इंटरसेक्शनलजाति अंतरधार्मिक और अंतरजातीय जोड़ों के लिए ‘सेफ हाउस’ के क्या हैं मायने?

अंतरधार्मिक और अंतरजातीय जोड़ों के लिए ‘सेफ हाउस’ के क्या हैं मायने?

समाज में अंतरजातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों को लेकर जिस किस्म का नकारात्मक रवैया है। उसकी वजह से कई मर्तबा उन्हें अपने ही परिवार के लोगों और समाज के ठेकेदारों से छिपते-छिपाते हुए रहना पड़ता है।

एक सुरक्षित घर किसी भी इंसान की बुनियादी ज़रूरत में शामिल होता है। लेकिन अपने लिए एक सुरक्षित घर का बंदोबस्त कर पाना हर किसी के लिए इतना आसान नहीं होता। हाशिये में रह रहे समुदाय के लोगों के लिए तो यह एक चुनौतीपूर्ण काम है ही, साथ ही अंतरधार्मिक जोड़ों के लिए भी यह काफी मुश्किल भरा होता है। समाज में अंतरजातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों को लेकर जिस किस्म का नकारात्मक रवैया है। उसकी वजह से कई मर्तबा उन्हें अपने ही परिवार के लोगों और समाज के ठेकेदारों से छिपते-छिपाते हुए रहना पड़ता है। इंडिया टुडे में छपे पहले सकल घरेलू व्यवहार (जीडीबी) सर्वेक्षण के अनुसार , 61 फीसदी लोग अंतर्धार्मिक विवाहों के विरोध में थे। वहीं सर्वेक्षण में शामिल 56 फीसदी लोगों ने अंतरजातीय शादियों का भी विरोध किया। इसी समस्या को देखते हुए पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने अंतरजातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों की सुरक्षा के लिए सेफ हाउस यानी ‘सुरक्षित घर’ नाम से एक पहल की। इस पहल के तहत ऐसे जोड़ों के लिए सरकारी गेस्ट हाउस में और सर्किट हाउस में कमरे आरक्षित किए जाने का प्रावधान किया। 

इसके अलावा, ऐसे जोड़ों को तुरंत सहायता प्रदान करने के लिए एक हेल्पलाइन नम्बर भी जारी किया गया। जोड़े इस हेल्पलाइन का उपयोग सुरक्षा संबंधी चिंताओं या हिंसा की शिकायत करने और उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को ऐसे जोड़ों के लिए सुरक्षात्मक उपाय लागू करने का निर्देश दिया था और महाराष्ट्र सरकार की यह पहल ऐसे ही उपाय का एक हिस्सा है। महाराष्ट्र के अलावा, पंजाब और हरियाणा ने भी ऐसे जोड़ों के लिए ‘सुरक्षित घर’ की पहल की है। देखा जाए तो यह संख्या अभी काफी कम है और अन्य राज्यों को भी इस तरह की पहल करनी चाहिए। यह तो हुई राज्यों की पहल लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी समझना चाहिए कि ऐसे जोड़ों के लिए असल में सुरक्षित घर के मायने क्या हैं, अपने लिए सुरक्षित घर तलाशने में उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और वे सरकार से इस मामले में किस तरह की मदद की अपेक्षा करते हैं । इन मामलों में उनके विचार समझने के लिए फेमिनिज्म इन इंडिया ने ऐसे कुछ जोड़ों से बात की।  

मेरे लिए सुरक्षित घर केवल एक भौतिक जगह नहीं है, यह एक ऐसी जगह होनी चाहिए जहां दोनों साथी बिना किसी डर, लोगों के जजमेंट और शत्रुतापूर्ण रवैये के बिना रह सकें। जहां हम मकान मालिकों, पड़ोसियों की तरफ से भेदभाव की चिंता किए बगैर अपने धर्म का पालन कर सकें और अगर हम अपनी धार्मिक आस्थाओं का पालन न करना चाहें तो वो भी कर सकें।

