समाजख़बर गुरमेहर कौर: ‘अभिव्यक्ति’ पर भक्तों के शिकंजा कसने और हम इज्ज़तदारों के खामोश रहने की संस्कृति

गुरमेहर कौर: ‘अभिव्यक्ति’ पर भक्तों के शिकंजा कसने और हम इज्ज़तदारों के खामोश रहने की संस्कृति

इस घटना के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय की स्टूडेंट गुरमेहर कौर ने सोशल मीडिया के ज़रिए ‘सेव डीयू’ कैंपेन की शुरुआत की|

पहले वो दामिनी के लिए आये| मैं चुप रहा क्योंकि मैं बलात्कार पीड़िता नहीं था|
फिर वो रोहित के लिए आये| मैं चुप रहा क्योंकि मैं दलित नहीं था|
फिर वो कन्हैया के लिए आये| मैं चुप रहा क्योंकि मैं वामपंथी नहीं था|
अब वो गुरमेहर के लिए आये हैं| मैं अब भी चुप हूं क्योंकि मैं लड़की नहीं हूं|
पर अब मैं चुप नहीं रहूँगा क्योंकि कल वो मेरे लिए आयेंगे और अगर अब मैं चुप रहा तो मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं बचेगा|

हमारे देश में अब कितना आसान हो चला है न किसी को ‘देशद्रोही’ कहकर उसके साथ सरेआम मारपीट करना| वाकई भारतमाता के लिए इस तरह का प्यार शायद ही कहीं और देखने को मिले| अब सवाल यह है कि भारतमाता के लिए देश की महिलाओं को अपने विचार रखने पर उन्हें ‘रंडी’ (बरखा दत्त प्रकरण) कह देना या फिर भद्दी गालियों के साथ उन्हें बलात्कार की धमकी देना किस तरह के प्रेम को दर्शाता है? देश की इस मौजूदा स्थिति ने ‘देशभक्ति’ और ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ को सवाल के कटघरे में आमने-सामने खड़ा कर दिया है| विचारों की अपनी इस चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आइये इस स्थिति की उपज का परिचय लेते है|

रामजस कॉलेज में ‘प्रदर्शन की संस्कृति’ से उपजा मुद्दा

बीते 21 और 22 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में द लिटरेरी सोसाइटी की तरफ से ‘प्रदर्शन की संस्कृति’ टॉपिक पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया था| पर पहले ही दिन छात्र संगठन एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के छात्रों ने सेमिनार पर तोड़फोड़ कर उसपर रोक लगा दी| उनका कहना था कि वे जेएनयू के रिसर्च स्कॉलर उमर खालिद के विरोध में ये सब कर रहें है, जिसे इस सेमिनार में ‘बस्तर में आदिवासियों के खिलाफ़ हिंसा’ के शीर्षक पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था| यह उमर के पीएचडी का टॉपिक भी है| एबीवीपी के छात्रों ने पहले सेमिनार रूम के बाहर तेज़ आवाज़ में गाना-बजाना शुरू किया| इसके बाद उनलोगों ने सेमिनार में मौजूद छात्रों और अध्यापकों के साथ ‘राष्ट्रीयता’ के नामपर मारपीट करना शुरू कर दिया जिससे सेमिनार को वहीं रोक दिया गया| फिर एबीवीपी के छात्रों ने शांतिपूर्ण मार्च कर रहे आइसा (आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) के छात्रों के साथ-साथ मीडिया के लोगों और फैकल्टी मेम्बर के साथ मारपीट की|

हिंसा के खिलाफ़ गुरमेहर कौर का ‘सेव डीयू कैंपेन’ और उसकी वापसी

इस घटना के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय की स्टूडेंट गुरमेहर कौर ने सोशल मीडिया के ज़रिए ‘सेव डीयू’ कैंपेन की शुरुआत की| पर दुर्भाग्यवश उन्हें जल्द अपने इस कैंपेन से खुद को वापस होने पर मजबूर कर दिया गया| ट्विट के ज़रिए गुरमेहर ने लिखा कि ‘मैं कैंपेन से विदड्रॉ कर रही हूं| सबको बधाई| गुज़ारिश है कि मुझे अकेला छोड़ दिया जाए| सिर्फ इतना ही कहना है| मैंने बहुत कुछ सहा है और मैं 20 साल की लड़की बस इतना ही सह सकती हूं| मगर यह कैंपेन मेरे नहीं, स्टूडेंट्स के बारे में है| मार्च में ज़रूर भारी मात्रा में जाएं| और हां, कोई अगर मेरे साहस पर सवाल उठा रहा है तो बता दूं, मैंने जितना साहस दिखाया है, उतना बहुत है| एक बात तो तय है, अगली बार हिंसा करने के पहले हम दो बार सोचेंगे|’

सोशल मीडिया में चलाए गए अपने इस कैंपेन के दौरान उन्हें लगातार सोशल मीडिया के ज़रिए बलात्कार और कत्ल की धमकियां दी जा रही थी| इसकी शिकायत उन्होंने पुलिस में भी की थी|

और पढ़ें : इसे नारीवाद ही क्यों कहते हैं, समतावाद या मानववाद क्यों नहीं?

