समाजकानून और नीति #MenstruationBenefitBill: भारतीय संसद में पहली बार हुई पीरियड पर बात

#MenstruationBenefitBill: भारतीय संसद में पहली बार हुई पीरियड पर बात

भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब पीरियड से संबंधित कोई बिल संसद में पेश किया गया हो| वरना इस विषय को हमेशा मीडिया से लेकर राजनेता और बुद्धिजीवी से लेकर आमजन ‘संवेदनशील’ या फिर ‘शर्म’ का विषय मनाकर नज़रंदाज़ करते रहे है|

आकांक्षा सिन्हा

पीरियड, माहवारी या मासिकधर्म हमारे सभ्य समाज का एक ऐसा शब्द है जिसे हमारे यहाँ अशुद्ध या वर्जित माना जाता है, जिसके चलते हमारे देश में इससे जुड़ी जानकारी कम और भ्रांतियां ज्यादा है| इस दौरान लड़कियों और महिलाओं को कई शारीरिक परेशानियों से गुजरना पड़ता है| लेकिन इस दौरान उनके आराम का कोई खास व्यवहार-समझ हमारे समाज में नहीं है, क्योंकि इस विषय से पुरुषों को हम हमेशा दूर रखते है और महिलाएं खुद इसपर आपस में बात करने से कतराती है|

जब बात उस जमाने की होती थी कि जब नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या कम थी, तब इस ज़रूरी विषय पर पूरी चुप्पी होती थी और पीरियड के दौरान महिलाएं ऑफिस से अलग-अलग बहाने बताकर छुट्टी लिया करती थी| लेकिन आज के दौर में जब नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में इस विषय पर बात करना ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि महिलाओं के शरीर से ये प्राकृतिक प्रक्रिया सीधे तौर पर उनके स्वास्थ्य से जुड़ी होती है और जो उनके काम को भी प्रभावित करती है|

मेन्स्ट्रुएशन बेनिफ़िट बिल

इन दिनों पीरियड के दौरान ऑफिस में काम से छुट्टी मिलने की बात सुर्ख़ियों में है, जिसकी वजह है मेन्स्ट्रुएशन बेनिफ़िट बिल, 2017| इस बिल का प्रस्ताव कांग्रेस पार्टी के नेता निनॉन्ग एरिंग ने लोकसभा में रखा है| निनॉन्ग कांग्रेस पार्टी से अरुणाचल प्रदेश के सांसद है| भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब पीरियड से संबंधित कोई बिल संसद में पेश किया गया हो| वरना इस विषय को हमेशा मीडिया से लेकर राजनेता और बुद्धिजीवी से लेकर आमजन ‘संवेदनशील’ या फिर ‘शर्म’ का विषय मनाकर नज़रंदाज़ करते रहे है|

इस बिल में यह कहा गया कि सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वाली महिलाओं को दो दिन के लिए ‘पेड पीरियड लीव’ यानी पीरियड्स के दौरान दो दिन के लिए छुट्टी दी जानी चाहिए और इन छुट्टियों के बदले उनके पैसे नहीं काटे जाने चाहिए|

निनॉन्ग एरिंग ने बीबीसी से एक खास बातचीत में बताया कि उन्होंने अपने आस-पास के अनुभवों को देखकर लाने का ये बिल लाने का फ़ैसला किया|

पीरियड पर निनॉन्ग एरिंग की बेबाक राय

उन्होंने कहा, “मेरे परिवार में मेरी पत्नी और दो बेटियां हैं| मेरी पत्नी पीरियड्स में भयानक दर्द से गुज़रती है| मेरी बेटियां भी मुझसे माहवारी से जुड़ी दिक्कतों के बारे में बात करती हैं|

इसलिए ये बात हमेशा मेरे दिमाग में थी| एक दिन मैंने ख़बर पढ़ी कि मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी ने महिलाओं को पीरियड के पहले दिन छुट्टी देने का फ़ैसला किया है और यहीं से मेरे मन में बिल का विचार आया|

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में महिला से जुड़े हर मुद्दे को दबाने-छुपाने की साजिश हमेशा से की जाती रही है, जिसका खामियाजा पुरुष-महिला दोनों को ही भुगतना पड़ा है|

निनॉन्ग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि इस बिल पर समाज के एक बड़े तबके की तरफ विरोध होगा| उन्होंने कहा, “कुछ लोगों ने मुझसे यहां तक पूछा कि मैं महिलाओं का इतने पर्सलन मुद्दा उठाने वाला कौन होता हूं| क्या एक पुरुष औरतों की तकलीफ़ नहीं समझ सकता?