सुरक्षित घर’ के मायने

शाहज़ेब अपनी पत्नी पायल के साथ फिलहाल दिल्ली में रहते हैं। उनकी शादी को सात साल हो चुके हैं। अंतरधार्मिक लोगों के लिए सुरक्षित घर के मायने पूछने पर शाहज़ेब कहते हैं, “मेरे लिए सुरक्षित घर केवल एक भौतिक जगह नहीं है, यह एक ऐसी जगह होनी चाहिए जहां दोनों साथी बिना किसी डर, लोगों के जजमेंट और शत्रुतापूर्ण रवैये के बिना रह सकें। जहां हम मकान मालिकों, पड़ोसियों की तरफ से भेदभाव की चिंता किए बगैर अपने धर्म का पालन कर सकें और अगर हम अपनी धार्मिक आस्थाओं का पालन न करना चाहें तो वो भी कर सकें। सुरक्षा में भावनात्मक सुरक्षा, कानूनी संरक्षण और सामाजिक स्वीकृति शामिल है। सही मायने में सुरक्षित घर वही होता है जहां हमारे रिश्ते के प्रति सम्मान महसूस हो और हम अपनी पहचान छिपाने के लिए मजबूर न हों।” शाहज़ेब ने आगे बताया कि, “समय-समय पर ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां ऐसे जोड़ों पर हमले होते हैं या उन्हें बिना किसी वजह के किराए के मकान से निकाल दिया जाता है। उनकी पहचान उन्हें अलग नज़र से देखने वाले लोगों के लिए एक मुद्दा बन जाती है। सुरक्षित घर कानूनी तौर पर ही ऐसे जोड़ों के लिए सुरक्षा मुहैया होनी चाहिए, ताकि बिना वजह कोई उनके साथ हिंसा न कर सके।” 

इसी मसले पर दिल्ली के ही रहने वाले इमरान अली से बात करने पर वे कहते हैं, “मुझे खुद का घर ही सबसे सुरक्षित लगता है क्योंकि मुझे लगता है कि किराये के घर में रहने पर किसी न किसी मायने में मकान मालिक का आपके रहन-सहन में दखल रहता ही है। मैं जब दिल्ली आया था और मैंने रहने के लिए दिल्ली के लक्ष्मीनगर में किराए के घर की तलाश शुरू की तो मुझे किसी ने भी घर नहीं दिया। फिर किसी ने मुझे बताया कि आपको यहां कोई घर नहीं देगा क्योंकि आप मुस्लिम हो। तो मैं जैसा घर तलाश रहा था वैसा घर मुझे नहीं मिला और उसी समय मुझे समझ आया कि घर ढूंढना बड़ा मुश्किल काम है। फिर किसी तरह मैंने पैसे का बंदोबस्त करके सुरभि (उनकी पत्नी) से शादी से पहले ईएमआई पर अपना खुद का घर ले लिया।”

मुझे खुद का घर ही सबसे सुरक्षित लगता है क्योंकि मुझे लगता है कि किराये के घर में रहने पर किसी न किसी मायने में मकान मालिक का आपके रहन-सहन में दखल रहता ही है। मैं जब दिल्ली आया था और मैंने रहने के लिए दिल्ली के लक्ष्मीनगर में किराए के घर की तलाश शुरू की तो मुझे किसी ने भी घर नहीं दिया। फिर किसी ने मुझे बताया कि आपको यहां कोई घर नहीं देगा क्योंकि आप मुस्लिम हो।

सुरक्षित घर तलाश करने सामने आने वाली समस्याएं 

अंतरधार्मिक और अंतरजातीय जोड़ों के लिए घर तलाशना कई बार काफी जोखिम और असहजता भरा अनुभव होता है। इस बारे में शाहज़ेब बताते हैं, “किराये का मकान ढूंढने  के दौरान हमें ऐसे मकान मालिक मिले जिन्होंने यह जानने पर कि हम अलग-अलग धर्मों से हैं । दबी ज़बान में या खुलकर हमें घर देने में अपनी असहजता दिखाई। कुछ मामलों में, उन्होंने हमारी शादी के बारे में, जैसे कि क्या हमारे परिवारों ने इसे स्वीकार कर लिया है, और क्या हममें से किसी एक ने धर्म परिवर्तन कर लिया है जैसे सवाल भी पूछे। एक मकान मालिक ने हमें साफ-साफ कहा कि पड़ोसियों को कोई परेशानी न हो इसलिए वे एक ही धर्म वाले जोड़ों को प्राथमिकता देते हैं। कहीं-कहीं घर सुरक्षित था, लेकिन आसपास का माहौल अजीब सा था।” 

