रात के अंधेरे में जलते घर, चीखते लोग, भागते बच्चे और राख में तब्दील होते मकान, यह दृश्य सोचकर ही रूह कांप उठती हैं। साल 2012 में तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के नाथम, पुराने और नए कोंडमपट्टी और अन्नानगर के दलित बस्तियों में हुई धर्मपुरी हिंसा की घटना ने इंसानियत पर हमेशा के लिए सवाल खड़े कर दिए। 9 नवंबर, 2012 तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में वन्नियार समुदाय के लोगों ने तीन दलित बाहुल्य इलाकों पर हमला कर दिया और लगभग 200 से अधिक दलित घरों में आग लगा दी। मीडिया रिपोर्ट अनुसार 268 घर आग की लपटों में आए जबकि प्रशासन की नजर से ये सामान्य घटना थी। इस घटना में लगभग 2500 से अधिक लोग प्रभावित हुए।
8 अक्टूबर 2012 को धर्मपुरी जिले की नर्सिंग की एक छात्रा ने एक दलित शख्स के साथ मंदिर में प्रेम विवाह किया। छात्रा कथित उच्च जाति वन्नियार समुदाय से थी। इस घटना के बाद इलाके में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया और वन्नियार समुदाय के लोगों ने बदले की भावना से दलितों के गांवों में लूटमार की और उनकी बस्तियों में आग लगा दी। इस घटना पर स्थानीय पुलिस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। कई पीड़ितों ने इस घटना को सुनियोजित बताते हुए पुलिस प्रशासन पर भी गंभीर सवाल भी उठाए।टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, छात्रा और दलित लड़के ने दूसरे दिन पुलिस उपमहानिरीक्षक से सुरक्षा की मांग भी की थी। पुलिस ने दंपत्ति को सुरक्षा का आश्वासन भी दिया था। लेकिन उच्च जाति का दबदबा के कारण सवर्ण जातियों ने अगले दिन ‘कंगारू’ अदालत का आयोजन किया। 4 नवंबर 2012 को इस अदालत ने दलित परिवार को आदेश दिया कि वो लड़की को उनके परिवार को वापस सौंप दें।
9 नवंबर, 2012 तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में वन्नियार समुदाय के लोगों ने तीन दलित बाहुल्य इलाकों पर हमला कर दिया और लगभग 200 से अधिक दलित घरों में आग लगा दी।
लेकिन लड़की ने शादी तोड़ने के आदेश को मानने से इनकार कर दिया और यह साफ कर दिया कि वह अपने पति के साथ ही रहेगी। गौरतलब हो कि ‘कंगारू कोर्ट’ एक ऐसी अदालत है जो औपचारिक कानूनी प्रणाली के बाहर काम करती है, जिसे अक्सर अनौपचारिक प्रक्रियाओं, पक्षपातपूर्ण निर्णयों या उचित प्रक्रिया की उपेक्षा के लिए जाना जाता है। इस शब्द का उपयोग उन स्थितियों को बताने के लिए किया जाता है, जहां न्याय निष्पक्ष रूप से नहीं किया जाता है, और जहां उचित कानूनी आधार या प्रक्रियाओं के बिना निर्णय लिए जाते हैं। इस फैसले का नतीजा ये हुआ कि लड़की के पिता की कथित तौर पर जातिगत दबाव के कारण आत्महत्या से मौत हो गई। इसके बाद इस घटना के मद्देनजर दंगे शुरू हो गए। लड़की के पिता के आत्महत्या से मौत के बाद इलाके में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया और इसी तनाव ने जल्द ही व्यापक हिंसा और दंगों की शक्ल ले ली।
200 से ज्यादा दलितों के घरों में लगाई गई आग

7 नवंबर 2012 को लगभग 1500 की संख्या में वन्नियार समुदाय के लोगों की एक भीड़ ने धर्मपुरी जिले की तीन दलित बस्तियों पर धावा बोल दिया। इन बस्तियों में नाथम, पुराने और नए कोंडमपट्टी और अन्नानगर शामिल थे और इस दंगे में 200 से ज़्यादा घरों को नष्ट कर दिया गया। चार घंटे तक चली इस लूटमार की वजह से बड़े पैमाने पर अशांति फैल गई। पुलिस पर आरोप लगे कि वह जातिवादी मानसिकता से ग्रसित थी और उन्होंने वन्नियार समुदाय का समर्थन किया। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि जिले में तीन दलित बस्तियों पर 7 नवंबर को हुआ हमला एक सुनियोजित अपराध था। इस हिंसा में 22 पड़ोसी गांवों से एक भीड़ को इकट्ठा किया गया था।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि जिले में तीन दलित बस्तियों पर 7 नवंबर को हुआ हमला एक सुनियोजित अपराध था। इस हिंसा में 22 पड़ोसी गांवों से एक भीड़ को इकट्ठा किया गया था।