निनॉन्ग कहते हैं कि उन्होंने ये प्रस्ताव एक आदिवासी के तौर पर रखा है| उन्होंने कहा, “मैं उत्तर-पूर्व का एक आदिवासी हूं| हमारे यहां आदिवासी समाज में मासिक धर्म को बड़े ही सामान्य तरीके से लिया जाता है| यहां न तो इसे शर्मिंदगी का विषय समझा जाता है और न ही कोई इस बारे में बातचीत से कतराता है| भारत के बाकी हिस्सों में ख़ासकर उत्तर भारत में हालात बिल्कुल उलट हैं जहां मासिक धर्म के बारे में आज भी इशारों में और कानाफूसी करके बात की जाती है|

और पढ़ें : पीरियड की गंदी बात क्योंकि अच्छी बात तो सिर्फ धर्म में है

सरकारी योजनाओं से नदारद है पीरियड

निनॉन्ग ने कहा, “मैं जानता हूं कि एक बड़ा तबका शिक़ायत करेगा कि औरतें जब बराबर हैं तो फिर उन्हें ये ख़ास सुविधा क्यों| मेरा सवाल है कि अगर पुरुषों को भी हर महीने पीरियड्स होते तो भी इस प्रस्ताव पर इतना वाद-विवाद होता? पुरुष ख़ुद इस अनुभव से नहीं गुज़रते शायद इसीलिए उन्हें औरतों के दर्द का अंदाज़ा नहीं है|

इस बारे में निनॉन्ग एक और उदाहरण देते हुए कहते हैं कि “पुरुषों की शिक़ायत रहती है कि बच्चा होने के बाद औरतों को महीनों छुट्टी मिलती है जबकि पुरुषों को सिर्फ 15 दिन| क्या पुरुष भी नौ महीने तक बच्चे को पेट में रखते हैं? क्या वो भी बच्चे को जन्म देते हैं? क्या वो भी बच्चों को दूध पिलाते हैं और उनका उसी तरह ख़याल रखते हैं जैसे औरतें?”

पहले ही नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी कम है| क्या ‘पेड पीरियड लीव’ पॉलिसी से कंपनियां औरतों को हायर करने में कतराएंगी नहीं? इसके जवाब में उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है| जापान, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में ये पॉलिसी काफ़ी पहले से है और वहां औरतों की काम में भागीदारी कम नहीं है| अगर चीजों को बड़े दायरे में रखकर देखा जाए तो इस पॉलिसी के फ़ायदे ही होंगे, नुक़सान नहीं|

निनॉन्ग एरिंग ने पिछले हफ़्ते सरकार से पूछा था कि क्या सरकार के पास ऐसी कोई नीति या योजना है जिसके तहत नौकरीशुदा महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान छुट्टी दी जा सके| इस पर महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की तरफ़ से आए जवाब में कहा गया कि फ़िलहाल ऐसी कोई योजना या प्रस्ताव नहीं है|

शुभसंकेत है लोकसभा में पीरियड की चर्चा

निनॉन्ग एरिंग

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में महिला से जुड़े हर मुद्दे को दबाने-छुपाने की साजिश हमेशा से की जाती रही है, जिसका खामियाजा पुरुष-महिला दोनों को ही भुगतना पड़ा है| विकास के नामपर आगे बढ़ते हमारे समाज अब धीरे-धीरे ही सही कई बदलाव आने लगे है और कई सकारात्मक बदलाव के शुभसंकेत भी दिखाई पड़ने लगे है| अभी तक देश में महिला स्वास्थ्य के नामपर गर्भवती महिलाओं को ही केंद्र में रखा गया था लेकिन इस बीच पीरियड के मुद्दे पर लोकसभा से बात होना समाज में होने वाले सकारात्मक बदलाव का शुभसंकेत है|

और पढ़ें : #MyFirstBlood: पीरियड से जुड़ी पाबंदियों पर चुप्पी तोड़ता अभियान

उल्लेखनीय है कि ये योजना कोई अजूबा नहीं है है बल्कि कई एशियाई देशों जैसे दक्षिण कोरिया, जापान, इंडोशनिया और ताइवन में महिलाओँ को ‘पेड पीरियड लीव’ दी जाती है| यूरोपीय देशों में भी कई कंपनियों ने महिला कर्मचारियों के लिए यह नीति लागू की है|


यह लेख आकांक्षा सिन्हा ने लिखा है, जो इससे पहले मुहीम डॉट कॉम में प्रकाशित हो चुका है|

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