स्त्रियों के इस मानसिक असंतोष का बहुत बड़ा कारण पितृसत्ता भी रहा है। पितृसत्ता के कारण ही बचपन से उनके मन में खुद के लिए नफरत भर दी जाती है और उनका आत्मविश्वास हमेशा ही तोड़ने का प्रयास किया जाता, जिस उम्र में आत्मविश्वास बनना शुरू होता है उस उम्र में आत्मग्लानि जैसे भाव पैदा कर दिए जाते हैं।
औरतें द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाओं का विश्लेषण केवल एक भावनात्मक आवरण में लिपटी त्याग मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि अधिक खुलेपन के साथ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यों में की जाए।
अम्बाला से आए एक बुगुर्ज जिनका नाम बलकार सिंह था इस आंदोलन को क्रांति बताते हैं। उनके अनुसार इतिहास इन महीनों को वैसे दर्ज़ करेगा जैसे सदियों में होने वाली किसी एक क्रांति को करता है। बलकार सिंह ने कहा, "हमारे खाने कमाने का साधन हमसे छीनने की कोशिश की जा रही है। सरकार से हमें ये उम्मीद नहीं थी। हमारा काम सिर्फ़ खेतों में संघर्ष करना है। चार पांच बन्दे मिलकर क़ानून बना रहे हैं जिनको किसानी के बारे में पता नहीं है। अडानी अम्बानी जैसे लोग।
संविधान सभा में हम उन प्रमुख पंद्रह महिला सदस्यों का योगदान आसानी से भुला चुके है या यों कहें कि हमने कभी इसे याद करने या तलाशने की जहमत नहीं की| तो आइये जानते है उन पन्द्रह भारतीय महिलाओं के बारे में जिन्होंने संविधान निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया है|
नारीवाद के बारे में सभी ने सुना होगा। मगर यह है क्या? इसके दर्शन और सिद्धांत के बारे में ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम। इसे पूरी तरह जाने और समझे बिना नारीवाद पर कोई भी बहस या विमर्श बेमानी है। नव उदारवाद के बाद भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति आए बदलाव के बाद इन सिद्धांतों को जानना अब और भी जरूरी हो गया है।
ये तो सिर्फ 15 महिलाओं के नाम हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में रूढ़ियों और पितृसत्ता को चुनौती देते हुए एक नया मुकाम हासिल किया है। दुनियाभर में लाखों-करोड़ों ऐसी महिलाएं जो हर दिन इस पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती देती हैं अपने-अपने तरीके से।
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, "घर के अंदर औरतें जिस तरह के दवाब लेते हुए शांत और अपने काम के प्रति समर्पित रहने की आदि होती है मुझे यह सामान्य व्यवहार के रूप में वहां से हासिल हुआ। सुनने में कितना भी अजीब लगे लेकिन मुझे मालूम था एक दिन मैं यहां पहुंचूंगी।"
हमारे समाज में शादियों का, रिश्ते जोड़ने का हमेशा से एक तय खांचा रहा है जिसे हम अरेंज्ड मैरेज कहते हैं। जाति, वर्ग,जेंडर,नस्ल आदि के आधार पर होनेवाले भेदभाव को खत्म करने के रास्ते में अरेंज़्ड मैरेज एक बहुत बड़ी चुनौती है।