हाल ही में मेदांता हॉस्पिटल के आईसीयू में हुई डिजिटल रेप की घटना ने इस मुद्दे को चर्चा का विषय बना दिया है। पुलिस ने बताया कि मेदांता अस्पताल में काम कर रहे एक तकनीशियन को अस्पताल के गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में वेंटिलेटर पर मौजूद एक फ्लाइट अटेंडेंट के साथ यौन हिंसा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। पीटीआई के अनुसार, आरोपी ने कथित तौर पर आईसीयू रूम के अंदर कानूनी तौर पर ‘डिजिटल रेप’ का अपराध किया, जबकि उस समय वहां दो और नर्स मौजूद थीं। मीडिया में आई खबर मुताबिक, उन्होंने भी इस घटना को रोकने या हस्तक्षेप नहीं किया। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से केवल कानून के निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है।
यहां जीने के अधिकार को महज पशुवत अस्तित्व तक सीमित नहीं किया गया है बल्कि यह अनुच्छेद गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। अनुच्छेद 21 के दायरे में कुछ अधिकार भी शामिल हैं जिनमें से एक मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार भी है। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी भी तरह का क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार जो अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, जोकि भारतीय संविधान के अनुसार प्रतिबंधित है। हमारे देश में बच्चों (लड़के-लड़कियां जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम हो), किशोरियों, महिलाओं और वृद्ध महिलाओं के खिलाफ डिजिटल रेप जैसे जघन्य अपराध से जुड़े कई मामले लगातार सामने आ रहे हैं, जिन पर पूरी तरह से काबू पाना नामुमकिन सा लगता है।
पीटीआई के अनुसार, आरोपी ने कथित तौर पर आईसीयू रूम के अंदर कानूनी तौर पर ‘डिजिटल रेप’ का अपराध किया, जबकि उस समय वहां दो और नर्स मौजूद थीं।
क्या है डिजिटल रेप
कई सख्त कानूनों के बावजूद भी ऐसे गंभीर और जघन्य अपराध नहीं रुक रहे हैं। जहां आधुनिक युग पूरी तरह से डिजिटलीकरण की ओर जा रहा है, वहीं सवाल यह उठता है कि डिजिटल बलात्कार का क्या मतलब है? क्या यह किसी व्यक्ति के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से यौन हिंसा है जिसे कानून और कंप्यूटरीकृत भाषा में साइबर अपराध कहा जाता है या सर्वाइवर के साथ यौन संबंध बनाने की नीयत से मोबाइल फोन के जरिए एमएमएस बनाकर ब्लैकमेल करना है या कुछ और? “डिजिटल” शब्द का अर्थ अंग्रेजी शब्द ‘डिजिट’ से लिया गया है जिसका अर्थ हाथ की उंगली, अंगूठा और पैर की अंगुली है। ‘डिजिटल रेप’ शब्द का मतलब उंगलियों या पैर की उंगलियों का उपयोग करके किसी व्यक्ति के निजी अंगों में गैर-सहमति से प्रवेश करना है। इस संदर्भ में ‘डिजिटल’ शब्द का मतलब हाथ या पैर से है, प्रौद्योगिकी से नहीं।
बाहरी संपर्क से जुड़े यौन उत्पीड़न के रूपों के उलट, ‘डिजिटल रेप’ में आंतरिक, गैर-सहमति वाला प्रवेश शामिल होता है, जिसमें आमतौर पर हाथ की उंगलियों या पैर की उंगलियों का उपयोग किया जाता है। यही इसे यौन हिंसा का एक गंभीर रूप बनाता है। इस तरह के यौन हिंसा कई तरह के वातावरण में हो सकते हैं, जिनमें अस्पताल, निजी घर, सार्वजनिक स्थान या यहां तक कि पुलिस हिरासत में भी शामिल हैं। डिजिटल रेप से होने वाले आघात में अक्सर शारीरिक नुकसान और लंबे समय तक चलने वाला भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव दोनों शामिल होते हैं। यह आघात तब और भी गंभीर हो सकता है जब सर्वाइवर बेहोश हो, अचेत हो, शारीरिक रूप से संयमित हो या गहन चिकित्सा देखभाल के अधीन हो, जैसाकि मेदांता अस्पताल में हुआ था।
