जज फैसला सुना रहे हैं, हार्वी वाइंस्टीन पर आरोप लगाने वाली महिलाओं में से 6 महिलाएं एक दूसरे का हाथ थामे फैसले को सुन रही हैं। इनमें से कुछ की आंखों में आंसू भी हैं। जज ने यौन हिंसा से जुड़े मामलों में हार्वी वाइंस्टीन को 23 साल की जेल की सजा सुनाई है। अब मुमकिन है 67 साल के हार्वी की बाकी बची ज़िंदगी जेल में बीतेगी।
हार्वी वाइंस्टीन जिसे हॉलीवुड का मीडिया मुगल कहते थे, वो प्रोड्यूसर जिसने सालों तक हॉलिवुड पर राज किया। हार्वी वाइंस्टीन वह नाम भी है जिससे #MeToo आंदोलन की शुरुआत भी हुई। अक्टूबर 2017 में हार्वी वाइंस्टीन पर 90 से ज़्यादा महिलाओं ने यौन शोषण, गलत तरीके से छूने और रेप के आरोप लगाए थे। ये मामला कोर्ट पहुंचा और फैसला हमारे सामने है।
हार्वी वाइंस्टीन के खिलाफ जब एक-एक कर महिलाएं सामने आने लगी तो #MeToo आंदोलन देखते-देखते अमेरिका से बाहर निकल अलग-अलग देशों में फैलने लगा। न जाने कितनी महिलाओं ने #MeToo के साथ अपनी-अपनी कहानियां सोशल मीडिया पर शेयर की। न जाने कितने बड़े नामों पर आरोप यौन शोषण के आरोप लगे। कितनी ऐसी कहानियां सामने आई जिससे लगा शायद हर दूसरी महिला ने अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर यौन हिंसा का सामना किया है। अपने परिवार के सदस्यों से लेकर फिल्म, कला जगत, मीडिया हर जगह की महिलाओं ने खुलकर अपनी बात कही। इस आंदोलन की आलोचनाएं भी हुई। जिनपर आरोप लगे उन्होंने इसे स्पिट एंड रन मूवमेंट तक कहा लेकिन सच यही है कि कहानियां बाहर आई, कई बड़े चेहरों की असलियत सामने आई।
फैसला सुनाए जाने से पहले एक पीड़ित महिला ने कोर्ट में कहा कि हार्वी वाइंस्टीन ने उन्हें साथ साल 2006 में ओरल सेक्स के लिए मजबूर किया था। इस घटना ने उनके जीवन को बदल दिया, उनकी आत्मा को चोट पहुंचाई और उनके विश्वास को छलनी किया। एक और महिला जिसने हार्वी वाइंस्टीन पर रेप का आरोप लगाया उन्होंने कहा कि जो इंसान दूसरे इंसान का रेप करे उसे सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। हार्वी वाइंस्टीन ने अपने पक्ष में दलील दी कि वह एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इस दलील से जस्टिस बुर्के सहमत नहीं हुए और हार्वी को 23 साल की सजा सुनाई। हार्वी वाइंस्टीन पर करीब 90 महिलाओं ने यौन हिंसा के आरोप लगाए थे, जिसमें रेप भी शामिल था। हार्वी वाइंस्टाइन को अपराधी साबित करने सजा मिलने में 5 साल का वक्त लगा। #MeToo के दौरान जिन पुरुषों ने सलाह दी थी कि सोशल मीडिया पर लिखने की जगह वे कोर्ट क्यों नहीं गई, पुलिस के पास क्यों नहीं गई। उन्हें ये याद दिलाना होगा कि #MeToo के एक आरोपी को सजा दिलाने के लिए 90 महिलाएं और 5 साल की न्यायिक प्रक्रिया लगी।
#MeToo की पहली सफलता मानी जाएगी जब हम सामने वाली महिला पर भरोसा करें।
