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यौनिकता हमारी ज़िंदगी का एक हिस्सा है और हमारा मानना है कि यौनिकता शिक्षा पाना युवाओं का एक अधिकार है जो उनसे नहीं छीना जा सकता। यौनिकता को युवाओं की शिक्षा का हिस्सा क्यों होना चाहिए? अगर शिक्षा का ताल्लुक अपने जीवन के हालात को विवेचनात्मक ढंग से समझने से है तो यौनिकता भी लाज़िमी तौर पर शिक्षा का हिस्सा होनी चाहिए। यौनिकता शिक्षा की ज़रूरत युवाओं की ज़िंदगी के मौजूदा यथार्थ से जुड़ी हुई है। बढ़ती उम्र में युवा लोगों के पास यौनिकता के बारे में ढेरों सवाल, असंख्य भ्रम और न जाने कितनी गलतफहमियां होती हैं लेकिन उन्हें कभी इनका जवाब नहीं मिलता क्योंकि यौनिकता के बारे में सटीक जानकारी के स्रोत बहुत कम हैं। इस कारण उनके भीतर सेक्स और यौनिकता से जुड़े मुद्दों के बारे में शर्मिंदगी, भय और अज्ञानता का अहसास बहुत गहरा हो जाता है। इसका एक गंभीर दुष्परिणाम यह भी होता है कि जो युवा जेंडर और यौनिकता के संबंध में तय सामाजिक कायदे-क़ानूनों का उल्लंघन करते हैं, उन्हें शोषण का सामना करना पड़ता है। युवाओं के सशक्तिकरण के लिए यौनिकता शिक्षा अनिवार्य है।
सशक्तिकरण करने वाली यौनिकता शिक्षा की ओर बढ़ने के लिए हमारी निम्न सिफारिशें हैं
- आयु अनूकुल सूचनाएं मुहैया कराना एक अनिवार्य मार्गदर्शक सिद्वांत होना चाहिए। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शिक्षा की विषयवस्तु और शैली संबंधित आयु समूह की ज़रूरतों और हितों के अनुरूप हों। ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यौनिकता एक जीवन भर चलने वाला अनुभव है और केवल किशोरावस्था से शुरू नहीं होता।
- यौनिकता शिक्षा रोगों की रोकथाम के उद्देश्य से उपकरणवादी ढंग से संचालित नहीं होनी चाहिए। एचआईवी और एड्स सहित विभिन्न अन्य बीमारियों के बारे में जानकारियां देना तो महत्वपूर्ण है परंतु यह पाठ्यक्रम का केवल एक हिस्सा हो सकता है। उसके केंद्र में युवाओं की शिक्षा संबंधी आवश्यकताएं ही होनी चाहिए।
- यौनिकता शिक्षा भय पर आधारित और उपदेशात्मक नहीं होनी चाहिए। भय आधारित रवैया निश्चित रूप से नुकसानदेह रहता है। यदि कोई सामग्री या पद्धति विद्यार्थियों में भय पैदा करने की कोशिश करता है तो यह शिक्षा के बुनियादी सिद्वांत — विद्यार्थी के प्रति सम्मान — का हनन है। डर की वजह से विद्यार्थी सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से हिस्सा नहीं ले पाते। यदि उद्देश्य केवल व्यवहार में बदलाव लाने तक ही सीमित है तो भी भय आधारित रवैये से ऐसा बदलाव नहीं लाया जा सकता।
- यौनिकता शिक्षा युवाओं के सूचना के अधिकार पर आधारित होनी चाहिए। हमारा मानना है कि इस सामग्री में यौनांगों एवं प्रजनन तंत्र की बनावट और शरीर विज्ञान, गर्भनिरोध, हस्तमैथुन आदि के बारे में सूचनाएं ज़रूर होनी चाहिए। इन चीज़ों के बारे में जो गलतफहमियां फैली हुई हैं उनको दूर करने के लिए ये बहुत ज़रूरी है क्योंकि इन गलतफहमी से युवाओं को बहुत नुकसान होता है। इस सामग्री में दी जाने वाली सूचना गुमराह करने वाली नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यह सूचना मौजूदा सामाजिक मान्यताओं से तय हो रही है इसलिए उसके ज़रिए जो संदेश दिए जाते हैं उनमें सूचनाओं के विकृत होने का खतरा बना रहता है।