बाहरी संपर्क से जुड़े यौन उत्पीड़न के रूपों के उलट, ‘डिजिटल रेप’ में आंतरिक, गैर-सहमति वाला प्रवेश शामिल होता है, जिसमें आमतौर पर हाथ की उंगलियों या पैर की उंगलियों का उपयोग किया जाता है। यही इसे यौन हिंसा का एक गंभीर रूप बनाता है।
भारतीय क़ानून में डिजिटल रेप की अवधारणा
ऐतिहासिक रूप से, यौन अपराधों के बारे में भारतीय कानूनी और सामाजिक समझ एक संकीर्ण व्याख्या तक ही सीमित थी, जिसमें मुख्य रूप से केवल लिंग-योनि प्रवेश को ही बलात्कार माना जाता था। इस सीमित दृष्टिकोण ने डिजिटल बलात्कार सहित यौन उत्पीड़न के अन्य रूपों को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया, जिन्हें या तो अपर्याप्त रूप से स्वीकार किया गया या कम कानूनी गंभीरता के साथ व्यवहार किया गया। दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले से पहले डिजिटल रेप की भारत में कोई अवधारणा नहीं थी। सर्वाइवर की सहमति के बिना उंगलियों या पैर की उंगलियों का उपयोग करके प्रवेश की यौन हिंसा को केवल ईव टीज़िंग माना जाता था। दिल्ली सामूहिक गैंगरेप की घटना के बाद आपराधिक कानून संशोधन के लिए वर्मा समिति ने संसद में नए बलात्कार कानून पेश किए गए और डिजिटल रेप को आईपीसी की धारा 375 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 3 (बी) के तहत यौन अपराध के रूप में वर्गीकृत किया गया।

आईपीसी की धारा 375 का 2013 में किये गए संशोधन का उद्देश्य बलात्कार की परिभाषा के दायरे का विस्तार करना था। संशोधन के बाद, अब इसमें महिला की योनि, मुंह, गुदा या मूत्रमार्ग में लिंग, किसी बाहरी वस्तु या शरीर के किसी अन्य अंग द्वारा बिना सहमति के जबरदस्ती प्रवेश करने को शामिल किया गया। आईपीसी की धारा 375 (बी) के अनुसार एक पुरुष को ‘बलात्कार’ करने वाला माना जाता है यदि वह किसी भी हद तक किसी भी वस्तु या शरीर के किसी हिस्से को, लिंग के अलावा, किसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में डालता है या उसे अपने या अन्य लोगों के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है। भारतीय क़ानून में ‘डिजिटल रेप’ शब्द जेंडर नूट्रल है और सभी प्रकार के सर्वाइवर और अपराधियों पर लागू होता है। बलात्कार सर्वाइवर को आगे दो श्रेणियों में भाग किया गया है- वयस्क और नाबालिग। नाबालिग अपराधियों पर आईपीसी की धारा 375 और POCSO अधिनियम की धारा 3 (बी) दोनों के तहत मुकदमा चलाया जाता है, जबकि वयस्क डिजिटल बलात्कार के अपराधियों को आईपीसी की धारा 375 के तहत गिरफ्तार किया जाता है और उनपर मुकदमा चलाया जाता है।
भारतीय क़ानून में ‘डिजिटल रेप’ शब्द जेंडर नूट्रल है और सभी प्रकार के सर्वाइवर और अपराधियों पर लागू होता है। बलात्कार सर्वाइवर को आगे दो श्रेणियों में भाग किया गया है- वयस्क और नाबालिग।
डिजिटल रेप के कुछ मामले