हार्वी वाइंस्टीन को मिली सजा #MeToo आंदोलन की सबसे बड़ी जीत के रूप में सामने आई है। भारत में भी #MeToo के आरोप के तहत एमजे अकबर जो बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं उनके खिलफ प्रिया रमानी केस लड़ रही हैं लेकिन भारत में #MeToo के केस को कैसे देखा जा रहा है, यहां जिन बड़े लोगों पर आरोप लगे वो कहां है जब हम इसकी पड़ताल करते हैं तो निराशा हाथ लगती है। मिसाल के तौर पर प्रिया रमानी ने जब एम जे अकबर के ऊपर #MeToo के तहत यौन हिंसा का आरोप लगाया तब प्रिया रमानी के ऊपर ही मानहानि का मुकदमा लगा दिया। एम जे अकबर पर प्रिया रमानी के बाद 15 महिलाओं ने #MeToo के तहत यौन हिंसा के आरोप लगाए जिसके बाद एमजे अकबर को अपने मंत्री पद से हटना पड़ा। हालांकि एम जे अकबर सरकारी कार्यक्रमों में नज़र आते रहे, राजनीति में सक्रिय रहे, हमेशा की तरह ट्विटर पर सक्रिय रहे। एक इंटरव्यू में प्रिया रमानी ने कहा कि वो चाहती तो चुप रहकर इन सारी मुश्किलों को आने से रोक सकती थी, अगर वह चुप रहती तो शायद उन्हें इस तरह टारगेट भी नहीं किया जाता। प्रिया रमानी का केस आज भी कोर्ट में चल रहा है और ये कब तक चलेगा इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता।
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भारत के मीडिया जगत में भी जिन लोगों पर #MeToo के तहत आऱोप लगे वे बस आरोप ही रह गए क्योंकि ज़्यादातर मामलों की जांच ही नहीं बिठाई गई। वे बड़े एंकर्स जिनपर आरोप लगे वे आज भी अपने शो कर रहे हैं। जिन बड़े संपादकों पर आरोप लगे उनके लेख आज भी छप रहे हैं। वे एक्टर्स, प्रोड्यूसर्स जिनपर आरोप लगे वे हमेशा की तरह अपने काम की ओर लौट चुके हैं। भारत में #MeToo की शुरुआत माने जाने वाले तनुश्री दत्ता के केस का हासिल क्या रहा। नाना पाटेकर पर तनुश्री दत्ता ने आरोप लगाए थे जिसके बाद नाना पाटेकर ने तनुश्री दत्ता को ही कानूनी नोटिस भेज दिया था। बॉलिवुड के कुछ लोगों ने तनुश्री दत्ता के समर्थन में बयान तो दिए लेकिन बॉलिवुड से आए दूसरे #MeToo के केसों को भी खास समर्थन नहीं मिला। मीडिया और दूसरे क्षेत्रों में भी जिन महिलाओं ने आवाज़ उठाई, जिन पर आरोप लगाए उन पर ज़्यादातर संस्थानों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की।
#MeToo के तहत आरोप लगाने वाली महिलाओं से इस आंदोलन की सफलता का दर पूछा जाता है। सवाल उठाए जाते हैं कि आखिर सोशल मीडिया पर लिखकर क्या हासिल हो गया। कोई भी आंदोलन जब शुरू होता है तो ये सोचकर नहीं होता कि उसका हासिल क्या होगा, वह कितना सफल होगा। महिलाओं ने अपने साथ हुए अपराध के बारे में बोला, न जाने कितनी महिलाओं ने अपने संस्थान, नाते रिश्तेदारों, परिवार, दोस्त, प्रेमी, पति के खिलाफ खुलकर बोला और लिखा। लेकिन उन पर भरोसा किसने किया, सबसे पहला सवाल आया जब हुआ तब क्यों नहीं बोला जो आज बोल रही हो? #MeToo की पहली सफलता मानी जाएगी जब हम सामने वाली महिला पर भरोसा करें। जिन महिलाओं ने संस्थान के अंदर आऱोप लगाए, वे संस्थान जो कार्रवाई करने की क्षमता रखते थए उन्होंने क्या किया, सवाल तो उनसे होना चाहिए न कि महिलाओं से। जितने सवाल आरोप लगाने वाली महिलाओं से पूछे गए, जितनी सलाह उन्हें दी गई क्या वैसा ही व्यवहार आरोपियों से किया गया? सोचकर देखिए ज्यादा केसों में जवाब न ही मिलेगा।
हार्वी वाइंस्टीन को मिली 23 साल की सज़ा कानूनी जीत है #MeToo आंदोलन की, जो शायद ही हमें भारत में देखने को मिले क्योंकि भारत में #MeToo आंदोलन समाज के एक बड़े हिस्से के लिए एक स्पिट एंड रन केस है जहां महिलाओं ने सोशल मीडिया पर आरोप लगाए और गायब हो गई।
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