शादी के दो दिन बाद ही आंचल को उसके मायके भेज दिया गया| सुहागरात के अगले दिन से ही ससुराल वालों ने उसके चरित्र को लेकर क्या कुछ नहीं कहा उसे| बेहद टूट-सी गयी थी वो, वहां से आने के बाद| उसने अपनी माँ के बार-बार पूछने पर उन्हें बताया कि सुहागरात की रात जब रवि (आंचल का पति) ने उसके साथ सेक्स किया तो आंचल के वेजाइना से ब्लीडिंग नहीं हुई, जिसे देखते ही रवि उसपर जोर से चिल्लाया और बोला कि ‘करैक्टरलेस कहीं की, तू शादी से पहले भी सेक्स कर चुकी है|’ और अगले दिन रवि ने ये बात घर में सभी को बता दी, जिसके बाद सभी ने मेरे चरित्र पर सवाल खड़े कर दिए|’ यह सुनते ही उसकी माँ ने पिता को उलाहना देते हुए कहा कि ‘इसीलिए मना किया था कि खेलकूद की पढ़ाई न करवाओं इसे|’ आंचल ने बीपीएड किया था| वो स्टेट लेवल की बालीबाल प्लेयर थी, लेकिन परिवार-समाज के दबाव में आकर उसे शादी करनी पड़ी|
आंचल के बारे में सुनते ही उसकी मौसी ने अपनी बेटी (कुछ-ही महीनों में जिसकी शादी होने वाली थी) की हायम्नोप्लास्टी सर्जरी करवा दी| क्योंकि वो भी आंचल की तरह बालीबाल प्लेयर थी|
यूँ तो अपने देश में लड़कियों के संदर्भ में ऐसे किस्से आम होते जा रहे है| और इससे बचने के लिए हायम्नोप्लास्टी सर्जरी की मांग बढ़ती जा रही है, जिसे अब शादी के लिए दुल्हन के एक ज़रूरी श्रृंगार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है|
क्या है हायम्नोप्लास्टी सर्जरी?
हायम्नोप्लास्टी सर्जरी एक ऐसी सर्जरी है, जिसमें योनि में पायी जाने वाली झिल्ली (जिसे अंग्रेजी में हायमन भी कहा जाता है) को फिर से बना दिया जाता है| अक्सर खेलकूद, साइकिल चलाने से ये झिल्ली टूट जाती है या कई बार जन्म से ही कुछ लड़कियों में यह झिल्ली नहीं होती है| पर दुर्भाग्यवश, हमारे समाज में इसे कौमार्य का सबूत मानते हुए इन सभी कारणों को नजरअंदाज़ कर हायमन टूटने का सिर्फ एक मतलब निकाला जाता है कि ‘लड़की ने सेक्स किया है|’ जरुर यह हायमन टूटने के कारणों में से एक है, पर इसका एकमात्र कारण नहीं|
पोर्न एजुकेशन के तहत नए दौर की अग्निपरीक्षा
भारत में हायम्नोप्लास्टी सर्जरी का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है| पढ़े-लिखे समाज में, आधुनिकता की खोल ओढ़े समाज का यह ऐसा घिनौना चेहरा है, जहां आज भी महिलाओं का चरित्र उनके शरीर के अंग से निर्धारित किया जाता है| हमारे देश में सेक्स एजुकेशन की कोई व्यवस्था नहीं है और उसपर बात करना हमारी ‘सभ्य संस्कृति’ के खिलाफ़| लिहाज़ा पोर्न के ज़रिए युवा, शारीरिक संबंधों की जानकारियों से रु-ब-रु होते है| इसके ज़रिए वे ‘वर्जिनिटी’ के बारे में जानते-सीखते है जिसके तहत – ‘जब लड़की, लड़के के साथ पहली बार शारीरिक संबंध बनाती है तो उसका हायमन टूटता है और उनकी योनि से खून आता है|’ आधुनिक युग की देन इन पोर्न साइटों ने अपने इस सेक्स एजुकेशन के ज़रिए लड़कियों के लिए उनकी वर्जिनिटी को नए दौर की अग्निपरीक्षा बना दिया है, जो लड़कियों के लिए चिंता का कारण बन रहा है और इससे बचने के लिए वे सर्जरी का सहारा लेने को मजबूर हो रही है|
इज्जत निर्भर है ‘योनि से निकले खून पर’
