मेरा फेमिनिस्ट जॉय: अपने शर्तों के मुताबिक जीवन जीने की समझ
लखनऊ से लौटने के बाद मैंने ठान लिया कि दिल्ली में भी अपनी शर्तों पर जिऊंगी। मैंने मम्मी-पापा को इतना समझा लिया कि अब जब भी मुझे कहीं बाहर जाना हो, रात में ठहरने की जरूरत हो, तो बिना झिझक मैं अपनी बात रख सकूं।