बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है| यौन-उत्पीड़न के खिलाफ छात्राओं के विरोध-आंदोलन के शुरू सिलसिला प्रशासन की लाठी तक जा पहुंचा है| अब इसे संयोग कहें या दुर्भाग्य कि ये घटना देश के प्रतिष्ठित शिक्षण-संस्थान की है और ये शिक्षण-संस्थान जिस शहर में है वो देश के वर्तमान प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र भी है|
चुनावी मौसम में बॉलीवुड के गानों की तरह प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रचार-प्रसार में लिखे गये नारे फेमस हुए थे क्योंकि इन नारों में देश के हर तबके को शामिल किया गया था| इसमें आधी आबादी को भी पूरा सम्मान दिया, जिसमें ‘बहन-बेटियों के सम्मान में, बीजेपी मैदान में’ जैसे नारे और ‘सेल्फी विद डॉटर’ जैसे अभियान भी शामिल किये गये थे| पर आज जब हम बीएचयू में अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग कर रही छात्राओं के प्रति प्रशासन का रवैया देखते है तो यह साफ़ हो जाता है कि चुनावी दौर में लगे नारों की दुनिया का मैदान धरती पर नहीं आसमान में ही है जिन्हें सिर्फ चुनावी दौर के समय नारों के इस्तेमाल में लाया जाता है|
छात्राओं के आंदोलन का अहम मुद्दा
आंदोलन की शुरुआत का अहम मुद्दा छात्राओं के साथ आये दिन होने वाली छेड़छाड़ और यौन-उत्पीडन की घटनाओं का है| 21 सितंबर की शाम विजुअल आर्ट फैकल्टी की एक छात्रा के साथ शाम के करीब छह-सात बजे भारत कला भवन के पास बाइक सवार कुछ लड़कों ने यौन-उत्पीड़न किया| विरोध में छात्रा चिल्लाई लेकिन उसकी मदद के लिए कोई भी नहीं आया| उल्लेखनीय है कि घटनास्थल से करीब सौ मीटर की दूरी पर प्रोक्टोरियल बोर्ड का ऑफिस है|
इसके बाद मामला प्रॉक्टर के पास पहुंचा पर प्रशासन ने मामले को टाल दिया| उल्टा छात्रा को ही नसीहत दे डाली यह कहते हुए कि ‘6 बजे के बाद बाहर न निकला करो|’ जब हॉस्टल आकर छात्रा ने और लड़कियों को ये बात बताई तब लड़कियों का गुस्सा फट पड़ा| लड़कियों ने रात में ही बीएचयू के संकुल गेट पर प्रदर्शन किया| पर उनकी आवाज़ सुनने कोई भी नहीं आया| इसके बाद 22 सितंबर की सुबह 6 बजे छात्राएं विश्वविद्यालय के मेन गेट पर पहुंच गईं और उन्होंने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया|
छात्राओं ने यह मांग रखी कि कि वीसी गिरीश चंद्र त्रिपाठी मौके पर आकर उनकी मांगें सुनें और सख्त कदम उठाएं| मगर वीसी साहब आने को तैयार नहीं हुए| नतीजतन छात्राएं भी पीछे हटने को तैयार नहीं हुई| छात्राओं के समर्थन में छात्र भी प्रदर्शन में शामिल हुए और छात्राओं के प्रदर्शन ने स्टूडेंट मूवमेंट का रूप ले लिया|
चुनावी दौर में लगे नारों की दुनिया का मैदान धरती पर नहीं आसमान में ही है जिन्हें सिर्फ चुनावी दौर के समय नारों के इस्तेमाल में लाया जाता है|
छात्राओं की मांगें
आंदोलनरत छात्राओं ने प्रशासन से कुल पांच प्रमुख मांगें रखी :-
- कैंपस में लड़कियों के लिए 24 घंटे सुरक्षा
- कोई वारदात होने पर सुरक्षाकर्मियों को जवाबदेह बनाना
- हॉस्टल आने वाले रास्ते पर पर्याप्त रोशनी
- पूरे बीएचयू कैंपस में सीसीटीवी नेटवर्क
- कैंपस में महिला सुरक्षाकर्मियों की तैनाती
