समाजकानून और नीति आखिर कब तक न्यायालय बलात्कार का ‘हल’ आरोपी से शादी को मानेगा?

आखिर कब तक न्यायालय बलात्कार का ‘हल’ आरोपी से शादी को मानेगा?

ओडिशा उच्च न्यायालय ने बलात्कार के एक 26 वर्षीय कथित आरोपी को 22 वर्षीय सर्वाइवर से विवाह करने के लिए एक महीने की जमानत प्रदान की। न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उनका संबंध सहमति से था।

हाल ही में, ओडिशा उच्च न्यायालय ने बलात्कार के एक 26 वर्षीय कथित आरोपी को 22 वर्षीय सर्वाइवर से विवाह करने के लिए एक महीने की जमानत प्रदान की। न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उनका संबंध सहमति से था। न्यायमूर्ति एस के पाणिग्रही ने जमानत आदेश में कहा कि हालांकि आरोप अपने वैधानिक ढांचे में गंभीर हैं, लेकिन ये दो व्यक्तियों के बीच सहमति से बने रिश्ते से उत्पन्न हुए हैं, जो उम्र में बहुत करीब हैं और वर्तमान मामले के दायर होने से पहले एक-दूसरे के साथ निजी संबंध साझा करते थे। महिला की शिकायत पर साल 2023 में पोक्सो एक्ट के तहत उस व्यक्ति को जेल भेजा गया था, जिसमें उसने कहा था कि व्यक्ति ने शादी का वादा करके 2019 से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे।

उसने शिकायत की थी कि वह साल 2020 और 2022 में दो बार गर्भवती हुई और दोनों बार उसने उसे अबॉर्शन कराने के लिए मजबूर किया। हाल ही में व्यक्ति ने अंतरिम जमानत के लिए अदालत का रुख किया था, जिसमें दावा किया गया था कि उसके और सर्वाइवर के परिवार इस बात पर सहमत हो गए हैं कि याचिकाकर्ता व्यक्ति को महिला से शादी करनी चाहिए। इस बारे में अदालत ने कहा कि सुलह की संभावना, अबतक बनी पारिवारिक समझ और दोनों पक्षों की भविष्य की संभावनाएं चल रही जांच की अखंडता या अभियोक्ता की गरिमा से समझौता किए बिना अस्थायी स्वतंत्रता बढ़ाने के पक्ष में संतुलन को और अधिक झुकाती हैं।

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने बलात्कार के एक 26 वर्षीय कथित आरोपी को 22 वर्षीय सर्वाइवर से विवाह करने के लिए एक महीने की जमानत प्रदान की। न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उनका संबंध सहमति से था।

हालांकि यह पहला मामला नहीं है जिसमें किसी भारतीय न्यायालय ने इस प्रकार का फैसला सुनाया है। इससे पहले भी कई बार भारतीय न्यायालय इस प्रकार के रूढ़िवादी फैसले सुनाते रहे हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने इसी वर्ष मार्च के महीने में बलात्कार, शोषण और सर्वाइवर की तस्वीरें ऑनलाइन साझा करने के मामले में कथित आरोपी को इस शर्त पर जमानत दे दी कि वह जमानत पर बाहर आने के तीन महीने के भीतर उस महिला से शादी करेगा और सबूतों का गलत इस्तेमाल नहीं करेगा।

अदालतों के रूढ़िवादी फैसले और सामाजिक मानदंड

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी. देवदास ने साल 2015 में एक बलात्कारी को जमानत पर जेल से रिहा कर दिया ताकि वह सर्वाइवर के साथ ‘मध्यस्थता’ कर सके। साल 2020 में गुजरात उच्च न्यायालय के दिए गए एक फैसले में, पॉस्को अधिनियम की धारा 4, धारा 5 (1) और धारा 6 (1) के साथ-साथ आईपीसी की धारा 363, धारा 366 और धारा 376 (2) के तहत दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया गया। जबकि इस मामले में यह एक ज्ञात था कि बलात्कार जैसे अपराध में अदालतों द्वारा एफआईआर को रद्द नहीं किया जाता है। अदालत ने इस मामले में यह देखा कि रिश्तेदारों के बीचबचाव के कारण विवाह के रूप में एक ‘समझौता’ हुआ था। इसके बाद कथित आरोपी खिलाफ़ दर्ज मामला रद्द कर दिया गया था। 16 जून 2020 को, कथित अपराधी और केरल के पूर्व पादरी रॉबिन वडक्कमचेरी ने उस लड़की से शादी करने के लिए केरल उच्च न्यायालय से दो महीने की जमानत मांगी, जिसके बाद लड़की के साथ 16 साल की उम्र में बलात्कार किया गया और वह गर्भवती भी हो गई।

बलात्कार का हल शादी और समाज की मानसिकता

जब कोई अदालत यह सुझाव देती है कि बलात्कार के आरोपी को सर्वाइवर से शादी कर लेनी चाहिए, तो यह केवल एक न्यायिक टिप्पणी नहीं होती। यह पूरे समाज की मानसिकता को उजागर करती है। यह सोच बताती है कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराध को सिर्फ एक ‘समाज में इज्जत’ के मुद्दे के रूप में देखा जाता है, न कि एक व्यक्ति की एजेंसी की कमी, कॉन्सेंट को दरकिनार करना और मानवाधिकार के उल्लंघन के रूप में। ऐसे मामलों में उच्चतम न्यायालय भी पीछे नहीं है। साल 2021 में भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने बलात्कार के आरोपी से पूछा कि क्या वह सर्वाइवर से शादी करने के लिए तैयार है? वहीं महाराष्ट्र के एक नाबालिग के बार-बार बलात्कार, डरा-धमकाकर उसके चेहरे पर तेजाब फेंकने की धमकी देने के मामले में  जब आखिरकार सर्वाइवर ने मामले के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कराई, तो मुख्य न्यायाधीश ने कथित आरोपी से यह सवाल पूछकर समाज की मानसिकता जाहिर की। मुख्य न्यायाधीश की ओर से इस प्रकार का सवाल पूरे देश भर में आलोचना का विषय बन गया।

साल 2021 में भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने बलात्कार के आरोपी से पूछा कि क्या वह सर्वाइवर से शादी करने के लिए तैयार है?