नामचीन चेहरों के शिकंजे के बाद ‘देशद्रोही’ बनी गुरमेहर

गुरमेहर के साथ वहीं सलूक किया गया जो हमारे समाज की गलियों-चौराहे से लेकर सोशल मीडिया में एक लड़की के साथ उसे अपनी आवाज़ उठाने पर किया जाता है| पर इस बात से गुरमेहर भी अनजान नहीं थी और वह इन बातों के आगे झुकने वाली भी नहीं थी| लेकिन जब देश के नामचीन चेहरों ने गुरमेहर पर अपना शिकंजा कसना शुरू किया तो गुरमेहर को अपने कदम पीछे करने पड़े| इसकी शुरुआत वीरेंद्र सहवाग की तरफ से हुई जब सोशल मीडिया पर उन्होंने गुरमेहर की कुछ महीने पहले की एक विडियो (जिसे गुरमेहर ने 1999 में कारगिल युद्ध के बाद कुपवाड़ा में आतंकी हमले में शहीद हुए अपने पिता पर बनाया था| इस विडियो के ज़रिए वह सिर्फ यह संदेश देना चाहती थी कि युद्ध करके किसी का कोई फायदा नहीं होता| लोग दोनों ओर के मारे जाते है| बीस साल की गुरमेहर चाहती थी कि देशभक्ति के नाम पर कोई हिंसा न हो|) की फ़ोटोशॉप पैरोडी बनाकर ट्विटर पर पोस्ट कर दिया और इसे अभिनेता रणदीप हुड्डा को फनी पोस्ट लिखा| उल्लेखनीय है कि गुरमेहर ने अपनी इस विडियो में करीब 34 प्लेकार्ड का इस्तेमाल कर अपना संदेश दिया है| लेकिन विरोधियों ने बारहवें नंबर के प्लेकार्ड (जिसमें लिखा है कि – ‘मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा है|) को हाथोंहाथ लेते हुए उसपर देशद्रोही होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया| गुरमेहर ने आगे के प्लेकार्ड में क्या बातें लिखी इससे विरोधियों ने कोई इत्तेफाक नहीं रखा|

गुरमेहर को देने लगे भूखे भेड़िये ‘देशभक्ति’ की सीख

बस फिर क्या था देशभक्ति के नामपर कई नामचीन चेहरे गुरमेहर पर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़े| सभी गुरमेहर को देशभक्ति की परिभाषा सीखाने लगे| इन सभी बातों पर गौर करने पर ऐसा मालूम होता है कि ये सब गुरमेहर को तोड़ने के लिए बेहद योजनाबद्ध तरीके से किया गया| ऐसी योजना जिससे हर पितृसत्ता औरत की सोच का शिकार करती है| पर गुरमेहर ने हार नहीं मानी| सोशल मीडिया पर लगातार भद्दी गालियों और कमेन्ट का संयम के साथ उसने जवाब देते हुए लिखा कि – ‘सत्ता में कौन है इससे देशभक्ति परिभाषित नहीं होती| यह तो अंदर से आती है| बीस साल की उम्र में अपने साथियों के साथ खड़ा होना, यह देखकर मेरे पिता को वाकई मुझपर बहुत गर्व होता|’

यह एक कटु सत्य है कि नारी को सम्मान देने का समाज का यह तरीका बेहद पुराना है| श्रुति सेठ हो, नेहा धूपिया हो, स्वरा भास्कर हो या कोई और| हमारे संस्कार, सभ्यता, संस्कृति और देशभक्ति ऐसे ही समय उबाल मारती है जब कोई औरत मर्दों की सत्ता में अपनी आवाज़ उठाना शुरू कर देती है| इस स्थिति से महिलाओं को रु-ब-रु करवाती हुई कार्ल मार्क्स की कही बात बेहद सटीक लगती है कि – ‘औरतों तुम्हारा कोई मुल्क नहीं है, अत: दुनियाभर की औरतें एक हो जाओ और संघर्ष करो| पितृसत्ता और दुनियावी परंपराओं के प्रति, क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है| पर जीतने के पूरा मुल्क पड़ा है|’

और अगला नंबर आपका है

हालिया घटनाओं पर गौर करने पर ऐसा मालूम होता है कि देशभक्ति की भावना को मजाक बना कर रख दिया गया है| इंसान को अपने विचार रखने पर फौरन उसे देशद्रोही करार किया जाता है| इन मानकों के आधार पर हम यह कह सकते है कि देश में ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ की उम्मीद रखने वाला हर इंसान देशद्रोही है| और आने वाले समय में इसकी संख्या दो से चार, चार से सौ, सौ से हज़ार, लाख और करोड़ होती जाएगी| लेकिन कोशिशों का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा| और यह सवाल कायम रहेगा कि आखिर देशभक्ति के नाम पर कब तक पितृसत्ता के ये भेड़िये महिलाओं को अपना शिकार बनाते रहेंगे और हम-आप जैसे इज्ज़तदार लोग कब तक चुप्पी साधने को अपनी संस्कृति बताकर सब देखते रहेंगे?

क्योंकि –
फूंक के घर को देखने वाले, फूस का छप्पर आपका है
उसके ऊपर तेज़ हवा है, आगे मुकद्दर आपका है,
उसके कत्ल पर मैं चुप था, मेरा नंबर अब आया
मेरे कत्ल पर आप भी चुप हैं, अगला नंबर आपका है|

Also read in English: Gurmehar Kaur And The Spectre Of Nationalism


अखिलेश कुमार : बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में बीए (हिस्ट्री आनर्स) के स्टूडेंट है|

Comments:

  1. save female be feminist

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