छात्राओं की यह मांग थी कि वीसी सामने आकर उन्हें यह आश्वासन दें कि उनकी इन मांगों को पूरा किया जायेगा| अब सवाल यह है कि छात्राओं की ये मांगें वाजिब है जिन्हें वाकई में बिना कहे पूरा करना चाहिए| पर दुर्भाग्यवश इसके लिए लड़कियां तीन दिन से धरना-प्रदर्शन कर रही थी|
सामने नहीं हास्टल में मिलने पहुंचें वीसी
आंदोलन कर रही लड़कियों की मांग थी कि बीएचयू वीसी प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी लंका गेट पर आकर प्रदर्शनकारी छात्राओं से मुलाकात करें और उनकी मांगों को माने जाने का आश्वासन दें| लेकिन वीसी लड़कियों से डेलिगेशन से मिलने के लिए त्रिवेणी हॉस्टल पहुंच गए| वहां लड़कियों ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया और कहा कि बात सबके सामने होगी| इस पर वीसी भड़क गए, जिसके बाद लड़कियों ने हंगामा कर दिया और उन्हें वहां से हटने पर मजबूर होना पड़ा|
रात के वक़्त किया लाठीचार्ज
जो प्रोक्टोरियल बोर्ड छात्राओं को सुरक्षा देने में असमर्थ रही है उसने लाठीचार्ज में खूब फुर्ती दिखाई| छात्राओं के त्रिवेणी हॉस्टल से निकलने के बाद रात के करीब दस बजे लड़कियों ने वीसी आवास का घेराव किया| लड़कियों ने अपनी पुरानी ही मांग दुहराई कि वीसी घर से निकलें और लंका गेट पर आकर छात्राओं से मुलाकात करें| इसपर लड़कियों का कहना है कि इस छोटी सी बात पर प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सुरक्षाकर्मी भड़क गए और इनलोगों ने तुरंत ही लाठियां निकाल लीं और छात्राओं पर चलाना शुरू कर दिया| इस लाठीचार्ज में कई लड़कियों को भी गंभीर चोटें आई हैं|
प्रशासन ने किया आंसू गैस और रबड़ की गोली का इस्तेमाल
त्रिवेणी हॉस्टल पर जब प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सुरक्षा गार्ड ने लाठीचार्ज किया, तो लड़कों का भी गुस्सा भड़क गया| उन्होंने अपने हॉस्टलों से पथराव कर दिया| कुछ पेट्रोल बम भी फेंके गए, जिसमें एक-दो सुरक्षाकर्मियों को चोटें आईं| इसके बाद मौके पर 23 थानों की फोर्स, पीएसी और आरएएफ तैनात कर दी गई, जिसने लाठियों, टियर गैस और रबर बुलेट से छात्राओं का मुकाबला शुरू कर दिया| छात्राओं के हॉस्टल में तालेबंदी कर दी गई और उनकी लाइट काट दी गई| अंधेरे में अपने बचाव में लगी छात्राओं को पुलिस ने बेरहमी से पीटा| एक छात्रा का भागते वक्त पैर फंस गया, तो उसके पैर पर पुलिस ने इतनी लाठियां मारीं कि उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा|
प्रशासन का लाठीचार्ज से इनकार
बीएचयू में लड़कियों पर लाठीचार्ज हुआ है| कई लड़कियां और लड़के गंभीर रूप से घायल हुए है| कुछ को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा है| पूरा कैंपस पुलिस की छावनी में बदल गया है, लेकिन बीएचयू प्रशासन लाठीचार्ज से ही इनकार कर रहा है| बीएचयू के प्रवक्ता राजेश सिंह ने कहा कि लाठीचार्ज नहीं हुआ है, जो छात्राएं प्रदर्शन कर रही हैं, वो बीएचयू की नहीं हैं| राजेश सिंह की बात को कोई भी कैसे मान सकता है, जब लड़कियां चीख-चीखकर अपने ऊपर पड़ी पुलिस की लाठियों की चोट दिखा रही हैं और अपने डिपार्टमेंट का भी नाम बता रही हैं|
