समाजकानून और नीति ‘आदर्श भारतीय पत्नी’: मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय की टिप्पणी और पितृसत्ता को बढ़ावा

‘आदर्श भारतीय पत्नी’: मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय की टिप्पणी और पितृसत्ता को बढ़ावा

पत्नी ने एक 'आदर्श महिला' के रूप में कैसे व्यवहार किया, इस पर आगे विस्तार से बताते हुए, अदालत ने कहा कि परित्याग के दर्द के बावजूद, पत्नी अपने पत्नी धर्म में दृढ़ रही। अपने पति की अनुपस्थिति के बावजूद, वह अपने ससुराल वालों के प्रति समर्पित रही।

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पति के दशकों तक त्याग को सहन करने वाली ‘आदर्श भारतीय पत्नी’ की सराहना की। अदालत ने कहा कि यह एक अनोखा मामला है जो एक विशिष्ट भारतीय महिला के रूप में पत्नी की निष्ठा को दिखाता है, जो अपने पारिवारिक जीवन को बचाने के लिए अपना पूरा प्रयास करती है। अदालत की इस टिप्पणी द्वारा मनुवाद की संस्कृति को दोहराया जा रहा है जबकि हम रोज़ाना दहेज हत्या और यौन हिंसा के मामले देखते हैं। हाल ही में एक तलाक के मामले में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक ऐसे दंपत्ति के मामले की सुनवाई करते हुए बताया कि एक ‘आदर्श भारतीय पत्नी’ कैसी होनी चाहिए, जहां पति ने लगभग दो दशकों से अपनी पत्नी को छोड़ रखा था। न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और विनोद कुमार द्विवेदी की पीठ पति के निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने उसे उसकी पत्नी से तलाक देने से इनकार कर दिया था।

क्या है पूरा मामला

तस्वीर साभार : फेमिनिज़म इन इंडिया

इंदौर के पिपलदा गाँव में हिंदू रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के अनुसार पति-पत्नी का विवाह हुआ। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी उसे पसंद नहीं करती और उसने वैवाहिक संबंधों में भी कोई रुचि नहीं दिखाई। उसने यह भी दावा किया कि गर्भवती होने पर वह खुश नहीं थी, बच्चे के जन्म के बाद अपने माता-पिता के घर चली गई और उसके साथ रहने से इनकार कर दिया। वहीं दूसरी ओर, पत्नी ने पति द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन किया। पत्नी ने कहा कि उसके पति ने तलाक के लिए झूठे आधार गढ़े हैं और वह हमेशा अपने वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने के लिए तैयार थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति ने उससे दूर रहते हुए एक महिला सहकर्मी के साथ प्रेम संबंध बनाए थे। दोनों पक्षों को सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि पति के चले जाने के बाद भी, पत्नी अपने ससुर, सास, देवर और ननद के साथ एक संयुक्त हिंदू परिवार के सदस्य के रूप में रह रही थी। पति की अनुपस्थिति के बावजूद, उसने अपना ससुराल नहीं छोड़ा। अदालत ने आगे कहा कि पति का कोई भी परिवार का सदस्य उसका समर्थन करने के लिए अदालत में पेश नहीं हुआ, जिससे यह ‘पूरी तरह साबित होता है’ कि उसकी पत्नी पर उसके लगाए गए आरोप झूठे हैं।

एक तलाक के मामले में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक ऐसे दंपत्ति के मामले की सुनवाई करते हुए बताया कि एक ‘आदर्श भारतीय पत्नी’ कैसी होनी चाहिए, जहां पति ने लगभग दो दशकों से अपनी पत्नी को छोड़ रखा था।

अदालत का ‘आदर्श भारतीय पत्नी’ की प्रशंसा

पति की तलाक की याचिका को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि पति को अपनी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के प्रति अपनी उपेक्षा और अपमानजनक व्यवहार का लाभ नहीं उठाने दिया जा सकता, जो अभी भी अपने ससुराल में इस उम्मीद में रह रही है कि एक दिन उसके पति को सद्बुद्धि आएगी और वह उसके साथ फिर से रहने लगेगा। अदालत ने पत्नी के आचरण की भी सराहना की और उसे एक ‘आदर्श भारतीय पत्नी’ के रूप में सराहा। अदालत ने कहा कि यह एक अनोखा मामला है जो एक विशिष्ट भारतीय महिला के रूप में पत्नी की निष्ठा को दिखाता है, जो अपने पारिवारिक जीवन को बचाने के लिए अपना पूरा प्रयास करती है। अदालत ने कहा कि हिंदू अवधारणाओं के अनुसार, विवाह एक पवित्र, शाश्वत और अटूट बंधन है। एक आदर्श भारतीय पत्नी, अपने पति द्वारा त्याग दिए जाने पर भी, शक्ति, गरिमा और सदाचार का प्रतीक बनी रहती है। उसका आचरण धर्म, सांस्कृतिक मूल्यों और वैवाहिक बंधन की पवित्रता में निहित होता है।”

अदालत द्वारा मनुवादी संस्कृति की सराहना 

 तस्वीर साभार: रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

पत्नी ने एक ‘आदर्श महिला’ के रूप में कैसे व्यवहार किया, इस पर आगे विस्तार से बताते हुए, अदालत ने कहा कि परित्याग के दर्द के बावजूद, पत्नी अपने पत्नी धर्म में दृढ़ रही। अपने पति की अनुपस्थिति के बावजूद, वह अपने ससुराल वालों के प्रति समर्पित रही। वह उनकी देखभाल और स्नेह से सेवा कर रही है। वह अपने कष्टों का उपयोग सहानुभूति के लिए नहीं करती। इसके बजाय, उसने इसे अपने भीतर प्रवाहित किया, जो हिंदू आदर्श को दर्शाता है कि महिला शक्ति है – कमज़ोर नहीं, बल्कि अपने धैर्य और अनुग्रह में विनम्र और शक्तिशाली है। उसने अपने विवाह और परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी की भावना को कड़वाहट या निराशा से कम नहीं होने दिया। वह न तो अपने पति की वापसी की भीख मांगती है, न ही उसे बदनाम करती है, बल्कि अपने शांत धैर्य और नेक आचरण से अपनी ताकत का परिचय देती है।