इस पूरी घटना में जातीय नफरत तो थी ही, साथ ही राजनेताओं ने भी इस नफरत की आग को खूब हवा दी। ऐसी खबरें सामने आई कि इस दंगे में कथित तौर पर राजनीतिक पार्टी पाटाली मक्कल काची (पीएमके) का हाथ है। हालांकि, पीएमके की तरफ से इन आरोपों को सिरे से नकार दिया गया। साल 2012 में पीएमके पार्टी के एक विधायक ने मामल्लपुरम में आयोजित एक रैली में दलितों के खिलाफ़ उग्र और भड़काऊ भाषण भी दिया। ये रैली वन्नियार समुदाय के युवाओं की थी, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वन्नियार लड़की से शादी करने की इच्छा रखने वाले दूसरे समुदाय के लोगों की हत्या कर दी जानी चाहिए। इस भाषण से इलाके में हिंसा की चिंगारी फिर से सुगबुगाने लगी। हालांकि, पार्टी के नेता डॉ. रामदास ने इन आरोपों को नकार दिया था। लेकिन, यह भाषण आज भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद है, जिनमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि किस तरह से वन्नियार युवाओं को उकसाया जा रहा है। पीएमके नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस मामले को लेकर कहा कि लड़के ने लड़की पर यह शादी थोपी थी। हालांकि लड़की ने साफ तौर पर कई बार इस बात से इनकार किया है। यहां तक कि कंगारू कोर्ट के निर्णय के बाद भी वह लड़के के साथ रहने के लिए राजी थी।
लड़के की संदिग्ध अवस्था में मौत

साल 2012 में हुए दंगे के घाव अभी तक ठीक से भरा नहीं था कि जून 2013 में लड़की ने लड़के से अलग रहने का फैसला किया। सामाजिक दवाब के चलते कथित तौर पर उसे लगने लगा था कि उसके पिता की आत्महत्या से मौत उसके और लड़के के रिश्ते की वजह से हुई थी। इससे पहले 15 मार्च 2013 को लड़की की मां ने मद्रास कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें यह दावा किया गया था कि लड़के ने उनकी बेटी का अपहरण किया है। जून में लड़की अपनी मां से मिलने के लिए गई और 3 जुलाई को उसने ऐलान कर दिया कि लड़के के लिए उसके मन में कोई भावना नहीं रह गई है। उसके अगले ही दिन यानी 4 जुलाई, 2013 को धर्मपुरी गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज के पीछे कोयंबटूर रेलवे ट्रैक पर लड़के का शव पाया गया। स्थानीय पुलिस ने इसे आत्महत्या से मौत बताया। यह दावा किया गया कि लड़के ने कोयंबटूर से मुंबई जा रही कूआला एक्सप्रेस के सामने कूदा जिसके कारण उकी आत्महत्या से मौत हो गई। हालांकि, लड़के के परिवार ने इस दावे को पूरी तरह से नकार दिया और आरोप लगाया कि कथित तौर पर वन्नियार जाति के लोगों ने लड़के की हत्या की है और इसे आत्महत्या से मौत का नाम दिया गया है।
साल 2012 में हुए दंगे के घाव अभी तक ठीक से भरा नहीं था कि जून 2013 में लड़की ने लड़के से अलग रहने का फैसला किया। सामाजिक दवाब के चलते कथित तौर पर उसे लगने लगा था कि उसके पिता की आत्महत्या से मौत उसके और लड़के के रिश्ते की वजह से हुई थी।
घटना को दबाने के लिए, कई मामलों में रिपोर्ट्स के साथ हेर-फेर नई बात नहीं है। लेकिन इस मामले में असल में घटना क्या हुई, यह 13 सालों बाद भी साफ नहीं हुआ है। घटना के चार दिन बाद, जयललिता के नेतृत्व में एआईडीएमके सरकार ने लड़के की मौत के कारण को जानने के लिए जस्टिस एसआर सिंगरावेलु के नेतृत्व में एक आयोग के गठन का आदेश दिया। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, सिंगारवेलु आयोग ने साल 2019 में अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें दावा किया गया कि लड़का कथित तौर पर अवसाद से गुजर रहा था जिसके कारण उसकी आत्महत्या से मौत हो गई। वहीं, नवंबर 2016 में, एक सीआईडी रिपोर्ट ने दावा किया कि नशे के कारण लड़के की आत्महत्या से मौत हुई। इस घटना को हुए करीब 13 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। लेकिन उसका परिवार अब भी न्याय के इंतजार में हैं।
इस मामले में करीब 92 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन सजा किसी को नहीं मिली। यह घटना बताती है कि आज भी कैसे भारत में हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ दबाने की कोशिश की जाती है। यह भले ही एक घटना हो, लेकिन ऐसी हजारों घटनाएं आए दिन हम अखबारों में पढ़ते हैं। जहां लड़के को प्यार की सजा अपनी जान देकर चुकानी पड़ी और लड़की को अपने पिता को खोकर। इस घटना में शासन-प्रशासन की संलिप्तता ने लोगों के अंदर न्याय के प्रति विश्वास को और कमजोर कर दिया। लेकिन एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते ये हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम जाति व्यवस्था के खिलाफ डटकर खड़े रहे और इसका पुरजोर विरोध करें।