पितृसत्ता अंग्रेजी में दो यूनानी शब्दों पैटर और आर्के को मिलाकर बना है। पैटर का मतलब है – पिता और आर्के का मतलब है – शासन। यानी कि ‘पिता का शासन।’ पितृसत्ता एक सिस्टम के रूप में कैसे काम करता है या ये कैसे सफल होती है आईए हम आपको बताते हैं। गर्डा लर्नर, महिलाओं के इतिहास पर लिखने वाली एक लेखिका के अनुसार पितृसत्ता के तहत यह माना जाता है कि मर्द औरतों से ज्यादा बेहतर होते हैं और औरतों पर मर्दों का कंट्रोल है या होना चाहिए। इसमें महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति के तौर पर देखा जाता है। पीटर लेसलेट, एक अंग्रेजी इतिहासकार ने अपनी किताब ‘द वर्ल्ड वी लॉस्ट’ में औद्योगिकीकरण यानी की Industrilization से पहले के इंग्लैण्ड के समाज की परिवार-व्यवस्था की पहली ख़ासियत उसका पितृसत्तात्मक होना बताया है। भारत में इस तरह की परिवार-व्यवस्था आज़ादी के बाद काफी सालों तक बनी रही।
हमारे भारतीय समाज को पितृसत्ता व्यवस्था के तहत ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक समाज कहा जाता है क्योंकि यहाँ का समाज जाति-व्यवस्था यानी पर आधारित है। पितृसत्ता का अनुभव हर औरत के लिए अलग होता है। जैसे- अगर कोई महिला दलित है तो उसके शोषण के अनुभव एक उच्च जाति की महिला से बिल्कुल अलग होंगे। महिलाएं जिस वर्ग, जाति, धर्म, राष्ट्र या कबीले से ताल्लुक रखती हैं, उनका शोषण भी अलग-अलग तरीके से किया जाता है। इसलिए नारीवाद का इंटरसेक्शनल यानी समावेशी होना ज़रूरी है जिसके बारे में हम फिर कभी बात करेंगे। मोटे शब्दों में इस सिस्टम की ख़ास बात ये है कि यह समाज के हर सदस्य को एक बराबर न मानकर ऊँचा या नीचा, कमज़ोर और ताकतवर मानता है। इस तरह पितृसत्तात्मक व्यवस्था बराबरी के अधिकार के हमेशा उलट रही है।
पितृसत्ता के इस सिस्टम के तहत उत्पादक संसाधनों तक महिलाओं की पहुंच नहीं होती है, उन्हें अपने परिवार के पुरुषों के मुकाबले कम अधिकार दिए जाते हैं, अक्सर उनकी आर्थिक निर्भरता पुरुषों पर ही होती है। पितृसत्ता में महिलाएं दोयम दर्जे की नागरिक होती है जहाँ एक तरफ उन्हें घर के ज्यादा से ज्यादा काम का जिम्मा लेना होता है। वहीं दूसरी ओर, घरेलू व्यवस्था में उनका प्रभाव और सम्मान उतना ही कम होता है।