- यौनिकता शिक्षा की पद्धति अपने बारे में सकारात्मक बोध पैदा करने वाली और यौनिकता के प्रति सकारात्मक रवैये पर आधारित होनी चाहिए। हमारे जीवन के अन्य आयामों की तरह यौनिकता के भी सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों आयाम होते हैं। लिहाज़ा हम केवल नकारात्मक आयामों पर ज़ोर नहीं दे सकते क्योंकि ऐसी स्थिति में यौनिकता के एक विस्तृत आयाम को नकारा जाएगा। केवल सकारात्मक रवैया अपनाने से ही युवा अपने साथ होने वाले अन्याय और अधिकारों के हनन को रोक सकते हैं। शरीर और यौनिकता के बारे में शर्मिंदगी का भाव पैदा करने वाली नैतिकतावादी सोच बच्चों और किशोर-किशोरियों को अपने साथ होने वाली गलत हरकतों को पहचानने और उनके बारे में बात करने से रोक देती है। यहां तक कि बच्चे और किशोर-किशोरियां यौन उत्पीड़न के बारे में भी मुंह खोलने से डरते हैं।
- यौनिकता शिक्षा का फ्रेमवर्क समता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित सामाजिक विश्लेषण वाला होना चाहिए पाठ्यक्रम के ज़रिए यौनिकता के बारे में भी उसी तरह समझ विकसित की जानी चाहिए जिस तरह कुछ सामग्रियों में जेंडर के बारे में समझाया गया है। इसके लिए समाजीकरण की संरचनाओं और प्रक्रियाओं के बारे में समझाया जाना चाहिए जिनकी वजह से भेदभाव और अन्याय पैदा होता है। जेंडर की तरह यहां भी कोशिश यह होनी चाहिए कि युवाओं को इस बात का अहसास कराया जाए कि वर्चस्व और नियंत्रण की ताकतों के बावजूद परिवर्तन संभव है। यौनिकता शिक्षा को मौजूदा पूर्वाग्रहों को पुष्ट नहीं करना चाहिए बल्कि विद्यार्थियों को उन पर सवाल खड़ा करने की ताकत देनी चाहिए।
- हाशियाकरण के मुद्दे सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं। ऐसे मुद्दों का महत्व केवल उन्हीं के लिए नहीं है जो प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहे होते हैं, हममें से सभी जीवन के किसी न किसी बिंदु पर इनसे सीधे प्रभावित होते हैं। विकलांगता से जुड़े अधिकारों पर काम करने वाले एक्टिविस्ट गैर-विकलांगों को टैब्स – टैम्प्रेरीली एबल्ड बॉडीड – कहते हैं। यह संबोधन इस मान्यता पर आधारित है कि विकलांगता किसी भी समय किसी भी व्यक्ति के जीवन का हिस्सा हो सकती है। समलैंगिक चाह और जेंडर ट्रांसग्रैशन के मुद्दों के संदर्भ में क्वीयर एक्टिविस्ट लोगों का मानना है कि हम जेंडर और यौन इच्छाओं को जिस तरह अनुभव करते हैं वह न तो प्राकृतिक होता है और न ही स्थायी होता है। विकलांगता की तरह समलैंगिकता, द्विलैंगिकता या विषमलैंगिकता जैसी कोई स्थायी श्रेणियां नहीं होतीं।
- यौनिकता शिक्षा के ज़रिए ‘सामान्य’ (नार्मल) और ‘प्राकृतिक’ जैसे विचारों को पुष्ट नहीं किया जाना चाहिए। यौनिकता शिक्षा इस समझदारी पर आधारित होनी चाहिए कि जेंडर की तरह यौनिकता ही नहीं बल्कि हमारे जीवन के सभी आयाम सामाजिक रूप से निर्मित होते हैं। ‘प्राकृतिक’ और ‘स्वाभाविक’ जैसी कोई चीज़ नहीं होती। प्राकृतिक और सामान्य क्या होता है, इस आशय के विचार दरअसल समाज में मौजूद सत्ता असमानताओं को ही बनाए रखने का साधन होते हैं। इनकी वजह से कुछ लोगों के साथ भेदभाव और उनका हाशियाकरण होने लगता है जिन्हें ‘असामान्य’ या ‘अस्वाभाविक’ माना जाता है। दरअसल कुछ भी प्राकृतिक या सामान्य नहीं होता।
- यौनिकता शिक्षा जीवन के यथार्थ पर आधारित और विविधताओं को प्रतिबिंबित करने वाली होनी चाहिए। यौनिकता शिक्षा में शहरी-ग्रामीण, धार्मिक, विकलांगता, जेंडर, यौन रुझान आदि के लिहाज़ से युवाओं के जीवन में मौजूद विविधता को रेखांकित और प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए।