कुछ इसी तरह की मुश्किल हाल-फिलहाल में किराये का घर तलाशने की कोशिश करते समय इमरान और सुरभि को भी हुई। वैसे तो इमरान ने खुद का घर खरीद लिया है लेकिन उनकी पार्टनर का ऑफिस उनके वर्तमान घर से काफी दूर है, इसीलिए वे दोनों किराए का घर तलाश रहे थे लेकिन उन्हें घर नहीं मिल पाया। आखिरकार सुरभि ने डेली अप डाउन करने का फैसला किया। 

किराये का मकान ढूंढने  के दौरान हमें ऐसे मकान मालिक मिले जिन्होंने यह जानने पर कि हम अलग-अलग धर्मों से हैं ।दबी ज़बान में या खुलकर हमें घर देने में अपनी असहजता दिखाई। कुछ मामलों में, उन्होंने हमारी शादी के बारे में, जैसे कि क्या हमारे परिवारों ने इसे स्वीकार कर लिया है, और क्या हममें से किसी एक ने धर्म परिवर्तन कर लिया है जैसे सवाल भी पूछे।

सरकार से क्या हैं उम्मीदें

इस प्रकार के जोड़ों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने में और उनके लिए एक सुरक्षित घर मुहैया कराने में सरकार की एक अहम भूमिका हो सकती है। इस बारे में सरकार क्या-क्या कर सकती है यह पूछने पर शाहज़ेब कहते हैं, “सरकार को सख्त कानून बनाने चाहिए जिस तहत यह प्रावधान होना चाहिए कि मकान मालिक लोगों के धर्म के आधार पर उन्हें मकान किराये पर देने या बेचने में भेदभाव न कर सकें। इसके अलावा, जो जोड़े धमकियों और खतरे का सामना कर रहे हैं उनके लिए हेल्पलाइन होनी चाहिए। इसके अलावा, समाज में ऐसी शादियों को सामान्य शादियों की तरह देखे जाने के लिए जागरूकता के कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए और लोगों को संवेदनशील किया जाना चाहिए।” सरकार से अंतरधार्मिक जोड़ों की सुरक्षा के मुद्दे पर इमरान कहते हैं, “मुझे तो लगता है सरकार को जो करना चाहिए, वो उसका उल्टा कर रही है। अभी लव जिहाद का जो हल्ला मचा है उससे ऐसा नैरेटिव बन गया है कि मुस्लिम लड़कों का केवल यही काम रह गया है।” मुझे लगता है सरकार को सर्वधर्म समभाव के विचार को बढ़ावा देने की दिशा में कोशिश करनी चाहिए। कहीं भाषा, कहीं जाति तो कहीं धर्म के नाम पर लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है, लोगों को किराये का घर न देने की मानसिकता केवल धर्म पर नहीं रुकती। सरकार को इन मामलों को संज्ञान में लेते हुए ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।”

कुल मिलाकर देखा जाए तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लोगों को अंतरधार्मिक शादी की आज़ादी है। लेकिन जब हम हकीकत की दुनिया में देखते हैं तो पाते हैं कि ऐसे जोड़ों को कदम-कदम पर असुरक्षाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। घर, जो कि बुनियादी ज़रूरत है, इसे ढूंढना उनके लिए एक भावनात्मक रूप से थका देने वाली प्रक्रिया बन जाती है। ऐसे जोड़े लगातार डर और असुरक्षा महसूस करते है। अंतरधार्मिक और अंतरजातीय जोड़ों के लिए सुरक्षित घर सिर्फ रहने की जगह नहीं, बल्कि डर और भेदभाव से आज़ादी की जगह है। कुछ राज्यों में यह पहल अच्छी शुरुआत है, लेकिन अभी बाकी राज्यों को भी ऐसे कदम उठाने की ज़रूरत है। सरकार को ऐसे जोड़ों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून की व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही, समाज को भी अपनी सोच बदलनी होगी ताकि लोग धर्म या जाति के आधार पर दूसरों से भेदभाव न करें और ऐसे जोड़े बिना किसी डर के सम्मान और आज़ादी के साथ जीवन जी सकें। 

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