कैंपस में स्टूडेंट के मुद्दों को राजनीति के उन गढे मुर्दों की तरह इस्तेमाल किया जाता है|
जितने मुंह उतनी बातें
लड़कियों से छेड़खानी हुई, जिसके बाद ये लड़कियां खुलकर सामने आईं हैं| अपना विरोध दर्ज करवा रहीं हैं| पुलिस की लाठियां भी खा रही हैं| लेकिन इस आंदोलन के समर्थन के पीछे कई वजहें बताई जा रही है| बीएचयू को जानने वाले लोग बताते हैं कि बीएचयू में हमेशा से ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई चलती रही है| इस बार भी ऐसा ही हो रहा है| वीसी गिरीश चंद्र त्रिपाठी का कार्यकाल नवंबर 2017 में पूरा हो रहा है| उनकी जगह पर नए वीसी की नियुक्ति होनी है, जिसके लिए बीएचयू के ही एक प्रॉक्टर दावेदारी कर रहे हैं| वो जाति से ठाकुर हैं और ब्राह्मण वीसी के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं| इस आंदोलन को धार मिलने के पीछे उनकी भी बैकिंग बताई जा रही है|
वहीं दूसरी तरफ बीएचयू प्रशासन के कुछ लोगों का कहना है कि इसमें अन्य राजनीतिक पार्टियाँ अपनी रोटियां सेंकना चाहती है और जो छात्राओं के कंधें का इस्तेमाल कर रही है| इस पूरी घटना पर जितने लोग है उतनी तरह की बातें बता रहे हैं और किसकी बात सच और किसकी झूठ कुछ भी पाना मुश्किल है|
वीसी साहब का संदेहस्पद बयान
बीबीसी से ख़ास बातचीत में प्रोफ़ेसर त्रिपाठी ने दावा किया, “बीएचयू के छात्रों का मुझसे विरोध हो सकता है, मेरे विचारों से उन्हें परेशानी हो सकती है, लेकिन वो पंडित मदन मोहन मालवीय और अपने विश्वविद्यालय के बारे में कभी ग़लत नहीं सोच सकते|”
उनका कहना है कि बाहरी तत्व ही विश्वविद्यालय के सिंह द्वार पर छात्राओं को भड़का रहे थे|उन्होंने कहा कि जब वो उनसे मिलने के लिए जा रहे थे तो पथराव और नारेबाज़ी शुरू कर दी| वीसी साहब का यह बयान इस पहलू से पूरी तरह संदेहस्पद है कि आंदोलनरत छात्रों की संख्या कोई आठ या दस नहीं थी उनकी संख्या हजारों में थी और अगर आप यह कहते हैं कि ये सभी बाहरी लोग थे तो अब सवाल आपके प्रशासन पर खड़ा होता है कि कैसे आपकी नाक के नीचे से इतनी भारी संख्या में बाहरी लोग आपके कैंपस में आ गये?
इस पूरी घटना में हर दिन ढ़ेरों पहलू सामने आ रहे है लेकिन इन सबमें छात्राओं की मांगों का सवाल अब भी कायम है जो कि पूरी तरह जायज है| चूँकि मैं खुद भी बीएचयू की स्टूडेंट रही हूँ और इस लिहाज से यह ज़रूर कहूंगी कि बीएचयू कैंपस में दोषारोपण-लीपापोती या यों कहें कि हर स्तर पर बुरी राजनीति का लंबा इतिहास है जिसके चलते आज तक स्टूडेंट्स की वाजिब मांगों को कभी-भी स्वीकार्य नहीं किया गया या ये कहें कि होने नहीं दिया गया, जिसके कई सारे कारण रहें है| सालों में हुई घटनाओं और उनसे उठी छात्र-मांगों का अगर विश्लेषण करें तो हम यही पाते है कि कैंपस में स्टूडेंट के मुद्दों को राजनीति के उन गढे मुर्दों की तरह इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें समय-समय पर उखाड़कर कभी प्रशासन तो कभी खुद स्टूडेंट्स के ज़रिए एक-दूसरे के लिए सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है पर उनका कभी कोई हल नहीं निकाला जाता है न निकालने दिया जाता है|
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