- यौनिकता शिक्षा प्रदान करने के लिए पूर्वाग्रह मुक्त और सहभागी पद्धति का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यौनिकता शिक्षा के सहारे युवाओं को बहस और संवाद का मौका मिलता है और उन्हें झुंड की तरह हांकने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इस शिक्षा को स्वतंत्र चिंतन, विवेचनात्मक सोच, संवेदनशीलता और सहमर्मिता की परिधि बनाया जा सकता है।
क्रियान्वयन से संबंधित मुख्य सिफारिशें
- मूल स्कूली पाठ्यक्रम में यौनिकता शिक्षा को शामिल करने के लिए फ्रेमवर्क तय करने के वास्ते सरकार को एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन करना चाहिए। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) इस तरह की कमेटी का सबसे अच्छी तरह संचालन कर सकती है क्योंकि उसे देश के सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थानों में गिना जाता है।
- पाठ्यक्रम का फ्रेमवर्क विकसित करने की प्रक्रिया में ऐसे व्यक्तियों और संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए जिनके पास जेंडर/यौनिकता और किशोरावस्था के मुद्दों पर काम करने का अनुभव है। यौनिकता शिक्षा को युवा केंद्रित, समतापरक और न्यायपूर्ण बनाने के लिए ज़रूरी है कि पाठ्यक्रम के विकास की प्रक्रिया ऐसे लोगों की देखरेख में चले जिनके पास इन विषयों की उचित समझ और विशेषज्ञता है।
- सामग्री ऐसी होनी चाहिए जो युवाओं पर केंद्रित हो। इसके साथ ही शिक्षकों के लिए भी सामग्री तैयार की जानी चाहिए। किसी भी दूसरे विषय की तरह यौनिकता शिक्षा की सामग्री ऐसी होनी चाहिए जो सीधे पाठकों को संबोधित करे। ऐसी सामग्री भी बहुत ज़रूरी है जिसे विद्यार्थी खुद प्रयोग कर सकें।
- विकलांगता के साथ रह रहे लोगों के मामले में विशेष तकनीकों से सामग्री तैयार करना ज़़रूरी हैं क्योंकि उनकी ज़़रूरतें और अपेक्षाएं अलग तरह की हो सकती हैं। हमें इस बात को समझना चाहिए कि विकलांगता कई तरह की होती है और ऐसे युवाओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस क्रम में ब्रेल, ऑडियो-विजुअल सहायता आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- चाहे स्कूली पाठ्यक्रम हो या गैर-स्कूली बच्चों के सीखने के लिए कोई और परिधि हो, यौनिकता शिक्षा उसके पाठ्यक्रम में शामिल होनी चाहिए। यौनिकता शिक्षा को एक ‘अतिरिक्त विषय’ के रूप में नहीं देखा जा सकता। जब तक यौनिकता शिक्षा को पाठ्यचर्या का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा तब तक उसे उचित संसाधन नहीं मिलेंगे और उस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाएगा। इसलिए इसे पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बनाया जाना ज़रूरी है।
- सघन शिक्षक प्रशिक्षण तथा अन्य लोगों का क्षमतावर्द्धन ज़रूरी है। यौनिकता और जेंडर ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें बड़े पैमाने पर वयस्कों को भी सीखने और भुलाने की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। जो लोग स्कूली व्यवस्था से जुड़े हुए हैं उनके साथ-साथ युवाओं के बीच काम करने वाले अन्य लोगों, जैसे स्वास्थ्यकर्मी, आदि का भी क्षमतावर्द्धन आवश्यक है।
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ये लेख निरंतर द्वारा प्रकाशित ‘युवाओं के लिए यौनिकता शिक्षा’ किताब पर आधारित है।