आज के आधुनिक दौर में जब भी जातिगत भेदभाव के बारे में बात की जाती है, तो बहुत से लोगों का एक ही जवाब होता है, कि आजकल कहां होता है ये सब, ये तो पुराने जमाने में हुआ करता था। लेकिन हमारे देश में जातिगत भेदभाव आज भी सामाजिक रूढ़िवादी सोच की रीढ़ बना हुआ है। भले ही इसके खिलाफ समय-समय पर कई कानून और नीतियां सामने आती रही हों, लेकिन हकीकत यह है कि हम अब तक इस जातिवादी ढांचे और उसके प्रभाव से बाहर नहीं निकल पाए हैं। जाति के नाम पर होने वाली हिंसा और भेदभाव न केवल हाशिये पर रह रहे समुदायों के दैनिक जीवन को कठिन बनाते हैं, बल्कि उनके मानवाधिकारों का भी हनन करते हैं। इस साल ऐसी कई जातिवादी घटनाएं सामने आईं हैं, जो सुर्ख़ियों में रहीं । इस लेख में हम ऐसी ही कुछ घटनाओं पर बात करेंगे, जहां हाशिये पर रह रहे समुदाय के व्यक्तियों को हिंसा का सामना करना पड़ा और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ।
1- जूनागढ़ में दलित समुदाय के एक युवक को मूंछ रखने के कारण पीटा गया
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, जूनागढ़ जिले के पिपली गांव में रहने वाले एक 27 वर्षीय दलित युवक की मोटरसाइकिल रास्ते में खराब हो गई थी, जिसके बाद वह उसे खींचकर ले जा रहा था। इसी दौरान कथित स्वर्ण समुदाय के कुछ लोगों ने उसे रोक लिया। उसकी मूंछों और दाढ़ी को लेकर आपत्ति जताई गई, उसे पीटा गया और जातिवादी गालियां भी दी गई। यहां तक कि उसे यह कहकर धमकाया गया कि वह कथित ऊंची जाति के लोगों की तरह दिखने की कोशिश न करे। यह पूरी घटना जातिगत अपमान और हिंसा से जुड़ी हुई है। यह घटना दिखाती है कि जातिवाद केवल व्यक्तिगत पूर्वाग्रह नहीं, बल्कि एक गहराई से जमी हुई सामाजिक मानसिकता है, जहां हाशिए पर रह रहे समुदाय के लोगों को आज भी यह तय नहीं करने दिया जाता है कि वो कैसे अपना जीवन जीना चाहते हैं। यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि हाशिए पर खड़े हर समुदाय के आत्मसम्मान और समान नागरिकता के अधिकार पर हमला है।
2 – दो दलित पुरुषों को घास खाने और नाले का पानी पीने के लिए मजबूर किया गया
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, इस साल गंजाम जिले के एक गांव में दो दलित युवक अपने परिवार के शादी समारोह में दहेज के रूप में देने के लिए एक गाय और दो बछड़े खरीद कर एक मालवाहक ऑटो-रिक्शा पर अपने गांव ला रहे थे। इसी दौरान कुछ स्थानीय लोगों ने उन पर मवेशी तस्करी के झूठे आरोप लगाए और उन्हें पकड़कर बेरहमी से प्रताड़ित किया, उनके आधे बाल मुंडवा दिए गए , लगभग 2 किलोमीटर तक उन्हें घुटनों के बल चलाया गया और उन्हें घास खाने और नाले का पानी पीने के लिए मजबूर किया गया।
कथित हमले में उन्हें सिर और शरीर के अन्य हिस्सों पर चोटें लगने के बावजूद, दोनों सर्वाइवर किसी तरह मौके से भागने में कामयाब रहे और अपने गांव पहुंच गए। स्थानीय अस्पताल में प्रारंभिक उपचार के बाद, उन्होंने धारकोट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवानी चाही तो पुलिस की ऒर से उनकी रिपोर्ट को दर्ज़ करने में भी देरी की गई। इस घटना से साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि कहीं न कहीं आज भी कानून और प्रशाशन की ओर से हाशिए पर रह रहे लोगों की समस्याओं को अनसुना और अनदेखा किया जाता है। जबकि कानून सबके लिए बराबर है, फिर भी कुछ लोगों के लिए इस तक पहुंच आज भी सीमित या न के बराबर बनी हुई है।
3 – कर्नाटक में ऑनर किलिंग की घटना
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, हाल ही में कर्नाटक में एक 20 वर्षीय युवती की ऑनर किलिंग का मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि, मृतक महिला ने अपने परिवार के विरोध के बावजूद मई में अपने गांव में दूसरी जाति के व्यक्ति से शादी कर ली थी और डर के कारण दंपति अपने गाँव से बाहर रह रहे थे। वे इसी महीने की शुरुआत में गांव लौटे थे। तो महिला के परिवार के कुछ सदस्यों ने जो उसकी अंतरजातीय शादी के खिलाफ थे, कथित तौर पर उस पर और उसके पति पर हमला कर दिया। हमले के दौरान महिला को गंभीर चोटें आईं। बताया जा रहा है कि वह छह महीने की गर्भवती थी और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। यह घटना साफ तौर पर दिखाती है कि आज भी कई हिस्सों में महिलाओं को अपने जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं है और अगर कोई महिला ऐसा करना भी चाहती है तो उसे इसकी कीमत आपनी जान देकर चुकानी पड़ती है ।
4- उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में घरेलू हिंसा और जातिगत हिंसा का मामला
