विकलांगता के प्रति पूर्वाग्रहों को मज़बूत करने में भाषा की भूमिका
योग्यता का सवाल इस देश में लगातार उठता रहता है। लेकिन सवाल तो यह भी है कि योग्यता का पैमाना तय कौन करेगा? वे तमाम लोग जो ख़ुद को योग्य बताते हैं और बाकियों को अयोग्यता का प्रमाणपत्र बाँटते-फिरते हैं उसका पैमाना क्या है? क्यों इस समाज में इस तरह की कहावत है जहाँ कहा जाता है, “अंधे के हाथ बटेर लगना।” दरअसल इस तरह की कहावतों में हम विकलांग व्यक्तियों की सारी उपलब्धियों और मेहनत को महज़ तुक्का कहकर खारिज कर रहे होते हैं।