साल 2019 में पश्चिम बंगाल निवासी अपनी बेटी से मिलने नोएडा गए थे। वह एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने गए थे, जहां व्यक्ति ने घर के बाहर खेल रही एक बच्ची को टॉफी का लालच दिया। टॉफी के नाम पर वह उसे अकेले कमरे में ले गया और डिजिटल तरीके से उस बच्ची के साथ बलात्कार किया। व्यक्ति पर पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया और उसे 50,000 रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। ग्रेटर नोएडा सेक्टर 46 के एक 80 वर्षीय व्यक्ति जोकि एक ग्राफिक आर्टिस्ट हैं, शिमला में अपनी वर्कशॉप भी स्थापित की है। उन्होंने शिमला में अपने एक कर्मचारी की 10 साल की बच्ची की पढ़ाई और देखभाल के लिए अपने पास रखा था क्योंकि उस बच्ची के पिता के पास अपनी बेटी की देखभाल के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। वर्ष 2021 में व्यक्ति के खिलाफ लड़की ने शिकायत की थी कि वह पिछले 7 सालों से उसके साथ डिजिटल रेप कर रहा है। वहीं, ग्रेटर नोएडा में वर्ष 2022 में एक एफआईआर दर्ज कराई गई थी, जिसमें एक बच्ची की मां ने अपने पति के खिलाफ़ बेटी के साथ डिजिटल रेप करने का आरोप लगाया था।
डिजिटल रेप के की एक सच्चाई यह भी है कि 80 फीसद से ज़्यादा डिजिटल रेप के मामले रिपोर्ट नहीं होते क्योंकि अपराधी कोई जान-पहचान का या क़रीबी होता है। हालांकि डिजिटल रेप अभी भी कम रिपोर्ट किये जाने वाला अपराध है, लेकिन इसे दुनिया भर के चिकित्सा पेशेवरों और मानवाधिकार समूहों ने शारीरिक अखंडता और व्यक्तिगत गरिमा के गंभीर उल्लंघन के रूप में पहचाना है।
2021 के एक अलग मामले में, दिल्ली की एक अदालत ने एक व्यक्ति को दो साल की बच्ची पर गंभीर यौन हमले के लिए 25 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने फैसला सुनाया कि मामला लिंग-योनि बलात्कार के बजाय डिजिटल प्रवेश से जुड़ा है, इसलिए कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। यदि ध्यान से विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि आम तौर पर, ज़्यादातर मामलों में डिजिटल रेप नज़दीकी रिश्तेदारों का किया जाता है। लगभग 29 फीसद मामले ऐसे व्यक्ति के दर्ज किए जाते हैं जो सर्वाइवर के साथ सामाजिक रूप से जुड़े होते हैं। केवल 1 फीसद मामले डिजिटल रेप के संबंध में ऐसे दर्ज किए जाते हैं जिसमें किसी अज्ञात व्यक्ति ने सर्वाइवर के साथ डिजिटल रेप किया हो।

डिजिटल रेप के की एक सच्चाई यह भी है कि 80 फीसद से ज़्यादा रेप के मामले रिपोर्ट नहीं होते क्योंकि अपराधी कोई जान-पहचान का या क़रीबी होता है। हालांकि डिजिटल रेप अभी भी कम रिपोर्ट किये जाने वाला अपराध है, लेकिन इसे दुनिया भर के चिकित्सा पेशेवरों और मानवाधिकार समूहों ने शारीरिक अखंडता और व्यक्तिगत गरिमा के गंभीर उल्लंघन के रूप में पहचाना है। साल 2013 के बाद से डिजिटल रेप की कानूनी मान्यता वास्तव में न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस अपराध को अलग-अलग श्रेणियों में बाँटकर, कानून इसकी गंभीरता और खासियत को स्वीकार करता है। इससे सर्वाइवर को बेहतर सुरक्षा मिलती है और अपराधियों पर सख्ती से कार्रवाई करना आसान होता है। इस तरह का वर्गीकरण पुलिस और कानून एजेंसियों को ऐसे मामलों को ज्यादा ठीक और प्रभावी तरीके से संभालने में मदद करता है।