अदालत ने कहा कि यह एक अनोखा मामला है जो एक विशिष्ट भारतीय महिला के रूप में पत्नी की निष्ठा को दिखाता है, जो अपने पारिवारिक जीवन को बचाने के लिए अपना पूरा प्रयास करती है। अदालत ने कहा कि हिंदू अवधारणाओं के अनुसार, विवाह एक पवित्र, शाश्वत और अटूट बंधन है।

उसने यह सुनिश्चित किया है कि उसके कर्मों, शब्दों या कार्यों से उसका मायका और ससुराल कलंकित न हो। पीठ ने कहा कि यहां तक कि जब उसे अकेला छोड़ दिया गया, तब भी उसने मंगलसूत्र या सिंदूर नहीं छोड़ा – जो उसके विवाह के प्रतीक हैं, क्योंकि उसके लिए विवाह एक अनुबंध नहीं, बल्कि एक संस्कार है। अदालत की ये टिप्पणियाँ और विस्तार पितृसत्तात्मक सोच का प्रमाण देते हैं। पितृसत्तात्मक सोच के अनुसार महिला को हर हाल में पतिव्रता होना चाहिए। फिर चाहें पति उसका सम्मान करे या न करे। महिला को अपने पति के प्रति पूर्णरूप से समर्पित होना चाहिए।

मनुवादी संस्कृति को बढ़ावा 

तस्वीर साभार : फेमिनिज़म इन इंडिया

वर्तमान समय में अदालत की ओर से आये ये शब्द मनुवाद को बढ़ावा देते हैं। दशकों से चली आ रही मनुवादी सोच ने महिलाओं के अधिकारों का दमन करने और उन्हें गरिमा से जीवन जीने के उनके अधिकार से दूर रखा है। मनुस्मृति के पांचवें अध्याय के 148वें श्लोक में लिखा है कि एक लड़की हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए, पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए, किसी भी स्थिति में एक महिला आज़ाद नहीं हो सकती। मनुसमृति के इस श्लोक के अनुसार एक महिला कभी स्वतंत्र रूप से नहीं जी सकती। उसे हमेशा पुरुषों पर निर्भर रह कर जीना होगा। 

मनुस्मृति को लेकर समय-समय पर विवाद उठते रहते हैं। महिलाओं के बारे में मनु की सोच बहुत अधिक बंधी हुई है। मनु ने महिलाओं को हमेशा एक आश्रित और नीच प्राणी के रूप में चित्रित किया है। इस चित्रण ने महिलाओं के अपमान को उजागर किया गया है, जिसे निरंतर संरक्षण और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है – शुरुआत में पिता या भाई द्वारा और बाद में पति और पुत्र द्वारा। पितृसत्तात्मक मूल्यों का निर्लज्ज उत्थान इस तथ्य से प्रदर्शित होता है कि पुरुषों (विशेषकर ब्राह्मणों) को निर्देश दिया गया है कि वे पतिविहीन महिलाओं से भोजन ग्रहण न करें।

मनुस्मृति को लेकर समय-समय पर विवाद उठते रहते हैं। महिलाओं के बारे में मनु की सोच बहुत अधिक बंधी हुई है। मनु ने महिलाओं को हमेशा एक आश्रित और नीच प्राणी के रूप में चित्रित किया है।

इस मामले में यदि पत्नी पति के द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद अपने मायके चली जाती या मंगलसूत्र उतार देती तो क्या वो पत्नी चरित्रहीन हो जाती ? या यदि वह पत्नी अपने पति के घर वालों को छोड़ देती या उनकी सेवा न करती तो क्या वह एक बुरी पत्नी कहलायी जाती ? क्या एक पत्नी का चरित्र उसके पतिव्रता होने या मंगलसूत्र धारण करने या पति द्वारा त्याग दिए जाने के पश्चात भी पति के घर में ही पड़े रहने से सही साबित होता है? ऐसा क्यों है हमेशा पत्नियों को ही अग्निपरिक्षा में उतारा जाता है? उस पति के चरित्र के बारे में क्यों कोई बात नहीं की गयी जोकि एक पत्नी के होते हुए भी दूसरी स्त्री के साथ सम्बन्ध में रहा?

अदालत ने उस पति को क्यों नहीं धिक्कारा जिसने अपनी पत्नी को इतने वर्षों तक त्यागा? अदालत की ऐसी टिप्पणियां समाज में बुरा प्रभाव छोड़ती हैं। यह टिप्पणियां पत्नियों को यह समझाती हैं कि तुम्हारे साथ चाहे कितना भी गलत क्यों न हो तुम्हें पति का साथ नहीं छोड़ना। क्या एक महिला का कोई सम्मान या गरिमा नहीं होती है ? क्या एक महिला का कोई जीवन नहीं है सिवाए ससुरालियों की सेवा के ? इस मामलें में पत्नी को पति द्वारा 8 साल तक त्यागा गया। वे आठ साल उस पत्नी ने कैसे काटे होंगे और वह इन सालों में किन-किन अभावों से गुज़री होगी, इसका कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता है।

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