समाजख़बर पीवी सिंधू : वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल लाने वाली पहली भारतीय

पीवी सिंधू : वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल लाने वाली पहली भारतीय

फोर्ब्स 2019 में 'दुनिया की सर्वाधिक कमाई करने वाली महिला खिलाड़ियों' की लिस्ट में पीवी सिंधू का नाम तेरहवें स्थान पर था।

आठ साल की एक लड़की और उसका बैडमिंटन रैकेट – कितना साधारण वाक्य लगता है, पर इसी वाक्य का विस्तार जब ‘वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में स्वर्ण हासिल करने वाली पहली भारतीय’ तक होता है, तो हम खुशी और गर्व से भर उठते हैं। यह कहानी है उसी आठ साल की बच्ची की, जो आज वर्ल्ड चैंपियन बन चुकी है – पीवी सिंधू।

वर्ल्ड चैंपियन बनने के सफर की शुरुआत

5 जुलाई 1995 को हैदराबाद में जन्मी पीवी सिंधू के माता – पिता दोनों ही राष्ट्रीय स्तर के वॉलीबॉल खिलाड़ी थे। लेकिन उन्होंने बैडमिंटन खेलने का फैसला किया क्योंकि वे साल 2001 के ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन पी.गोपीचंद से बहुत प्रेरित थीं। सिकंदराबाद में स्थित इंडियन रेलवे इंस्टिट्यूट ऑफ सिग्नल इंजीनियरिंग एन्ड टेलीकम्युनिकेशन्स के बैडमिंटन कोर्ट में पीवी सिंधू ने इस खेल की प्रारंभिक शिक्षा महबूब अली से हासिल की।

उसके बाद उन्होंने पी.गोपीचंद की गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी जॉइन की। पीवी सिंधू के करियर के बारे में लिखते हुए द हिन्दू के एक पत्रकार ने लिखा था कि ‘अपने घर से 56 किलोमीटर तक का सफर तय करके वह (पीवी सिंधू) रोज़ कोचिंग कैम्प में सही समय पर पहुंचती थी। यह तथ्य शायद कड़ी मेहनत और संकल्प के साथ एक अच्छी बैडमिंटन खिलाड़ी बनने की अपनी इच्छा को पूरी करने के इरादे को ही दर्शाता है।’ पी.गोपीचंद ने भी इस बात के समर्थन में कहा था कि पीवी सिंधू के खेल में उनकी सबसे अद्भुत बात उनका एटीट्यूड और बुलंद हौसला ही है।

पीवी सिंधू की तरह ही तमाम तरह के स्त्री-विरोधी विचारों को अपने रैकेट से मात देती लड़कियाँ पितृसत्तात्मक समाज के दमघोंटू माहौल में ताज़ी हवा की तरह हैं !

जीत के सफर पर एक नज़र

साल 2009 में पीवी सिंधू ने कोलोंबो में हुई सब-जूनियर एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया। यह पहला मौका था जब अन्तर्राष्ट्रीय खेल जगत में उनका नाम रोशनी में आया। साल 2010 में ईरान फज्र अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन चैलेंज में एकल वर्ग में उन्होंने रजत पदक जीता।साल 2012 में उन्होंने एशियन यूथ अंडर 19 चैंपियनशिप के फाइनल में जापानी खिलाड़ी नोज़ोमी ओकुहारा को 18–21, 21–17, 22–20 से हराकर जीत हासिल की। साल 2013 में सिंगापुर के गुजुआन को 21–17, 17–21, 21–19 से मात देकर उन्होंने मलेशियन ओपन टाइटल अपने नाम किया। यह पीवी सिंधू का प्रथम ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड टाइटल था।

और पढ़ें : मैरी कॉम बनीं एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट

8 अगस्त 2013 को, सिंधू ने बीडब्लूएफ वर्ल्ड चैंपियनशिप्स में चीन के वांग यिहान को 54 मिनट्स में 21–18, 23–21 से हराकर वीमेंस क्वार्टरफाइनल्स में प्रवेश किया था। उसके बाद, उन्होंने दूसरे चीनी खिलाड़ी वांग शिक्सिन को 21–18, 21–17 से हराया और वे वर्ल्ड चैंपियनशिप्स में महिला एकल में भारत की पहली मेडलिस्ट बन गईं। 1 दिसंबर 2013 को कनाडा की मिशेल ली को 37 मिनट्स में 21–15, 21–12 से हराकर पीवी सिंधू ने मकाऊ ओपन ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड टाइटल अपने नाम कर लिया था। इसके बाद उन्हें भारत सरकार द्वारा खिलाड़ियों को दिए जाने वाले देश के सर्वोच्च सम्मान अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, साल 2013 और साल 2014 में लगातार वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल करने वाली वे प्रथम भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी भी थीं। साल 2015 में पीवी सिंधू को भारत के पद्म श्री अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।

पी.गोपीचंद ने भी उनके समर्थन में कहा था कि पीवी सिंधू के खेल में उनकी सबसे अद्भुत बात उनका एटीट्यूड और बुलंद हौसला ही है।

साल 2016 में, रियो ओलंपिक के फाइनल्स में पहुंचने वाली और रजत पदक जीतने वाली, वे भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनी थीं। इसी साल उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित भी किया गया। साल 2018 में उन्होंने वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया था, लेकिन उन्हें तो इससे आगे जाकर इतिहास रचना ही था, इसीलिए अगस्त 2019 में वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करके उन्होंने इतिहास रच दिया।

स्विट्जरलैंड में हुए फाइनल में अपनी जापानी प्रतिद्वंद्वी नोज़ोमी ओकुहारा को 38 मिनट्स में 21-7 21-7 के स्कोर से पराजित करके, पीवी सिंधू ने यह खिताब हासिल किया। चौबीस वर्षीय इस खिलाड़ी ने अपनी अद्भुत जीत के बाद अपना स्वर्ण पदक अपनी माँ को समर्पित करते हुए कहा कि ’मैं यह मेडल अपनी माँ को समर्पित करती हूँ। आज उनका जन्मदिन है। वे बहुत ही ज़्यादा खुश होंगी। मैं उन्हें कुछ देना चाहती थी और अब मैं उन्हें यह दे सकती हूँ।’

और पढ़ें : भारतीय क्रिकेट कप्तान मिथाली राज ने लिया टी20 क्रिकेट से संन्यास

इसके साथ ही उन्होंने अपने हेड कोच पुलेला गोपीचंद और अपने नए साउथ कोरियन कोच किम जी ह्यून को अपनी जीत का श्रेय देते हुए उन्हें शुक्रिया अदा भी किया। इस ऐतिहासिक जीत के बाद पीवी सिंधू की नज़र अब 2020 में होने वाले टोक्यो ओलंपिक्स में स्वर्ण पदक हासिल करने पर है।

बता दें कि फोर्ब्स 2019 की ‘दुनिया की सर्वाधिक कमाई करने वाली महिला खिलाड़ियों’ की लिस्ट में पीवी सिंधू का नाम 13वें स्थान पर था। पीवी सिंधू ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से बार – बार यह साबित किया है कि लड़कियाँ लड़कों की तरह ही खेल में आगे जाने का दम रखती है और पीवी सिंधू की तरह ही तमाम तरह के स्त्री-विरोधी विचारों को अपने रैकेट से मात देती लड़कियाँ पितृसत्तात्मक समाज के दमघोंटू माहौल में ताज़ी हवा की तरह हैं !

Also read: PV Sindhu: First Indian To Win The BWF World Championships Gold


तस्वीर साभार : newsheads.in

संबंधित लेख

Skip to content