न्यायालयों में संवेदनशीलता की कमी

हमारे देश में यह कोई अनोखी बात नहीं है। देशभर में बलात्कार सर्वाइवर को अक्सर बलात्कार के आरोपियों  के साथ विवाह करने के लिए मजबूर किया जाता है, और यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों, पंचायतों और माता-पिता के समर्थन से होता है। विवाह कभी भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए समाधान नहीं हो सकता है। साल 2021 के मामले में, मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी एक गलत संदेश देती है कि कोई भी व्यक्ति बलात्कार के बाद सर्वाइवर से शादी करके बच सकता है। बलात्कार एक गंभीर अपराध है जो सर्वाइवर को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तौर पर प्रभावित करता है, जिससे वह जीवन भर के लिए भी जूझ सकती है। इसके लिए अपराध और अपराधी के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है, और विवाह किसी भी परिस्थिति में बलात्कार के लिए सजा या भरपाई नहीं हो सकता है। 

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

न्यायाधीशों के इस तरह के बयानों से यह बात और पुष्ट होती है कि न्यायपालिका को लैंगिक मुद्दों पर संवेदनशील होने की जरूरत है। कुछ साल पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आदेश में एक फिल्म निर्देशक के खिलाफ़ बलात्कार की सजा को पलट दिया था, जिसमें कहा गया था कि सर्वाइवर का सख्त रूप में न ना कहना असल में सहमति का संकेत हो सकता है। एक अन्य मामले में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक आरोपी को इस शर्त पर जमानत दी थी कि उसने जिस महिला से यौन हिंसा की थी, उससे राखी बंधवाएगा। बलात्कारी आरोपी और सर्वाइवर महिला का विवाह एक प्रथा बनती जा रही है। इस तरह के आदेश यौन हिंसा की सर्वाइवर महिलाओं के आघात को कमतर आंकते हैं, और उन्हें और अधिक प्रभावित करते हैं। सर्वाइवर के पास अक्सर यह कहा जाता है कि उसकी इज्जत दांव पर लगी है।

कुछ साल पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आदेश में एक फिल्म निर्देशक के खिलाफ़ बलात्कार की सजा को पलट दिया था, जिसमें कहा गया था कि सर्वाइवर का ‘सख्त रूप में न ना कहना’ असल में सहमति का संकेत हो सकता है।

वैश्विक स्तर पर बलात्कार के आरोपी से विवाह का कानून

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

अगर हम दुनिया भर में बलात्कार से जुड़े कानूनों पर नज़र डालें, तो यह बात सामने आती है कि कानूनी प्रक्रिया में बलात्कार आरोपी से ही शादी एक समय पर दुनिया भर में मौजूद था। साल 1900 तक यह कानून लगभग सभी देशों में मौजूद था। ऐसा निर्णय में यह तर्क दिया जाता था कि सर्वाइवर और उसके परिवार को बलात्कार के कारण होने वाली बदनामी से सुरक्षा मिलेगी। प्राचीन समय में महिलाओं को संपत्ति के रूप में देखा जाता था। अगर किसी महिला के साथ बलात्कार होता था, तो उसे ‘क्षतिग्रस्त संपत्ति’ माना जाता था। ऐसे में अपराधी या तो मुआवज़ा देता था या सर्वाइवर से शादी करता था। यह शादी अक्सर सर्वाइवर की मर्ज़ी के बिना होती थी और उसे उसी अपराधी के साथ जीवन बिताने पर मजबूर किया जाता था।

बलात्कार एक गंभीर अपराध है जो सर्वाइवर को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तौर पर प्रभावित करता है, जिससे वह जीवन भर के लिए भी जूझ सकती है। इसके लिए अपराध और अपराधी के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है, और विवाह किसी भी परिस्थिति में बलात्कार के लिए सजा या भरपाई नहीं हो सकता है। 

20वीं सदी के दूसरे भाग में दुनिया भर में इन अमानवीय कानूनों को चुनौती दी जाने लगी। कई देशों ने ऐसे कानूनों को खत्म किया, क्योंकि ये न्याय की भावना और मानवाधिकार के खिलाफ़ थे। साल 1997 तक लगभग 15 लैटिन अमेरिकी देशों में यह कानून मौजूद था, जिसमें अपराधी शादी के ज़रिए सज़ा से बच सकता था। लेकिन 2017 तक लगभग सभी ने ऐसे कानूनों को रद्द कर दिया। इसके बावजूद, समाज में यह मानसिकता बनी हुई है कि बलात्कारी से शादी करना सर्वाइवर का ‘सम्मान’ बच सकता है।

इस सोच का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि अपराधी को संरक्षण मिल जाता है और सर्वाइवर को ज़िंदगी भर उसी के साथ रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ये भी समझने की जरूरत है कि बलात्कार एक गंभीर अपराध है जिसे महिला के सम्मान से जोड़ा जाना भी रूढ़िवादी और पितृसत्तमक मानसिकता है। बलात्कार आरोपी से शादी करवाने जैसी सोच और कानून न्याय नहीं, बल्कि अन्याय का रूप है। यह अपराधी को बचाते हैं और सर्वाइवर के मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है। इसलिए, इस सोच को जड़ से मिटाने की जरूरत है।

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