, जिसके तहत उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को स्वरोजगार और बचत योजनाओं से जोड़ा। गुजरात सरकार ने 2005 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया। यह पुरस्कार उन्हें उनके जीवनभर के सामाजिक कार्यों और महिलाओं के उत्थान में किए गए प्रयासों के लिए दिया गया था।
जैविक खाद बनाने की शुरुआत कठिन थी, लेकिन बाद में यह सफल रही। उन्होंने 700 से अधिक महिलाओं और अनगिनत बच्चों के जीवन को संवारा।
हीराबाई इब्राहीम लोबी न केवल सिद्दी समुदाय की बल्कि पूरे समाज की एक प्रेरणादायक महिला थीं। उनका जीवन संघर्ष, साहस और समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत संघर्षों से आगे बढ़कर महिलाओं के हक, आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण के लिए जो कार्य किए, वे सदैव स्मरणीय रहेंगे। उनका योगदान सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने सैकड़ों महिलाओं और उनके परिवारों की जिंदगी बदलने का काम किया। कृषि, जैविक खेती, बचत योजनाओं और महिला अधिकारों के लिए उनका प्रयास आज भी एक मिसाल है। 24 जनवरी 2025 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनका कार्य और उनकी विरासत सदैव जीवित रहेगी। उनके द्वारा जलाया गया सशक्तिकरण का दीपक आने वाली पीढ़ियों को मार्ग दिखाता रहेगा। हीराबाई लोबी हमेशा याद रखी जाएंगी—एक ऐसी महिला के रूप में, जिसने अपने संघर्षों को शक्ति में बदलकर हजारों लोगों की ज़िंदगी रोशन की।