पितृसत्तात्मक समाज की परंपरा के तहत जब स्त्री-पुरुष आपस में यौन संबंध बनाते है तो पुरुष अपने ‘मर्द’ होने के खिताब को जीत लेता है| वहीं स्त्री अपनी ‘इज्जत’ खो देती है| अगर संबंध शादी से पहले बनाया गया तो पुरुष की इज्जत पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता| पर स्त्री को ‘चरित्रहीन’ कहकर जिंदगीभर उसे ताने दिए जाते है| लेकिन जब संबंध शादी के बाद बनाया जाता है तब स्त्री को ‘पतिव्रता’ के खिताब से नवाज़ा जाता है| उल्लेखनीय है कि स्त्री ‘चरित्रहीन’ कहलाएगी या ‘पतिव्रता’ इसका निर्णय सुहागरात के समय उसके योनि से निकले या न निकले खून पर के आधार पर तय किया जाता है|
पुरुषों पर लागू नहीं ’चरित्र के ये मानदंड’
कहते हैं कि परंपरा – स्त्रियों की गुलामी की कहानी रही है, आधुनिकता ने पहली बार उससे मुक्ति की संभावनाएं या अवसर पैदा किये हैं| अब सवाल यह है कि हायम्नोप्लास्टी सर्जरी जैसी आधुनिकता किस मामले में महिलाओं के हित में नज़र आती है? स्त्रियों के चरित्र को लेकर अपमानजनक कथन हमारी परंपरा का हिस्सा रहे है – ‘त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं दैवों न जानाति कुतो मनुष्य:?’ यानी स्त्री का चरित्र और पुरुष का भाग्य कैसा है, इसे तो देवता भी नहीं जानतें मनुष्य इस बारे में क्या बता सकता है? महिलाओं के हिस्से इस कथन में ‘चरित्र’ को रखा गया, जिसका एकमात्र अर्थ उनके यौन-संबंधी व्यवहार से है| अपने ढंग के सामाजिक नियम, विवाह की रीति और दाम्पत्य के कायदे बनाने के बाद भी पुरुष मानसिकता स्त्री के यौन व्यवहार को लेकर संदेहग्रस्त रही है| स्त्री किसी और पुरुष की तरफ आँख उठाकर न देख ले, इसकी चिंता उसे लगी रही है| कहीं वह किसी और पुरुष से हँस-बोल न ले, इस मनोग्रन्थि में वह फंसा रहा है, उसकी यौनिकता पर वह अपना सर्वाधिकार मानता रहा है| फिर यौनिकता भी ऐसी, जिसमें स्त्री अपने सुख की मांग न करे, वह पूर्ण समर्पण कर दे| अगर इसमें कहीं भी कमी आयी तो वह ‘त्रिया का चरित्र’ हो गया, जो हमेशा संदिग्ध होता है|
‘चरित्र’ के यही मानदंड कभी, किसी युग में पुरुष पर लागू नहीं हुए हैं| अगर होते, तो हरम और वेश्यालय क्यों बनते? या बलात्कार करनेवाला पुरुष अपनी ‘मर्दानगी’ पर खुलेआम इतरा कैसे पाता? लेकिन यह सब होता रहा है|
अपना शरीर, अपना अधिकार, नहीं देना कोई प्रमाण
परंपराओं से मुक्ति पानेवाली ये आधुनिकाएं आज रूप, यौवन और कला का विक्रय करनेवाली कुशल व्यापारी बन गयी है| इनका लक्ष्य मुनाफा पाना है| यह तो सर्वविदित है कि मुनाफा कमाने के किसी भी व्यवसाय में आज तक ऐसे समाजोपकारी तत्वों का विकास नहीं पाया है, जिनकी वजह से उन्हें समाज सेवा या उनके संचालकों को समाजसेवक माना जाए| हर तरह के व्यापारी से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने मूलधन को सुरक्षित रखते हुए अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की कोशिश करे| स्त्री का मूलधन पितृसत्ता में उसके रूप और यौवन को माना जाता है| यही दो तंत्र हैं, जिनकी बदौलत वह चाहे तो पारंपरिक का खिताब पा ले या फिर वह आधुनिक हो जाए|
समाज की मर्यादा और नीति के बंधन हमेशा से पुरुष की अपेक्षा स्त्री पर अधिक चौकन्नी नजर रखते रहे हैं, इसलिए जो खोना या पाना रहा है, वह स्त्री के लिए रहा है| पर समय के साथ महिलाओं को भी बदलने की ज़रूरत है, उन्हें यह समझना होगा कि उनके शरीर पर उनका अधिकार है और उन्हें किसी को भी अपने पवित्र होने या ना होने का प्रमाण देने की ज़रूरत नहीं है|
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