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, हाल ही में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले से एक मामला सामने आया है। एक 20 वर्षीय महिला ने आरोप लगाया कि शादी के बाद उसके पति और ससुराल वालों ने उस पर लगातार अपनी जाति बदलने का दबाव बनाया। जब उसने इस दबाव का विरोध किया, तो उसे शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ा। उसे बार-बार अपमानित किया गया, जाति के आधार पर ताने दिए गए और मारपीट की गई और उसे घर से बाहर निकाल दिया गया। यहां तक कि उसके पति ने उससे कहा कि वह उसके साथ रहना चाहती है तो अपनी जाति बदल ले । शिकायत के बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और जांच शुरू की गई है ।
5 – तमिलनाडु के एक स्कूल में जातिगत भेदभाव
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, हाल ही में तमिलनाडु के एक सरकारी स्कूल से जातिगत भेदभाव का मामला सामने आया है, जहां अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाली 35 वर्षीय एक महिला कुक ने आरोप लगाया कि उसे उसकी जाति के कारण लगातार अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल में मिड-डे मील योजना के तहत कार्यरत इस महिला के बनाए हुए भोजन से कुछ कथित उच्च जाति के माता-पिता और कर्मचारियों को आपत्ति थी । उन्होंने महिला पर स्वेच्छा से नौकरी छोड़ने और काम से हटने का दबाव बनाया। यह घटना स्कूल जैसे संवेदनशील और सार्वजनिक संस्थान में व्याप्त जातिवादी मानसिकता को सामने लाती है, जहां समानता और समावेशन की शिक्षा दी जानी चाहिए, वहां एक कामकाजी महिला को उसकी जाति के आधार पर बाहर करने की कोशिश करना न केवल श्रम अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह संविधान में निहित समानता के अधिकार के भी खिलाफ है।
6 – लखनऊ के काकोरी स्थित एक धार्मिक स्थल से जुड़ा हुआ एक मामला
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, लखनऊ के काकोरी में एक धार्मिक स्थल में घटना उस समय घटित हुई, जब एक 65 वर्षीय वृद्ध दलित व्यक्ति, जो स्वास्थ्य कारणों से अस्वस्थ थे, उनसे गलती से मंदिर की सीढ़ियों में पेशाब हो गया । इसके तुरंत बाद, वहां मौजूद कुछ व्यक्तियों ने उन्हें न केवल मानसिक और शारीरिक रूप से अपमानित किया, बल्कि बहुत अपमानजनक और अमानवीय तरीका अपनाते हुए वृद्ध व्यक्ति को उस पेशाब को चाटने और मंदिर परिसर को साफ करने के लिए मजबूर किया। इस मामले ने न केवल स्थानीय समुदाय में चिंता पैदा की, बल्कि मानवाधिकार और सामाजिक न्याय संगठनों का ध्यान भी इस अमानवीय व्यवहार की ओर खींचा।
7- छत्तीसगढ़ में त्योहार के दौरान दलित व्यक्तियों पर हमला
इस साल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक धार्मिक त्योहार के मौके पर जातिगत हिंसा की एक गंभीर घटना सामने आई।इस घटना में दो दलित व्यक्तियों को जातिगत हिंसा का सामना करना पड़ा । क्योंकि वे स्थानीय परंपरागत उत्सव में हिस्सा लेने और कथित ऊंची जाति के धार्मिक स्थानों पर जाने की कोशिश कर रहे थे। उत्सव स्थल पर मौजूद कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया और शारीरिक हमला किया, जिसमें पिटाई और अपमानजनक व्यवहार शामिल था। उन्होंने बाद में पुलिस को सूचना दी, लेकिन स्थानीय पुलिस ने एस सी / एस टी अत्याचार निवारण अधिनियम लागू नहीं किया, जिससे यह मामला जाति‑आधारित हिंसा और भेदभाव के गंभीर उदाहरण के रूप में सामने आया।
8 – केरल में प्रवासी मजदूर की पीट-पीटकर हत्या
बीते दिनों छत्तीसगढ़ के शक्ति जिले का एक 31 वर्षीय दलित प्रवासी मजदूर दिसंबर को काम की तलाश में पलक्कड़ आया था और एक निर्माण स्थल पर दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रहा था । बताया जा रहा है कि उसके साथ यह घटना वालयार के अट्टापल्लम ईस्ट में घटी, जहां कथित तौर पर कुछ निवासियों ने उस पर लाठियों से हमला किया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं। घटना के तुरंत बाद उसे गंभीर हालत में पलक्कड़ जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मृत्यु हो गई । लेकिन अपनी मृत्यु से पहले, उन्होंने ने कथित तौर पर अस्पताल के कर्मचारियों को बताया कि उन पर चोरी का आरोप लगाते हुए भीड़ ने हमला किया था।
केरल पुलिस ने कथित लिंचिंग के सिलसिले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। उन्हें स्थानीय अदालत में पेश किया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस ने कहा कि जांच आगे बढ़ने के साथ और भी गिरफ्तारियां होने की संभावना है। यह मामला न केवल पलक्कड़ जिले में सामाजिक सुरक्षा और कानून के सवाल खड़ा करता है, बल्कि दलित प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा और उनके मानवाधिकारों की रक्षा के दृष्टिकोण से भी गंभीर चिंता का विषय बन गया है। साल 2025 की जातिवादी घटनाएं साफ दिखाती हैं कि भारत में जातिवाद आज भी मौजूद है। दलित, महिलाओं और प्रवासी मजदूरों को अक्सर हिंसा, अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। ये घटनाएं बताती हैं कि कानून होने के बावजूद असमानता और मानवाधिकारों का उल्लंघन जारी है। समाज में बदलाव लाने के लिए सिर्फ नियम नहीं, बल्कि सोच बदलना, शिक्षा और न्याय सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है।

